2 लाख किडनियां चाहिए...मिलती हैं सिर्फ 10 हजार को
नवभारत टाइम्स | Jun. 12, 2019
दिल्ली में पिछले साल 1022 किडनी ट्रांसप्लांट हुईं। लोग 60 से 70 लाख में किडनी खरीद रहे हैं एक्सपर्ट्स का कहना, लिविंग डोनेशन की बजाय कैडेवर डोनेशन को बढ़ावा देना होगा पूरे देश में पिछले साल सिर्फ 2664 किडनी ट्रांसप्लांट हो पाईं।
2 लाख किडनियां चाहिए...मिलती हैं सिर्फ 10 हजार को डिमांड ज्यादा होने की वजह से चल रहा किडनी का गोरखधंधा
नई दिल्ली : किडनी का गोरखधंधा दिल्ली सहित पूरे देश में चल रहा है। तमाम कानून के बाद भी किडनी रैकेट को अंजाम दिया जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि इसकी सबसे बड़ी वजह डिमांड है। पूरे देश में हर साल कम से कम दो लाख किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है। यानी कि दो लाख डोनर चाहिए, लेकिन मुश्किल से आठ से दस हजार ट्रांसप्लांट हो पाता है। इसमें 95 पर्सेंट लिविंग डोनर से मिली किडनी से ट्रांसप्लांट हो रहा है। डिमांड और सप्लाई में भारी अंतर की वजह से यह रैकेट फल-फूल रहा है। लोग 60 से 70 लाख में किडनी खरीद रहे हैं।
हालांकि, सफदरजंग अस्पताल में बने नैशनल ऑर्गन टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) की वेबसाइट के अनुसार, पूरे देश में पिछले साल सिर्फ 2664 किडनी ट्रांसप्लांट हो पाईं। दिल्ली में पिछले साल 1022 किडनी ट्रांसप्लांट हुईं। नोट्टो की मानें तो दिल्ली में अब तक कुल 15,338 किडनी ट्रांसप्लांट हुई हैं, जिनमें से 14,944 लिविंग डोनर से किडनी मिलीं। इनमें से 10,756 नजदीकी डोनर थे और 4188 अन्य डोनर थे। डॉक्टरों का कहना है कि इतनी भारी संख्या में डिमांड है और यह डिमांड किसी भी सूरत में पूरी नहीं होती, तो परिजन अपने रिश्तेदार की जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉक्टर विकास जैन ने बताया कि औसतन दो लाख ट्रांसप्लांट की जरूरत है, जिसमें से केवल 5 से 7 पर्सेंट ही कैडेवर डोनर से किडनी मिलती हैं। बाकी सभी लिविंग डोनर से ट्रांसप्लांट की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि दो लाख में से 1.90 लाख मरीज ट्रांसप्लांट के अभाव में पूरे साल डायलिसिस पर होते हैं। हर महीने उन्हें डायलिसिस करानी पड़ती है। हर साल दो लाख नए मरीज जुड़ रहे हैं। इस वजह से किडनी की डिमांड लाखों में है और गिनती की सप्लाई हो पा रही है।
सफदरजंग के किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉक्टर अनूप कुमार ने बताया कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट से मरीज को नई जिंदगी मिलती है, इसलिए कानून में सारे पहलुओं को देखते हुए नियम बनाए गए हैं। बावजूद कुछ लोग इसे अपने फायदे के लिए तोड़ रहे हैं। जरूरत है कि डिमांड और सप्लाई के गैप को कम किया जाए। इसके लिए हर स्तर पर कानून का पालन हो और जरूरतमंद लोगों को तरजीह मिले।
आईएमए के पूर्व प्रेजिडेंट डॉक्टर के. के. अग्रवाल ने कहा कि डिमांड की वजह से ही किडनी रैकेट फल-फूल रहा है। लिविंग डोनेशन की बजाय कैडेवर डोनेशन को बढ़ावा देना होगा। कैडेवर डोनेशन को जब तक बढ़ावा नहीं मिलेगा तब तक इसे रोक पाना आसान नहीं है।