Home
Print
Previous

श्रद्धा सुमन

श्रीमती कल्पकम येचुरी


रास्ता दिखाती है उनकी सोच

सीताराम येचुरी की माताजी श्रीमती कल्पकम येचुरी का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनकी इच्छा थी कि मरने के बाद उनके शरीर को चिकित्सा अध्ययन के लिए दान में दे दी जाए। उनके परिवारवालों ने उनकी इच्छा का सम्मान किया और उनका शरीर चिकित्सा महाविद्यालय को सौंप दिया गया।परिवार जनों का अभिवादन । दिवंगत आत्मा को हम सविनय अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।

श्रीमती ऋषि पाली


परोपकार  की माई ऋषि पाली

श्रीमती ऋषि पाली ने 9 जुलाई को अपनी इह लीला समाप्त की। वे दिल्ली में पांडव नगर की निवासी थीं। पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ समाज सेवा में वे निरंतर सक्रिय रहीं। उनका पुत्र और परिवार भी ऋषि पाली के उच्च आदर्शों की रक्षा में तत्पर हैं।

उनके पुत्र श्री विकास अपनी मां की कहानी कुछ यूं सुनाते हैं-

“ ऋषि पाली जी का जन्म एक फौजी परिवार मे उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के कदराबाद गाँव में हुआ। तीन बहन भाइयों में वह दूसरे नंबर की थीं। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उनकी शादी बुलंदशहर के किसान परिवार में हुई। एक बड़े परिवार के रूप में उनको अपना ससुराल मिला वह शुरु से ही सबको साथ लेकर आगे बढ़ती रहीं। बाद में वह दिल्ली में रहने लगीं। यहां रहते हुए उन्होंने अपने तीन बच्चे (दो पुत्री व एक पुत्र के साथ) जेठ के बेटे को भी पढ़ाया लिखाया। संघ पृष्ठभूमि होने के साथ परिवार व संगठन के बीच अच्छा समन्वय बनाकर सेवा भारती जैसे संगठन में कार्य करते हुए उन्होंने जरूरतमंदों को हुनरमंद बनाने का लगातार प्रयास किया। लड़कियों की पढ़ाई के अलावा, उनके स्वास्थ्य के लिए काम करते हुए उन्होंने उनके बीच सिलाई जैसे हुनरों को बड़े ही आत्मीय अंदाज में प्रोत्साहित किया। अंतिम समय में भी वह मयूर विहार जिले मे सेवा भारती की अध्यक्ष के नाते कार्य कर रही थीं।"

समर्पित भाव से समाज सेवा के कार्यों में उनका परिवार भी निरंतर लगा हुआ है। उसी क्रम में परिवार जनों ने स्व. ऋषि पाली के पार्थिव शरीर को दान करने का निर्णय लेकर साधुवाद का कार्य किया है ।एम्स में मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए इस मृत देह का उपयोग किया जाएगा। मानवता के कल्याण के लिए किया गया यह पुण्य दान अनुकरणीय है। हम दिवंगत आत्मा की शांति के लिए विनम्र प्रार्थना करते हैं ।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री विकास 9599719999

श्री ललित मोहन जैन


हमें सपना दिखाती रहेंगी उनकी आंखें

श्री ललित मोहन जैन 61 वर्ष की आयु चले जरूर गए, लेकिन उनकी प्रेरणा और सोच आज भी हमारे साथ है। वे वीर नगर, जैन कॉलोनी, दिल्ली 7 के निवासी थे ।

उनके भतीजे श्री हर्षद ने फोन पर बहुत भावुक होकर बताया कि उनके चाचा भले ही इस दुनिया में नहीं हैं,लेकिन उनकी आंखें भारत को सबल और स्वस्थ होते देख रही हैं।

धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति श्री मोहन दिल्ली के जैन समाज की लगभग सभी संस्थाओं में सक्रिय थे। अपने भाई-बहनों के परिवारों की तो उन्होंने हर संभव सहायता की ही, समाज में किसी की भी सहायता करने में वे तत्परता से आगे रहते थे ।अपने मरने के बाद होने वाले क्रियाकर्मों मे दान आदि की व्यवस्था भी वह खुद कर गए थे।उन्होंने सक्रिय जीवन जीते हुए ही मृत्यु को भी वर्णन किया। उनके जीवन के अनुरूप ही उनके मरणोपरांत परिवार ने उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर उनकी मृत्यु को भी परोपकारी बना दिया । 11 जुलाई,2021 को स्व. ललित मोहन के नेत्र राजेंद्र प्रसाद आई सेंटर, एम्स की टीम, ससम्मान दान में लेकर गई । मानवता की सेवा में किए गए इस महादान के लिए परिवार जनों का अभिवादन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे।

संपर्क सूत्र -भतीजा,श्री हर्षद-मो.99907 85742

श्री श्रीचंद सिंह नेगी


ऐसे लोग हमेशा रहते हैं साथ

श्री श्रीचंद सिंह नेगी का 75 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे पालम विहार, गुड़गांव में रहते थे । उनकी बेटी श्रीमती मंजु बिष्ट उनको याद करते हुए भावुक हो जाती हैं। वे बताती हैं कि श्रीचंद जी का सारा जीवन उत्तराखंड के पौड़ी में बीता। स्वास्थ्य संबंधी समाज सेवा के कार्य में लगे रहते थे । उस समय अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र बहुत कम थे और बहुत दूरी पर थे। वे अपने घर से इंजेक्शन की सुईयां उबालकर ,वैक्सीनेशन या अन्य मौसम संबंधी बीमारियों के लिए लेकर जाते थे। साधारण जनों के लिए टीके की व्यवस्था करते थे। उनकी पत्नी के बीमार होने पर वे कुछ दिन उनके साथ एम्स, दिल्ली मे रहे। उसी दौरान उन्होंने होर्डिंग्स पर पढ़कर और कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर अंगदान,-देहदान के विषय में समझा और अपनी बेटी से अपनी इच्छा प्रकट की। उन्हें इस बात का मलाल रहा कि अपनी पत्नी का कोई भी अंग दान नहीं कर पाए। 22 जुलाई को उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी ने उनकी देह दान व नेत्रदान का साहस पूर्ण कार्य किया। हालांकि उन्हें अपने परिवार वालों के बीच अंगदान और देहदान के महत्व को समझाने में मेहनत करनी पड़ी, लेकिन फिर सब मान गए।

स्व. नेगी के नेत्र राजेंद्र प्रसाद आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई ।उनका पार्थिव शरीर एम्स में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों के उपयोग के लिए एक अमूल्य दान है। मानवता की सेवा के लिए समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए परिवार जनों का साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम प्रार्थना करते हैं ।

संपर्क सूत्र- पुत्री, श्रीमती मंजु बिष्ट--मो. 99111 63332

श्री जगदीश राम जग्गी


दान का धर्म बता गए वे

श्री जगदीश राम जग्गी का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे जनकपुरी में रहते थे । उनके पुत्र श्री संदीप जग्गी फोन पर उनके विषय बताते हुए बोले-"श्री जग्गी का जीवन स्वावलंबी था। उन्होंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। स्वयं हर समय हर व्यक्ति की यथासंभव मदद करने को तैयार रहते थे । उनकी पक्की अवधारणा थी कि दान ऐसे करो कि किसी को भी पता न चले । परिश्रमी व्यक्ति थे।”

उनके परिवारजनों ने उनकी मृत्यु के बाद उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है । परिवार का साधुवाद। 27 जुलाई,2021 को स्व. गुरु नानक आई सेंटर की टीम जगदीश राम जग्गी के नेत्र ससम्मान दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है ।

संपर्क सूत्र -पुत्र, श्री संदीप जग्गी-मो. 77038 23377

श्री शिव प्रसाद महतो


शिव को कैसे भूल पाएंगे हम

श्री शिव प्रसाद महतो ने 90 वर्ष की आयु पाई। वे हाल के दिनों में नजफगढ़ में रहते थे ।उनके पुत्र राजकिशोर प्रसाद ने फोन पर हुई बातचीत में उनके संघर्षमय जीवन के बारे में विस्तार से बातचीत की । श्री महतो के बचपन में ही उनके माता-पिता चल बसे थे। दादी की देखभाल में उन्होंने खेती का काम करना शुरू कर दिया। अपना गृहस्थ जीवन शुरू करने के बाद उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया। वे खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। सामाजिक रूप से वे जीवन भर सक्रिय रहे। हमेशा अंधविश्वासों से ऊपर उठकर सोचते थे। उनके जीवन का लंबा कालखंड पटना में ही बीता। पटना उनकी कर्म नगरी थी, इसलिए उन्होंने पटना में देहदान का संकल्प लिया था। 30 जुलाई को उनका देहावसान होने पर उनके पुत्र ने अपने पिता के संकल्प का सम्मान रखने में पूरे धैर्य का परिचय दिया । पटना के संपर्क सूत्रों के माध्यम से वे और उनके परिवार वाले दिल्ली में देहदान समिति तक पहुंचे। स्व. शिवप्रसाद का पार्थिव शरीर, एम्स में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के उपयोग के लिए दान में दिया गया । गुरु नानक आई सेंटर की टीम उनके नेत्र ससम्मान दान में लेकर गई ।समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए परिवार जनों का अभिवादन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे।

संपर्क सूत्र- पुत्र ,श्री राजकिशोर प्रसाद-मो. 98684 91494

श्रीमती चंद्रकांता वशिष्ठ


उनकी सोच को प्रणाम

श्रीमती चंद्रकांता वशिष्ठ ने 88 वर्ष की आयु में परलोक गमन किया ।वे दिल्ली में शालीमार बाग की निवासी थीं। उनके पुत्र ने आदर पूर्वक उनके विषय में एक नोट लिख कर भेजा है -

"जातिवाद को लेकर उनके दिल में कोई भेदभाव नहीं था ।उदार हृदय वाली माता जी सदा गुप्त दान में विश्वास रखती थी। विदेश में जन्म लेने के बावजूद ,उन्होंने विवाहोपरांत अपना जीवन भारत में बहुत सरल व सादगी से बिताया । वह आठ भाषाओ-हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती ,संस्कृत, पंजाबी, इटालियन, सोहेली-अफ्रीका और शॉर्टहैंड-की ज्ञाता थीं ।सफल जिंदगी के लिए समयनिष्ठ का होना अत्यंत आवश्यक है , उनकी इसी सीख से हम उपयोगी और सफल जीवन जी रहे हैं । अपने नेत्रदान का फैसला उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ही ले लिया था।"

8 अगस्त,2021 को उनकी मृत्यु के बाद परिवार जनों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए गुरु नानक आई सेंटर में उनका नेत्रदान करवाया। समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हम परिवार का अभिवादन करते हैं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे।

संपर्क सूत्र- पुत्रवधू ,डॉ. पूर्णिमा वशिष्ठ-मो.98 1878 1619

श्रीमती राजमती जैन


दूसरों के लिए जब दिल में हो दया

15 जुलाई,2021 को श्रीमती राजमती जैन नहीं रहीं। वे पूर्वी पंजाबी बाग, दिल्ली की निवासी थी। उनके पुत्र ने फोन पर उनके विषय में अपनी मीठी यादें हमसे साझा की -"वह बहुत हंसमुख स्वभाव की थी। बातें करना उन्हें अच्छा लगता था। सकारात्मक सोच के साथ वे जीवन में आगे बढ़ती रहीं । खाना बनाने का जितना शौक था ,उतना ही खाना खिलाने का भी। वह हमेशा दूसरों के हित के बारे में सोचा करती थीं।"

उनके परिवार के सभी सदस्यों ने अंग दान का संकल्प लिया हुआ है। 70 वर्ष की आयु में श्रीमती राजमती की मृत्यु के पश्चात परिवार जनों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए गुरु नानक आई सेंटर की टीम को उनके नेत्र दान में दिए। मानवता की सेवा में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए परिवार जनों का अभिवादन। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश्वर से विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री मुकेश जैन-मो. 93115 75151

रामकिशोर जी


रामकिशोर जी हम सबको दिखाया रास्ता

गाजियाबाद के राजेंद्र नगर में रहने वाले रामकिशोर जी का 14 अगस्त, 2021 को एम्स में देहदान हुआ। इनके पौत्र गौरव जी के अनुसार राम किशोर जी का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। अपने जीवन में इन्हें मजदूरों के साथ विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने मजदूरों के लिए कानून की पढ़ाई की और अपने जीवन में कई मजदूरों के लिए केस लड़े। उनका संबंध मजदूर नेता दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के साथ था और वह भारतीय मजदूर संघ से जुड़ गए। बाद में वह भारतीय मजदूर संघ के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष बने।अपने वानप्रस्थ काल में वह लोगों को योग शिक्षा देने के लिए योग कक्षा चलाते थे। 2012 में उन्होंने देहदान का संकल्प लिया था। उनके परिजनों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते उनका देहदान का संकल्प पूर्ण किया।

चिकित्सा जगत की सेवा में यह एक अनुपम दान है । परिवार जनों का अभिवादन इस दान के क्रियान्वयन के लिए। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं ।

संपर्क सूत्र- पुत्र श्री गौरव मिश्रा 98717 16801

श्रीमती चांद सिंघल


दूसरों को ज्योति दे गईं वो

श्रीमती चांद सिंघल का 61 वर्ष की आयु में, 19 अगस्त को देहावसान हो गया। वे रोहिणी में रहती थीं। उनके पति की बातों से उनके नेकदिल और हंसमुख स्वभाव का पता चलता है- “वे हमेशा खुश रहा करती थीं। उनको स्वयं, स्कूली शिक्षा तो नहीं मिली थी ,पर अपने बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देकर उन्हें विशेष योग्य बनाया। वह धार्मिक विचारों वाली महिला थी। अपने घर के मंदिर में उन्होंने 25 वर्ष तक अखंड दीप ज्योति प्रज्ज्वलित की। सरल सहज स्वभाव से वे सबकी मदद को तत्पर रहती थी। खाना बनाना, खिलाना व खाना उनके प्रिय शौक थे।”

अच्छे कपड़े पहन कर ,अच्छा दिखना उन्हें पसंद था। घर में पति-पत्नी के बीच परस्पर नेत्रदान पर चर्चा होती रहती थी ।उसी चर्चा को ध्यान में रखकर दुखद घड़ी में भी परिवार ने उनके नेत्रदान की सफल प्रक्रिया, समय रहते संपन्न कराई।परिवार जन साधुवाद के पात्र हैं। गुरु नानक आई सेंटर की टीम स्व. चांद सिंघल के नेत्र ससम्मान दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता है ।

संपर्क सूत्र -पति, श्री नारायण दास-मो. -98189 99904

श्रीमती शकुंतला देवी


मां तो आखिर मां ही होती हैं !

श्रीमती शकुंतला देवी का 95 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। वे दिल्ली के न्यू अशोक नगर में रहती थीं । उनके पुत्र ने फोन पर अपनी मां रीमती शकुंतला देवी के बारे में बहुत कुछ बताया-"वे एक शांत प्रकृति की महिला थीं। हालांकि अक्सरअपनी गृहस्थी में मगन रहती थीं, लेकिन मौका मिलता तो दूसरों की मदद भी करती थीं। उनके इस परोपकार भाव को द्यान में रखते हुए 25 अगस्त को स्व. शकुंतला देवी के परिवारजनों ने उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। हम परिवार जनों का अभिवादन करते हैं। समिति परिवार की विनम्र प्रार्थना है कि भगवान दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

संपर्क सूत्र – पुत्र, श्री जतिंद्रनाथ-मो. 95608 60774

श्रीमती चंद्रा देवी


धर्म का मर्म समझती थीं वो

दिल्ली के रोहिणी निवासी श्रीमती चंद्रा देवी का 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके पुत्र श्री प्रवीण जैन ने आदर पूर्वक उनके विषय में हमसे ढेर सारी बातें कीं-“वे धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। जैन मुनियों की सेवा उपासना में लगी रहती थी। सब पर स्नेह रखना, यथासंभव सब के सहयोग में तत्पर रहना, अतिथि सत्कार का भाव, उनकी स्मरणीय विशेषताएं हैं। अपने सुरीले गायन से भी सबको बांध लेती थीं ।”

29 अगस्त को स्व. चंद्रा देवी के परिवारवालों ने गुरु नानक आई सेंटर में उनके नेत्र दान में दिए । ऐसी दुखद घड़ी में भी परिवार ने मानवता के सेवार्थ, इस महादान का निर्णय करके समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। हम परिवार का साधुवाद करते हैं। दिवंगत आत्मा को समिति परिवार सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता है ।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री प्रवीण जैन-मो. 98118 11001

श्री सुरेंद्र जैन


जाते - जाते भी कर गए कल्याण

श्री सुरेंद्र जैन ने 73 वर्ष की आयु में अपनी इह लीला समाप्त की। वे दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहते थे। उनके पुत्र ने उनके बारे में ढेर सारी बातें बताईं-” श्री सुरेंद्र जैन का जन्म 15जनवरी,1948 को चांदनी चौक दिल्ली में हुआ था। उन्होंने हंसराज कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई की। वह अपने घर में सबसे बड़े थे।उनके दो छोटे भाई और एक छोटी बहन थी।1973 में उन्होंने प्रेम देवी के साथ शादी की।उनके 3 बच्चे हैं रूबी, गौरव और पूजा। वे बहुत मिलनसार थे, धार्मिक गतिविधियों में हमेशा लगे रहने वाले जैन , श्री महावीर भवन बारादरी ट्रस्ट चांदनी चौक की कार्यकारिणी समिति के 25 साल से अधिक समय तक सदस्य रहे और 10 साल तक जैन श्रावक समिति के उप मंत्री रहे। उन्होंने लगभग 45 साल तक प्रति माह दो उपवास का व्रत लिया था। वह रोज पूजा करते थे। पेशे से जोहरी थे,चांदनी चौक में उनकी दुकान थी। कारोबार बड़ा था। कमाई भी थी। लेकिन असली धन वह परोपकार को ही मानते थे। यही वजह है कि घरवालों को उन्होंने दो साल पहले शरीर दान की इच्छा बताई थी।"

उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए परिवार जनों ने 21 अगस्त को उनका पार्थिव शरीर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में छात्रों की पढ़ाई के लिए दान में दिया। गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान उनके नेत्र दान में लेकर गई। इस महादान के क्रियान्वयन के लिए परिवार जनों का अभिवादन। समिति परिवार दिवंगत आत्मा को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।

संपर्क सूत्र-पुत्र, श्री गौरव जैन-मो. 98110 73877

श्रीमती कृष्णा मिश्रा


असली सेवा तो यही है

गाजियाबाद के कवि नगर में रहने वाली श्रीमती कृष्णा मिश्रा का 88 वर्ष की आयु में ,3 सितंबर,2021 को देहावसान हुआ। उनके पुत्र ने उनके विषय में हमें एक लिखित संदेश भेजा है-"श्रीमती कृष्ण मिश्रा का जन्म मेरठ में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा देहरादून में कन्या गुरुकुल से पूरी की, जहां उन्होंने अकादमिक और अतिरिक्त पाठ्यचर्या दोनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। कई सालों तक वह स्कूल की हेड गर्ल रहीं। उन्होंने 1952 में मेरठ विश्वविद्यालय से हिंदी में प्रथम श्रेणी के साथ एमए किया। वह एक कर्तव्यपरायण गृहिणी थीं, और उसने चार बच्चों -एक बेटा और तीन बेटियों को, बहुत प्यार से पाला। वे परोपकार के मूल्य को समझती थीं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखें और शरीर दान करने का संकल्प लिया था।"

उनकी आंखें और शरीर दान करने का निर्णय पूरी तरह से उनका अपना था। वास्तव में, उनके दृढ़ संकल्प ने भी उनके पति को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया (अफसोस की बात है, कोविड से संबंधित व्यवधानों के कारण दान प्रभावी नहीं हो सका)।

श्रीमती कृष्णा मिश्रा की इच्छा का सम्मान करते हुए परिवार जनों ने उनका पार्थिव शरीर एम्स, दिल्ली में दान किया। आरपी सेंटर ,एम्स की टीम ससम्मान उनके नेत्र दान में ले कर गई । दान के क्रियान्वयन से परिवार ने समाज में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रेरणा के स्तंभ के रूप में खड़े इस परिवार का हम सम्मान करते हैं। दिवंगत आत्मा को ईश्वर अपने श्री चरणों में स्थान दें- ऐसी हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

संपर्क सूत्र- पुत्र ,श्री राजीव मिश्रा 95991 46726

श्रीमती ओमपती जैन


उनकी जिंदगी तो तपस्या थी

श्रीमती ओमपती जैन ने 75 वर्ष की आयु में परलोक गमन किया। वे दिल्ली के पीतमपुरा, में रहती थीं । उनके पुत्र ने आदर सहित उनका जीवन परिचय हमसे साझा किया है-

“मेरी माता श्री ओमपतिदेवी जैन की आंखें दान करवाने में श्री राजेश चेतन जी का बहुत बड़ा योगदान रहा। मेरी माता जी की हार्दिक इच्छा थी उनके मरने के बाद उनकी दोनों आंखें दान कर दी जाए ।उनकी इस आखिरी इच्छा को उनके पूरे परिवार ने पूरा किया। माताजी बचपन से ही जैन संस्कारों से ओतप्रोत थीं। जैन संस्कार उनके शरीर के रोम रोम में बसते थे ।वे एक बड़ी तपस्विनी थी। हरदम तपस्या में ही लीन रहती थी।

हमारे जैन धर्म में एक शब्द आता है संथारा, इसका मतलब है आखरी समय में जाने वाला जीव इसे ग्रहण करना चाहता है ।उनकी इस प्रबल भावना को उनके पुत्र अजीत जैन व उनके पोते अनंत जैन ने पूरा किया। माता जी के अंतिम समय में परिवार उनके पास था। अंतिम समय में उनकी छोटी बेटी कुसुम जैन व उनके दामाद सनत जैन ने बड़ी सेवा की। मैं उनका इकलौता बेटा आखरी समय में सेवा करने से वंचित रह गया यह मेरा बहुत बड़ा दुर्भाग्य है ,लेकिन इस बात की बड़ी खुशी भी है कि उनकी आखिरी संथारा की इच्छा को उनका पोता अनंत जैन पूरी करवा पाया।

माताजी लगभग 30 वर्षों से वर्षी तप की आराधना कर रही थी। वर्षी तप का मतलब होता है एक दिन आहार करना 1 दिन व्रत करना। मेरी बड़ी ताई जी भी अपनी देवरानी ओम पति के नक्शे कदम पर चलते हुए लगभग 21/ 22 वर्षों से वर्षी तप की आराधना कर रही है। माता जी का जन्म जींद जिले के बीटानी गांव में स्वर्गीय लाला श्री कांशीराम जी के यहां हुआ। माता जी के चार भाई व दो बहने हैं ।माताजी का सारा परिवार धर्म के संस्कारों से ओतप्रोत है।

माता जी का विवाह पानीपत जिले के सुप्रसिद्ध राजा खेड़ी गांव के अंदर लाला श्री गोकुल चंद जैन के सुपुत्र श्री बाबूराम जैन के साथ हुआ जो कि एक जैन श्रावक हैं । माता जी की चार पुत्रियां व 1 पुत्र है। माताजी की पुत्रवधू साक्षी जैन है ।माता जी को अपनी पोती श्रद्धा जैन से विशेष लगाव था ।माता जी के एक पोता है अनंत जैन। माताजी की आखिरी इच्छा पोते पूरी करवाई । माताजी पानीपत सकल जैन समाज में अपना एक विशेष स्थान रखती थी और तपस्विनी माता के नाम से प्रसिद्ध थी ।दिल्ली पीतमपुरा समाज के अंदर भी माता जी का यही स्थान था।“

स्व. ओमपती जैन की नेत्रदान की इच्छा का सम्मान कर के परिवार ने समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है । 6 सितंबर को गुरु नानक आई सेंटर की टीम द्वारा उनके नेत्र ससम्मान दान में लिए गए ।परिवार का साधुवाद ।ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे ऐसी समिति परिवार की प्रार्थना ।

संपर्क सूत्र -पुत्र ,श्री अजीत जैन 98960 35820

श्री पूरन सिंह


...और उनकी जिंदगी पूर्ण हुई

बिष्ट ने 88 वर्ष की आयु में परलोक गमन किया । वे नोएडा में रहते थे ।उनके पुत्र ने अपने पिता पर हमें एक लिखित संदेश भेजा है-

“स्व. श्री पीएस बिष्ट मूल रूप से ग्राम जस गोट पट्टी, पोस्ट ऑफिस देहल चोरी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के निवासी थे ।उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह जिले से ही प्राप्त की तथा स्नातक की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी की। उन्होंने 1958 में ऑल इंडिया रेडियो, नई दिल्ली में सरकारी सेवा की शुरुआत की तथा अगस्त 1992 में भूतल परिवहन मंत्रालय, नई दिल्ली से अकाउंट ऑफिसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। उनका मानना था कि जिंदगी बहुत छोटी है ।उसे हम खुश रहकर बिताएं और ऐसे लोगों के साथ बिताए जो आपको हसाएं और आपको महसूस कराएं कि आप उनके लिए जरूरी है। इसलिए उन्होंने खुश रहने और मुस्कुराते रहने को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया और पूरी जिंदगी उनकी यही कोशिश रही कि उनके कामों से जरूरतमंदों के चेहरों पर खुशी आए।

आज की परिस्थितियों को देखते हुए वह हमेशा कहते थे कि अच्छा काम करने में अक्सर परेशानियां तथा कठिनाइयां आएंगी ही पर इसका मतलब यह नहीं है कि आप परेशानियों को देखकर हार मान लें और अच्छा काम नहीं करें ।उनका यह भी विचार था कि अपने लिए तो सभी जीते हैं अगर आप दूसरों के लिए भी सोचें, जिएं और करें... उससे बड़ा पुण्य कोई नहीं हो सकता तथा इसके लिए वह हमेशा प्रयासरत रहे।“

15 सितंबर को उनका पार्थिव शरीर एम्स ,दिल्ली में छात्रों की पढ़ाई के लिए दान किया गया ।आर पी सेंटर, एम्स की टीम ने उनके नेत्र भी ससम्मान दान में लिए ।परिवार जनों का अभिवादन । दिवंगत आत्मा को हम सविनय अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।

संपर्क सूत्र- पुत्र ,श्री सतिंदरदर बिष्ट 9971 682428