गुरु नानक देव जी के 550 वे प्रकाशोत्सव की सीख
प्रो. कुलविन्दर सिंह,
सदस्य, केन्द्रीय समिति, दधीचि देह दान समिति
सिख धर्म में सेवा, सिमरन व परोपकार को बहुत महत्व दिया गया है। सेवा - मन व शरीर दोनों से सेवा करने का भाव, उसमें सदा लगे रहना। सिमरन - रब के गुणों को मन में दोहराते रहने से रब के गुणों को पा जाना और उन्हीें को जीवन में उतारना। परोपकार - पर उपकार अर्थात् दूसरों पर उपकार से खुद को मोक्ष के रास्ते पर डालना और समर्पित हो जाना। गुरु नानक ने दसवंत के लिए भी सीख दी है, जिसके अनुसार हर महीने आमदनी का 10 प्रतिशत अच्छे कार्यों में दान करना और समय का भी 10 प्रतिशत हर रोज़ दूजों के प्रति समर्पण करना, ज़रूरतमंदों की सेवा में लगाना। सब कुछ इस भाव से करना कि वो रब करवा रहा है, उसी का है, मेरा कुछ नहीं।
ये वो बातें हैं जो गुरु नानक देव जी के अपने जीवन में थीं। उन्होंने सबको इसी तरह हिदायत दी, ताकि संसार में सब सेवार्थी हों, रब के उत्तम गुणों से परिपूर्ण हों व सर्वथा परोपकारी हों, दूजों के दुःखों को अपना जानें। आज के दौर में हम देखते हैं कि चारों तरफ बहुत बीमारियां हैं और बीमारियों के इलाज भी हैं। जहां बीमारियां शरीर के किसी अंग के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण हैं वहीं अगर वह अंग प्रत्यारोपित हो जाए तो रोगी स्वस्थ हो जाता है। हज़ारों-लाखों लोग रब की बख्शी इस काया में शरीर के अंगों के क्षतिग्रस्त होने से परेशान हैं, तकलीफ़ पाकर अंगों के न मिलने से दुनिया छोड़ रहे हैं। हम सोचें कि हम अपने अंगों व शरीर के दान द्वारा इनकी सेवा कर सकते हैं।
‘‘पशु मरे दस काज संवारे - नरु मरे किछु काम न आवे’’ गुरुवाणी के अनुसार पशु तो जीते जी कई सुख इंसान व सबको देता है, जब मरता है तो खाल, हड्डी व अन्य तरीकों से प्रयोगों के लायक रहता है। क्या हम पशु से यह नहीं सीख सकते कि मरने के बाद शरीर जलाया या दफ़नाया न जाए बल्कि दान में देकर ज़रूरतमंद इंसानों को जीवन देने के काम में लाया जाए।
’’मिट्टी को जब होना ही है मिट्टी, क्यों न किसी के काम आए ये मिट्टी
जलाएंगे, दफ़नाएंगे, बाॅडी कहलाएंगे, नेमत मिली, बंदों के नाम जाए मिट्टी’’
गुरु नानक देव जी को एक राजा मिला। लालची व पैसे के पीछे पड़े रहने वाला था। गुरु नानक ने उस राजा को एक सुई देकर कहा ‘जब उस परमात्मा के धाम जाऊंगा तो ले लूंगा। इसे रख लो‘। राजा ने सुई ले ली। रानी के समझाने पर गुरु नानक देव को सुई वापस कर दी और कहा कि यह सुई तो यहीं संसार में रह जाएगी। तब गुरु नानक ने कहा, ‘जब सुई भी साथ न जा पाएगी तो वो इकट्ठा करो जो साथ जाए - अच्छे कर्म, परोपकार व दान।’
हम भी यह समझें कि रब का बनाया यह शरीर अनमोल है। आंख, हाथ-पांव, त्वचा, दिल, गुर्दा या कोई भी अंग दुनिया की किसी मशीन में कितनी भी कीमत देकर नहीं बनाया जा सकता। और, हम इसे जला कर, दफ़ना कर रब की सर्वश्रेष्ठ रचना का सर्वथा तिरस्कार कर देते हैं, जबकि इसका सदुपयोग हो सकता है। इसलिए हम ये संकल्प करें कि हमें अंगों का दान करना है, देह का दान करना है। इसमें परिवार की इच्छा शामिल करना भी बहुत ज़रूरी है ताकि सांसें टूटने पर ये दान हो सकें।
भारत में हज़ारों लोग हादसों में मर जाते हैं। अगर, केवल उनके परिवार वाले दिलेरी दिखाएं, ब्रेन स्टेम डेथ वाले मामलों में देह दान कर दी जाए तो शायद न केवल भारत विश्व का अग्रणी देह व अंग दानी हो जाएगा बल्कि भारत में एक भी बीमार अंगों के अभाव में जीवन नहीं गंवाएगा। ज़रा गौर करें कि गुरु नानक देव का मिशन हमें क्या चेता रहा है व हम उसे मान रहे हैं या हीरे गंवा रहे हैं।