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अध्यक्ष की कलम से
एक संत का देहावसान
मैं वर्षों से मिश्रिख जा रहा हूं। यह सीतापुर ज़िले में स्थित है। एक बड़ा कुण्ड है, दधीचि मन्दिर है, आश्रम है। विश्वास किया जाता है कि इसी स्थान पर इन्द्र अस्थियां मांगने आए थे और महर्षि दधीचि ने प्रसन्नतापूर्वक अपनी अस्थियों का मानवता के लिए दान किया था।
यहां के महन्त थे श्री देवदत्त गिरि। एक श्रेष्ठ सन्त थे। निरहंकार। थोड़ा बोलने वाले लेकिन अपने कर्तृत्व में बहुत बड़े थे। इस क्षेत्र में होने वाले सभी सामाजिक कार्यक्रमों को, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को, धार्मिक आयोजनों को उनका सहयोग और आशीर्वाद मिलता था। यहां के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को भी वह अपना भरपूर सहयोग देते थे। पीछे कुछ असामाजिक तत्वों ने जब मन्दिर की भूमि पर कब्ज़ा करने की कोशिश की तो उन्होंने उसका डट की मुकाबला किया था। हम लोगों ने भी प्रदेश के माननीय राज्यपाल जी से चर्चा की थी। महन्त जी मन्दिर की भूमि सुरक्षित रखने में सफल रहे थे।
महन्त जी के समय में इस तीर्थ स्थान का विकास हुआ। इन्दौर के दधीचि सोशल ग्रुप से मन्दिर का भव्य प्रवेश द्वार बनवाया। दधीचेश्वर महादेव का मन्दिर यहां बना। मिश्रिख के श्री सुधीर शुक्ल राणा के नेतृत्व में सरोवर व उसके घाटों की सफाई का काम जन सहयोग से होने लगा। दधीचि जयन्ती पर यहां एक भव्य मेला लगता है।
हम सबके आदरणीय और दधीचि देह दान समिति को निरन्तर आशीर्वाद देने वाले ऐसे महन्त देवदत्त गिरि का दुर्भाग्य से निधन हो गया।
इस आश्रम की महन्त परम्परा के अनुसार मन्दिर के पिछवाड़े में ही उनको भू-समाधि दी गई। 20 जुलाई, 2016 को उनकी षोडसी (मृत्यु के सोलहवें दिन पर होने वाला संस्कार) थी। दिल्ली से मैं और दधीचि देह दान समिति के मंत्री डाॅ. कीर्ति वर्धन साहनी वहां गए थे। एक बहुत बड़ा जमावड़ा हुआ। सीतापुर, मिश्रिख, नेमिशारण्य और बाहर से भी बड़ी तादाद में आए श्रद्धालुओं के साथ हम सबने उनको अन्तिम श्रद्वाजंलि दी। ब्रह्म भोज हुआ। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। हम सबने भी प्रसाद पाया।
उनके 20 वर्षीय दत्तक पुत्र श्री देवानन्द गिरि नए महन्त हुए हैं। भगवा वस्त्रों से सजे महन्त देवानन्द गिरि का हम सबने तिलक लगा कर सम्मान किया। वह थोड़ा संकोच में थे। इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई। पर पूरे आत्मविश्वास से लबालब इस नए युवा महन्त की देखरेख में इस तीर्थ का विकास आगे होता रहेगा, ऐसा विश्वास है। यही प्रार्थना भी है।
एक आनन्द की बात हुई। हम लोग श्री शंकर लाल शर्मा और श्री सांवरमल जोशी से मिले। ये दधीचि सोशल ग्रुप, इन्दौर के प्रमुख हैं। महर्षि दधीचि परिवार के माने जाते हैं। उनके वंशज माने जाते हैं। अपने नाम में दधीचि भी लगाते हैं। इन लोगों ने इस तीर्थ के विकास के लिए प्रयत्न किए हैं। मैंने जिस द्वार व दधीचेश्वर महादेव मन्दिर का उल्लेख किया है, उन्हें इन्होंने ही बनवाया है। अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त एक बड़ा हाॅल भी ये बनवाना चाहते हैं। उनकी केवल यही विनन्ति है कि इसके लिए ज़मीन मन्दिर दे। मुझे इस ग्रुप के सभी लोग महर्षि दधीचि के प्रति भक्ति और उनके आदर्शों के अनुकूल समाज चले- इस भावना से भरे लगे।
हम वहां गए हुए थे इसलिए नेमिशारण्य भी चले गए। यहां पर व्यासपीठ है। इसी पीठ से श्रीमद् भागवत का उपदेश दिया गया था। वहां के प्रमुख महन्त श्री अनिल शास्त्री से एक लम्बा साक्षात्कार हुआ। उन्होंने महर्षि दधीचि का पूरा इतिहास हमें बताया। श्री अनिल शास्त्री अनन्य विद्वान हैं। देश भर में उनके व्यापक सम्पर्क हैं। उन्हीं के प्रयत्नों से इस तीर्थ स्थान का व्यापक विकास हो रहा है और यह विश्व पयर्टन नक्शे पर झिलमिलाने लगा है।
हम लोग काली मन्दिर के पुजारी श्री जगदम्बा प्रसाद जी से मिले। सरल और सहज, उन्मुक्त आनन्द बिखेरने वालों में हैं। संघ से भी जुड़े हुए हैं। उनके यहां एक बड़ी चित्र वीथिका बनी हुई जिसमें भारत के राष्ट्र जीवन के सभी क्षेत्रों के प्रमुख लोग इस मन्दिर के दर्शन के लिए आते हुए और उनसे मिलते हुए दिखाए गए हैं। श्री जगदम्बा प्रसाद जी के पास रहने, ठहरने का एक बड़ा स्थान है। उन्होंने निमंत्रण दिया कि अगली दधीचि दर्शन यात्रा के दौरान सभी यात्री उन्हीं के यहां ठहरेंगे। ऐसा आशीर्वाद उनसे मिला।
हर बार की तरह हम हनुमानगढ़ी भी गए। महन्त बजरंगदास जी मिले, दक्षिणमुखी हनुमानजी के दर्शन किए। महन्त बजरंगदास जी युवा और हनुमानजी के सभी गुणों से विभूषित हैं। यह सभी को अभय प्रदान करने वाले और मंगल प्रदाता हैं।
इस यात्रा में मेरे साथ डाॅ़ तुषार साहनी, श्री सुधीर शुक्ल राणा और श्री छक्कूलाल शास्त्री भी थे। श्री छक्कूूलाल शास्त्री नेमिशारण्य के बहुत प्रभावी और वरिष्ठ हैं। श्रीमद् भागवत के मर्मज्ञ हैं। उन्होंने चक्रतीर्थ पर हम लोागों से पूजन भी करवाया।
पुनः स्वामी देवदत्त गिरि को श्रद्धाजंलि और महन्त देवानन्द गिरि को शुभकामनाएं।
आलोक कुमार