वर्तमान दधीचि-देवेन्द्र स्वरूप नहीं रहे.....
इस वर्ष सूर्य के उत्तरायण होते ही, राष्ट्रवादी अध्येता एवं लेखक दिवंगत हो गए। 14 जनवरी संक्राति की शाम को सुप्रसिद्ध इतिहासकार , स्तम्भकार पांचजन्य के पूर्व सम्पादक श्री देवेन्द्र स्वरूप जी का 93 वर्ष की आयु में दिल्ली में, निधन हो गया।
कुछ ही लोग ऐसे जीवित होगें जिन्होने भारत देश को अंग्रेजो की गुलामी से स्वाधीन होते देखा, फिर देश का बाल्यकाल और अब युवा भारत विकास की ओर अग्रसर। शायद इसीलिए अपनी लेखनी के माध्यम से भारत को नव निर्माण की दिशा भी दिखाई। मन की टीस कि ‘‘ यह संविधान हमारा या अंग्रेजों का ’’ पर एक पूरी व्याख्यान माला लिपिबद्ध हुई।
मेरी उनसे पहली मुलाकात चित्रकूट में नाना जी देशमुख के देहदान के उपरान्त श्रद्धांजलि सभा में हुई। देहदान -अंगदान पर एक लम्बी चर्चा समझने के लिये। वापिस दिल्ली आकर आलोक जी के साथ अपने परिवार के समक्ष देहदान का संकल्प लेना। जितनी उत्सुकता कि समाज में उचित बात जानी चाहिये उससे कहीं अधिक आग्रह कि मेरा देहदान का संकल्प पूर्ण होना चाहिये। समय-समय पर परिवार को, समिति के लोगो को भी याद दिलाते रहते थे।
जो बात उचित है और उन्हें भी उचित लगती थी उसको पूर्ण आग्रह से एवं बेबाकी से रखना उनके स्वभाव में था। उन्होने जीवनभर शाश्वत एवं सामयिक विषयों पर जनहितकारी एवं भारतीय दृष्टि से लिखा।
निडर, निर्लेप, निष्पक्ष लिखना उनके व्यक्तित्व में था, कभी अपने लिये कुछ नहीं चाहा। जीवन भर अपनी देह से समाज के लिये कार्य लिया और जीवन उपरान्त शरीर का प्रत्येक अवयव भी मानव कल्याण के काम आये, स्वस्थ सबल भारत बनाने के काम आये, इसलिए देहदान भी किया। ऐसे वर्तमान दधीचि देवेन्द्र स्वरूप जी ने देहदान कर के जैसे मृत्यु को भी बौना कर दिया हो, छोटा कर दिया हो।
एक विराट व्यक्तित्व का देहदान करना समाज में विस्तृत रूप से इस संदेश को फैलायेगा। देवेन्द्र स्वरूप जी जैसे महानुभावों की अपने संकल्प के लिये प्रतिबद्धता हमारी समिति के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।
उनकी पुण्य स्मृति को कोटि-कोटि नमन।
ऊँ शांति:॥
हर्ष मल्होत्रा
मिश्रिख, नेमिषारण्य, उत्तर प्रदेश
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