Home
Print
Next
Previous

देह व अंग दान में अंतर

इस वर्ष अगस्त की 13 तारीख को विश्व अंग दान दिवस मनाया गया। इस अवसर पर दधीचि देह दान समिति ने भी ‘स्वस्थ सबल भारत’ के अपने महत्वपूर्ण उद्देश्य और प्रयास के तहत अपना सहयोग दिया।

दधीचि देह दान समिति को अस्तित्व में आए लगभग दो दशक हो चुके हैं। इस दौरान समिति ने देह-अंग दान के लिए किस तरह अनेक बाधाएं पार करके तमाम उल्लेखनीय काम किए और जन-साधारण के बीच अपने परिचय को मज़बूत किया, समिति के क्या-क्या योगदान रहे, इस लेख में इस विषय पर न जाकर जन-साधारण की उस जिज्ञासा का उत्तर देने का प्रयास किया जा रहा है कि देह और अंग दान क्या हैं और इनमें क्या अंतर है?

दरअसल, इंसान के मस्तिष्क की कोई थाह नहीं है। आध्यात्म में जाएं तो मानव योनि में आने के बाद जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति होने तक एक मानव के जितने भी मानव योनी के जन्म होते हैं उन सभी की स्मृतियां उसके अवचेतन मस्तिष्क में सोई पड़ी रहती हैं। कल्पना की दुनिया में जाएं तो मानव मस्तिष्क से बड़ा कोई शिल्पकार नहीं है, जो न केवल अजीब-ओ-गरीब स्वप्न देखता है बल्कि उन्हें साकार करने के लिए कुछ विशिष्ट मानवों को प्रेरित भी करता है। यह तो हुआ इस भूमण्डल पर सदियों से मानव द्वारा चिकित्सा विज्ञान में दिए जा रहे आधुनिकतम अनुसंधान और योगदान का संदर्भ।

इस भूमण्डल में भारत की अपनी अलग पहचान है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि की आयु चार युगों की मानी गई है और एक युग सहस्त्रों वर्ष का होता है। यह युग हैं सत युग, द्वापर युग, त्रेता युग और कलि युग। हर युग की अपनी विशेषता तथा लक्षण हैं। भारतीय दर्शन जितने युगों पुराना है, दान की भावना भी उतनी ही प्राचीन है। अन्य प्रकार के दानों की बात न करके देह दान की बात करते हैं। विद्वानगण, संतगण और जनसाधारण सभी जानते हैं कि सत युग में महर्षि दधीचि ने अच्छाई को सशक्त करने के लिए अपने सम्पूर्ण कंकाल यानी देह को दान कर दिया था, जिससे वज्र नामक शस्त्र का निर्माण किया गया और बुराई रूपी राक्षस राजा का वध किया गया।

प्रत्यारोपण की भी नींव हमारे देश में सदियों पुरानी है। भले ही अंग या विभिन्न तरीके के प्रत्यारोपण ने विदेशी चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से हमारे देश में कदम रखा हो। गणेश जी के बारे में प्रचलित कथा है। भगवान शिव के छोटे पुत्र गणेश ने मां पार्वती की आज्ञा मानते हुए पिता को घर के अंदर प्रवेश करने से रोका। कथा के अनुसार उस समय पार्वती स्नान कर रही थीं। गणेश द्वारा रोके जाने की हठ से नाराज़़ होकर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया। पार्वती ने शिव पर पुत्र को जीवित करने का दबाव डाला और अंततः एक नवजात हाथी शिशु का सिर गणेश के धड़ पर प्रत्यारोपित कर शिव ने अपने बेटे को नया जीवन दिया। संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि युगों पहले चिकित्सा और शस्त्र विज्ञान में भारत अपनी धाक जमा चुका था।

चिकित्सा विज्ञान ने प्रत्यारोपण के लिए पहले कृत्रिम अंग जैसे डेकोरेटिव या नकली नेत्र, बीमार हृदय सक्रिय बनाए रहने के लिए पेसमेकर इत्यादि बनाए। फिर कल्पना की मानव अंग प्रत्यारोपण की। चिकित्सा विज्ञान ने स्टेम सेल से किसी भी अंग को विकसित करने की कोशिश की। वह सफल भी हुआ। लेकिन तत्काल किसी को जीवन देने के लिए इस विधि को अपनाना बहुत सार्थक नहीं है। तत्काल जीवन देने के लिए हृदय, यकृत, गुर्दे, देह के किसी भी हिस्से की अस्थि इत्यादि की उपलब्धि आवश्यक है। भारत में इसीलिए महर्षि दधीचि के दान को इतने युगों बाद सार्थक करते हुए दधीचि देह दान समिति देह दान और अपना दायरा बढ़ा अंग दानों के लिए भारतवासियों को प्रेरित कर रही है।

प्रश्न यह है कि क्या देह दान और अंग दान भिन्न हैं?
देह दान मृत्यु के बाद ही होता है।
अंग दान इससे भिन्न है। कुछ दशक पूर्व जन-साधारण की जानकारी में कृत्रिम नेत्र की जगह दान में मिले मानव नेत्र के प्रत्यारोपण सामने आया। बढ़ते वक्त के साथ (पहले किसी निकटवर्ती संबंधी और बाद में दान में मिले) गुर्दे का प्रत्यारोपण भी सम्भव हुआ और हाल के वर्षों में यकृत के प्रत्यारोपण की भी कोशिशें की गई। नेत्रों को छोड़ कर लगभग अन्य सभी अंग प्रत्यारोपण जीवित इंसान द्वारा दिए गए संबंधित अंग की उपलब्धि से सम्भव हुए। हांलाकि चिकित्सा विज्ञान और दधीचि देह दान समिति अब मस्तिष्क मृत्यु के मामले में देह के अधिकांश अंगों को दान किए जाने को बढ़ावा दे रहे हंै। फिलहाल सबसे अधिक नेत्र दान सुपरिचित है और प्रचलन में है, जिसे मरणोपरांत कुछ घंटों के अंदर मृत देह से निकाल रख सुरक्षित रखा जा सकता है।

चिकित्सा विज्ञान की कोशिश है दानी मृत देह से गुर्दे, हृदय, यकृत भी सुरक्षित निकाल लिए जाएं और प्रतीक्षारत ज़रूरतमंद मरीज़ में प्रत्यारोपित कर दिए जाएं। इसके लिए गैर सरकारी संस्था दधीचि देह दान समिति सर्वाधिक सक्रिय भूमिका निभा रही है। इसके अलावा चिकित्सा विज्ञान धड़ पर नया मानव सिर प्रत्यारोपित करने की दिशा में भी सक्रिय है। स्टेम सेल संरक्षण कोष भी बनाया जा रहा है। स्टेम सेल जीवित व्यक्ति से ही उपलब्ध होती है और अंग दान की श्रेणी में आती है।
स्पष्ट है कि देह दान और अंग दान भिन्न हैं।

देह दान में सम्पूर्ण मृत देह दान की जाती है। सबसे पहले दान में मिली मृत देह यानी केडेवर के नेत्र निकाल दिए जाते हैं, क्योंकि मृत देह का यही अंग मृत्यु के कुछ घंटों बाद तक सुरक्षित प्राप्त किया जा सकता है। वजह नेत्रों में रक्त का संचार न होना। इसके बाद मृत देह का हर अंग, हर कोशिका, हर टिश्यू, हर अस्थि सर्वप्रथम काम आती है चिकित्सा विद्यार्थियों के अध्ययन में और उसके बाद या साथ-साथ किसी भी ज़रूरतमंद मरीज़ का जीवन बचाने में। यह तभी सम्भव होता है जब मरने वाला किसी संक्रामक रोग से पीड़ित न हो, रक्त कैंसर या रक्त की किसी भी अन्य बीमारी जैसे सेप्टोसीमिया इत्यादि से ग्रसित न हो।

दूसरी ओर अंग दान मस्तिष्क मृत्यु की स्थिति में होता है। मस्तिष्क मृत्यु के कारण आमतौर पर दुर्घटना, सिर पर सीधे आघात लगना और सन स्ट्रोक होते हैं। इस मृत्यु में देह के सभी अंग सक्रिय रहते हैं सिवाय मस्तिष्क के और डाॅक्टर द्वारा मस्तिष्क मृत्यु घोषित करने के बाद अधिकांश सभी अंगों का दान किया जा सकता है।

और दधीचि देह दान समिति प्रारम्भ से मरणोपरांत सम्पूण देह यानी केडेवर को दान करने की दिशा में सक्रिय है। साथ ही वह अपना दायरा बढ़ा कर मृत्यु बाद विभिन्न अंगों के दान के लिए भी जनमानस और अन्य चिकित्सा संस्थानों का सहयोग कर रही है। नेत्र दान में समिति का उल्लेखनीय योगदान है।

इन्दु अग्रवाल