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श्रद्धा सुमन


आचार्य गिरिराज किशोर

विश्व हिन्दू परिषद के नेता  आचार्य गिरिराज किशोर का 13 जुलाई 2014 को 96 वर्ष की आयु में दिल्ली में निधन हो गया। आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन कर समाज सेवा करने वाले आचार्य गिरिराज किशोर ने देहदान का संकल्प बहुत पहले ही कर लिया था ताकि उनकी मृत्यु के बाद भी उनका शरीर मानवता के काम आ सके। आचार्य जी के नश्वर शरीर को चिकित्सा क्षेत्र में शोध एवम् अध्ययन हेतु राजधानी के आर्मी मेडिकल कालेज को समर्पित कर दिया गया। कालेज की एनाटोमी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. त्रिप्ती श्रीवास्तव ने ससम्मान नतमस्तक हो आचार्य श्री की पवित्र देह को प्राप्त किया। इस भावनापूर्ण बेला के साक्षी थे- सैकड़ो गणमान्य नागरिक, सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता आचार्य जी के परिजन, विश्व हिन्दु परिषद के महामंत्री श्री चम्पत राय तथा दधीचि देहदान समिति श्री आलोक कुमार व श्री हर्ष मलहोत्रा।

आचार्य गिरिराज किशोर का जन्म 4 फरवरी, 1920 को उ.प्र. के मिसौली गांव (एटा जिला) में हुआ। आगरा में श्री दीनदयाल जी और श्री भव जुगादे के माध्यम से वे स्वयंसेवक बने और फिर उन्होंने संघ के लिए ही जीवन समर्पित कर दिया।

प्रचारक के नाते आचार्य जी मैनपुरी, आगरा, भरतपुर, धौलपुर आदि में रहे। 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर वे मैनपुरी, आगरा, बरेली तथा बनारस की जेल में 13 महीने तक बंद रहे। वहां से छूटने के बाद संघ कार्य के साथ ही आचार्य जी ने बी.ए तथा इतिहास, हिन्दी व राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया। साहित्य रत्न और संस्कृत की प्रथमा परीक्षा भी उन्होंने उत्तीर्ण कर ली। 1949 से 58 तक वे उन्नाव, आगरा, जालौन तथा उड़ीसा में प्रचारक रहे। इसी दौरान उनके छोटे भाई वीरेन्द्र की अचानक मृत्यु हो गयी। ऐसे में परिवार की आर्थिक दशा संभालने हेतु वे भिण्ड (म.प्र.) के अड़ोखर कॉलेज में सीधे प्राचार्य बना दिये गये। थोड़े समय बाद ही उन्होने नौकरी छोड़ दी। उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर संगठन मंत्री बनाया गया। उनके कार्यकाल में दिल्ली वि0वि0 में पहली बार विद्यार्थी परिषद ने अध्यक्ष पद जीता। फिर आचार्य जी को जनसंघ का संगठन मंत्री बनाकर राजस्थान भेजा गया। आपातकाल में वे 15 मास भरतपुर, जोधपुर और जयपुर जेल में रहे।

1980 के बाद श्री अशोक सिंहल और आचार्य जी के नेतृत्व में परिषद ने अभूतपूर्व काम किये। संस्कृति रक्षा योजना, एकात्मता यज्ञ यात्रा, राम जानकी यात्रा, रामशिला पूजन,  राममंदिर का शिलान्यास आदि ने विश्व हिन्दू परिषद को नयी ऊंचाइयां प्रदान कीं। विश्व हिन्दू परिषद के विभिन्न दायित्व निभाते हुए आचार्य जी ने इंग्लैंड, हालैंड, बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी, रूस, नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क, इटली, मारीशस, मोरक्को, गुयाना, नैरोबी, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, सिंगापुर, जापान, थाइलैंड आदि देशों की यात्रा की। वृद्धावस्था में अनेक रोगों से घिरे होने पर व्हील चेयर पर भी उनका प्रयास और सक्रियता निरन्तर चलती रही।

 

श्रीमती सरोज कुमारी - श्री सुरेन्द्र नाथ अग्रवाल

दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कुमार की मां श्रीमती सरोज कुमारी एवम् पिता जी श्री सुरेन्द्र नाथ अग्रवाल का तीन महीने के कम समय में ही देहान्त हो गया। दोनो ने जीवन काल में ही संकल्प किया था कि मृत्यु के बाद उनकी देह मानवता के लिए दान कर दिया जाय। परिवार ने उनकी इस इच्छा का पालन किया।।

श्री सुरेन्द्र नाथ अग्रवाल ने 26 अप्रेल 2014 को पुष्पांजली क्रौसले हस्पताल, वैशाली, गाजियाबाद में अन्तिम सांस ली। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उन निष्ठावान स्वयंसेवकों में थे, जिन्होने संघ को अपने जीवन में सतत् जीया था। फरीदाबाद रहते हुए वह महानगर के व्यवस्था प्रमुख थे और दिल्ली आने के बाद, नौकरी छोड़ कर पूरे समय के लिए सेवा भारती के कार्यकर्ता हो गये थे। सेवाधाम स्कूल, मण्डोली, दिल्ली की प्रगति में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। उनकी देह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौपी गयी।

श्रीमती सरोज कुमारी के पिता श्री अमीरचन्द्र गुरुकुल के स्नातक व वेदों के विद्वान थे। वह गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ के प्राचार्य थे। स्वामी श्रद्धानन्द के आदेश पर वह आर्यसमाज के काम के लिये फीजी चले गए थे। वहां उन्होने आर्यसमाज का काम किया, स्कूल-कालेज खोले, हिन्दी की पाठ्य पुस्तकें लिखी, गन्ना मजदूरों की यूनियन बनवाई, वहां की संसद के सदस्य भी रहे।

श्रीमती सरोज कुमारी को पांच वर्ष की अवस्था मे ही पढ़ाई के लिए कन्या गुरुकुल हरिद्वार भेज दिया गया था। आर्यसमाज-गुरुकुल के परिवार के संस्कारों में पली श्रीमती सरोज कुमारी ने सदैव स्नेहमय तपस्यापूर्ण जीवन जिया। उनकी मृत्यु 5 जुलाई के बाद उनकी देह यूनीवर्सिटी कालेज आफ मैडिकल सांइसेज़ को समर्पित कर दिया गया।