दधीचि कथा आयोजन : रिपोर्ट
राजधानी दिल्ली के संसद मार्ग स्थित एनडीएमसी कन्वेन्शन सेन्टर में 20 सितम्बर 2015 को महर्षि दधीचि पर कथा का आयोजन किया गया। आयोजन किया था दधीचि देह दान समिति ने और कथावाचक थे परम स्नेही भाई अजय जी। इस मौके पर एनडीएमसी कन्वेन्शन सेन्टर का हाॅल खचाखच भरा हुआ था।
यह पहला अवसर था जब सतयुग के महादानी महर्षि दधीचि की जयंती की इस दिन पूर्व संध्या मनाई गई और उनके दान की कथा बाची गई। भाई अजय जी ने कथा का आरम्भ गणेश वंदना से किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जे.पी. नड्डा, कार्यक्रम का संचालन किया पूर्वी दिल्ली के वर्तमान मेयर और दधीचि देह दान समिति के महामंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा ने। श्री मल्होत्रा ने सर्वप्रथम सभी आमंत्रितों, मुख्य अतिथियों और ग्यारह जजमानों का स्वागत किया, क्योंकि बिना जजमान के कथा प्रारम्भ नहीं होती। ये जजमान थे श्री अनिल मित्तल, श्री सुशील मित्तल और उनकी पत्नी श्रीमती अर्चना मित्तल व उनका परिवार; श्री प्रमोद गुप्ता व उनकी पत्नी श्रीमती निधि गुप्ता; श्री विष्णु मित्तल व उनकी पत्नी श्रीमती सीमा मित्तल; श्री आशीष गुप्ता व उनकी पत्नी श्रीमती नैन्सी गुप्ता तथा श्री चके्रश अग्रवाल और उनकी पत्नी श्रीमती अनु अग्रवाल।
अपने स्वागत सम्बोधन में श्री मल्होत्रा ने बताया कि 18 वर्ष पहले दधीचि देह दान समिति के अस्तित्व की नींव रखी गई। समिति के संस्थापक-अध्यक्ष श्री आलोक कुमार व कार्यकारिणी के अन्य लोगों के सतत् प्रयासों से समिति अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती गई और पिछले दो वर्षों में समिति को ज़बरदस्त पहचान मिली है। समिति ने राजधानी के एनसीआर क्षेत्रों में भी पांव पसार लिए हैं। उन्होंने बताया कि समिति ने मृत्यु पश्चात देह दान से आगे बढ़ कर नेत्र दान, अंग दान, टिश्यू दान, स्टेम सेल दान में भी अग्रणी भूमिका निभानी शुरू कर दी है और इस दौरान हुए लगभग सभी नेत्र दानों में समिति की सर्वोच्च भूमिका रही है।
श्री हर्ष मल्होत्रा के आह्वान पर समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री आलोक कुमार मंच पर आए और उन्होंने भावपूर्ण शब्दों में बताया कि लगभग दो दशक पहले किस तरह उनके मन में देह दान की बात आई तभी इस दिशा में नींव की पहली ईंट रखी गई। श्री आलोक ने कहा कि देह दान की वसीयत पंजीकरण के समय जब वह रजिस्ट्रार के सामने जा रहे थे, कि उन सात-आठ कदमों की दूरी तय करते समय उन्होंने मानों साक्षात् देखा कि लोग उनके मृृत शरीर को मेडिकल काॅलेज की गाड़ी में लेकर जा रहे हैं। यह दृश्य उनके दिलोदिमाग में छाया रहा। वह घर आए और उसी चेतन-अवचेतन भाव में सो गए। सुबह उठने पर विचार मन में कौंधा ‘मेरी तो देह का दान हो चुका है, फिर मैं कौन हूं?’ उन्होंने कहा कि एनाॅटाॅमी विभाग मेें चिकित्सा छात्रों को पुलिस को मिली लावारिस और सड़ी-गली लाशों पर अध्ययन करना पड़ता है। इसीलिए और हज़ारों की संख्या में प्रतीक्षारत मरीज़ों को जीवन देने के लिए भी देह-अंग दान ज़रूरी हो गए हैं। श्री आलोक ने आगे कहा कि अमरता का सहज अधार है देह-अंग दान। पंचतत्वों से बनी यह नश्वर देह पांच तत्वों में फिर से मिलने से पहले अनेक लोगों की आंखों की रोशनी बन कर, किसी न किसी ज़रूरतमंद को गुर्दे, यकृत, हृदय, टिश्यू, स्टेम सेल देकर अमरत्व पा लेती है। देह के विलीन होने के
-भारत में हर साल लगभग 5 लाख लोग अंग न मिलने की वजह से मर जाते हैं! -लगभग 2 लाख लोग यकृृत संबंधी बीमारियों से अपनी जान गंवाते हैं! -लगभग 50 हज़ार लोग हृदय संबंधी बीमारियों से दम तोड़ देते हैं! -देश में हर साल लगभग 1.5 लाख लोगों को गुर्दे के प्रत्यारोपण की ज़रूरत -लगभग 10 लाख लोग काॅर्निया की बीमारी से नेत्रहीन हो जाते हैं और वो |
बाद मी दानी दुनिया को अपनी नज़रों से देख रहा होता है। अपने गुर्दे, यकृत, हृदय, टिश्यू, स्टेम सेल का ज़रूरतमंद को दान कर दानी होने वाले कई बेसहारों का सहारा बन अमर हो जाता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि धर्मगुरुओं के अनुसार रूढ़ियां भी देह-अंग दान के रास्ते में आड़े नहीं आतीं। दान की परम्परा हमारे देश में रही है। ऐसे भी देह-अंग दान तो जीवनदायी दान हैं। इस दान की किसी भी तरह के दान से तुलना नहीं हो सकती।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली के प्रान्त कार्यवाह श्री भारत भूषण ने बचपन में मां से सुनी महर्षि दधीचि द्वारा किए गए हड््िडयों के दान की कथा का स्मरण करते हुए राजा शिवि के बाज से कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर के अंश को काट कर किए गए दान से लेकर भारतीय सैनिकों के सीमा पर जीवन न्योछावर कर देने को याद किया और कहा कि दान करना हमें विरासत में मिला है। उन्होंने देह-अंग दान के लिए ‘दधीचि देह दान समिति’ की उल्लेखनीय सक्रियता को सराहा। उन्होंने अंत में कहा कि दधीचि कथा के आयोजन के इस अवसर पर हम सभी अपनी-अपनी सामथ्र्य के अनुसार और ईश्वर ने हमें जो दिया है उसके अनुसार दान करने का संकल्प लें।
मुख्य अतिथि श्री जे.पी. नड्डा ने कहा, ‘ईश्वर निर्मित मानव देह रचना की सानी नहीं है। स्वास्थ मंत्रालय दधीचि देह दान समिति के कार्यों की भरपूर मदद करेगा।’ उन्होंने भरोसा दिया कि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से इस कार्य में सहयोग की अब तक जो कमी रही है उसे पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘दधीचि प्रेरणा स्रोत हैं। मेरा आग्रह है ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में लोग देह-अंग दान से जुड़ें। समाज और अन्य गैर सरकारी संस्थाएं भी आगे आएं तभी समिति का कार्य एक आंदोलन बन सकेगा।’
अपनी बात कहने के बाद श्री नड्डा ने दधीचि देह दान समिति की इ-जनरल पत्रिका के सातवें अंक का विमोचन किया।
कथा वाचक भाई अजय जी ने दधीचि देह दान कथा के बीच-बीच में, भारत में सत युग से वर्तमान तक चली आ रही दान की परम्परा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि दधीचि, राजा शिवि, राजा मोरध्वज, नदियों में गंगा नदी और कलियुग में सीमा पर तैनात सैनिक, सभी महादानी हैं, जो निज स्वार्थ से नहीं कत्र्तव्य भाव से देहदान करते आ रहे हैं। भाई अजय जी के राष्ट्र कथा प्रवचन चल रहे हैं। उन्होंने घोषणा कि अब से (यानी इस बार की दधीचि जयंती से) राष्ट्र कथा का एक अंश दधीचि देह दान कथा हमेशा रहेगी। इस तरह उन्होंने समिति को न केवल आर्शीवाद दे दिया बल्कि उसके कार्यों और पहचान को दूर-दूर तक पहुंचाने का, बिन मांगे, विश्वास भी जगा दिया। यही नहीं श्रोताओं से खचाखच भरे हाॅल में मच पर अपनी देह को दान करने का संकल्प लिया और उसी समय संबंधित फाॅर्म पर हस्ताक्षर भी किए।
दधीचि कथा आयोजन का समापन भारत माता की आरती से हुआ। इसके बाद 750 लोगों ने भण्डारे में प्रसाद ग्रहण किया।
-इन्दु अग्रवाल