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श्रद्धा सुमन

जिंदगी से तो सभी प्यार किया करते हैं, हम तो, ‘देहान्त के पश्चात् भी अपनी देह या देह के अवयव मानवता की भलाई हेतु अर्पित करेंगें।’ ऐसे ही उद्गारों से ओत-प्रोत, सर्वस्व समर्पित करने वाले -देह/देह के अवयव दान करने वाले देह-दानियों को’,‘दधीचि देह दान समिति’ परिवार अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।...............

समाज के प्रति अथाह प्रेम व कुछ करने की इच्छा शक्ति के परिणाम स्वरूप अपना अंग व देहदान करना महार्षी दधीचि के पदचिन्हों पर चलना है। दधीचि देहदान समिति का महादानियों को श्रद्धा सुमन ........

श्री मुरारी लाल गुप्ता ने अपने संपूर्ण 94 वर्ष का सदउपयोग किया। सादगी भरा रहन सहन व उच्च विचारों से परिपूर्ण जीवन में उन्होने रिटायरमेंट के पश्चात् अपने को गरीब व निसहाय बच्चों के प्रति समर्पित कर दिया। घर के सुख व आराम को छोड़कर उन्होंने आश्रम में रहना चुना। अनाथ बच्चों के लिये संस्था बनाकर उनके पालन व शिक्षा का दायित्व निभाया। मृत्यु के बाद भी नेत्रदान कर अपने सिद्धातों का पालन किया।


श्रीमती उषा विद्यार्थी
का जीवन एक भारतीय नारी की आदर्श गाथा है। 6 वर्ष की आयु में शांती निकेतन गई, वहां पर सुभाष चन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, महात्मा गांधी सरीखे महान भारतीयों के संपर्क मंे आयीं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोतर उपाधि प्राप्त की। महात्मा गांधी के निधन उपरांत विसर्जन में विश्वविद्य़ालय की महिला दल की प्रतिनिधि बनकर दिल्ली आई। 1949 में प्रेम विवाह व तत्पश्चात् 1966 में बेटी गोद लेकर समाज को अपने उदारवादी प्रकति का उदाहरण दिया। मृत्यु पश्चात् उनके नेत्र एम्स व देह आर्मी मेडिकल कालेज को महादान किया।

 

श्रीमती विश्व मोहिनी नरूला का जन्म 14 अगस्त 1932 रावलपिंडी में हुआ। दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कालेज से स्नातक की पढ़ाई कर अपने परिवार में रम गई। अत्यंत मृदुभाषी व सरल स्वभाव की होने के कारण समाज में अपना एक अलग स्थान बनाया। मृत्यु पश्चात् उनका सपना साकार करने हेतु उनके परिवार ने उनका नेत्रदान करके देह को मेडिकल कालेज को समर्पित किया।

 


श्रीमती शंकुतला तवाकल
े ने जन कल्याण ट्रस्ट में रहते हुए जन कल्याण हेतु अपने नेत्र व शरीर दान का संकल्प लिया। मृत्यु पश्चात् उनके संकल्प का आदर करते हुए नेत्रदान एम्स में तथा शरीर मेडिकल कालेज, जीटीबी अस्पताल को दान किया गया।

 


श्री संजीव शर्मा
का जीवन में बिमारी से हार कर मात्र 42 वर्ष की अल्प आयु में निधन हो गया। निजी व्यवसाय करने वाले संजीव शर्मा ने हार न मानते हुए मृत्यु पश्चात् अपना नेत्रदान करने का निश्चय किया। शोकाकुल परिवार ने उनकी भावनाओं का आदर करते हुए उनके नेत्रदान के संकल्प को पुरा किया।

 

 

Shri Bhagwan Shankar aged about 70 years unfortunately died on 06.02.2015 of TB in Deen Dayal Hospital Delhi. He was a modest person and had earned his living by selling balloons, ice cream and penuts etc. at different times of his life. About a year back he learnt of a body donation of an acquaintance. This inspired him to resolve to donate his own body and eyes after his death.

As stated, he died on 06.02.2015 of TB. Therefore, his body could not be donated. Shri Hukum Chand, his only surviving son contacted Shri Sudhir Gupta of Dadhichi Deh Dan Samiti and his eyes were donated to RP Institute, AIIMS.

HRI SHRIDHAR ACHARYA’S BODY DONATED TO AIIMS, NEW DELHI

Shri Shridhar Hanumant Acharya was born on 28.08.1928. He came from Udupi in Karnataka State. He became a Swayamsevak of Rashtriya Swayamsevak Sangh while studying for his B.SC. He completed his BL and became a Pracharak in 1950. He worked for the Sangh Parivar for 64 years till his death on 28.02.2015. 

In 1950 his first assignment was  in Balagir, Odisha. The rules required that he had to mark his attendance at the Police Station every evening. It was with some difficulty that he could rent a room. On the very first day, his rented room was burgled and all his belongings stolen. 

Shri Acharya did his third year OTC in 1955. He worked ceaselessly for the spread of Sangh Work for 28 years. In 1978, he was assigned to Bhartiya Jansangh as its State Organising Secretary in Odisha, a responsibility which he performed till 1986. Thereafter, he was assigned for popularising the Sanskrit Language in Kashi, for satsangs in Lucknow and for Shri Ram Janam Bhumi Movement in Delhi. From 2011, he choose to work for popularising products made from Panchgavya. 

He suffered a memory loss in 2013 and lived a secluded life in VHP’s head office at Sankat Mochan Ashram, New Delhi. 

In a function organised at VHP Headquarters, Shri Acharya had pledged the donation of his body after his death. He breathed his last on Saturday 28.02.2015. The VHP contacted Dadhichi Deh Dan Samiti for donation of Acharya’s eyes and body.