श्रद्धा सुमन
श्रीमती सुमित्रा देवी
श्रीमती सुमित्रा देवी का 5 जनवरी, 2016 को निधन हो गया। उनकी उम्र 85 वर्ष थी। उनकी मृत देह लेडी हार्डिंग मेडिकल काॅलेज को सौंप दी गई। वह जीवन भर आर्य समाज की गतिविधियों से जुड़ी रहीं। उनके परिवार के अधिकांश सदस्य मेडिकल लाइन से संबंधित हैं, इसलिए देह-अंग दान पर परिवार में जागरूकता होना स्वाभाविक है। लेकिन, सामाजिक सहभागिता का जीवन जीने वाली श्रीमती सुमित्रा देवी ने स्वतः प्रेरणा से देह दान का संकल्प अपने जीवनकाल में बहुत पहले ही ले लिया था। परिवार के सभी सदस्यों द्वारा देह दान का संकल्प अभिनंदनीय है। दिवंगत आत्मा को दधीचि परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि।
सरदार प्रीतम सिंह
मृत्यु के बाद सरदार प्रीतम सिंह के नेत्र गुरुनानक आई अस्पताल को दान कर दिए गए। उनकी मृत्यु 13 जनवरी 2016 को हुई। उनकी उम्र 62 वर्ष थी। मोती नगर के बी ब्लाॅक स्थित गुरुद्वारे को बनाने में शुरू से ही उनका पूरा सहयोग था। समाज के किसी भी व्यक्ति की मदद के लिए वह हर समय तैयार रहते थे। दधीचि देह दान समिति के एक सक्रिय सदस्य द्वारा नेेत्र दान की ओर ध्यान दिलाते ही पूरा परिवार तुरंत इसके लिए तैयार हो गया। मानवता के इस पुण्य कार्य के लिए परिवार को नमन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे, यही दधीचि परिवार की प्रार्थना है।
श्रीमती शकुंतला देवी
पांच बच्चों का भरा-पूरा परिवार छोड़ कर श्रीमती शकुंतला देवी 14 जनवरी, 2016 को परलोक सिधार गईं। उनकी आंखें गुरुनानक आई अस्पताल को दान कर दी गईं। जीवन भर उनकी छवि धार्मिक विचारों वाली एक सद्गृहस्थ महिला के रूप में रही। नेत्र दान का संकल्प लेने के लिए शकुंतला देवी को उनके बेटे श्री अशोक महाजन ने काफी चर्चा के बाद तैयार किया था। इस महादान के लिए दधीचि परिवार उनके प्रति श्रद्धावनत है।
श्री काली चरण अग्रवाल
श्री काली चरण अग्रवाल की 16 जनवरी, 2016 को मृत्यु हो गई। उनकी उम्र 85 वर्ष थी। दधीचि देह दान समिति के माध्यम से उनकी देह, चिकित्सा छात्रों के अध्ययन हेतु वर्धमान मेडिकल काॅलेज को सौंप दी गई। वह अपने पीछे पांच पुत्र और दो पुत्रियां और उनका भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के श्री काली चरण का मथुरा (उत्तर प्रदेश) के सरस्वती शिशु मंदिर के निर्माण कार्य में सक्रिय योगदान था। इसका प्रमुख कारण था शिक्षा के प्रचार-प्रसार में उनकी विशेष रुचि का होना।‘शिक्षा प्रचार’ नाम की एक मासिक पत्रिका के वह प्रकाशक भी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन समाज के लिए उपयोगी बने रहने के लिए समर्पित था। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
श्रीमती प्रेमवती आर्य
जीवन का शतक पूरा करने से मात्र चार वर्ष पहले, एक संक्षिप्त बीमारी के बाद 19 जनवरी, 2016 को श्रीमती प्रेमवती आर्य ने 96 वर्ष की आयु में अपनी इहलीला समाप्त की। उनकी स्वतः स्फूर्त इच्छा पूरी करने के लिए परिवार ने उनकी आंखें वेणु आई हाॅस्पिटल को ससम्मान दान कर दीं। श्रीमती प्रेमवती का विवाह से पहले और विवाह के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय योगदान रहा। सत्याग्रहियों की गुप्त सूचनाओं का आदान-प्रदान, खद्दर भंडार के कार्य, स्वदेशी आंदोलन, विदेशी वस्त्रों की होली, राजनीतिक आंदोलनों में जेल जाना जैसी कुछ उनकी उल्लेखनीय गतिविधियां रही थीं। उन्होंने ‘सेविका समिति’ में विभिन्न दायित्वों का भी निर्वहन किया था। आर्य समाज की वह प्रमुख वेदोपदेशक थीं। समाज और देश के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाली इस पुण्यात्मा को दधीचि परिवार का अभिनंदन व सादर श्रद्धांजलि।
श्रीमती चांद दीवान
श्रीमती चांद दीवान की मृत्यु 23 जनवरी, 2016 को हुई। उनकी उम्र 76 वर्ष थी। उनकी यह पंजीकृत वसीयत थी कि मृत्यु के बाद अगर उनके अंग किसी के काम आ सकें तो अवश्य उनका उपयोग किया जाए। चिकित्सा छात्रों के अध्ययन के लिए उनकी मृत देह आर्मी मेडिकल काॅलेज को दान कर दी गई। देह दान का संकल्प उन्होंने उस समय लिया था जब इस विषय की चर्चा लगभग नहीं के बराबर थी। उनके पति की देह भी मृत्यु के बाद मेडिकल काॅलेज को सौंप दी गई थी। अपनी मां श्रीमती चांद दीवान की इच्छा पूरी करने में बेटे डाॅ. दीवान को थोड़ा श्रम करना पड़ा और दधीचि देह दान समिति से सम्पर्क होने पर वह संतोषपूर्वक इस महादान को संभव करा सके। मानवता की सेवा करने की दृढ़ सोच रखने वाली पुण्यात्मा को हमारे शत्-शत् नमन।
श्रीमती रमा माहेश्वरी
श्रीमती रमा माहेश्वरी की, 1 फरवरी, 2016 को मृत्यु होने के बाद उसी दिन उनकी, आंखें गुरुनानक आई हाॅस्पिटल को दान कर दी गई। यह दान दधीचि देह दान समिति के माध्यम से हुआ। श्रीमती रमा माहेश्वरी की उम्र 76 वर्ष थी। मध्यमवर्गीय परिवार की श्रीमती रमा माहेश्वरी एक धार्मिक एवं परिश्रमी महिला थीं। उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चों ने उनकी देह दान निर्णय लिया। माहेश्वरी परिवार के सभी सदस्यों का साधुवाद। स्वर्गीय श्रीमती माहेश्वरी को दधीचि परिवार की ओर से सादर श्रद्धांजलि।
श्री जगदीश लाल कामरा
चार फरवरी, 2016 को मृत्यु होने के बाद श्री जगदीश लाल कामरा की मृत देह आर्मी मेडिकल काॅलेज को व आंखें वेणु आई हाॅस्पिटल को दान कर दी गईं। श्री कामरा की उम्र 89 वर्ष थी। श्री कामरा अपने जीवन काल में ‘सर्वेन्ट्स आॅफ पीपुल्स सोसायटी’ नाम की संस्था से जुड़े रहे। लाजपत नगर की सामाजिक गतिविधियां हों या जंगपुरा की चेरिटेबल डिस्पेंसरी की व्यवस्थाएं-उनकी सक्रियता बनी रहती थी। वह ईएसआईसी से ज्वाइंट कमिश्नर बने थे। ज्वाइंट कमिश्नर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना अधिकांश समय उपयोगी स्थान पर उपयोगी वस्तुएं (चिकित्सा संबंधी उपकरण आदि) दान करने में बिताया। अपने देह दान को लेकर वह इतने सजग थे कि कुछ वर्ष पूर्व कनाडा जाने पर वहां भी इस विषय पर जानकारियां लेनी चाहीं। उन्होंने वहां यह जानने की कोशिश की कि मृत्यु होने पर वह कहीं इस दान से वंचित न रह जाएं। मानवता की सेवा के प्रति इतना समर्पण भाव रखने वाले व्यक्तित्व को दधीचि देह दान समिति परिवार के शत-शत नमन।
श्री बलवीर सिंह रावत
श्री बलवीर सिंह रावत का 16 फरवरी, 2016 को निधन हो गया। उनकी उम्र 83 वर्ष थी। उनकी आंखें राजेन्द्र प्रसाद नेत्र चिकित्सालय को दान कर दी गईं। उन्होंने अपने जीवन काल में देह दान की इच्छा व्यक्त की थी, जिसका सम्मान करते हुए उनके एक मात्र पुत्र श्री सहदेव सिंह रावत ने चिकित्सा छात्रों की पढ़ाई के लिए उनकी मृत देह सफदरजंग मेडिकल काॅलेज को दान कर दी। श्री बलवीर सिंह ने जीवन पर्यन्त एक परिश्रमी जैसा जीवन बिताया। वह जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय समर्थक रहे। मानवता की सेवा के लिए एक उपयोगी निर्णय लेने के लिए श्री सहदेव सिंह रावत का हम साधुवाद करते हैं। दधीचि परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए श्रद्धासहित प्रार्थना।
श्री रमेश कुमार
श्री रमेश कुमार की 30 वर्ष की अल्पायु में ही 16 फरवरी, 2016 को निधन हो गया। गहन दुःख के उन क्षणों में भी श्री रमेश कुमार के परिवार ने उनकी आंखें दान किए जाने की दधीचि देह दान समिति की ओर से की गई प्रार्थना को स्वीकार किया और, उनकी आंखें गुरु तेगबहादुर अस्पताल को दान कर दीं। परिवार को साधुवाद व स्वर्गीय श्री रमेश को दधीचि परिवार की श्रद्धांजलि।
श्रीमती इन्द्राणी गांगुली
छब्बीस फरवरी, 2016 को तीन बच्चों का भरा-पूरा परिवार छोड़ कर श्रीमती इन्द्राणी गांगुली परलोक सिधार गईं। उनकी उम्र 82 वर्ष थी। बांग्लादेश के बनने के बाद श्रीमती इन्द्राणी गांगुली भारत आकर बस गई थीं। श्रीमती गांगुली ने ‘द हिन्दू’ नामक अंग्रेज़ी के समाचार पत्र में दधीचि देह दान समिति के बारे में लेख पढ़ कर मृत्यु के बाद अपनी देह को दान करने का संकल्प लिया था, साथ ही अपने बेटे को भी यह (देह दान का) संकल्प लेने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए परिवारजनों ने उनकी मृत देह ईएसआई हाॅस्पिटल एंड मेडिकल काॅलेज, फरीदाबाद को दान कर दी। दधीचि परिवार की ओर से दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना।