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यह बहुत हर्ष का विषय है कि 1 सितंबर, 2014 को दधीचि देहदान समिति का ई- जर्नल प्रांरभ होने जा रहा है। इस शुभ अवसर पर मैं दधीचि देहदान समिति के सभी सदस्यों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।

दधीचि देहदान समिति का निरामय भारत प्रकल्प, भारत को रोगमुक्त एवं स्वस्थ बनाने का एक उच्च प्रयास है। एक देहदान से आठ से पचास लोगों के जीवन की रक्षा हो सकती है और इसीलिए देहदान को जीवनदान भी कहा गया है। देहदान में दी गई देह को आज के विज्ञान के युग में नई-नई तकनीकों एवं रसायनों के माध्यम से सुरक्षित रखा जाता है और समय पड़ने पर कई असाध्य रोगों के ईलाज में काम में लाया जाता है। चिकित्सा, शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में इसका बहुत महत्व है। दधीचि देहदान समिति ने इस दिशा में वास्तविक प्रयास करके चिकित्सा संस्थानों एवं अस्पतालों में बहुत देह उपलब्ध करवाईं हैं। मैं इस पुनीत कार्य के लिए इनका अभिनंदन करता हूँ।

प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में दान का बहुत महत्व रहा है और देहदान सर्वश्रेष्ठ दान है। देहदान की महिमा हमारे धर्मग्रथों में भी है और शुश्रुत एवं चरक ने इसके महत्व का वर्णन किया है। भारतीय संस्कृति के अनुसार नश्वर शरीर में मौजूद अमर आत्मा ईश्वर का तत्व है और मनुष्य देह पाकर परोपकार में ही सार्थकता मानी गई है। महान कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां देहदान की महिमा को दर्शाती हैं-

क्षुधार्थ रंतिदेव ने दिया करस्थ थाल भी
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी
उशीनर क्षतिश ने स्व्मांस दान भी किया
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया
अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।

मैं दधिचि देहदान समिति के ई-जर्नल के लांच पर इससे जुड़े लोगों को हार्दिक बधाई देता हूँ। मुझे विश्वास है कि यह जरनल देहदान के महत्व को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाने में कामयाब होगा।
शुभकामनाओं सहित।

आपका



(नितिन गडकरी)

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