सबसे महान दान ‘अंग-दान ’
मृत्यु के बाद जीवन क्या है? इस सोच में घुलते लोग शायद यह विचार भी नहीं करते कि उनका अपना शरीर दूसरों के जीवन को बचा सकता है, या कहें दूसरों को जीवन दे सकता है। अपने समाज और देश में अंग दान के संदर्भ में एक अजीब दुराग्रह बना हुआ है। नतीजा यह है कि एक छोटा सा कदम उठा कर बचाई जा सकने वाली जानें कई बार चली जाती हैं। आंकड़े बताते हैं कि अन्य देशों की तुलना में भारत अंग दान के मामले में बहुत पीछे है। भारत में बहुत ही कम लोग अंग दान में विश्वास रखते हैं। हांलाकि, तमिलनाडु में अब तक 136 लोगों ने अंग दान किए हैं और इस तरह राज्य देश के अन्य सभी राज्यों की तुलना में प्रथम स्थान पर है। इस कसौटी पर अन्य राज्यों के पिछड़े होने के कई कारण हैं। इन कारणों में दो प्रमुख कारण हैं लोगों में जागरूकता की कमी और अंधविश्वास।
कुछ समय पहले जब एक परिचित धर्म-कर्म के लिए मंदिरों का दान के महत्व को मुझे समझा रहे थे, तो मैंने उन्हें अंग दान के महत्व और आवश्यकता के बारे में बताया। लेकिन, इस मसले पर वह एक खास तरह के अंधविश्वास में जकड़े हुए थे। सच यह है कि मृत्यु के बाद हमारी पूरी देह और अंग पंच तत्व में मिल जाते हैं। चिकित्सा-विज्ञान और इससे भी ऊपर उठ कर मानवता के स्तर पर अगर देखें तो कई ज़िंदगियां बचा सकने वाली एक देह और उसके अंग व्यर्थ चले जाते हैं। सवाल उठता है कि धर्मभीरुता और अंधविश्वास लोगों को अगर अंग दान करने से रोकते हैं तो महर्षि दधीचि ने सदियों पहले ऐसा क्यों किया? उन्होंने मानवता को बचाने के लिए अपनी देह की सभी अस्थियां (पूरा कंकाल) दान कर दी थीं। युगों पहले जब एक ऋषि ऐसा कर सकते थे तो इसका अर्थ है कि अंग दान को धर्मभीरुता किसी तरह बाधित नहीं करती।
कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि जो अंग दान कर दिए जाते हैं अगले जन्म में उनका शरीर में अभाव रहता है। विज्ञान के साथ जीते वर्तमान समाज में यह एक हास्यास्पद ख़याल है कि अगर किसी ने यकृत या गुर्दा दान किया है तो अगले जन्म में ये अंग शरीर में नहीं होंगे। फिर प्रश्न यह उठता है कि यदि ये अंग विकसित होते भ्रूण में नहीं बने तो जन्म कैसे संभव होगा? और जन्म लेने वाले नए शरीर में अभाव कैसे होगा? फिर अगले जन्म को किसने देखा है? हिन्दू धर्म में मान्यता है कि जो जितना दान करता है उसका दुगना उसे मिलता है। इस मान्यता के मुताबिक अंग दान करने वाले को अगले जन्म में दुगना न सही अंगों की कमी तो होगी ही नहीं।
अंग दान से एक इंसान (मृत्यु के बाद और कभी-कभी जीवन रहते भी) अपने स्वस्थ अंगों और टिश्यूज़ के प्रत्यारोपण की इजाज़त देकर पचास ज़रूरतमंद लोगों की मदद कर सकता है। भारत में यकृत (लिवर), गुर्दे (किडनीज़), दिल (मस्तिष्क मृत्यु के मामले में), पेंक्रियाज़, छोटी आंत और फेफड़े (लंग्स) का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इनके अलावा टिश्यूज़ भी दान किए जाते हैं जो ज़रूरतमंदों को जीवन और प्रकाश देते हैं। जिन अंगों को जीवित व्यक्ति दान कर सकता है वह हैं त्वचा (स्किन), रक्त (ब्लड), स्टेम सेल, अस्थि मज्जा (बोन मैरो), गुर्दा (किडनी) और यकृत (लिवर)।
भारत सरकार ने 2011 में मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम पारित किया, जिसमें मानव अंग दान की प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रावधान किए गए। ध्यान देने की बात है कि भारत में हर साल पांच लाख लोगों की मृत्यु केवल अंगों के नाकाम हो जाने से हो जाती है। यानी दो लाख लोग यकृत खराब हो जाने से, डेढ़ लाख लोग गुर्दे और पचास हज़ार लोग हृदय की धड़कन रुक जाने से मर जाते हैं। दुःखद बात यह है कि डेढ़ लाख मरीज़ों को यकृत प्रत्यारोपण की ज़रूरत है लेकिन उपलब्धि मुश्किल से पांच हज़ार की ही है। इसी तरह एक लाख लोगों को प्रत्यारोपण के लिए दान में मिले नेत्रों की ज़रूरत है। आवश्यकता अधिक और पूर्ति कम होने की वजह से अवैध तरीके से अंग हासिल करने के लिए मानव अंगों की तस्करी, बच्चों के गुम होने जैसे अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
अंग दान सबसे बड़ा दान है, क्योंकि ऐसा करके एक इंसान कई ज़िंदगियों को बचा सकता है। दान करने के लिए दो माध्यम हो सकते हैं - स्वयंसेवी संगठन और अस्पताल। इन दोनों ही माध्यमों से कानूनन अंग दान किए जाते हैं। इसके लिए किसी भी माध्यम में जाकर एक फाॅर्म भर कर संकल्प लिया जाता है कि मरने के बाद फाॅर्म मरने वाला ये-ये अंग दान करेगा। और फिर, संकल्प लेने वाले की मृत्यु होने के बाद फाॅर्म में उल्लिखित अंग दान हो जाते हैं। कोई भी अपना एक अंग या देह के काम आ सकने वाले सभी अंग दान करने का संकल्प ले सकता है। हां, अंग दान के लिए संकल्प फाॅर्म भरने के बाद दानकर्ता इसकी जानकारी अपने परिवार को अवश्य दे, ताकि वह (परिवार) दानकर्ता की मृत्यु के तत्काल बाद संबंधित अस्पताल या स्वयंसेवी संस्था को सूचित कर दे। दान में मिले अंगों का प्रत्यारोपण छह से बारह घंटे के अंदर हो जाना चाहिए। दान में मिले अंग का जितनी जल्दी प्रत्यारोपण होगा ज़रूरमंद मरीज़ के शरीर के अंदर उसके (अंग के) काम करने की क्षमता और संभावना उतनी ही अधिक होगी।
एक नवजात से लेकर नब्बे साल का वृद्ध या वृद्धा अंग दान कर सकते हैं। केरल के तिरुअनंतपुरम् में अंजना नाम की तीन साल की एक बच्ची ने अपने दोनों गुर्दे, यकृत और आंखें दान की जिनसे पांच साल के एक बच्चे को जीवन और आंखों की ज्योति मिली। अगर तीन साल की बच्ची यह काम कर सकती है तो वयस्क क्यों नहीं? धर्मभीरुता या आस्था के वशीभूत होकर किए जाने वाले दान से किसी की थोड़ी और तात्कालिक भौतिक मदद अवश्य हो जाती है, लेकिन जीवन बचाने या देने के लिए किया गया अंग दान अपनी उपयोगिता में महान हो जाता है।
-अनिल कुमार पालीवाल