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"हम जीतेंगे - Positivity Unlimited" व्याख्यानमाला

मृत्यु पूर्णविराम नहीं है मृत्यु तो एक अल्पविराम है|

पद्मश्री निवेदिता भिड़े जी

कोविड रिस्पॉंस टीम और कोविड रुग्णों की अनेक प्रकार से सेवा करने वालों को, वैद्यकीय सेवा है, सफाई कर्मचारियों की सेवा है, खाना खिलाने वालों की सेवा है, ऐसे सारे कोविड सेवा करने वालो को और आप सभी को मेरा अभिवादन और विनम्र प्रणाम...

हम जीतेंगे, निश्चित जीतेंगे. क्योंकि यह जो भारत राष्ट्र है, यह साधारण राष्ट्र नहीं है. यह अत्यंत प्राचीन राष्ट्र है और जनसंख्या भी बहुत आयत में है तो निश्चितरूप से इसने अनेक संकटों का सामना भी किया है और उन संकटों को पार करते हुए यह राष्ट्र हमेशा उभरा ही है. उन्नत ही हुआ है. तो इस संकट के ऊपर भी हम निश्चित रूप से विजय पाएंगे और कितने सारे राष्ट्र शायद भारत से भी ज्यादा इस समस्या से जूझ रहे हैं या जूझे हैं. भारत में भी जब दूसरी लहर आ गई, तब हम शुरू में थोडा लड़खड़ाए निश्चित, क्योंकि वो इतने वेग से आई. लेकिन अब हम निश्चित रूप से संस्थास्तर पर, सरकारी स्तर पर, समाज के स्तर पर, हम संगठित हो रहे हैं और हम इस कठिनाई का सामना करेंगे. ऐसा कहते हैं कि जो कठिनाइयां आती हैं वो कठिनाइयां नहीं होती हैं. वह अवसर कठिनाइयों का रुप लेकर आता है. हर कठिनाई में अवसर छिपा हुआ होता है. हर कठिनाई में हमारी उन्नति का अवसर छिपा हुआ होता है. तो इस कठिनाई का भी यदि हमें सामना करना है, विजय प्राप्त करने तक सामना करना है तो इसमें छिपे हुए पांच अवसरों को हम निश्चित रूप से देख सकते हैं.

एक है हमें अपनी प्राण शक्ति को वाइब्रेंट करना है, प्राणशक्ति को बढ़ाना है. हम सब जानते हैं कि कोविड में हमारे लंग्स ही सबसे ज्यादा बाधित होते हैं. तो यह जो प्राणायाम है, प्राणायाम के विविध प्रकार हम ऑनलाइन सीख सकते हैं. लेकिन एक सरल सा जो है कि हम शांत बैठते हुए, यदि बीमार हैं तो लेटे हुए भी हम एकदम रिदमिक, स्लो, डीप, ऐसा ब्रीदिंग आउट पहले करना है. जितना हम सांस छोड़ सकते हैं, उतना हमारी अंदर सांस लेने की क्षमता बढ़ती है. ये बहुत बड़ा तत्व इसमें छिपा है. जितना हम देते हैं, उतना हम ले सकते हैं. तो जितना धीरे-धीरे हम, जितना अच्छी तरह से सांस छोड़ पाएंगे, उतनी हमारी सांस लेने की शक्ति यानि हमारी प्राणशक्ति बढ़ने की उसमें संभावना होती है.

एक बार बहुत वर्ष पहले की बात है, उस समय अपने देश में योग इतना फैला हुआ नहीं था. तो एक व्यक्ति मुझे बता रहे थे कि आपको पता नहीं, छोटी-छोटी योग की प्राणायाम की बातें सीखने के लिए मुझे हिमालय में बहुत जगह घूमना पड़ा. योगियों से जो अंदर-अंदर गुफा में छिपे हैं, उनसे पूछना पड़ा आज हमारा भाग्य ये है कि ये सारा सहज उपलब्ध है. बैठ कर करने की ही आवश्यकता है. तो यह पहला अवसर कि अपनी प्राणशक्ति बढ़ाएं. ऐसा कहते हैं कि यदि हम ओंकार का उच्चारण बार-बार यानि 5 मिनट या 10 मिनट के लिए सुबह औऱ शाम को करते रहें तो उससे हमारी इस कोविड से मुकाबला करने की शक्ति बढ़ती है. हम सब जानते हैं कि ये पूरा विश्व ही एक स्पंदन है यानि आज मैं अभी बोल रही हूं वो स्पंदन के रूप में अलग-अलग एनर्जी में से होते हुए आप सबके पास पहुंच रहा है. हर कुछ स्पंदन है. हम देख रहे है वो स्पंदन है, अणु परमाणु में भी वेग से स्पंदन है. ओंकार का स्पंदन शरीर में सकारात्मक बदलाव लाता है, यह रिसर्च में सिद्द हुआ है. एक डॉक्टर अपना अनुभव बता रहे थे कि यदि हम ओंकार का उच्चारण करते है तो हमारी बहुत शक्ति बढती है. ओंकार का उच्चारण हम प्रातः संध्या एवं सायं संध्या के समय करते है. इस समय स्पंदन को रिसीव करने की और उसके अनुसार परिणाम लाने की तयारी जायदा होती है इसलिए प्राणशक्ति बढ़ाने के लिए एक अवसर हमे मिला है. प्राणशक्ति केवल कोविड से लड़ने के लिए नही बल्कि पुरे जीवन के लिए आवश्यक होती है. इसलिए हम ओंकार का उच्चारण करेंगे और प्राणायाम निश्चित रूप से आत्मसात करेंगे. दूसरा जो अवसर छिपा है मन की अनंत शक्तियों को समझना. मन यदि हार जाता है तो हम हार जाते है. मन जैसा सोचता है कि मैं ऐसा करूंगा तो वैसा हो सकता है. क्योकि हमारा जो अवचेतन मन है उसकी शक्ति प्रगाड़ है. स्वामी विवेकानंद ने पावर्स ऑफ़ थे माइंड पुस्तक लिखी है. आज इन्टरनेट पे डाले तो पावर्स ऑफ़ द सब कांशियंश माइंड तो ढेर साडी पुस्तकों के नाम आजायेंगे. बहुत बरस पहले मैंने एक प्रसिद्ध कहानी पढ़ी थी. एक लड़की बीमार हो गयी, पतझड़ का मौसम था, उसकी खिड़की से एक बेल दिखाई देती थी. उसके पत्ते गिर रहे थे. उसके ठान लिया कि जैसे ही ये पत्ते गिर जायेंगे, मैं मर जाउंगी. जैसे जैसे पत्तो की संख्या कम होती गयी इसकी रोग से लड़ने की इच्छा ही समाप्त हो गयी. अब तो दो ही पत्ते बचे है इनके गिर जाने पर मेरी आयु समाप्त हो जाएगी. कलाकारों की बस्ती थी, उसके एक कलाकार ने उस लडकी की मनोदशा को समझ लिया और खिड़की के कांच पर दो पत्ते चित्रित कर दिए. बेल के पत्ते तो गिर गये लेकिन बीमार लड़की को लगा कि ये दो पत्ते तो ऐसे ही है. पत्ते के गिरने का समय आगया पर ये गिरे नही इसका मतलब है कि मैं मरने वाली नही हूँ. उसमे उत्साह आ गया. यदि हम डरे कि कोरोना हो जायेगा तो हो जायेगा. सोचेंगे सीरियस हो जायेगा तो वो सीरियस हो जायेगा. यानि हम जैसा सोचते है वैसे ही होता है. इसलिए मन की शक्ति को बढ़ाना है तो रोज मैं क्या चाहती हूँ. मैं स्वस्थ रहना चाहती हूँ. सबके साथ योग्य व्यव्हार करना चाहती हूँ. अवचेतन मन हमेशा जागृत रहता है और सचेतन मन जब शांत होने का समय होता है यानी निद्रा के पहले और जब हम सवेरे उठते है उस समय थोड़ी देर के लिए स्वास्थ्य का सकारात्मक विचार करें. अपने परिवार का समाज का राष्ट्र, व पुरे मानव समाज के सामने जो समस्या है उसका. सकारात्मक विचार करेंगे तो मन की जो सकारात्मक शक्ति है वो निश्चित रूप से जागृत होगी. दूसरा हमे यह अवसर मिला है, अपने मन की शक्ति को सकारात्मक कार्यों में लगाने का. टीवी में क्या चल रहा है, एक बार देख लिया बस हो गया. भय के वातावरण में रहने की बजाय यह कालखंड जिसमें हमे परिवार के साथ अन्दर ही रहना पड़ रहा है. हम सब एक साथ है. हम कुछ ऐसा करे कि हमारे परिवार के मन में, बच्चो के मन में यह एक अविस्मरणीय काल हो जाये.

हमारा समय सकारत्मक काम में लगाना चाहिए। हम जानते हैं कि यदि परिवार तय करता है तो बहुत कुछ हो सकता है। आप ऐसा भी कर सकते है कि आप एक नई भाषा सीखने का तय कर सकते हैं तो सब लोग सीखेंगे आजकल मोबाइल में तो सारे ऐप उपलब्ध हैं। हम भाषा सीखेंगे फिर हम दूसरों के साथ एक दिन उसी भाषा में बोलेंगे। हमारा सारा दिमाग अच्छे में लगेगा। मैंने ऐसा पढ़ा कि इजरायल में जब सारे हिब्रू वापस गए, इजरायल स्वतंत्र हो गया पर हिब्रू भाषा कोई बोलता नहीं था. लेकिन एक व्यक्ति घर में डिक्शनरी लेकर आए और बच्चे और पत्नी के सामने रखी और बोले आज से हम हिब्रू में ही बोलेंगे। हमें यदि शब्द नहीं आता है तो डिक्शनरी में देखेंगे और बात करेंगे कोई दूसरी भाषा में बोलेगा तो मैं सुनूंगा नही और ऐसा हर एक ने किया तो इजरायल ने हिब्रू भाषा बहुत अच्छी तरह से सुधर गई। याने हम भी कर सकते हैं। उत्तर भारत के है तो दक्षिण भारत की कोई भाषा सीखें. दक्षिण भारत के है तो हम पूर्व भारत या उत्तर भारत की कोई भाषा सीखे। या हम संस्कृत सीखे। घर में सारे संस्कृत में बोलना सीखे पूरे परिवार में बहुत आनंद आएगा। या हम सूर्य नमस्कार करें। पूरा परिवार साथ में करे और अपना जो डिस्टेंट परिवार है उनके साथ कंपेयर करें। हम ये भी कर सकते हैं जैसी बच्चों की एज है उसके अनुसार हम बच्चों के साथ उनकी कोई नई कला ले सकते हैं. हम उनको सिखाएंगे पहेलियां बुझा सकते हैं कहानियां बता सकते हैं खेल खेल सकते हैं ऐसा कुछ कर सकते हैं। खाना एक साथ मिलके बना सकते हैं। यानी तय करना है सब लोग मिलकर कुछ करेंगे और फिर उसमें सब लोग ही दूसरों की मदद करेंगे। फिर उसमें और आनंद आएगा। तो आज ऐसा एक साथ रहने के लिए मिला है। दुसरे हम बाहर नहीं जा सकते ऐसा सोच कर हम रोने वाले होंगे नहीं क्योंकि कारण का रोना रोने से कभी न कोई जीता है जोविष धारण कर सकता है वह अमृत को पीता है तो हमें यह कठिन काल को पचाना आना चाहिए तभी उसमें जो अमृत छिपा है वह हमें प्राप्त होगा। फिर चौथा छुपा हुआ अवसर सेवा का है। याने आज जो संगठन सेवा कर रहे है उनके साथ जुड़ कर मैं क्या सेवा दे सकती हूं इसका हम प्रयत्न करें। यदि ऐसा कुछ संभव नहीं है मेरे लिए तो ठीक है मेरी ही कॉलोनी में किसी को कोरोना हुआ है वो पत्नी हॉस्पिटल में गई है घर में छोटे बच्चे और उनके सिर्फ दादा जी है क्यूंकि पति भी हॉस्पिटल में गए हैं। ऐसी स्थिति भी हो सकती है तो हम उन तीनों को खाना बना के रोज देंगे। हम उतना कर सकते हैं सब जगह सेवा का अवसर उपलब्ध है मैं क्या करते हुए मैं कैसे करके सेवा दूं। ये हम सोच सकते हैं अगर समझे कि मै अशक्य हूँ और बेड पर लेटी हूं मैं कुछ नहीं कर सकती। ऐसा भी नहीं है। हम सब कुछ कर सकते हैं हम सारे कुछ न कुछ कर सकते हैं। याद रहे बीमार है उन सबके लिए हम प्रार्थना तो निश्चित रूप से कर सकते हैं. जिस भगवान को हम मानते हैं उस भगवान की प्रार्थना कर सकते हैं। राम रक्षा सूत्र बोल सकते हैं विष्णु सहस्त्रनाम बोल सकते हैं। संकल्प करते हुए वे सब अच्छे हो और प्रार्थना में भी शक्ति है क्योंकि सब कुछ स्पंदन है वाइब्रेशन है तो उसकी जो वाइब्रेशन होगी और हमें भी एक आनंद मिलेगा कि हां यह सकारात्मक शक्ति के स्पंदन बनने में मेरा योगदान भी था तो सेवा यानी सेवा जैसे स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि एक भी छोटा नि:स्वार्थ कार्य आप करते हैं तो आपका उन्नति का मार्ग ही प्रशस्त होता जाता है तो आज वो भी अवसर इसमें हैं। फिर अब पांचवा यदि हम देखें तो मृत्यु का डर। कहीं न कहीं ऐसा हो गया क्योंकि हम ज्यादा भौतिकवादी हो रहे थे। ज्यादा से ज्यादा चीजें बटोरने में लग रहे थे। उसके पीछे दौड़ रहे थे और अब कहीं न कहीं हम ज्यादा देह बुद्धि में स्थित होने लगे हैं। मैं यानी कौन, तो ये शरीर और फिर अभी उसके मृत्यु के डर में हम आ रहे है। लेकिन हम ऋषि मुनियों के संतान हैं हम उस देश की संतान हैं जिस देश में मृत्यु या पूर्णविराम नहीं है मृत्यु तो एक अल्पविराम है. हम मृत्यु से डरने वाले नहीं हैं। इस देश के लोगों को मृत्यु का डर नहीं है। आप जानते हैं एलेक्सजेंडर की कहानी. जब वो एक साधू के सामने गये और हाथ में तलवार लेकर बोले कि मैं जगत विजेता सिकंदर मैंने तुमको बुलाया तो मुझे मिलने आए नहीं। मैं तुम्हारे शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा। यह सुनकर वह व्यक्ति हंसते हुए बोला, एक वाक्य में आपने दो झूठ बोले हैं। एक तो आप जगत विजेता है नहीं और दूसरा आप मेरे टुकड़े नहीं कर सकते हैं। आप मेरे शरीर के कर सकते हैं मेरे टुकड़े नहीं कर सकते। और फिर जब एलेक्सजेंडर ने ये समझा कि इस भूमि में मृत्यु का डर नहीं है, ये तो वीरभूमि है। कठिनाई के सामने झुकने वाली भूमि नहीं है। ये जब उसको समझ आया तो एलेक्सजेंडर सिन्धु नदी से ही वापस चला गया. हम सब जानते हैं इस भूमि में हमें मृत्यु का डर नहीं है। अब ठीक है जैसे हम जानते हैं कि एक न एक दिन हरेक को मृत्यु आने ही वाली है। लेकिन इसका अर्थ ऐसा नहीं है कि हम चाहे जैसा रहेंगे। हमे ठीक से रहना है, केयर से रहना है। हम सामर्थ्य से जीएंगे हम विजय से जीएंगे हम योगदान करते हुए जिएंगे और यदि मृत्यु का समय हो ही गया है तो हंसते हुए हम मृत्यु को झेलेंगे। हम मृत्यु का सामना करेंगे क्योंकि हमारे देश में मृत्यु का डर नहीं है। जीवन अखंड है। मृत्यु तो सिर्फ जैसे कपड़े बदलते हैं वैसे शरीर को बदलना है और जो पुनर्जन्म के ऊपर संशोधन हो रहा है जैसे डॉक्टर स्टीवेंसन है, डॉक्टर सतवंत पसरीचा है, इन लोगों ने बहुत सारा संशोधन किया है पुनर्जन्म के ऊपर. काफी सारे घरों में हुआ है कि हमारे प्रियजन हमसे कोविड के कारण बिछुड़ गए हैं। लेकिन ये सिर्फ इस जन्म का है। अगले जन्म में फिर से सारे एक साथ आते हैं और हम जितना दुखी रहेंगे हम उनकी आत्मा को दुःख ही देने वाले हैं। तो जो भी समस्या है यानी मृत्यु का हमें डर नहीं है हम मृत्युंजय है और ऐसे आत्मविश्वास से यदि हम इस समस्या का सामना करते हैं तो निश्चित रूप से हम जीतेंगे ही। हम सब जानते हैं कि कहीं कुछ पाप किया तो तीर्थक्षेत्र में जाके उस पाप को हम नष्ट कर सकते हैं। उसी प्रकार ऐसा जब मनुष्य के कष्ट का काल होता है उस समय सेवा करते है तो पुण्य प्राप्त करते हैं लेकिन यदि किसी की असहायता का हम फायदा उठाते हैं तो निश्चित रूप से हमें उन कर्मो का सामना करना पड़ेगा यह जो कर्म का सिद्धान्त है वो भी आज अच्छी तरह से हम समझेंगे तो निश्चित रूप से हमारा जीवन जो होगा वो योगदान करने वाला होगा मदद करने वाला होगा और ऐसा जीवन हम जिएंगे। हर कठिनाई के अंदर जो छिपे हुए अवसर हैं ऐसे अवसर हम हमारी प्राणशक्ति बढ़ाएंगे हम हमारे मन की शक्ति बढ़ाएंगे। हम परिवार को बहुत आत्मीयता से जुड़ा हुआ और बच्चे सब कुछ नया सीखेंगे। हमें एक दूसरे के करीब लाने के लिए समय मिला हुआ है हमें सेवा का अवसर मिला है और हमारे जीवन से हम मृत्यु का डर पूरा निकाल देंगे। ऐसा यदि हम होते हैं तो निश्चित रूप से और हम होंगे क्योंकि इस राष्ट्र के खून में है वो अभी हमे सिर्फ याद दिलाकर उसका अभ्यास करने की आवश्यकता है और वो हम करेंगे, निश्चित हम कोरोना से युद्ध जीतेंगे.