Home
Print
Next
Previous

साक्षात्कार : जब तक जीवन है संस्था से जुड़े रहेंगे’

सामान्य बात है जब कोई व्यक्ति धार्मिक पुस्तक पढ़ता है, या कई व्यक्ति आध्यात्मिक प्रवचन सुनते हैं तो वह उतने समय के लिए उसी रौ में बह जाते हैं और फिर अधिकांश का जीवन पहले जैसे ढर्रे पर चल पड़ता है।

लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो पढ़ते हैं, सुनते हैं, गुनते हैं और अपने जीवन में उतार लेते हैं। इनमें भी उंगलियों पर गिने जा सकने वाले ऐसे होते हैं जो परमार्थ कार्य की प्रेरक समिति या संस्था से जुड़ कर उसके कारवां के आकार को बढ़ा देते हैं।

ऐसे ही हैं फरीदाबाद के सरदार सुरजीत सिंह। सरदार सुरजीत सिंह को खोजा दधीचि देह दान समिति के फरीदाबाद के संयोजक श्री राजीव गोयल ने और उन्होंने उन्हें समिति से जोड़ा भी।

एक लम्बे अर्से से फरीदाबाद ज़िले में रक्त दान और नेत्र दान में उल्लेखनीय कार्य कर रहे सरदार सुरजीत सिंह, उनकी पत्नी श्रीमती इंद्रजीत कौर और पुत्र श्री जसमीत सिंह से समिति की द्विमासिक वेबजीन के प्रधान संपादक व समिति के उपाध्यक्ष श्री महेश पंत ने बात की।

प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-


प्रश्न - आपने अभी तक कितनी बार रक्त दान किया और किस उम्र से ऐसा कर रहे हैं? आपकी पत्नी भी क्या इस मुहिम से जुड़ी हैं?
उत्तर - मैं अब तक 50 बार ज़्यादा रक्त दान कर चुका हूं और मेरी पत्नी का भी यही आंकड़ा है। मुझे रक्तदान करते देख कर इनके मन में भी रक्त दान करने की प्रेरणा आई।

प्रश्न - रक्त दान के लिए आपने क्या कैम्प भी लगाए?
उत्तर - जी हां। पहला कैम्प तब लगाया जब हमारी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह थी। यह सुझाव भी बच्चों ने दिया था। उनका कहना था कि इससे समाज में संदेश जाएगा। तब मैं संतो ंके गुरुद्वारा अस्पताल में गया। वहां मुझसे पूछा 25 लोग जुट जाएंगे। मैंने इसका वादा किया और फिर अपने दास्तों से बात की। और उस पहले कैम्प में 100 यूनिठ रक्त दान हुआ।

प्रश्न - इसके बाद और भी कैम्प लगाए?
उत्तर - जी हां! उसके बाद 25 कैम्प आयोजित कर चुका हूं। हमारा एक कैम्प 23-4-2016 को भी लगा था जिसमें 32 यूनिट रक्त दान किया गया। यह कैम्प मेरे साले की बरसी पर लगाया गया था। सन् 2008 में रक्त दान के जो कैम्प लगाए उनमें सबसे ज़्यादा दान रोटरी क्लब को किया गया।

प्रश्न - आपको याद है उसमें कितने यूनिट रक्त दान हुआ होगा?
उत्तर - उस एक साल में 600 यूनिट। इसके बाद 2009 में वेणु आई संस्थान में मैंने 12 लोगों की आंखें दान करवाईं और पूरे उत्तर भारत में सबसे ज़्यादा आंखें दान कराने वालों में मेरा नाम शुमार था।

प्रश्न - वेणु आई सेंटर ने आपको सम्मानित भी किया था?
उत्तर - जी बिल्कुल। सम्मानित करते रहते हैं क्योंकि हर साल कभी 5, कभी 6 और कभी 8 लागों की आंखें दान करवाता हूं। इसलिए हर साल बुला कर सम्मानित करते हैं।

प्रश्न - आप और आपकी पत्नी नेत्र दान का संकल्प ले ही चुके हैं। आपके परिवार से भी कोई नेत्र दान हुआ है?
उत्तर - पहले मेरे पिता जी का, फिर मेरी मां का नेत्र दान हुआ है।

प्रश्न - हमारी समिति के देह दान और अंग दाप कार्य स ेअब आप भी जुड़ गए हैं। इस विषय में कुछ बताएं।
उत्तर - गुरु ग्रंथ साहब में लिखा है ‘‘पई परापद वानक देहरिया, गोविंद मिलण की यह तेरी बरिया‘‘। इसका मतलब है अगर आपको इंसानी रूप मिला है और परमात्मा को पाना है तो इंसानों की सेवा करके ही परमात्मा को पाया जा सकता है। मरणोपरांत अपने अंग दान करके दूसरे इंसानों की ज़िंदगी बचाने के रूप में परमात्मा को पाया जा सकता है। अगर हम देह दान करते हैं तो इससे चिकित्सा छात्रों की बहुत बड़ी दिक्कत दूर हो सकती है। मैंने, मेरी पत्नी पहले ही पूरी देह के दान का संकल्प ले चुके हैं, मेरे छाटे भाई और उसकी पत्नी ने भी अब देह दान का संकल्प ले लिया है।

प्रश्न - आप हमारी समिति से जुड़ चुके हैं। आपको कैसा लगा? किस तरह आप इसके लिए प्रेरित हुए? आगे क्या करने का विचार है?
उत्तर - रक्त दान, नेत्र दान, अंग दान जैसे कामों से हम पहले भी जुड़े हुए थे। जब हमें पता लगा कि यहां कोई ऐसी संस्था भी है। हमने राजीव गोयल जी को होला मोहल्ला कार्यक्रम में बुलाया जहां मेरे कई मित्रों ने देह दान का संकल्प लिया। हम जब तक ज़िंदा हैं इस समिति से जुड़ेंगे और जो बन पड़ेगाा ज़्यादा से ज़्यादा इस क्षेत्र में समिति का सहयोग करते रहेंगे।

प्रश्न - बहन इंद्रजीत कौर जी, आप अपने पति के साथ रक्त दान करती रही हैं, अब दधीचि देह दान समिति के ज़रिए देह दान और अंग दान का भी संकल्प ले लिया है। इन सब को लेकर आपके मन में जो भी विचार आते हों कृपया उन्हें बताएं्!
उत्तर - किसी की सेवा करना बहुत ही अच्छा लगता है। मैं 50 बार से ज़्यादा रक्त दान कर चुकी हूं। बेटे को भी प्रेरणा दी है। जब वह दे सकेगा रक्त दान करेगा। हम जहां भी किसी की मौत पर जाते हैं, उनसे नेत्र दान के लिए कहते हैं। अब हम देह और अंग दान के लिए भी लोगों को प्रेरित करेंगे।

प्रश्न - जसमीत जी, आपकी उम्र अभी सिर्फ 23 साल है और आप नेत्र दान का संकल्प ले चुके हैं। यह प्रेरणा आपको कैसे आई? कितना आगे तक जाने का विचार है? देह और अंग दान के बारे में आपका क्या सोचना है?
उत्तर - जब से मैंने अपने माता-पिता को रक्त दान करते देखा, आधी रात को भी ज़रूरत पड़ने पर इस समाज कार्य के लिए उन्हें जाते देखा, मैंने यह सीख ली कि जितना मुझसे बन पड़ेगा मुझे भी यह काम करना है। मैंने 18 साल की उम्र से रक्त दान शुरू कर दिया और हर तीन महीने पर रक्त दान करता हूं। मेरे दादा-दादी की मृत्यु के बाद नेत्र दान किए गए, मेरे माता-पिता ने पूरी देह दान करने का संकल्प लिया है, मैं भी जितना हो सकेगा समाज कार्य करूंगा। मैंने नेत्र दान का संकल्प लिया है। देह-अंग दान के बारे में मैं अपनी जीवन संगिनी को पहले ही बता दूंगा कि मुझे अपनी पूरे देह दान करनी है।