एक अन्तिम समर्पण
मंजू प्रभा,
उपाध्यक्ष, दधीचि देह दान समिति
बहुआयामी बौद्धिक विचारधारा को निरंतर अपनी लेखनी से प्रवाहित करने वाला व्यक्तित्व चिर निद्रा में सो गया। कई अनाम व लोपी कर्मठ स्वयंसेवकों को अपनी श्रद्धांजलि के लेखों में पाञ्चजन्य के माध्यम से जीवित रखने वाला व्यक्तित्व आज स्वयं भी कई लेखनियों से श्रद्धांजलि ले रहा है। दीदी मां के शब्दों को ‘‘देह दान एक अंतिम समर्पण है जो मृत्यु को भी बौना बना देता है’’, प्रतिभा के इस धनी ने जीवंत कर दिया। स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे श्री देवेन्द्र स्वरूप अग्रवाल समाजशास्त्र, समसामयिक राजनीतिक परिस्थितियां और हिन्दू विचारधारा जैसे कई विषयों पर डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख गए। इस शताब्दी में राम जन्म भूमि अयोध्या की है ऐसी स्वीकृति बनाने की जो वैचारिक लड़ाई शुरू हुई उसमें ऐतिहासिक शोध-परक तथ्यों के आधार पर जी जीन से जुट कर अपने साथियों का नेतृत्व किया और सामग्री विस्तृत रूप से सबके सामने ला कर रख दी।
चार वर्ष पूर्व दुर्घटना में हड्डी टूट जाने पर उनका देह दान सम्बंधी विचार मंथन, जो नानाजी देशमुख की मृत्यु के बाद हुए देह दान के समय से ही शुरू हो चुका था, फिर से चलने लगा। सम्भवतः यही उचित समय था अवश्यम्भावी मृत्यु को देखने का और जीवन के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने का। देह दान करने की अपनी इच्छा उन्होंने परिवार के समक्ष रखी। जो कुछ भी करना है परिवार की सहमति से ही करना है। देह दान विषय पर परिवार की स्थिति असमंजस वाली होने से वह स्वयं भी असमंजस में आ गए। छोटी बेटी पुनीता से वैचारिक निकटता होने के कारण उसके साथ चर्चा की। स्वयं भी और अधिक गहराई से इस विषय को समझना चाहते थे। पुनीता ने आलोक जी से सम्पर्क किया और उन्हें देवेन्द्र जी के साथ इस विषय पर चर्चा करने का आग्रह किया। हिन्दू परम्पराओं के प्रति गहरी आस्था के प्रत्युत्तर में उन्हें देह दान के पक्ष में तर्कसंगत स्पष्टता हुई और इस दान का संकल्प हो गया। तत्परता से अपनी पत्नी और बच्चों को समझाना शुरू किया। ‘‘जब आप सब, पापा की हर इच्छा पूरी करते हैं, वह अपनी इच्छा से सब काम करते हैं, उन्होंने अपनी किताबें जहां चाहा दे दीं, फिर वह अपनी देह भी अपनी इच्छा के अनुसार क्यों नहीं दान कर सकते?’’ पुनीता के इस तरह के तर्कों से भी परिवारजनों का असमंजस दूर हुआ।
देवेन्द्र जी ने ग्यारह हज़ार का चेक दधीचि देह दान समिति को भेजा। कुछ दिन तक चैक कैश नहीं हुआ, तो आलोक जी से सम्पर्क किया कि अगर चैक खो गया हो तो दूसरा भेज देता हूं। अपने संकल्प के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए वह दृढ़ संकल्प थे। पूरी सतर्कता से अपनी देह दान के विषय को परिवार में समय-समय पर याद दिलाते रहे। भविष्य में कभी ऐसी स्थिति आए कि पुत्र पास में न हो और वसीयत के क्रियान्वयन में कोई दिक्कत आ जाए-इस बात का ध्यान रखते हुए उन्होंने परिवार में औपचारिक रूप से पुनीता को पुत्र घोषित कर दिया। पुनीता का निवास समीप होने के कारण भी सम्भवतः यह विचार आया होगा। यह भी विचार था कि जिनके पास बेटियां ही हैं उनके भी इस तरह के कार्य बेटियों द्वारा ही तो किए जाएंगे।
स्वास्थ्य कभी ठीेक तो कभी खराब चलता रहा। तीस दिसम्बर, 2018 को उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया जहां उन्हें आई.सी.यू. में वेन्टिलेटर लगा दिया गया। मेडिकल भाषा में रोज पैरामीटर का माप डाॅक्टर द्वारा बताया जाने लगा। उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है ऐसा निकट जनों को समझ आ रहा था। परिवार के लोग देह दान के उनके संकल्प को लेकर भी सजग थे। 14 जनवरी, 2019 की शाम को लगभग 5 बजे डाॅक्टरों की तरफ से संकेत मिला कि अब उनके पास बहुत कम समय है, किसी भी समय शरीर शांत हो सकता है। स्वयं में एक पूर्ण संस्था को समेटे जिस व्यक्तित्व ने प्रत्येक क्षण को कर्मठता से जिया हो वह अब शांत होने जा रहा है। परिवारजनों ने स्वयं पर संयम रखते हुए आलोक जी को फोन किया और बस 10 मिनट के भीतर ही डाॅक्टर द्वारा उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उनके पूरे परिवार व उनकी पत्नी ने भी उनके देह दान के संकल्प का सम्मान किया और सुनिश्चित किया कि यह संकल्प पूरा हो सके। उस समय उनका यह संकल्प पूरे परिवार व उनसे सम्बंधित हर व्यक्ति के लिए पुनः एक प्रेरणा बन गया।
उनके देह दान की व्यवस्थाएं शुरू हो गईं। रात भर मृत शरीर को शव गृह में रखा गया। संघ परिवार व पारिवारिक मित्रों को सूचना दी गई कि सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक सहयोग अपार्टमेन्ट में उनके पार्थिव शरीर को दर्शन के लिए रखा जाएगा। उनके साथ कर्म क्षेत्र में सहयोगी रहे लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर कर्ह महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने आकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके साथ बिताए हुए क्षण याद किए। उनके व्यक्तित्व की गरिमा को सम्मान देते हुए वर्धमान मेडिकल काॅलेज की एनाॅटमी की हेड डाॅक्टर मंगला कोली स्वयं इस दान को स्वीकार करने सहयोग अपार्टमेन्ट में आईं। समाज को जीवन समर्पित करने वाला यह कर्मयोगी निरंतर सामाजिक व्यवस्थाओं को लेखनी द्वारा अपनी तार्किक बुद्धि से परखता एवं जीवन शैली में रूपान्तरित करता चला गया। जब उनके भौतिक शरीर को पंचतत्वों में विलीन कराने का चिन्तन हुआ तो अपने तार्किक एवं धार्मिक संस्कारों को समाहित करते हुए मानवता के कल्याण हेतु जीवन उपरांत अपनी देह को चिकित्सा छात्रों के उपयोग के लिए समर्पित कर दिया।
समाज सेवा के लिए दी जाने वाली इस आहूति को श्रद्धा पूर्वक गौरवान्वित करते हुए फूलों से सज्जित एक वाहन द्वारा अस्पताल के लिए नतमस्तक होकर उपस्थित जन समूह ने विदा किया।