कोरोना नहीं मानवता ही जीतेगी
विनोद अग्रवाल
"ऐसे शवों को सम्मानजनक विदाई देना जिनका अब इस संसार में कोई नहीं है, शहीद भगत सिंह सेवा दल का उद्देश्य है " यह कहना है सेवा दल के संस्थापक, जितेंद्र सिंह शंटी का ।शंटी जी पिछले दो दशकों से इस कार्य को पूरी श्रद्धा के साथ कर रहे हैं ।करोना के इस संक्रमण काल में, जहां मृत्यु की दुंदुभी बजती रहती है, परिवार के सदस्य भी अपने प्रियजन के मृतक शरीर को हाथ तक लगाने में संकोच करते हैं, वहीं जितेंद्र सिंह शंटी अपने सेवादल के साथियों के साथ, बताए गए स्थान पर पहुंचकर, शव को सम्मान सहित उठाते हैं और फिर पूरी श्रद्धा और उनके रीति-रिवाजों के साथ उसका अंतिम संस्कार भी अपने खर्चे पर ही करते हैं । इसी महीने गुरु रामदास नगर के एक फ्लैट की चौथी मंजिल से जब अपने साथियों के साथ शंटी जी ने एक शव को नीचे उतारकर गाड़ी में रखा, तो वहां पड़ोसियों ने इन सभी लोगों पर फूल बरसा कर अपना आभार प्रकट किया ।शंटी जी कहते हैं कि ऐसी घटनाएं अनेक स्थानों पर हुई है और यह सब उनके हृदय को द्रवित करती हैं, पलकें गीली हो जाती हैं और फिर प्रेरणा मिलती है, दुगने तिगुने उत्साह से इस कार्य में जुट जाने के लिए, निस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए ।
हम सभी ने जीवित जनमानस की सेवा करने वाली कई संस्थाएं और महानुभाव देखे होंगे, सुने होंगे, लेकिन मृतकों की सेवा, शवों की सम्मान पूर्वक विदाई और प्रत्येक संस्कार की अलग कहानी, उस की गाथा, प्रेरणा बन जाए, यह तो शहीद भगत सिंह सेवा दल, उसके संस्थापक जितेंद्र सिंह शंटी और उनके साथियों का ही साहस है ।
अब तक यह सेवादल 35 सौ से अधिक ऐसे शवों को सम्मान पूर्वक विदाई दे चुका है ।सेवादल के पास वर्तमान में 18 वाहन है, 12 सवेतन कर्मचारी हैं, सीमापुरी में एक श्मशान को सेवा दल ने अडॉप्ट किया हुआ है। यह पूछने पर कि आप यह सब कैसे कर पाते हैं, इसमें तो काफी खर्चा भी आता होगा, शंटी जी मुस्कुरा कर कहते हैं कि इन सारे कार्यों के लिए किसी भी सरकार से उन्होंने कोई सहयोग नहीं लिया, हां, समाज में पैसा देने वालों की कोई कमी नहीं है ।आप जैसे बहुत लोग बहुत दान करते हैं। लगभग 1 सप्ताह पूर्व, एक दानी सज्जन ने सेवादल को एक एंबुलेंस दान में दी और देने वाले ने अपना नाम गुप्त रखने के लिए इनसे विशेष आग्रह किया । कुछ दिन पहले फिल्म जगत के महान अभिनेता अक्षय कुमार ने भी इनसे संपर्क करके कहा कि मुझे आपके सेवा दल ने बहुत प्रभावित किया है, मैं भी कुछ सहायता करना चाहता हूं ।अपने कार्यों की आवश्यकता को देखते हुए सेवा दल ने अक्षय कुमार को एक आधुनिक उपकरणों से युक्त एंबुलेंस देने की बात कही। अक्षय जी ने कहा "एक क्यों, आप दो एंबुलेंस के लिए क्यों नहीं कहते " और उस महान कलाकार ने दो एंबुलेंस शहीद भगत सिंह सेवा दल को प्रदान की जिनका उपयोग रोगियों को उनके निवास से अस्पताल तक पहुंचाने में किया जाएगा ।शंटी जी का कहना है कि ऐसे लोग उनके प्रेरणास्रोत बन जाते हैं और वे अधिक उत्साह से भगवान द्वारा दिखाए गए सेवा कार्यों के मार्ग पर चलने लगते हैं।
शंटी जी स्वयं अब तक 107 बार रक्तदान कर चुके हैं ।कितने कोविड रोगियों को उन्होंने पिछले 18 महीनों में अस्पताल पहुंचाया है, उसकी कोई गिनती नहीं ।बस फोन की घंटी बजी, उसका एड्रेस लिखा और शंटी जी ने अपने ड्राइवर को आवाज दी और गाड़ी रोगी को लेने के लिए अपने रास्ते पर दौड़ने लग जाती है ।आपकी इन सभी सेवाओं को पूरा सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने आप को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है ।सैकड़ों सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने आपके कार्य की प्रशंसा की है और प्रशस्ति पत्र भी दिए हैं। सेवा के इस काम की प्रशंसा में समाचार पत्र भी बहुत अग्रणी रहे ।आपके द्वारा किए गए रक्तदान के लिए आपको DONOR SINGH नाम से भी सम्मानित किया गया है ।वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में ब्लड डोनर के लिए आपका नाम अंकित हो चुका है।
श्री जितेंद्र सिंह शंटी पूर्वी दिल्ली के झिलमिल क्षेत्र से 2008 में निगम पार्षद और शाहदरा से 2013 में विधायक रहे हैं ।इसी सेवा कार्य को करते हुए आपके परिवार के सभी सदस्य और 8 ड्राइवर संक्रमित हुए थे। एक ड्राइवर ने तो इस दौरान अपने जीवन से हाथ भी धो लिया । लेकिन आपने अपने सेवा कार्यों को नहीं रोका । कभी-कभी आप रात को घर ना जाकर पार्किंग मे हीसो भी जाते हैं। अपने काम को परिभाषित करते हुए उनका कहना है
"किसी की मुस्कुराहटों पर हो निसार किसी के लिए हो तेरे दिल में प्यार किसी का दर्द ले सके तो ले उधार"
यह पूछे जाने पर कि वह जनमानस के लिए या देश के लिए कोई संदेश देना चाहते हैं तो उनका कहना है दो बातें प्रमुख हैं
- हम अपने लिए मकान बनाते हैं, करोड़ों रुपए खर्च करते हैं। 8,10 या चार पांच कमरे होते हैं। हमें अपने घर का एक कमरा इस प्रकार तैयार करना चाहिए कि उसे आइसोलेशन रूम या मिनी आईसीयू का रूप दिया जा सके।
- हमारे पास चार पांच या 8, 10 गाड़ियां होती हैं । क्या हम अपनी एक गाड़ी को एंबुलेंस में परिवर्तित कर सकते हैं ।आवश्यकता पड़ने पर वह हमारे अपने या पड़ोसियों और मित्रों के काम आ सकती है।
"जिंदगी जिंदादिली का नाम है
मुर्दा दिल क्या खाक जिएंगे
अपने लिए जिए तो क्या जिए
जीना है तो जी जमाने के लिए"
इन्होंने अपने विचार कुछ इस तरह रखे कि हर बात के लिए सरकार पर निर्भर करना उचित नहीं है। अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी । सरकार के पास पुलिस है हमारी रक्षा के लिए फिर भी हम अपने घरों और कॉलोनियों में सिक्योरिटी गार्ड भी तो रखते हैं ।सरकार ने थोड़े बहुत अस्पताल बनवा दिए, फिर हम प्राइवेट अस्पतालों और डॉक्टरों की सेवाएं लेते हैं, सरकार पीने के लिए पानी देती है फिर हम अपने घरों में फिलर लगाते हैं, तो हम को आपदा के समय अपनी सुरक्षा का प्रबंध भी स्वयं करना ही चाहिए ।अंततोगत्वा सरकार भी तो हम ही हैं ।
सरकार मेट्रो फ्री कर सकती है, बिजली और पानी फ्री कर सकती है, तो इस संक्रमण काल के दौरान इलाज और ऑक्सीजन क्यों फ्री नहीं कर सकते ।मेट्रो और बसों का किराया तो फ्री है लेकिन अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस फ्री नहीं है, शव का दाह संस्कार फ्री नहीं है, शवों को ले जाने के लिए गाड़ियां फ्री नहीं हैं। हम सबको मिलकर इस विषय में कुछ सोचना होगा।
शंटी जी आप सचमुच में देवदूत हो....