श्रद्धा सुमन
यादवराव जी को दी गई श्रद्धांजलियां
6 जून, 2015 को श्री यादवराव देशमुख के अपने नश्वर शरीर से मुक्ति पा लेने के बाद भी उनके प्रशंसकों, उनके द्वारा गढ़े गए अनगिनत स्वयं सेवकों, उनके मित्रों, सहकर्मियों किसी को भी यह नहीं प्रतीत हुआ कि वह हम सब से दूर हो गए हैं। हर एक महसूस कर रहा था कि वह उन्हें अब भी देख रहे हैं। वजह साफ है। चिर निद्रा में जाने से कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने नेत्र-दान और अपनी देह-दान का संकल्प ले लिया था। गरु नानक अस्पताल में दान किए गए उनके नेत्रों ने प्रतीक्षारत दो लोगों को रोशनी दी। उनकी देह मौलाना आज़ाद मेडिकल काॅलेज को दान की गई। श्रद्धांजलि सभा स्थल था दीन दयाल शोध संस्थान। श्रद्धांजलि आयोजन में उपस्थित कुछ उल्लेखनीय नाम हैं - आरएसएस के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले, बीजेपी संगठन के महामंत्री श्री रामलाल, चिंतक प्रो. देवेन्द्र स्वरूप अग्रवाल, दधीचि देह-दान समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री आलोक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता, राम बहादुर राय, नलिनी सिंह, राहुल देव इत्यादि।
कार्यक्रम का संचालन करने वाले प्रख्यात चिंतक डाॅ. महेशचंद्र शर्मा ने अपने संबोधन की शुरुआत कुछ तरह से की। उन्होंने कहा, ‘‘दीन दयाल शोध संस्थान में मौज़ूद सभी लोगों में ऐसा कोई नहीं होगा जिसे यादवराव जी के परिचय की ज़रूरत होगी। हांलाकि, जो विभूतियां लम्बे काल तक समाज में सक्रिय होती हैं उन्हें सम्पूर्णता से जानना कठिन होता है। यादवराव जी, दीन दयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव रहे, पांचजन्य के संपादक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक होने के साथ संस्कार भारती के निर्माताओ में से एक थे। ऐसे उनके अनेक औपचारिक परिचय होते हैं, लेकिन वह एक स्वयंसेवक ही थे। छोटे-बड़े अपने सभी उम्र के साथियों के बीच काका नाम से पुकारे जाने वाले यादवजी को जानने वाले ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने उनको उस काल में नहीं देखा जब वो अपने यौवन की दहलीज़ पर थे, और उन्होंने अपने आप को देश को, समाज को समर्पित कर दिया था।
संघ के माननीय सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, ‘‘यादवराव जी से मिलने का अवसर संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठकों में मिला करता था। प्रधान सचिव के नाते वह संस्थान के जो कार्यकलाप हैं उनके बारे में बताते रहते थे। मैं विद्यार्थी परिषद की ओर से उन बैठकों में शामिल हुआ करता था। यादवराव जी के कारण नानाजी देशमुख से भी मेरा परिचय हुआ। एक नाना और एक काका। इन दोनों ने मिल कर दीन दयाल के नाम से शुरू आंदोलन को देश में योग्य बनाने के लिए अपने जीवन का कण-कण और क्षण-क्षण लगाया। दोनों ने, जीवन का अंत होने के बाद भी शरीर का लाभ समाज को हो यह कार्य कर एक बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री दत्तात्रेय ने यादव राव जी के संदर्भ में संस्कृत का एक श्लोक पढ़ा, ’ निन्दन्तु नीति निपुणः यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मी समाविषतु गच्छतु वा यथेष्टम्। अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे या न्यायात् पथात् प्रविचलन्ति पटम् न धीराः।।’ इसका अर्थ है नीति निपुण लोग स्तुति करें, प्रशंसा करें या निन्दा करें, लक्ष्मी-धन-सम्पत्ति-कीर्ति-यश आएं या न आएं, मृत्यु हो या अमर हो जाएं, धीर व्यक्ति किसी भी स्थिति में न्यायपथ को छोड़ता नहीं है। यादवराव जी जीवन भर ऐसे ही धीर व्यक्ति रहे।’’
संघ के प्रचारक एवं भाजपा के महामंत्री श्री रामलाल जी ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में काम करने के कारण मुझे उनसे कई बार मिलने का अवसर मिला। दिल्ली में जब एक बार उनसे मिलना हुआ, मेरे मुंह से अनायास निकल पड़ा ‘मेरे लिए कोई मार्ग दर्शन‘ तो उन्होंने सिर्फ मेरे सिर पर हाथ रख दिया। मैंने देखा सभी उन्हें यादव काका के नाम से संबोधित कर रहे थे। रिश्ते, नातेदारी तो बहुत सारी होती है चाचा, मामा, ताऊ, फूफा लेकिन काका शब्द उसी को मिलता है जो सहयोगी भी होता है, मित्र भी होता है, संरक्षक भी होता है, वह खासतौर से भी सिखाता है, बोल कर भी सिखाता है, सिर पर हाथ रख कर भी सिखाता है। मुझे लगा वह सबके काका इसीलिए बने क्योंकि निश्चित रूप से कि उनमें इन सारे गुणों का समावेश था और इसीलिए वह शायद इतने लोगों को गढ़ पाए।’’
विख्यात इतिहासकार श्री देवेन्द्र स्वरूप अग्रवाल ने कहा उनका और यादवराव जी का 68 वर्षांे का साथ रहा है। जीवन की आखिरी सांस लेने से पहले भी वह उनके करीब थे। उन्होंने यादवजी के अंतरंग को देखा है और उनके परिवार के अभिन्न रहे हैं। उन्होंने विनम्र निवेदन किया की कि यादवराव जी के करीबी अन्य लोगों के माध्यम से सभागार में उपस्थित सभी गण उनको जाने, उनका दर्शन करें।
दधीचि देह-दान समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने अपने उद्गार इस तरह व्यक्त किए, ‘‘संघ की प्रार्थना में हम कहते हैं, ‘त्वदर्थे पतत्वेषकायो।’ दधीचि देह-दान समिति के माध्यम से हमने नश्वर शरीर के गिरने के बाद भी उसको समाज को अर्पण करने का अवसर दिया है।’’
‘‘उनके जाने की सूचना आई तो मैं उस समय संघ शिक्षा वर्ग में था। मैं तो स्वयं नहीं आ सका पर यादव काका की आंखें दो और लोगों के द्वारा इस सृष्टि को देख रही हैं। उनका शरीर, शरीर माने नख-शिख, सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक शरीर का प्रत्येक अंग मेडिकल काॅलेज के शिक्षा विद्यार्थियों के लिए खोला जाएगा, उनके द्वारा पढ़ा जाएगा, उनके अभ्यास के काम आएगा। आर्य समाज के एक संन्यासी ने बताया था कि जब व्यक्ति का अंतिम संस्कार होता है तो वह कहता है मैंने मिट्टी का अंश मिट्टी को लौटाया, जल के अंश को जल को लौटाया.....। और, ऐसा कहते हुए वह पांचों तत्वों को लौटा देता है। पांच तत्वों के इस संघात में, जिसमें यादव काका की काया 87 वर्ष तक रही, उस काया से मुक्त होकर वह तो मोक्षवासी हो गए, पर वह पांचों तत्वों को एक मेडिकल काॅलेज के विद्यार्थियों को कुशल, समर्थ बनाने के लिए समर्पित कर गए।’’
पत्रकार श्री राहुल देव ने कहा, ‘‘देह-दान तो उन्होंने अब किया लेकिन आत्म-दान तो वह कब का कर चुके थे। उनको मुझसे बेहतर जानने वाले, उनके साथ काम करने वाले बहुत लोग रहे हैं। मैं सिर्फ इतना बोल सकता हूं जब वित्तेष्णा (धन इच्छा) तुष्ट हो जाती है तो अंतिम ईष्णा, जो सबसे कठिन है, लोकेष्णा (यश इच्छा) बड़े से बड़े लोगों में, जो सचमुच बड़े हैं, हृदय से बड़े हैं, विचार से बड़े हैं, अक्सर हम पाते हैं उनमें लोकेष्णा बनी रहती है। काका शायद ऐसे व्यक्ति थे जिनमें कोई भी ईष्णा लेशमात्र नहीं थी, यश की, अपने चाहे जाने, जो उन्होंने किया जो उन्होंने लोगों को दिया उसकी पहचान स्थापित करने जैसा कुछ भी नहीं। जीवन में जो परिस्थिति रही, जीवन ने उनको जो कुछ दिया उन्होंने प्रसाद की तरह स्वीकार किया और जीया। हम सब में कुछ गढ़ने कुछ बड़ा करने की इच्छा किसी न किसी रूप में है लेकिन वह उससे भी मुक्त थे। यही वह विलक्षण चीज़ है जो मुझे शायद कहीं नहीं दिखी।’’
वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय ने श्रद्धांजलि स्वरूप पत्रकारिता के प्रति उनकी सोच को व्यक्त किए। उन्होंने कहा, ’’पांचजन्य के संपादक के रूप में यादवराव जी ने संघ के उस समय किए गए रेल रोको आंदोलन की आलोचना में संपादकीय लिखा था, जिसे लेकर स्वयंसेवकों में काफी नाराज़गी थी। हांलाकि धीरे-धीरे मामला शांत हो गया, लेकिन दीन दयाल जी ने उनसे इस सिलसिले में कुछ नहीं कहा। जब उनकी सहन शक्ति चुक गई तब उन्होंने स्वयं ही दीन दयाल जी से पूछा कि उन्होंने रेल रोको आंदोलन की आलोचना की लेकिन उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। दीन दयाल जी ने सिर्फ एक बात पूछी तुम्हें अपने लिखे पर विश्वास है या नहीं। जब यादव राव जी ने जवाब दिया ‘हां है’, तो उन्होंने कहा पत्रकार का यही काम है।’’
प्रस्तुति: इन्दु अग्रवाल
दादा सुलेखचंद, किशारवय पोता ऋषभ
सोमवार 1 जून, 2015 को आनंद विहार में अशोक निकेतन रेड लाइट पर एक सड़क दुर्घटना में स्कूटी पर सवार दादा-पोते की मृत्यु हो गई। दादा श्री सुलेखचंद जैन की उम्र 65 वर्ष व पोते ऋषभ की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। ऋषभ की मृत्यु मौके पर ही और श्री सुलेखचंद की हेडगेवार अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। ए-ब्लाॅक, लक्ष्मण मार्क, कृष्णा नगर निवासी दादा-पोते की आंखें गुरु नानक आई हाॅस्पिटल को दान कर दी गई। एक साथ दो अकाल मौतों की असहनीय पीड़ा में डूबे ऋषभ के पिता और श्री सुलेखचंद के बेटे श्री विकास जैन के इस फैसले के सामने दधीचि देह-दान समिति नतमस्तक है।
श्रीमती सुशीला मेहता
पंजाब के अमृतसर में जन्मीं, पली-बढ़ीं और शिक्षित हुईं श्रीमती सुशीला मेहता, विवाह के बाद दिल्ली आ गईं। दिल्ली में बंगला साहिब गुरुद्वारे के समीप श्री गुरु हरकिशन कन्या विद्यालय में इकाॅनोमिक्स की अध्यापिका बन गईं। उन्होंने अपनी अंतिम सांस 22 जून, 2015 को ली। बचपन से ही संस्कारी श्रीमती सुशीला ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिया भाग लिया था और सांस्कृतिक कार्यों से भी जुड़ी रहीं। उनके पति की उनसे पहले मृत्यु हो चुकी थी और उन्होंने समाज कल्याण के लिए अपनी देह का दान एम्स में किया था। उसी आदर्श परम्परा को निभाते हुए श्रीमती सुशीला के पुत्र और पुत्रवधू ने उनकी मृत देह को भी एम्स में दान कर दिया।
श्री बालादीन
श्री बालादीन का जन्म 3 अप्रैल 1950 को झांसी में हुआ। झांसी शहर में ही उनकी पढ़ाई पूरी हुई। इसके बाद वह दिल्ली आ गए और एक निजी संस्थान में नौकरी की। डी 104/ए, उदय विहार, निठोली एक्सटेंशन, विकासपुरी, दिल्ली निवासी श्री बालादीन की मृत्यु 15 जून, 2015 को हुई। शांत स्वभाव, दूसरों की मदद करने वाले श्री बालादीन की अंतिम इच्छानुसार परिवार ने उनकी आंखों और देह को एम्स में दान कर दिया।
श्रीमती राजरानी गुप्ता, उम्र 56 वर्ष, निवासी 213, विवेकानंदपुरी, सराय रोहिल्ला, दिल्ली-110007 की मुत्यु 3 मई, 2015 को हुई। उनके संबंधी श्री वरुण गुप्ता ;9868089958द्ध ने उनकी इच्छानुसार उनकी आंखें गुरु नानक आई सेंटर को दान कर दीं।
श्री सतीश जैन बासठ साल के श्री सतीश जैन की मृत्यु 8 मई,2015 को, उनके निवास स्थान 2309ध्8डी, मंदिर वाली गली, शादीपुर डिपो, कर्मपुरा, वेस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली में हुई। उनके बेटे श्री निपुन जैन ;9650138338द्ध ने उनकी आंखें आर.पी. सेंटर, एम्स को दान कीं।
श्री मूलचंद गुप्ता की मृत्यु 29 मई, 2015 को हुई। इनकी उम्र 83 साल थी। श्री गुप्ता 145 सीध्9, सेक्टर 7, रोहिणी, दिल्ली के निवासी की आंखें गुरु नानक आई सेंटर को दान की गई। सम्पर्क सूत्र श्री कृष्ण कांत ;9868045140 और 8377862384द्ध।
श्री दीवानचंद सहगल की मृत्यु 8 जून 2015 को हुई। इनकी उम्र 91 साल थी। श्री सहगल 3470, राजा पार्क, नियर रानी बाग, नई दिल्ली के निवासी थे। उनके पुत्र श्री रविन्दर सहगल, ;98112288460द्ध ने उनकी आंखें आर.पी. सेंटर, एम्स को दान की।
श्रीमती सरस्वती देवी जीडी-189, पीतमपुरा, नई दिल्ली की निवासी श्रीमती सरस्वती देवी की उम्र 94 वर्ष थी। उनकी 15 जून, 2015 को हुई और उनके पुत्र श्री एन.आर. जैन ;9711917855द्ध ने उनकी देह यू.सी.एम.एस. गुरु तेग बहादुर अस्पताल को दान कर दी।