‘दधीचि देहदान समिति’ का उद्भव एवं विकास
सन् 1974 में श्री आलोक कुमार (दधीचि देह दान समिति के संस्थापक एवं अध्यक्ष) अमृतसर मेडिकल कॉलेज के म्यूज़ियम (संग्रहालय) में गए। उसमें प्रवेश करते ही शीशे के शोकेस में सहेजे हुए एक पूर्ण नरकंकाल (स्केलटन) पर नज़र पड़ी। शोकेस के नीचे लिखा हुआ था, ‘‘मैंने जीवन भर दूसरों की (मृत) देहों पर अपने बच्चों (चिकित्सा छात्रों) को पढ़ाया। इसलिए मैं वसीयत करता हूं कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी देह इसी मेडिकल कॉलेज को दान कर दी जाए।’’ वह नरकंकाल अमृतसर मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और प्रोफेसर का था।
उस वसीयत को पढ़ कर मन की भावुकता को उन्होंने पत्र द्वारा वर्तमान विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के सामने रख दिया। डॉ. हर्षवर्धन उस समय कानपुर मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। अपने कुछ अन्य साथियों से भी चर्चा की और सबने मिल कर मृत्यु-बाद देह-दान के लिए अपनी-अपनी वसीयत का पंजीकरण करा लिया।
उस समय तक भी ऐसा विचार नहीं आया कि देह दान के लिए कोई समिति बनाई जाए। फिर एक दिन जब नानाजी देशमुख ने सूचना दी कि मृत्यु के बाद वह अपनी देह का दान करना चाहते हैं, तब लगभग 19 वर्ष पहले यानी 1997 में दधीचि देह दान समिति की नींव देश की राजधानी दिल्ली में रखी गई। समिति के महामंत्री हैं पूर्वी दिल्ली के महापौर श्री हर्ष मल्होत्रा। धीरे-धीरे समिति का विस्तार दिल्ली के उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम और मध्य क्षेत्रों में होता गया। बहुत जल्द ही समिति ने एनसीआर, खास तौर पर गाज़ियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव में अपने कार्यक्षेत्र को बढ़ा लिया। दिल्ली और एनसीआर क्षेत्रों में समिति की ईकाइयां भी गठित हो चुकी हैं। ये इकाइयां समिति के नियमित कार्यक्रमों तथा अन्य संगठनों, समुदायों के आयोजनों में स्टॉल लगा कर देह-अंग दान की चेतना जगा रही हैं।
दधीचि देह दान समिति ऐसी गैर सरकारी संस्था है जो देह-दान के साथ अंग-दान, विशेष रूप से नेत्र-दान के प्रति भी जनता को जागरूक करती है। देह व नेत्र दान के साथ समिति जीवन देने वाले शरीर के विभिन्न अंगों जैसे हृदय (हार्ट), यकृत (लिवर), गुर्दे, पेन्क्रियास, त्वचा, टिश्यूज़, स्टेम सेल को भी दान करने के लिए प्रेरित करती है।
समिति ने अपना नाम महर्षि दधीचि से ही क्यों जोड़ा इसका भी स्पष्ट दृष्टिकोण है। किसी भी तरह के दान को धार्मिक भावना से जोड़ा जाता है और एक पुण्य कार्य माना जाता है। लेकिन, परोपकार के लिए निःस्वार्थ किया गया दान सर्वश्रेष्ठ होता है। सत युग में महर्षि दधीचि ने अपनी देह के सम्पूर्ण कंकाल को देवताओं को दान कर दिया था। उनके कंकाल से बने अस्त्र वज्र से असुर राजा का वध सम्भव हो पाया। उस महादानी के अमरत्व को आज के समय में मानवता के परमार्थ मुहिम बना कर इस गैर सरकारी समिति ने महर्षि के नाम को अपनाया और महर्षि दधीचि के देह दान के महत्व को जन-मानस तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
वर्तमान के धर्मगुरुओं जैसे श्री श्री रवि शंकर, दीदीमां ऋतम्भरा, संत मुरारी बापू, जैन संत आचार्य रूपचंद ने भी देह-अंग दान को धर्मग्रंथों के अनुकूल माना है और इन्हें यूट्यूब पर कभी भी देखा-सुना जा सकता है। यही वजह है कि जन-साधारण में देह-अंग दान को लेकर अंधविश्वास की जकड़ ढीली होने लगी है और वह जीवन के लिए जूझते ज़रूरतमंद मरीज़ों को देह-अंग दान के लिए समिति के माध्यम से बेझिझक तैयार हो रहा है। इससे वह अमरत्व पाने की अपनी सहज भावना को भी संतुष्ट कर पा रहा है।
दधीचि देह दान समिति राजधानी दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों और आर्मी मेडिकल कॉलेज को देह-अंग दान - विशेष रूप से नेत्र-दान का सफल माध्यम बन चुकी है। सन् 1997 से लेकर फरवरी, 2016 तक समिति के पास, दिल्ली और एनसीआर के 4500 से ज़्यादा लोग, मृत्यु के बाद देह-अंग दान के लिए अपने नामों का पंजीकरण करा चुके हैं।
समिति फरवरी 2016 तक जिन कार्यों को अंजाम दे चुकी है वो इस प्रकार हैंः-
- दिल्ली के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के एनॉटमी विभागों को 120 सम्पूर्ण मृत देहों का दान।
- तीन मस्तिष्क मृत लोगों के गुर्दों, यकृत, हृदय, हृदय के वॉल्व्स और आंखों (कॉर्नियाज़) का दान।
-आंखों के 468 से अधिक जोड़े उपलब्ध कराए (यानी एक व्यक्ति में दानी की दोनों आंखों का प्रत्यारोपण);
- एक दानी की अस्थियांे का दान।
जिन दानियों की वसीयत पर अमल किया गया उनमें समाजसेवी नानाजी देशमुख, विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री श्री गिरिराज किशोर, डॉ. सत्यनाथ, पूर्व विधायक श्री बोधराज, पत्रकार श्री यादवराव देशमुख एवं भरतीय मज़दूर संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री राजकृष्ण भगत जैसे जाने-माने व्यक्तित्वों से लेकर जनसाधारण तक सभी हैं।
भारत में अब भी 20 लाख से ज़्यादा ऐसे मरीज़ हैं जो नेत्र-प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे हैं।
-डेढ़ लाख ज़्यादा लोगों को स्वस्थ गुर्दे का इंतज़ार है।
-यकृत प्रत्यारोपण के लिए 2 लाख से ज़्यादा मरीज़ों को दान में मिले यकृत की प्रतीक्षा है।
-दिल के ऐसे 50 हज़ार से अधिक मरीज़ हैं जिन्हें नया जीवन पाने के लिए हृदय-प्रत्यारोपण का इंतज़ार है, जो तभी संभव हो सकता है जब उन्हें किसी दानी का दिल मिले।
-और, अनेक ऐसे अन्य मरीज़ हैं जिन्हें किसी भी सही दानी से मिली अस्थि और टिश्यू के प्रत्यारोपण का इंतज़ार है।
हाल ही में समिति ने एम्स के संयोजन से बोन मैरो (स्टेम सेल) दान को बढ़ावा देने को संयुक्त अभियान शुरू किया है। स्टेम सेल न मिल पाने के कारण रक्त कैंसर और संबंधित बीमारियों से पीड़ित लोग बोन मैरो न मिल पाने के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। ऐसे ज़रूरतमंदों की मदद के लिए समिति ने जनता को स्टेम सेल दान के लिए शिक्षित करने और ज़रूरतमंद मरीज़ों का मनोबल बढ़ाने का कदम उठाया है जिससे वो एशियन इंडियन बोन मैरो में पंजीकरण कराने के लिए प्रेरित हों। इससे आवश्यक बोन मैरो मैच में मदद मिलेगी (उल्लेखनीय है कि करीब एक लाख अ-संबंधी दानकर्ताओं में से किसी एक की ही बोन मैरो ज़रूरतमंद मरीज़ की बोन मैरो से मैच कर पाती है)।
समिति के नियमित कार्यक्रमों में शामिल हैंः- (क)देह दानियों का उत्सव; (ख) दधीचि दर्शन यात्रा; (ग) दधीचि कथा के अलावा (घ) द्विमासिक वेबजीन का प्रकाशन भी करती है। इनके अलावा समिति देह और अंग दान के संबंध में रेज़ीडेन्ट वेलफेयर एसोािएशनो, विभिन्न संगठनों, संस्थानों, कॉलेजों में नियमित कार्यक्रम करती है।
समिति देहदानियों का उत्सव मनाती है, जिससे लोगों को इस बात की जानकारी हो कि देह और अंग दान क्यों किए जाते हैं। इस कार्यक्रम में देह-अंग दान कर चुके व्यक्तियों के परिवारों को सम्मानित करते हैं, और एक डॉक्टर व एक संत का देह दान पर भाषण होता है। मृत्यु के बाद देह और अंग दान करने का संकल्प लेने और वसीयत करने वाले व्यक्ति पधारते हैं और उनके साथ परिवार के दो सदस्यों को बतौर गवाह आना होता है।
देह और अंग दान का दुरुपयोग न हो सके और आर्थिक लाभ न उठाया जा सके इसके लिए सभी दान सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को किए जाते हैं। दान का पहला महत्वपूर्ण चरण यह है कि पंजीकृत दानी के परिवार को दानकर्ता की मृत्यु होने के बाद दधीचि देह-दान समिति को सिर्फ एक फोन करना होता है और इसके बाद की सारी ज़िम्मेदारी समिति निभाती है।
समिति ने एक वर्ष पहले दधीचि दर्शन यात्रा शुरू की है, जिससे लोग स्वयं उस प्रेरणा स्रोत के पावन स्थल के दर्शन कर सत युग के सत्य को वर्तमान युग में महसूस कर सकें। यह यात्रा, प्रति वर्ष नवम्बर में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित मिश्रिख में दधीचि आश्रम जाती है। इस अवसर पर वहां ‘स्वस्थ सबल भारत’ पर सभा होती है। तीर्थ यात्री निकट स्थित नेमिषारण्य के परित्र स्थानों के भी दर्शन करते हैं।
हर साल दधीचि जयंती पर समिति दधीचि कथा का आयोजन करती है जिससे लोग दान की भावना को समझ सकें, दिल की गहराई में उतार सकें।
इस जन कल्याणकारी अभियान और उद्देश्य को लोकप्रिय बनाने के लिए तथा देह व अंग दान संबंधी खबरों, आयोजनों तथा बड़े भावी कार्यक्रमों को जनता के सामने लाने के लिए समिति नियमित रूप से अपनी तरह की पहली इंटरनेट पत्रिका निकालती है। इंटरनेत्र पत्रिका को वेबजीन भी कहा जाता है। यह पत्रिका दधीचि ई-जर्नल नाम से हर दो माह में प्रसारित होती है और इसे नेट पर पढ़ा जा सकता है।
इन सबके अलावा समिति देह और अंग दान के संबंध में रेज़ीडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशनों, संगठनों, संस्थानों, कॉलेजों में नियमित रूप से जाती है और चर्चाओं द्वारा इन सभी में जागरूकता बढ़ा रही है।