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कविता-देहदानी पिताजी की स्मृति में श्रद्धा पुष्प

अंत को जीवंत करने की भावना
सब में नहीं होती,
कौन कहता है कि मानवता की सेवा
मृत्यु के बाद भी नहीं होती?
मृत्यूपरांत शरीर है मिट्टी और मात्र परिधान,
दृढ़ संकल्प करें हृदय में
करें पुण्य का काम।
करें अपना देहदान
स्मरण कर ऋषि दधीचि को
रखें धर्म संस्कृति का मान।
अजर अमर है आत्मा
करें अपना देहदान ।
हे प्रभु हमको दो ये वरदान
संकल्प लें हम ह्रदय में
और करें अपना देहदान।
पूज्य पिताजी की स्मृति में
उनके आदर्श जीवन को भज,
उनके चरणों में समर्पित
करते हम अपनी श्रद्धा के पुष्प।
प्रवीण कुमार रस्तोगी