Home
Print
Next
Previous

साक्षात्कार

‘जीते जी रक्त दान जाते-जाते अंग दान’

दिल्ली के निवासी और व्यवसाय से व्यापारी श्री रेवांत प्रजापति दान में मिले एक गुर्दे से नया जीवन जी रहे हैं

। दधीचि देह दान समिति के महेश ने प्रजापति जी से आमने-सामने और उनके पुत्र से टेलीफोन पर बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि कब उन्हें बीमारी का पता चला, कैसे केस बिगड़ा, केडेवर अंगों की उपलब्धता और किससे उन्हें गुर्दा मिला। प्रस्तुत है पूरा वार्तालापः-

प्रश्न: आपकी उम्र क्या है? बीमारी का पता कब चला?
उत्तर: मेरी उम्र 48 साल है और 15 फरवरी 2015 को बीमारी का पता चला। मुझे ज़ोर का दर्द उठा, यूरिन पास होने में भी परेशानी हुई। बड़े बेटे को दुकान से बुलवा लिया। उसे साथ लेकर सेंट स्टीफन अस्पताल गया। वहां पता चला यूरिन में खून आ रहा है और पूरी शरीर में इन्फेक्शन भी फैल गया है। मुझे तुरन्त भर्ती कर लिया गया। बीस-बाइस दिन रखा और तब बताया कि मेरे दोनों गुर्दे पूरी तरह खराब हो चुके हैं। मुझे या तो प्रत्यारोपण कराना होगा या फिर जीवन भर डायलिसिस पर रहना होगा।

प्रश्न: यह सब आपको एकदम से पता चला? इससे पहले आपको किसी तरह के लक्षण (सिमटम्स) नहीं पता चले?
उत्तर: मेरे पैरों में लम्बे समय से सूजन बनी रहती थी। बाद में मुझे उल्टियां होने लगीं। कुछ खा नहीं पाता था। जो भी खाता था उल्टी से निकल जाता था। फिर बुखार भी रहने लगा। इसके बाद मैं डाॅक्टर के पास गया। डाॅक्टर ने बुखार का इलाज किया। उल्टी होने पर उसका इलाज किया। इस दौरान मैं दो डाॅक्टरों के पास गया और लगातार दो महीने तक इलाज कराया, जो गलत साबित हुआ।

प्रश्न: इलाज के लिए कहां गए थे आप?
उत्तर: शुरू में सेंट स्टीफन अस्पताल गया। उसके बाद मूरजी भाई पटेल यूरोलाॅजिकल अस्पताल, नड़ियाद गया।

प्रश्न: आप एम्स भी गए थे? एम्स के बारे में बताएं।
उत्तर: सेंट स्टीफन के बाद मैं एम्स गया था। वहां केडेवर डोनर के लिए पता किया तो जानकारी मिली कि गुर्दे की प्रतीक्षा करने वालों की लम्बी लाइन है, अनिश्चित काल का इंतज़ार है। इसके बाद भी गुर्दा मिलने में संदेह था। इसलिए मैंने जीवित इंसान से मिले गुर्दे का प्रत्यारोपण कराने का फैसला लिया।

प्रश्न: फिर आपने कहां कोशिश की? किसके पास गए?
उत्तर: मुझे 8-10 ऐसे लोग मिले जिन्होंने मुझे मूरजी भाई पटेल यूरोलाॅजिकल अस्पताल जाने की सलाह दी। वह सभी वहां से गुर्दे का प्रत्यारोपण करा चुके थे। किसी ने 10 साल पहले, किसी ने 5 साल पहले, किसी ने 2 साल पहले तो किसी ने 1 साल पहले गुर्दे का प्रत्यारोपण कराया था। इसके बाद मैं खुद नड़ियाद गया और वहां अपना सारा चेकअप कराया। वहां मुझे अच्छा लगा। मैंने वही अस्पताल चुन लिया।

प्रश्न: आपके परिवार में कितने लोग हैं? पूरे परिवार में?
उत्तर: मेरे अपने परिवार में दो बच्चे, एक बच्ची और वाइफ है। मुझे मिला कर 6 भाई और 2 बहनें हैं।

प्रश्न: आपने बताया एक भाई आए थे?
उत्तर: भाई-बहन कोई गुर्दा देने को तैयार नहीं हुआ। एक भाई आए थे, वह वापस चले गए। बोले, ‘मैं नहीं दे पाऊंगा, मुझे घबराहट हो रही है।’ बड़े बेटे का गुर्दा मैच नहीं किया। बेटी पराई अमानत है। फिर छोटा बेटा आया। उसका गुर्दा मैच कर गया और वह अपना एक गुर्दा देने को तुरन्त राज़ी हो गया।

प्रश्न: आपका अपना परिवार यानी आपकी पत्नी, बच्चे सभी तैयार थे, जबकि बाकी परिवार वालों को घबराहट थी कि एक गुर्दा देने के बाद कैसे रहेंगे?
उत्तर: पत्नी के जन्म से ही एक ही किडनी (गुर्दा) है। बाकी मेरे तीन बच्चे, एक बहू भी, चारों गुर्दा देने को तैयार थे।

प्रश्न: आपका छोटा बेटा क्या करता है?
उत्तर: छोटा बेटा स्टुडेन्ट है। उसकी 20 साल उम्र है। बीबीए कर रहा है। शिमला में पढ़ता है। हाॅस्टल में रहता है।

प्रश्न: किडनी डोनेशन (गुर्दा दान) के कितने समय बाद उन्होंने काॅलेज जाना शुरू कर दिया?
उत्तर: किडनी डोनेशन (गुर्दा दान) के बाद चार दिन वह अस्पताल में रहा। फिर 15 दिन यहां घर पर पूरा आराम किया। इसके बाद उसके काॅलेज में छुट्टियां हो गईं। इस तरह 3-4 महीने कम्पलीट रेस्ट पर रहा (पूरी तरह आराम किया)। बिल्कुल स्वस्थ है बच्चा। नाॅर्मल है।

प्रश्न: डाॅक्टर ने स्पोटर््स, खेलने-कूदने सबके लिए उसे अनुमति दे दी है?
उत्तर: उसका हाॅस्टल बहुत ऊंचाई पर है। चार-पांच मंज़िल ऐसे ही चढ़ना-उतरना हो जाता है। तीन सौ सीढ़ियां हैं। ऊपर क्लासेज़ लगते हैं, नीचे हाॅस्टल है। तो अच्छे से एक्सरसाइज़ हो गई है। चलता-फिरता, घूमता है। बिल्कुल नाॅर्मल (सामान्य) है।

प्रश्न: अब आप कैसे हैं? आॅप्रेशन कब हुआ था?
उत्तर: मेरा 2 जून 2015 को आॅप्रेशन हुआ था। अभी चेकअप करवा कर आया हूं। हर महीने जाता हूं चेकअप के लिए। मेरी रिपोटर््स वगैरह सब नाॅर्मल हैं। दवाइयां अभी चल रही हैं।

प्रश्न: आपको डाॅक्टर ने क्या बताया? आप कब तक अपने काम पर जा सकेंगे?
उत्तर: डाॅक्टर ने तो दो महीने बाद ही काम पर जाने के लिए कह दिया था। मैं ही नहीं जा रहा हूं। बाहर पाॅल्यूशन बहुत है। वैसे, मैं एकदम फिट हूं।

प्रश्न: समाज के लिए आपका क्या मैसेज (संदेश) होगा?
उत्तर: समाज के लिए यही मैसेज (संदेश) है कि ‘जीते जी रक्त दान, जाते-जाते अंग दान’। अंग दान हर आदमी को करना चाहिए। एक आदमी जब आखिरी सांस लेता है तो कई आदमियों को जीवन दे सकता है। दो आंखें - दो आदमी देख सकते हैं; दो किडनी (गुर्दाें) से दो आदमियों को नया जीवन मिल सकता है। हार्ट (दिल), लिवर (यकृत) सभी लग (प्रत्यारोपित हो) सकते हैं। मैं तो अपने सभी मित्रों को अंग दान करने के लिए प्रेरित करूंगा।

प्रश्न: आप स्वयं एक अंग लेकर स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। और, आप इस अंग दान के महत्व को अच्छी तरह समझे भी होंगे। क्या आप हमारी समिति में शामिल होकर इसके पुण्य कार्य को करना चाहेंगे?
उत्तर: बिल्कुल! जो भी, जहां भी मेरी आवश्यकता होगी, (आवश्यकता) समाज समझे समिति समझे, मैं अपने तन-मन से वहां जाने के लिए तैयार हूं और, जो सेवा, समिति करने के लिए देगी उसे करने के लिए तत्पर हूं।

पुत्र हरीअोम से टेलीफोन पर संक्षिप्त बातचीत

‘पहले जैसी नाॅर्मल ज़िन्दगी हो गई है’

प्रश्न: आपकी उम्र क्या है और आप क्या कर रहे हैं?
उत्तर: मेरी उम्र 20 वर्ष है। मैं शिमला (हिमाचल प्रदेश) में बीबीए कर रहा हूं।

प्रश्न: आप को अपनी किडनी क्यों देनी पड़ी?
उत्तर: मैं परिवार में सबसे छोटा हूं। पहले सोचा कि परिवार के कोई भी रिश्तेदार जैसे चाचा, ताऊ अपनी किडनी दे देंगे। फिर लगा कि मैं ही मदद कर सकता हूं और, बस, मैंने मदद कर दी।

प्रश्न: अब आप कैसे हैं?
उत्तर अब मैं बिल्कुल ठीक हूं। तीन-चार महीने के बाद पहले जैसा फिट हो गया हूं और पहले जैसी लाईफ लीड कर सकता हूं।

प्रश्न: क्या डाॅक्टर ने हर तरह की फिज़ीकल एक्टिविटी के लिए अनुमति दे दी है?
उत्तर: जी हां। स्पोर्ट्स वगैरह से लकर सभी तरह की फिज़िकल एक्टिविटीज़ कर सकता हूं। हर दिन करीब 8-9 मंज़िल की सीढ़ियां चढ़ता-उतरता हूं, क्योंकि मेरा काॅलेज पहाड़ी क्षेत्र में हैं।