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कविता

 

सहस्त्र यज्ञ समान है अंगदान औ’ . . .देहदान. . .
मित्रो! धर्मभीरू , धर्मपरायण दिखाने को
अपना इहलोक­परलोक अच्छा बनाने को
जीते जी करते हम पूजा पाठ
दान–पुण्य अनेक कर्मकाण्ड
पुण्य कमाने की खातिर
जीवनपर्यन्त हम अपनी
श्रम की कमाई का एक अंश
सगर्व दान करते जाते हैं
.......और शेष की कर जाते हम वसीयत
फिर क्यों …
जन्म के साथ मिले
जीवन के साथ विकसे
नेत्र, मस्तिष्क, ह्रदय, यकृत,
गुर्दे, अस्थियां­मज्जा, रक्त
और देह अनमोल खूबसूरत
रब की दी बेमिसाल नेमत
मरणोपरांत नष्ट करने को छोड़ जाते हैं
...........कम आंककर उसकी कीमत।
मरणोपरांत भी चलता रखें यह अभियान
सहस्त्र यज्ञ समान है यह अंगदान, देहदान
बिन हींग बिन फिटकरी पा जाते परिजन भी
महादानी के अपने होने का महा­सम्मान।
वसीयत की तरह प्रपत्र भरकर स्वेच्छा से कर जाएं
अपने नेत्र, यकृत, गुर्दे, मस्तिष्क, ह्रदय और देहदान
जो भर देगा कई बेजारों की राहों में उजास
स्वस्थ और कृतज्ञ जीवन का उल्लास
मरणोपरान्त देह के सभी अंग
मिट्टी हो जाते मिल मिट्टी संग
आओ, छोड़ चलें अपनी पहचान
जीते जी करें सदा रक्तदान
मरणोपरान्त निष्प्राण देह का दान
दे सकता है आयुर्विज्ञान विद्यार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान
प्रशस्त कर देता उनके इल्म के रास्ते
ताकि वो भी जिएं मानवता के वास्ते।
बस कुबूल फरमाएं छोटी-सी इल्तिज़ा
दान कर जाएं अपने नेत्र, अंग, देह, अस्थि­मज्जा
अब तक जो जीवन हैं खुद के लिए जिए
मरणोपरांत देखें,सोचें,धड़कें,महकें किसी और के लिए
जी हां महकें धड़कें सोचें किसी और के लिए . . . .
मानवता के लिए हम मरणोपरांत भी जीएं

रचयिताः डॉ0 इन्दु गुप्ता,
प्राचार्य, रा. व. मा. विद्यालय भांकरी, फरीदाबाद
निवासः 348/सैक्टर 14, फरीदाबाद
मो0: 9871084402