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मातृत्व लाभ (संशोधन) कानून 2017

नव प्रसूता माताओं को मिला विशेष उपहार

भारत की संसद ने गर्भवती माताओं, नव प्रसूताअ माताओं और नवजात शिशुओं को एक विशेष उपहार दिया है। लोक सभा ने 9 मार्च, 2016 को मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक परित कर दिया। शीत कालीन सत्र में यह विधेयक पहले ही परित किया जा चुका था। मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 को 1 अप्रैल, 2017 को कानून के रूप में देश में लागू कर दिया गया है।

लोक सभा में पारित विधेयक के अंतर्गत मातृत्व लाभ कानून, 1961 में निम्न संशोधन किए गए:-

  1. नौकरी करने वाली महिलाओं का मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह कर दिया गया। लेकिन यह संशोधन सिर्फ पहले दो बच्चों के लिए लागू होगा।
  2. ‘‘कमीशनिंग (दूसरी महिला को गर्भधारण करने का अधिकार देने वाली) माताओं’’ यानी उधार की कोख (सरोगेसी) से मां बनने वाली महिलाओं और तीन माह से कम उम्र के शिशु को गोद लेने वाली माताओं के लिए 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश उपलब्ध रहेगा। ‘‘कमीशनिंग मां’’ को ऐसी वास्तविक (बायोलाॅजिकल) मां के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपने निषेचित (फर्टिलाइज़्ड) अंडे को दूसरी महिला की कोख में प्रत्यारोपित कराती है ताकि वह भूण बन सके और नौ माह के विकसित शिशु के रूप में जन्म ले सके।
  3. प्रत्येक संस्थान में, जहां 50 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं, महिलाकर्मियों के लिए शिशुगृह (क्रैच) सुविधाएं उपलब्ध कराना आवश्यक बना दिया है। मां बनी महिलाओं को, अपने कार्य के घंटों के दौरान शिशु की देखभाल करने और अपना दूध पिलाने के लिए, शिशुगृह में प्रतिदिन चार बार जाने की अनुमति दी गई।
  4. अगर सम्भव हो सके तो नियोक्ता (एम्प्लाॅयर) महिला को घर से काम करने की अनुमति दे सकता है।
  5. प्रत्येक संस्थान के लिए आवश्यक होगा कि महिलाओं के इन लाभों को उनकी नियुक्ति के समय से उन्हें उपलब्ध कराए।

महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने लोक सभा में इस विधेयक के पारित होने के बाद श्रम एवं रोजगार मंत्री श्री बंडारु दत्तात्रेय को, देश की लाखों महिलाओं की मांग को उठाने तथा राज्य सभा के साथ लोक सभा तक ले जाने के लिए, धन्यवाद दिया।

इस अवसर पर, लगभग चार घंटे चली बहस के बाद श्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा, ‘‘एक दिन पहले ही अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने के बाद देश की महिलाओं को यह मेरा विनम्र उपहार है।’’ बहस में कुछ सदस्यों ने पितृत्व अवकाश की भी मांग की। उनका तर्क था कि आजकल ज़्यादातर शिशु इकाई परिवारों में जन्म लेते हैं जहां उसे मां और पिता दोनों की देखभाल की ज़रूरत होती है। विधेयक में उक्त संशोधन, महिला एवं बाल विकास मंत्री के अनुरोध पर श्रम एवं रोजगार मंत्री ने सिर्फ, जन्म के बाद से शिशु की उम्र छह माह होने तक अपना दूध पिलाने वाली माताओं के लिए किए। छह माह का यह समय, काम पर वापस जाने के लिए, मां को स्वस्थ्य होने का अवसर देता है और सक्षम बनाता है।

लोक सभा में मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 पारित होने के बाद भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश हो गया जहां सबसे लम्बा मातृत्व अवकाश दिया जाने लगा है। भारत से पहले कनाडा और नार्वे में क्रमशः 50 सप्ताह और 44 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान है।

नए मातृत्व कानून के कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पक्ष इस प्रकार हैं:-

  • मातृत्व (संशोधन) कानून, 2017 के तहत देश की लगभग 18 लाख मांओं को लाभ मिल सकेगा।
  • नए कानून के तहत संशोधित लााभों के लिए सिर्फ वही महिलाकर्मी पात्र होगी, जिसने सम्भावित डिलीवरी तारीख ते अपने संस्थान में अपनी नौकरी के 160 दिन पूरे कर लिए हों।
  • गोद लेने वाली और कमीशनिंग माताओं (सरोगेसी से मां बनने वाली महिलाओं) को यह अवकाश उस दिन से दिया जाएगा जिस दिन वह शिशु को गोद लेंगी या जिस दिन सरोगेट शिशु उन्हें सौंपा जाएगा।
  • कानून में यह अनिवार्य किया गया है कि 50 से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थान तय की गई सीमा में शिशुगृह सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे। शिशुगृह में माता को दिन में चार बार जाने की अनुमति उसके आराम का समय भी शामिल होगा।
  • नया कानून 50 या इससे अधिक को रोज़गार देने वाले सभी संस्थानो पर लागू होगा।
  • नए कानून के तहत घर से काम कर सकने के विकल्प को, महिलाकर्मी मातृत्व अवकाश बीत जाने के बाद भी अपने नियोक्ता के साथ आपसी सहमति से कुछ और समय के लिए बढ़ा सकती है।
  • नए कानून में यह भी सुनिश्चित किया गया कि पूर्ण गर्भावस्था काल के दौरान महिलाकर्मी को पूरी मातृत्व देखभाल उपब्ध होगी और यह नियोजित क्षेत्र में अधिक से अधिक संख्या में महिलाओं को नौकरी दिए जाने को प्रोत्साहित करता है।

पितृत्व अवकाश और भारत में इसकी उपयोगिता
यद्यपि मां शिशु को जन्म देती है, लेकिन पिता की भी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिशु के जन्म से पहले और उसके जन्म लेने के बाद मां और शिशु दोनों को पिता के भावनात्मक सहारे और उसके साथ बने रहने की उम्मीद होती है। पिता को दो महीने का पितृत्व अवकाश स्वीकृत किए जाने के बाद से स्वीडन में तलाक की दर में काफी कमी आई है।

भारत में, केन्द्रीय नागरिक सेवा (अवकाश) नियम 551 (ए) के तहत एक अध्यादेश के ज़रिए 1991 में केन्द्र सरकार ने, केन्द्र सरकार में पुरुष कर्मचारियों के लिए पितृत्व अवकाश के लिए प्रावधान (प्राॅविज़न्स) बनाए। इन पुरुष कर्मचारियों में प्रशिक्षार्थी (एप्रेन्टिस) और परिवीक्षार्थी (प्रोबेश्नर) भी शामिल किए गए। प्रावधानों के अंतर्गत वह पुरुषकर्मीे, जो पहली बार पिता बन रहे हैं या दूसरी बार पिता बन रहा है, अपनी पत्नी और नवजात शिशु की देखभाल के लिए, 15 दिन का पितृत्व अवकाश ले सकते हैं। वह यह अवकाश शिशु के जन्म से 15 दिन पहले से या उसके जन्म के दिन से लेकर छह माह तक ले सकता है। समय पर पितृत्व अवकाश न लेने पर उसकी ये छुट्टियां रद्द हो जाती हैं। पितृत्व अवकाश पर जाने से पहले पुरुषकर्मी को तत्काल अवकाश वेतन का भुगतान कर दिया जाता है। तीन महीने से कम आयु के शिशु को गोद लेने पर पर भी पितृत्व अवकाश के समान नियम लागू होते हैं। सरकारी क्षेत्र में भले ही पितृत्व अवकाश की स्वीकृति मिल गई, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं था कि इसे निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में भी अनिवार्य रूप से लागू किया जाए। कोई विधान (कानून) न होने के बावज़ूद नई दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2009 दिए गए अपने फैसले के तहत, चन्द्रमोहन जैन के एक निजी स्कूल टीचर को, छुट्टी लेने पर काटे गए वेतन को उसे वापस दिलवाया। अदालत ने अपने फैसले में उसकी छुट्टी को पितृत्व अवकाश के रूप में स्वीकृति दी। भारत जैसे देश में जहां परिवार को सर्वोच्च और सर्वाधिक महत्व दिया जाता है, उपयुक्त पितृत्व अवकाश भी बेहद ज़रूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नई बनी मां और नवजात शिशु दोनों के लिए आस-पास बने रहने वाला पिता सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है।

भारत में लोगों ने लगभग एक दशक पहले से पितृत्व अवकाश पर चर्चा शुरू कर रखी है। उम्मीद है सरकार जल्द ही इस ओर भी ध्यान देगी और पितृत्व अवकाश के लिए अध्यादेश लाएगी।

इन्दु अग्रवाल