भारत एक युवा देश है अर्थात् भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। युवाओं की नई सोच, उनकी ऊर्जा, समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा ही उन्हे युवा बनाता है। भारत में प्रति वर्ष पांच लाख लोग अंगो की कमी के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं जबकि एक वर्ष में मरने वालो की संख्या लगभग आठ लाख है। हमारे देश में 80 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें अगर कोर्निया प्राप्त हो जाए तो वे दुनिया को देख सकेंगें। अगर सभी मरणोपरांत आंखों के दान का निश्चय कर लें तो भारत केवल 10 दिनों में कोर्निया की अंधता को समाप्त कर सकता है। अगर अंगदान एक आंदोलन बनता है तो संभवतः भारत अंगों की उपलब्धता कराने में पूरे विश्व में एक अग्रणी भूमिका निभा सकता है।
इसके लिए युवाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। बोन मैरो व स्टेम सैल दान 18 से 35 वर्ष की आयु का कोई भी युवा कर सकता है। इससे Blood Cancer व बहुत सी लाइलाज बीमारियों का इलाज संभव है। इसके लिए खून की जाँच के माध्यम से HLA टाईप को पूरे विश्व स्तर पर बन रही एक सूचि में दाखिल कर लिया जाता है। HLA टाइप के परिवार में मिलान होने का अनुपात 2.5% है पर परिवार के बाहर इस मिलान का अुनपात 10,000 में से एक का है। अब बोन मैरो का दान पहले की तरह मुश्किल व कष्टप्रद नहीं है। अब केवल 3-4 घंटे में दान करने वाला व्यक्ति सकुशल घर आ सकता है। बौन मैरो में रक्त बनाने की क्षमता होती है। इसके प्रत्यारोपण से कैंसर का ईलाज संभव है। सटेम सैल जीवन की प्राथमिक इकाई है, इससे शरीर के किसी भी अंग को नया जीवन दिया जा सकता है। इस विषय को आगे बढ़ाने के लिए युवाओं की व युवाओं के द्वारा जागरूकता की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। विशेष तौर पर मैडिकल के छात्रों व डाक्टरों को आगे आना चाहिए।
हमारे देश में HLA रजिस्ट्री अधिक विस्तृत हो सके इसके लिए भारत सरकार को सभी राज्य स्तरों पर पर्याप्त व्यवस्थाएं करनी चाहिए ताकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सपनो का भारत अधिक स्वस्थ व सबल बन सके।
हर्ष मल्होत्रा