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सत्ताईसवां देहदानियों का उत्सव

‘देह-अंग दान आध्यात्मिक आंदोलन है’

दधीचि देह दान समिति ने पश्चिमी क्षेत्र, दिल्ली में देहदानियों का उत्सव आयोजित किया। यह सत्ताईसवां उत्सव था। दिन रविवार। दिनांक 7 मई, 2017। स्थान आशीर्वाद बेन्क्वेट हाॅल, नज़फ़गढ़ रोड, जनकपुरी। उत्सव के मुख्य अतिथि थे डाॅ. विमल भण्डारी, निदेशक, नेशनल आॅर्गन एंड टिश्यू ट्रान्सप्लांटेशन (नोटो); विषय प्रस्तुतिकर्ता थे डाॅ. मेजर जनरल एन. सी. अरोड़ा, डीन, आर्मी काॅलेज आॅफ मेडिकल साइंस तथा डाॅ. कर्नल एम. एस. अहूजा, प्रो. आर्मी काॅलेज आॅफ मेडिकल साइंस। मुख्य वक्ता श्री आलोक कुमार, संस्थापक अध्यक्ष, दधीचि देह दान समिति। कार्यकम का संचालन किया पूर्व निगम पार्षद सुश्री मीना ठाकुर ने।

श्लोक वाचन और दीप प्रज्ज्वलन के साथ उत्सव शुरू हुआ। गणमान्य अतिथियों के स्वागत के बाद सबसे पहले मेजर जनरल एन. सी. अरोड़ा और प्रो. डाॅ. कर्नल अहूजा ने पावर प्वाइंट प्रेज़ेन्टेशन किया। उन्होंने बताया दान दो तरह के होते हैं। अंग दान और देह दान। अंग दान में नेत्र, गुर्दे, यकृत, हृदय, हृदय के वाॅल्व, आंतें, पैंक्रियाज़, हड्डियां, बोन मैरो, टिश्यू, त्वचा आते हैं। इस दान में नेत्र, एक गुर्दा और यकृत का टुकड़ा जीवित दानी से लिया जा सकता है। ऐसा होने पर दान लेने वाले का जीवन 15 से 20 साल बढ़ जाता है। दानी के शरीर में यकृत बाद में स्वतः पुनः आकार ले लेता है। बाकी सभी अंग मस्तिष्क मृत दानी से लिए जाते हैं। एक नेत्र आठ लोगों को रोशनी देता है। उन्होंने बताया हमारे देश में अंगों की मांग बहुत अधिक है जबकि आपूर्ति चिन्तनीय रूप से बहुत कम। वजह है जागरूकता का अभाव और रुढ़िगत मान्यताएं।

मुख्य अतिथिं डाॅ. विमल भण्डारी ने भी अंगों और मृत देह की मांग व आपूर्ति के बीच विशाल अंतराल की वजह जागरूकता का अभाव को माना। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि नोटो ने, पिछले एक साल में देश के सभी सरकारी अस्पतालों व पांच क्षेत्रीय आॅर्गन एंड टिश्यू ट्रान्सप्लांटेशन (रोटो) के माध्यम से ज़रूरतमंद मरीज़ों की सूची तैयार करने की कोशिश की है। नोटो अंग उपलब्धि के लिए विशिष्ट, अति विशिष्ट, सम्पन्न लोगों को कोई प्राथमिकता नहीं देता। इसका पालन कट्टरता से किया जाता है। प्रतीक्षा सूची के क्रम में ही मरीज़ को अंग उपलब्ध कराया जाता है। फिर वह चाहे गरीब हो या अमीर। उन्होंने यह भी कहा दधीचि देह दान समिति, नोटो व अन्य संस्थाओं के माध्यम से देह/अंग दान के प्रति शहरी आबादी में तो काफी जागरूकता आई है लेकिन, अभी ग्रामीण इलाकों में लोगों को देह/अंग दान के महत्व को बताना है और उनकी अंध धार्मिक मान्यताओं को धर्मगुरुओं की व्याख्याओं से दूर करना है।

प्रो. कुलविन्दर सिंह और श्री नीरज शर्मा ने देह/अंग दान के प्रति अपनी भावनाओं से उपस्थित लोगों को अवगत कराया। दोनों के ही पिता उनके प्रेरक रहे।

मुख्य वक्ता श्री आलोक कुमार ने देह/अंग दान को आध्यात्म से जोड़ा। उन्होंने सबसे कम उम्र सात दिन के शिशु और सबसे अधिक उम्र 77 साल के श्री वीरभान के मरने के बाद देह दान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा लोगों की प्रेरक समिति नहीं बल्कि ऐसे लोग हैं। शिशु की देह उसके दादाजी श्री अरविन्द ने अनुसंधान के लिए एम्स को दान कर दी। समिति तो बस स्वस्थ-सबल भारत की नींव मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा देह/अंग दान आध्यात्मिक आंदोलन है। जीते जी दानी शरीर का ट्रस्टी होता है और मृत्यु के बाद वह देह/अंग दान के रूप में इस आध्यात्मिक आंदोलन रूपी यज्ञ में समिधा डाल देता है।

आचार्य वीरेन्द्र विक्रम, वैदिक विद्वान, आर्य समाज, ग्रेटर कैलाश - 1, दिल्ली ने, श्री आलोक का समर्थन करते हुए देह/अंग दान को आध्यात्मिक आंदोलन बताया। उन्होंने इसके लिए समिति के किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और नारा दिया ‘स्वस्थ देह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।’

दधीचि देह दान समिति पिछले 20 साल से देह/अंग दान के लिए लोगों को समझा-बता रही है। इन वर्षों में समिति का काम दिल्ली में इतना अधिक बढ़ गया है कि पूरे काम को आठ क्षेत्रों में बांट दिया गया। इन क्षेत्रों में संबंधित संयोजक समिति के काम को अंजाम देते हैं। श्री आलोक कुमार के मुताबिक उत्सव में पहले जहां प्रत्येक संकल्पकर्ता दानी को परिचय कराया जाता था आज एक क्षेत्र की सूची ही इतनी लम्बी है कि सबके नाम पढ़ना समय लेने वाला हो गया। पश्चिम क्षेत्र में आयोजित इस सत्ताईसवें देहदानियों के उत्सव में 168 लोगों ने देह/अंग दान के लिए संकल्प फार्म भरे।