Home
Print
Previous
Next

मेरा सफर मेरा अनुभव


सुनील गन्धर्व

वह वर्ष 2018 का समय था, जब मुझे समिति के साथ जुड़ने का सौभाग्य मिला । दधीचि यात्रा से नैमिषारण्य (सीतापुर) तीर्थ स्थल , दधीचि आश्रम ओर सनातन मंदिरों के दर्शनों का लाभ प्राप्त किया । समिति के दक्षिण विभाग के संयोजक श्रीमान दीपक गोयल  ने हमारी माता जी और छोटे भाई का कार्यक्रम रखा था , परन्तु संयोगवश भाई के स्थान पर माता जी के साथ जाना निश्चित हुआ , जुड़ना जो था समिति के साथ, आभार दीपक जी का । समय-समय पर समिति की गतिविधियों में शामिल होते हुए अंगदान, नेत्रदान, देहदान विषय की विस्तृत जानकारी प्राप्त की । समिति के (संरक्षक) संस्थापक अध्यक्ष श्री आलोक कुमार जी के सरल सहज भाव और कार्य शैली का प्रभाव मन में ऐसा पड़ा कि हर क्षण इस नेक कार्य में ही जीवन को लगा देने का मन रहता हे।

किसी महान आत्मा के शब्द हैं कि खुद को खोजने का तरीका यह है कि खुद को दूसरे की सेवा में खो दो । मानवता कल्याण के लिए इस क्षेत्र में दधीचि देहदान समिति सेवा का जो अद्भुत कार्य कर रही है, उसकी जितनी सराहना की जाए, वो कम ही होगी । सामाजिक तौर से सेवाभाव से प्रभावित एक साधारण परिवार में पले बढ़े होने के साथ साथ वर्तमान में विपरीत समस्याएं और विचारधारा के चलते परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि मुझे इसी सहज भाव से समिति के साथ सेवा कार्य करने की शक्ति प्रदान करते रहें । समिति के कार्यकारिणी पदाधिकारियों और सहकर्मियों का सहयोग , मार्गदर्शन समय समय पर मिलता रहा है , सभी का दिल से आभार प्रकट करता हूं । अंत में इतना ही कहूंगा कि..जीवन ज्योति बुझ जाए तो, नेत्र ज्योति जलती रहे।

हम रहें या न रहें, हमारी आंखें हमेशा देखती रहे । अंगदान , देहदान के महान कार्य में सबसे मिलकर सहयोग का आग्रह करता हूं कि अंधविश्वास और भ्रांति को समाज से दूर कर दयालु बनें और अंगदान करें ।

प्रभु से प्रार्थना कि हम सभी समिति के इस पुनीत कार्य में अपनी सहभागिता निभाते हुए सर्वाधिक आत्म संतोष की प्राप्ति करते रहें ।