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देहदान : गुरबाणी के परिप्रेक्ष्य में

प्रो. कुलविंदर सिंह

बात 500 साल पहले की है जब विज्ञान ने देहदान-अंगदान-नेत्रदान का कार्य शुरू नहीं किया था, उस समय भी परोपकार हेतु यह सब अंकित किया जा चुका था।

वैसे तो हर धर्म में परोपकार को प्रेरित किया जाता है। सिख धर्म जीते जी सेवा, सिमरन और परोपकार की प्रवृत्ति सिखाता है। बाद में शरीर व्यर्थ ना जाए यह भी बताता है। सेवा का कार्य सतत चलता रहे। कबीर जी गुरु वाणी में कहते हैं-

हाड़ जरे जियूं लाकरी केस जरे जियूं घास । एह जग जरता देखकर भयो कबीर उदास ।।
अर्थात हड्डियां लकड़ी जैसे व केश घास जैसे जलता देख कर, पूरे विश्व को जलता देख कर कबीर उदास हो जाते हैं। यह सही नहीं है।

संसार केवल जलने का मकसद लेकर तो पैदा नहीं हुआ ।अपने लक्ष्य का सूक्ष्म आकलन करना चाहिए। यदि समय के अनुसार यह शरीर अन्यथा भी प्रयुक्त हो सकता है तो निसंदेह इसका सदुपयोग करना चाहिए।

कबीर गरब न कीजिए चाम लपेटे हाड़। हैवर ऊपर छतर तर ते फूल घरनी गाड़ ।।
चमड़ी से लिपटे हुए हड्डियों वाले शरीर का गुमान मत करो। जिस शरीर पर छतर झूलते थे वही धरा के नीचे दबा दिया जाता है, यह कैसी विडंबना है।

अंततः यह करोड़ों में भी न मिल सकने वाला बेशकीमती शरीर नश्वर तो है पर फिर भी वह किसी काम का न रहे यह प्रभु की उत्तम रचना का बहुत बड़ा अपमान ही तो है।

हमें विश्लेषण करना ही चाहिए कि जब यह शरीर बना था तो विश्व की सर्वश्रेष्ठ मशीन से भी श्रेष्ठ था। इसके एक एक अंग के खराब होने पर लाखों का खर्चा होता रहा है। पूरे शरीर को करोड़ों से भी बड़ी लागत का माना जाए तो कम है। ऐसे में मुझे कुछ सार समझ में आता है –

  1. मानव देह एक बार मिली है तो हम इसे पूरी तरह इज्जत व लगन से संभाले।
  2. श्रेष्ठ कार्यों में लगाएं।
  3. श्रेष्ठ खाए, पिए, सोचे, अकारण न गवाएं।
  4. जिस अंग या लहू का कोई सानी नहीं है वह कतई व्यर्थ न जाए ।
  5. इस देह को रब की नेमत समझ पूरी ज्यों की त्यों रब तक पहुंचाएं। राष्ट्र की संपत्ति मान राष्ट्र के नागरिकों के हित में देहदान करें।

सिख समाज में जैसे-जैसे यह उत्तम पर नवीन जानकारी दी जा रही है, पिछले छोटे से अरसे में ही एक बहुत बड़ी संख्या देहदान संकल्प कर्ताओं की हो गई है और यह और भी तेजी से बढ़ेगी। समाज के हर नागरिक को अपनी धार्मिक व सामाजिक जिम्मेदारी समझना चाहिए कि वह खुद न केवल जीते जी समाज का हर रूप में सहयोग करें बल्कि मरने के बाद भी देह ऐसे दान की जाए कि पीछे समाज का काफी भला हो सके। आज अच्छे डॉक्टर बनने की पढ़ाई भी कैडेवर पर ही कर सकते हैं। देहदान एक श्रेष्ठ और पुण्य कार्य है जो सभी को करना चाहिए ।