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‘‘ चाैथी दधीचि दर्शन यात्रा’’

महर्षियों की तपोभूमि, संतों एवं सिद्धयोगियों की साधना स्थलियां युगों-युगों से अध्यात्म एवं धर्म चेतना के जागरण केन्द्र रही हैं। इन पुण्य स्थलों की यात्रा का भाव ही हमें भौतिक जगत से दूर ऐसे संसार में ले जाता है, जो हमारे सामान्य दैनिक वातावरण से बिल्कुल भिन्न होता है। ऐसा लगता है मानों कण-कण में पवित्रता बसी हो। धर्म भावना से अनुप्राणित और ऊर्जा प्रदान करने वाले इन पवित्र स्थलों में प्रवेश करते ही प्रतीत होता है कि यहां, धर्म धरोहर के रूप में सुरक्षित है और यहां सत्यता एवं साधना के स्वर गुंजायमान हैं। इन स्थलों से जब हम वापस लौटते हैं तो ऐसी ऊर्जा का संचार हमारे मन-मस्तिष्क में होता है जो हमें नए कार्य करने का अवसर और साहस प्रदान करती है।

इन्हीं भावों से ओत-प्रोत, दधीचि देह दान समिति के तत्वावधान में समिति के 54 प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं की टोली, दधीचि दर्शन यात्रा के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर 16 पर रात्रि 9 बजे पहुंची। तारीख थी 24 नवम्बर, 2018। हरदोई तक जाने के लिए टोली को यहां से लखनऊ मेल पकड़नी थी। सभी यात्रियों को विदाई देने के लिए धर्म यात्रा महासंघ के प्रतिनिधि प्लेटफार्म पर उपस्थित थे। प्रतिनिधियों ने यात्रियों को चंदन के तिलक लगाए, गले में रुद्राक्ष की माला और अंगवस्त्र पहनाए। साथ में भोजन के पैकेट और पानी की बोतलें भी दीं। आरक्षित कोच संख्या 1ए, 1.2ए तथा 1.3 में सभी यात्री आबंटित सीटों पर बैठ गए। इसमें मदद की श्री यशवीर सेठी, श्री प्रमोद अग्रवाल, श्री दीपक गोयल और श्री कमल खुराना ने।

अगले दिन 25 नवम्बर, 2018 को सुबह 6 बजे लखनऊ मेल, हरदोई स्टेशन पर पहुंची। स्टेशन पर यात्रियों के स्वागत के लिए श्री विपिन त्रिवेदी ने फीकी एवं मीठी चाय की व्यवस्था की हुई थी। चाय पीकर सभी यात्री बस व कारों द्वारा लगभग एक घंटे में नेमिषारण्य पहुंच गए। नेमिषारण्य में श्री सुधीर गुप्ता, डाॅ. कीर्ति वर्धन साहनी, श्रीमती कल्पना साहनी एवं स्थानीय प्रतिनिधि उपस्थित थे, जो यात्रियों को लेकर होटल विश्वनाथ पैलेस पहुंचे। इसी होटल में सभी के ठहरने की व्यवस्था थी। सभी नित्यकर्मों से निवृत हुए, विश्राम किया और होटल के हाॅल में पहुंच गए, जहां अचार एवं दही के साथ स्वादिष्ट परांठे और चाय उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

नाश्ते के बाद स्थानीय प्रतिनिधिगण अपनी-अपनी कारों और यात्रीगण बस द्वारा हनुमानगढ़ी पहुंचे। यहां हनुमान जी की विशिष्ट दक्षिणमुखी प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा हनुमान जी की खड़ी मुद्रा में है, जिसमें उनके दाएं हाथ में गदा और बाएं हाथ में पर्वत है। मंत्रोच्चार के साथ परम पूज्य महामण्डलेश्वर 1008 आचार्य स्वामी अनुभूतानन्द गुरु जी महाराज ने पूजा-अर्चना करवाई। इसके बाद लगभग सभी यात्रियों ने गाय को चारा एवं बंदरों को चने खिलाए।

इस चाैथी दधीचि दर्शन यात्रा में दधीचि देह दान समिति के संरक्षक श्री आलोक कुमार को भी शामिल होना था, लेकिन विश्व हिन्दू परिषद के अंतराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते उन्हें 25 नवम्बर, 2018 को नागपुर की सभा में उपस्थित होना था। फलस्वरूप वह यात्रा में नहीं जा सके। यात्रा के मुख्य अतिथि के नाते परम पूज्य महामण्डलेश्वर 1008 आचार्य स्वामी अनुभूतानन्द गुरु जी महाराज एक दिन पहले ही नेमिषारण्य पहुंच गए थे।

यात्रा का दूसरा चरण मिश्रिख था, जहां महर्षि दधीचि का मंदिर है। माना जाता है कि यही महर्षि दधीचि का मूल आश्रम है और यही वह पवित्र स्थल है जहां सत्पात्र को सत्कार्य के लिए किए गए दान की परम्परा को जीवंत बनाया गया। इस मंदिर में देवों के राजा इन्द्र याचक और महर्षि दधीचि महादानी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह भी मान्यता है कि अस्थि दान से पूर्व सभी तीर्थों के जल का यहां आह्वान किया गया और उसी जल से अभिषिक्त होकर महर्षि समाधिस्थ हुए थे। उनके समाधिस्थ नमक लगे शरीर को कामधेनु गाय ने चाट-चाट कर अस्थिपंजर को अलग कर दिया था। महर्षि दधीचि के उसी अस्थिपंजर से वज्र नामक शस्त्र निर्मित किया गया। उसी वज्र की मदद से देवताओं ने असुरों का वध करके उन पर विजय पाई थी। मंदिर के महन्त ने पूजा-अर्चना के बाद इस स्थान के महत्व पर प्रकाश डाला।

मंदिर परिसर के प्रांगण में स्वस्थ सबल भारत गोष्ठी आयोजित हुई, जिसकी तैयारी स्थानीय प्रतिनिधियों श्री सुधीर शुक्ल राणा, श्री तुषार साहनी एवं अन्य साथियों द्वारा की गई थी। गोष्ठी के मुख्य अतिथि महामण्डलेश्वर 1008 आचार्य स्वामी अनुभूतानन्द ने प्रभावशाली ढंग से देह दान विषय को श्रोताओं के सम्मुख रखा और महर्षि दधीचि की पौराणिक कथा के माध्यम से वर्तमान समाज में देह दान की आवश्यकता, उपयोगिता एवं औचित्य का विवेचन किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि मरणोपरान्त देह दान और अंग दान में हमारी धार्मिक परम्पराएं एवं संस्कार आड़े नहीं आते बल्कि सहयोगी ही सिद्ध होते हैं।

दधीचि देह दान समिति के अध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने समिति द्वारा किए जाने वाले कार्यों की विस्तार से चर्चा की और समिति की बैठक में लिए गए अपने उस निर्णय की भी जानकारी दी, जिसके अनुसार दधीचि देह दान समिति दिल्ली और एनसीआर क्षेत्रों से बाहर जाकर अपने कार्य का विस्तार करेगी। इसके लिए सर्व प्रथम सीतापुर में अपनी कार्य समिति का गठन करने के लिए उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों का आह्वान किया। उन्हें परामर्श दिया कि लखनऊ और सीतापुर स्थित सरकारी मेडिकल काॅलेजों एवं अस्पतालों के अधिकारियों से विचार-विमर्श कर इस कार्य को आगे बढ़ाएं।

श्री तुषार साहनी ने इस आयोजन में लगे प्रत्येक व्यक्ति का नाम लेकर धन्यवाद किया और बताया कि उनके भाई कीर्ति साहनी के प्रयासों से उनके अपने परिवार से ही पंद्रह से अधिक लोग इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए हैं। स्थानीय नगर निगम की चेयरपर्सन श्रीमती शीला देवी ने अपने एवं निगम की ओर से सभी प्रकार के सहयोग का आश्वासन दिया।

सभी यात्रियों के प्रसाद भोजन की व्यवस्था मंदिर परिसर में ही थी। सभी यात्रियों ने स्वादिष्ट भोजन प्रसाद की प्रशंसा की। भोजन के बाद सभी यात्री बस व कारों में बैठ कर नेमिषारण्य के विश्वनाथ होटल पहुंचे। लगभग दो घंटे विश्राम करने और चाय पान के उपरांत तीर्थ यात्रियों की टोली ने यात्रा के तीसरे चरण में व्यास गद्दी, चक्र तीर्थ और ललिता देवी मंदिर के दर्शन किए। मान्यता है कि व्यास गद्दी में श्रीमद् भागवत् एवं बारह पुराणों की रचना की गई थी। सभी ने प्रांगण में स्थित 5000 साल पुराने वट वृक्ष की परिक्रमा की। श्री छक्कूलाल शास्त्री ने वट वृक्ष के नीचे बैठ कर उस स्थान के महत्व की संक्षेप में गाथा सुनाई।

व्यास गद्दी के सामने ही विशाल हवन कुण्ड है, जहां प्राचीन काल में ऋषि-मुनि यज्ञ किया करते थे। यहां से 2 किलो मीटर की दूरी पर चक्र तीर्थ है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी द्वारा छोड़ा गया चक्र यहीं आकर गिरा था और फलस्वरूप निकलने वाले जल का नियंत्रण ललिता देवी के प्राकट्य से हुआ था। इसीलिए वहीं पास में ही ललिता देवी मंदिर की स्थापना की गई।

इस बार दधीचि दर्शन यात्रा का एक और महत्वपूर्ण चरण था नेमिषारण्य के प्रमुख श्री विपिन त्रिवेदी द्वारा चलाए जा रहे वृद्ध आश्रम की यात्रा। 25 नवम्बर हमारे प्रमुख सहयोगी एवं फ़रीदाबाद विभाग के संयोजक श्री राजीव गोयल का जन्म दिवस भी है। इसलिए उसी दिन वृद्ध आश्रम में केक काट कर उनका जन्म दिन मनाया गया। यही नहीं सभी यात्रियों ने कुछ राशि एकत्र करके वृद्ध आश्रम के संचालक को सौंप दी।

इस चरण के साथ दधीचि दर्शन यात्रा पूरी हुई। सभी यात्री बस में बैठे और दिल्ली वापसी के लिए लखनऊ के चारबाग स्टेशन की ओर चल पड़े। चारबाग स्टेशन पर रात्रि के भोजन की व्यवस्था थी। भोजन करने के बाद सभी यात्री लखनऊ मेल से अगले दिन (26 नवम्बर, 2018 को) दिल्ली पहुंच गए। सभी यात्रियों ने आयोजकों का धन्यवाद किया और यात्रा की पावन स्मृतियों के साथ अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान किया।

यात्रा के दौरान बार-बार महर्षि दधीचि से सम्बंधित और दधीचि देह दान समिति द्वारा किए जाने वाले कार्यों की चर्चा होती रही। दधीचि दर्शन यात्रा और समिति द्वारा किए जा रहे कार्यों के प्रति सभी में उत्साह और नई ऊर्जा का संचार हो - ऐसा इस बार स्पष्ट परिलक्षित हुआ।