Home
Print
Previous

श्रद्धा सुमन

दान से महादान तक का सफर

देहदान में वृद्धाश्रम का योगदान

श्री विजय सिंह का 60 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे 2 साल से स्वर्ग वृद्ध आश्रम, निहाल नगर, पश्चिम विहार में रहते थे। उस आश्रम के प्रबंधक ने देहदान के विषय को भी अपने सेवा कार्य में जोड़ा, यह प्रशंसनीय है। चिकित्सा जगत की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए आश्रम संचालकों का अभिवादन।

स्व. विजय सिंह का पार्थिव शरीर 2 जुलाई,2023 को ईएसआई मेडिकल कॉलेज, फरीदाबाद में विद्यार्थियों के उपयोग हेतु दान में दिया गया। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: आश्रम संचालक, श्री तारकेश्वर सिंह, 9211965986

दान से महादान तक का सफर

दान ही जीवन का परम उद्देश्य

श्रीमती संतोष जैन का 85 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे दिल्ली के नवीन शाहदरा में रहती थीं। उनके पुत्र ने उनके विषय में एक लिखित संदेश भेजा है-

"हमारी माताजी जैन समाज के लिए एक परिचित व्यक्तित्व थीं। उनका जीवन, धर्म के पालन एवं असहायों की सेवा में व्यतीत हुआ। उन्होंने अपनी संतान में चरित्र के उच्च आदर्श स्थापित किए। नियमित देव दर्शन उनका नियम था। सात्विक एवं अल्प आहार व्रत इत्यादि उनके जीवन का भाग था। अपनी क्षमता या उससे अधिक दान करना उनका लक्ष्य था, जो उन्होंने प्राप्त किया। उनका स्वर्गवास समाज एवं परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है। पारिवारिक परंपरा के अनुसार उन्होंने नेत्रदान कर, दान की सर्वोच्च परंपरा को आगे बढ़ाया है। ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें।"

5 जुलाई 2023 को स्व. संतोष जैन के नेत्र गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में किए गए इस महादान के लिए परिवार जनों का साधुवाद। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें ।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री नवीन जैन, 981097766

दान से महादान तक का सफर

इस दान में उजाला है !

श्री विजय कुमार जैन का 66 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे रोहिणी में रहते थे । उनकी पत्नी से उनके विषय में फोन पर बात हुई। अपनी सोसाइटी के मंदिर में नियमित जाते थे। यूनियन बैंक के जीएम पद से वे रिटायर हुए थे। उन्होंने स्वयं से नेत्रदान का संकल्प लिया हुआ था। परिवार ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए 5 जून 2023 को मरणोपरांत उनके नेत्र गुरु नानक आई सेंटर को दान में दिए।

मानवता की सेवा में किए गए इस पुण्य कार्य के लिए परिवार का साधुवाद। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

संपर्क सूत्र: पत्नी, श्रीमती नीलम जैन, 9310311700

दान से महादान तक का सफर

जाते - जाते समाज का कल्याण

श्रीमती वीरा देवी ने 98 वर्ष की आयु में अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की। वे नोएडा में रहती थीं। वे जीवन पर्यंत किसी पर आश्रित नहीं हुईं। उनके अपने तीनों बेटे जल्दी परलोक सिधार गए। सत्संग कीर्तन में अपना अधिकांश समय लगाती थीं। सुखमणि साहिब का पाठ करना उनका नित्य नियम था। उनकी बेटी ने बताया कि वे स्कूल में उर्दू की टीचर थीं। घर की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्होंने घर से कपड़े बेचने का काम भी किया। देहदान के लिए उन्होंने अपनी इच्छा से स्वीकृति दी हुई थी।

स्व. वीरा देवी की बेटी ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए 5 जुलाई 2023 को उनका पार्थिव शरीर मां अमृतानंदमयी मेडिकल कॉलेज, फरीदाबाद को दान में दिया। चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह एक अनुपम दान है। परिवार का साधुवाद। समिति परिवार दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करता है।

संपर्क सूत्र: पुत्री, सुश्री उर्मिला, 9540 2140 28

दान से महादान तक का सफर

दृष्टिहीनों के लिए आंखें और विद्यार्थियों के लिए देहदान

श्री निर्मल कुमार जैन का 84 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे एजीसीआर, पूर्वी दिल्ली में रहते थे। उनकी पुत्रवधू ने उनके विषय में लिखित जानकारी भेजी है-

“Our father Late Sh. Nirmal Kumar Jain, born in middle class family at Sonepat, Haryana on July 28, 1938. He was graduated from college as a scholar and worked for Indian government organization CAG of India as auditor(retired) and account general.

He was very family oriented and kind full person. Growing up with limited resources, he learned the value of hard work and helping others irrespective of thinking about himself. He always thought of humankind. With this perspective, he wanted to donate his eyes for blind people and his body after his death for medical students so that they can learn about human body and treat their patients. After his death on July 8, 2023, our whole family supported his decision and donated his body to Dadhichi Dehdan Samiti for this noble cause. We hope people learn from his sacrifice and think about the same. We as a family Salute him and pray to GOD that his soul rest in peace.”

स्व. जैन का पार्थिव शरीर यूसीएमएस के छात्रों की पढ़ाई के लिए दान में दिया गया। परिवार का अभिवादन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्रवधू, श्रीमती मीनाक्षी जैन, 7678522 15, 981 084 2082

दान से महादान तक का सफर

अंतिम दान से दुनिया को प्रणाम

श्री हरीशचंद्र शर्मा का 9 जुलाई 2023 को देहांत हुआ। वे दिल्ली के शाहदरा में रहते थे। उनके पुत्र ने आदर सहित उनके विषय में लिखित संदेश भेजा है-

“श्री हरीश चंद्र शर्मा जी का जन्म 10 फरवरी, 1933 को दिल्ली में हुआ। मात्र ढाई वर्ष की आयु में उनकी माताजी का देहांत हो गया, जिसके कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने ननिहाल, शाहदरा में हुई। वह 4 भाई और 2 बहनों में सबसे बड़े थे। श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से एमकॉम करने के बाद प्लानिंग कमीशन, जो कि आजकल नीति आयोग के नाम से जाना जाता है, में कार्यरत रहे और अंडर सेक्रेटरी की पद से रिटायर हुए। सन् २००० में इन्होंने दधीचि देहदान समिति में श्री आलोक कुमार जी की अध्यक्षता में देहदान का संकल्प लिया। सन् २००० में इनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया।

इन्होंने रिटायरमेंट के बाद गृहस्थ जीवन छोड़कर वानप्रस्थ जीवन में पदार्पण किया। सारा जीवन इन्होंने समाज की सेवा में लगाया। शुरू से ही वो बहुत कम उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। संघ में नगर कार्यवाहक फिर जिला संपर्क प्रमुख तृतीय वर्ग शिक्षित रहकर संघ में समय समय पर अलग अलग दायित्व संभालते हुए रिटायरमेंट के बाद भी संघ कार्यालय वस्तु भंडार, विश्व संवाद केंद्र, समर्थ शिक्षा समिति (न्यास) एवं वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े रहे। अपने जीवन काल में बहुत बार अविवाहित कन्याओं के विवाह एवं विद्यार्थियों को पढ़ाने में अग्रसर रहे।

इनके पोते-पोतियां, पर-पोती, नाती-नातिनें और पर-नाती, पर-नातिनें, सभी इनकी जीवनी के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, जो उनकी अद्वितीयता और विशेषताओं को दर्शाते हैं। वे अपनी 91 वर्ष की आयु में एक भरे पूरे परिवार के साथ, परिवार में रहते हुए वैकुण्ठ धाम को गए”।

परिवार ने दधीचि देहदान समिति के माध्यम से उनका देह आर्मी कॉलेज ऑफ मैडीकल साइंसेस, दिल्ली कैंट में समर्पित कर देहदान के उनके संकल्प को पूर्ण किया। देहदान के क्रियान्वयन के लिए परिवार जनों का साधुवाद। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री सुनील शर्मा, 9810034890

दान से महादान तक का सफर

मृत्यु का महोत्सव

श्रीमती कुसुम बेन का 87 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे गुप्ता कॉलोनी, दिल्ली की निवासी थीं। उनके पुत्र ने आदर पूर्वक उन्हें याद करते हुए हमें लिखित संदेश भेजा है-

सेवा भावी श्रीमती कुसुम बेन, जैसा नाम वैसा हीं व्यवहार, अर्थात सादा जीवन उच्च विचार । जैसे खिलकर मुरझाना फूलों का स्वाभाव है, ठीक उसी तरह जन्म के बाद मृत्यु जीवन का स्वाभाव है । लाख प्रयत्न करने पर भी जीवन हमारे हाथ में नहीं है, परंतु जीवन को सुधारना या बिगाड़ना हमारे हाथ में अवश्य है। कुसुमबेन ने अपने भविष्य को अंधकार से निकालकर प्रकाश की तरफ ले जाने के लिए 86 वर्ष तक प्रयत्न किया । त्याग, तप, सहनशीलता, पूजा, अर्चना से अपने जीवन को सुगंधित बनाया। उन्होंने अपने जीवन सबकी इतनी सेवा की कि आसपास के लोगों ने उनका नाम हीं ‘सेवाभावी’ रख दिया। अपने जीवन को तो सुगंधित बनाया ही, पर अपने अंतिम क्षण में नेत्रदान और देहदान देकर मृत्यु का भी महोत्सव मनाया।

बचपन से हीं बड़े तेजस्वी, त्यागी, अप्रत्याशित प्रतिभा, सरल स्वाभाव, परोपकारमय जीवन व्यतीत किया, सदैव सबकी मदद करने के लिए प्रसन्नमुख तत्पर रहीं! माता के रूप में बच्चों में अच्छे संस्कार तो डाले हीं साथ ही भाई के मित्रों को खुद के घर पर रखकर डॉक्टर बनाया।

पति बीमार पड़े तो एक पत्नी के रूप में जी जान से सेवा की, और अंतिम सांस तक उनका साथ दिया । पड़ोस में किसी को कुछ भी जरूरत पड़ने पर तन, मन और धन से सेवा की । पड़ोसी सदैव कहते हैं, जो मुसीबत के समय सहायता करे उस कुसुमबेन को हम कभी भुला नहीं सकते।

उनका मंत्र था, ‘मन के हारे हार, मनके जीते जीत’। कहते हैं कि जिस घर में बड़े बुजुर्ग सुख, शांति, समृद्धि पाकर जाते हैं, वह घर स्वर्ग बन जाता है। जीवन भर सबकी सेवा करने के कारण अंतिम समय में किसी की सेवा नहीं लेनी पड़ी। प्रभु भक्ति में लीन रहते हुए इस शरीर का त्याग किया। "

12 जुलाई 2023 को स्व. कुसुम बेन का पार्थिव शरीर अंबेडकर मेडिकल कॉलेज के छात्रों की पढ़ाई के लिए दान किया गया। उनके नेत्र, गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित दान में लेकर गई। परिवार ने इस महादान का क्रियान्वयन करके चिकित्सा जगत की सेवा में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का अभिवादन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री धीरेश सेठ, 9999450450

दान से महादान तक का सफर

परोपकार एक मंत्र

श्री अजीत जैन का 70 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ । वे टैगोर गार्डन, दिल्ली के निवासी थे। उनकी बेटी से उनके विषय में बात हुई। स्व.जैन ने अपना जीवन बहुत अच्छे ढंग से बिताया। हंसमुख स्वभाव के थे। हर समय हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते थे। नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। आस पड़ोस में बुजुर्गों की सेवा सेवा करने में वह सबसे आगे रहते थे। उनके निकट संबंधियों ने 16 जुलाई को उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है।

 संपर्क सूत्र: पुत्री, सुश्री नेहा, 6362910 244

दान से महादान तक का सफर

मां ! तुझे प्रणाम !

श्रीमती शांति देवी ने 90 वर्ष की आयु में अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण की। वे दिल्ली के रोहिणी में रहती थीं। उनकी पोती ने उनके प्रति अपनी श्रद्धा और आदर को सुंदर शब्दों में पिरोकर हमें भेजा है-

"मेरी अम्मा एक बहुत ही सशक्त चरित्र की महिला थीं। भय नामक शब्द तो जैसे उन्होंने कभी अपने जीवन काल में प्रयोग ही नहीं किया। सांप जैसे भयानक जीव को भी वे हाथ से उठाकर फेंक देती थीं। इतनी साहस से परिपूर्ण महिला स्वयं तो विद्या से वंचित रहीं परंतु अपने पांचो बच्चों को अपनी क्षमता के अनुसार पढ़ा लिखा कर विवेक और कुशलता से उन्हें सुखमय जीवन यापन के लिए सक्षम बनाया। अपने मरणोपरांत भी अपने नेत्रदान करके उन्होंने मानवता और परोपकार का उदाहरण प्रस्तुत किया है। अंत में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैं बस इतना कहना चाहूंगी-

जीवन के दो अटल किनारे

साथी बन कर रहते हैं

एक है जन्म और एक मरण

जिसके बीच में हम सब बहते हैं

भांति-भांति के सुख और दुख

इस दरिया में जुड़ते रहते हैं

और यूं ही जीवन धारा में

नए रिश्ते बनते रहते हैं

इस दरिया में कर्मों की इक

कश्ती भी बहती रहती है

भवसागर के पार कौन होगा

यह कश्ती ही तय करती है

आज हमारी अम्मा भी

दुनिया जाल से मुक्ति पाएंगी

कितना भी समझा लूं खुद को

पर यादों में तो आएंगी ।

‌-अम्मा को सादर याद करते हुए

शुचि जैन।।"

स्व. शांति देवी के पुत्र, समिति के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। उन्होंने गुरु नानक आई सेंटर में अपनी माताजी के नेत्र आदर सहित दान में दिए। इस महादान के क्रियान्वयन के लिए परिवार का साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री प्रद्युम्न जैन, 8851416194

दान से महादान तक का सफर

मानवता की सेवा में महादान

श्री श्रीपाल गुप्ता का 86 वर्ष की आयु में निधन हुआ । वे पीतमपुरा में रहते थे। 22 जुलाई को उनकी मृत्यु के पश्चात परिवार ने उनके नेत्रों का दान करने में सहमति बनाई। मानवता की सेवा में किया गया यह एक महादान है। परिवार का अभिवादन । गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करता है।

संपर्क सूत्र: पुत्र ,श्री संजीव गुप्ता, 9711112030

दान से महादान तक का सफर

विनम्र और शीतल अम्मा जी

श्रीमती चंद्रो देवी का 90 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे रोहिणी की निवासी थीं। उनके पुत्र से फोन पर उनके विषय में बात हुई।

स्व. चंद्रो देवी अपनी कॉलोनी के मंदिर में सक्रियता से उपस्थिति रहती थीं। उनका नम्र व्यवहार सबको अपनी तरफ आकर्षित करता था। सबको इतना स्नेह करती थी कि आसपास के सभी लोग उन्हें अम्मा जी के नाम से जानते थे। 25 जुलाई 2023 को मरणोपरांत उनके नेत्रों का दान करके परिवार ने मानवता की सेवा में एक अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री अशोक मित्तल, 997129313133

दान से महादान तक का सफर

प्रबल मनोबल के धनी

श्री संतोष तपारिया का 84 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे कौशांबी, गाजियाबाद में रहते थे। उनके पुत्र से उनके विषय में जानकारी मिली। वे बहुत हंसमुख और शालीन स्वभाव के थे। सबके सुख-दुख का ध्यान रखते थे। जीवन में उन्होंने अनेक देशों का भ्रमण किया। उनका मनोबल बहुत प्रबल था। फ्रैक्चर होने के बाद भी उन्होंने अपने को गाड़ी चलाने के योग्य बनाया। अपना सारा काम स्वयं करने की क्षमता और साहस रखते थे। उनके प्रगतिशील विचारों का ही परिचय है कि उन्होंने स्वयं से देहदान का संकल्प लिया। उनके पुत्र ने उनके प्रति अपनी आदरपूर्ण भावनाएं इन शब्दों में लिखकर भेजी हैं -

“YODO -it means You Only Die Once but what one performs between birth and death is called LIFE, which leads to fulfil your purpose on Earth.

We are so proud of our father, Shri Santosh Kumar Taparia, for leading an exemplary life and continuing to be an example even after.Papa, you have been an inspiration to us and touched many hearts. We dedicate our poem for a noble soul who gave all he could for eternity.

With each day passing by, we cherish the moment one by one, you taught us courage, grace and how to won.Papa you are very special as you made a selfless choice, to donate your body, to give a voice.In joy and sorrow, in moments of strife, you taught us to understand the purpose of life.”

श्री तपारिया का पार्थिव शरीर 28 जुलाई 2023 को यू सी एम एस, जी टी बी में चिकित्सा की पढ़ाई करनेवाले छात्रों के उपयोग हेतु दान किया गया। चिकित्सा जगत की सेवा में यह एक अतुलनीय उदाहरण है। स्व. संतोष तपारिया की इच्छा का सम्मान करते हुए परिवार ने समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार जनों का अभिवादन। समिति परिवार, दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करता है।

संपर्क सूत्र : पुत्र, श्री अतुल, 9810320631

दान से महादान तक का सफर

सोच बड़ी , जिंदगी बड़ी

श्रीमती सुनीता ठुकराल का 67 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। वे नोएडा में रहती थीं। उनके पुत्र ने आदर सहित उनके विषय में लिखित जानकारी भेजी है।

" Mrs. Sunita Thukral passed away peacefully, gracefully and with dignity on 25thJuly 2023. She passed away in a short span of time. This was in keeping with her wish that she would never be dependent on anyone in her old age or due to illness. It is a matter of her greatest pride that she wanted no cremation but rather donated her body for medical research through Deh Dan Samiti.

She was residing in Noida and is survived by her husband, 2 sons, 2 daughters-in-laws and a grandson. She was born in a loving family and was the youngest of 5 siblings. She was extremely creative and talented in extra curricular activities in school and college, be it debates, dances, songs. In her long career as a Primary school teacher in various schools, she was an outstanding educationist and cultural incharge. She was equally adept in handling her household, having raised two sons of outstanding character. After retirement, she actively took up social causes in the field of education and contributed all her might to the society. A Buddhist story aptly describes her beautiful life –

Once the Buddha was asked: What if someone dies suddenly or in an accident. Will they attain Buddhahood? The Buddha responded: “For example, if a tree bends to the east, slopes to the east, tends to the east, which way will it fall when its root is cut?” To which the disciple replied: “It will fall [in he direction that] it bends, slopes and tends.”

Mrs. Sunita Thukral had so much passion for social work. She used to greet everyone, was extremely cheerful and made friends easily. She contributed immensely for the growth of an orphanage Grace Home and an NGO for underprivileged children, Titliyan without any remuneration. For 12 years, she was teaching these children in an open park near sanatan dharam mandir in C-block Sec 19 Noida braving extreme heat and cold. Every single day including Sundays, she would be personally teaching children, looking after their needs, generating funds, inviting people and looking for jobs for them. Be it admission in schools, making ration card, arranging for treatment in Govt. Hospitals, she was always in forefront. She was a true crusader for widows and girls, fighting for their widow pensions and educating girls.

In her death, the widows and girl students have lost a saviour and crusader who always fought for their cause. She was always propagating Deh Dan, Organ and eye donation and inspired her husband to register for the same. If this tall tree of Thukral family was a Buddha in life, definitely, she is a Buddha in death as well. The Thukral family expresses deep gratitude to family, friends and Deh Dan Samiti for their moral support and encouragement in this need of hour. The family is determined to continue to advance Mrs. Thukral’s noble work in the society and leave an enduring legacy. They welcome everyone to join in this noble work with support and cooperation."

परिवार ने चिकित्सा जगत की सेवा में देहदान का क्रियान्वयन करके समाज में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार ने मानवता के इस पुण्य कार्य में हमेशा सहभागी रहने की अपनी इच्छा प्रकट की है। समिति परिवार की इस इच्छा का और दान के क्रियान्वयन का आदर करती है।

दिवंगत आत्मा की शांति के लिए समिति परिवार ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करता है ।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री सौरभ ठुकराल, 9891351 229

दान से महादान तक का सफर

जो सोचा , वही किया

श्री अनिल गुप्ता का 70 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे दिल्ली के केशव पुरम में रहते थे। उनकी बेटी ने आदर सहित उनके विषय में फोन पर बात की।

“वे खुले मन के व्यक्ति थे। परिवार की बहुत चिंता करते थे। अपने आसपास हर एक का ध्यान रखते थे। अपने जीवन के अंतिम 15 वर्ष वे बीमार रहे। उनकी बेटी ने बहुत विश्वास से यह शब्द कहे "हमने उनके नेत्रदान का निर्णय लिया, जिससे उन्हें और लोगों की भी दुआएं मिल सके।"

गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में किए गए इस महादान के लिए परिवार का साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पुत्री, सुश्री सोनल, 8130680405

दान से महादान तक का सफर

एक अनुकरणीय उदाहरण

श्रीमती प्रेमवती का 75 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे फरीदाबाद में रहती थीं। उनके पति ने फोन पर सम्मान से उन्हें याद करते हुए उनके विषय में बात की।

“वे बहुत सरल थीं। अपने तीन बेटे व एक बेटी के साथ संयुक्त परिवार में रहते हुए उन्होंने पूरे परिवार का ध्यान रखा। सबका सम्मान करती थीं। शिक्षा कम थी पर परिवार में सम्मानजनक स्थान था। सभी परिवारजन उन्हें स्नेह पूर्वक याद करते हैं”।

गुरु नानक आई सेंटर की टीम, 6 अगस्त 2023 को मरणोपरांत उनके नेत्र दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में किया गया यह दान समाज में अनुकरणीय उदाहरण है। परिवार का अभिवादन। हम दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पति, श्री ओम प्रकाश, 9711808280

दान से महादान तक का सफर

जिन्दगी के साथ भी और बाद भी सेवा

श्री राजेश मुंजाल 72 वर्ष की आयु में प्रभु चरणों में विलीन हो गए। वे उत्तम नगर, दिल्ली के निवासी थे। सामाजिक रूप से सक्रिय श्री मुंजाल के विषय में उनकी बेटी ने लिखित संदेश भेजा है-

"हमारे पिताजी 20 वर्ष से राधा स्वामी के अनुयायी थे। इसलिए समाज सेवा किस लगन व मेहनत से की जाती है, वे बखूबी जानते थे। समाज सेवा के साथ-साथ उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारियों को भी सटीक निभाया। उनकी तीन बेटियां हैं। आज हम तीनों बहनें ही वकील हैं।

पिताजी जीवन को प्रभु की देन मानते थे और हमेशा ‘नर सेवा नारायण सेवा’ को अपना प्रथम उद्देश्य मानते रहे। इसी भाव को लेकर कि जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी, अपनी देह को समाज के निरंतर ज्ञानवर्धन के लिए चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को दान देने का संकल्प कर गए। हम धन्य है कि हम ऐसे योग्य पिता की संतान है। हम भी संकल्प लेते हैं कि उनके दिखाए पथ पर चलकर उनको सही अर्थों में श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।"

स्व. राजेश मुंजाल ने जीवन भर अपनी देह से समाज की सेवा की और मृत्यु के बाद भी समाज सेवा का ही संकल्प लिया। परिवार ने 8 अगस्त 2023 को उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए नेत्रदान और देहदान की प्रक्रिया सहजता से करवाई। परिवार का अभिवादन। गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। एम्स, दिल्ली के न्यूरो विभाग में उनका देहदान हुआ। उनकी पत्नी व बेटी ने बताया की स्व. राजेश उनके प्राण थे इसलिए उनके जाने के बाद वे और उनके परिवार के सभी सदस्य नेत्र व देहदान का संकल्प लेंगे। समाज सेवा को समर्पित जीवन वाले व्यक्तित्व को हम नमन करते हैं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्री, सुश्री ऋतु मुंजाल, 981820 9001

दान से महादान तक का सफर

जिंदगी में भलाई के गीत

श्रीमती सुनंदा रानी जैन का 90 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे फरीदाबाद निवासी थी। उनके पुत्र ने उनके विषय में विस्तृत जानकारी भेजी है-

“Mrs. Sunanda Rani Jain, Born on 12th June 1933 to Lala Harjas Rai Jain and Smt. Labh Devi Jain in Amritsar. In her younger days, she was a bubbly and mischievous kid and being a younger sister to 6 brothers, she was always very loved and cared for. And she passed on this love and affection to her younger sister.She was the last standing stalwart from her generation of siblings. She was always enthusiastic about Music and did her BA in music and was also a very good sports person. She got married to Sh. V. K. Jain from Ambala in 1952.

While being from a modern upbringing she adjusted extremely well in an orthodox family and was the favourite person and a mother figure to all the younger siblings and spouses of her husband. She had three sons Vipin, Vipul and the youngest one Vikrant with whom she spent the last many years of her glorious life.

She was a silent social worker who would make life happier for the underprivileged specially the children of their factory workers by taking them to see places of interest like Delhi Zoo and Qutub Minar etc in 1960's on regular basis and would always assist her husband in taking patients from Faridabad to Delhi hospitals at odd hours even way back in 1960's.

Her cheerful nature made her popular amongst the youngsters of the extended family and friends of her children and grandchildren whom she used to often invite for lunches and dinners.

She was popularly called Dadi by all and over the last 6 years her grandchildren’s friends used to throw her a birthday party ever year which she thoroughly waited for and enjoyed. Even at the age of 90 on her last birthday she enjoyed playing card games with them.

She loved food, both cooking and eating. All through her life she made close bonds with everyone she met. Even through the all ups and downs of her life she was always smiling and taking on the challenge of life head on.”

12 अगस्त 2023 को उनका पार्थिव शरीर ईएसआई मेडिकल कॉलेज फरीदाबाद में मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए दान किया गया। चिकित्सा जगत की सेवा में यह एक अनुकरणीय दान है। परिजनों का अभिवादन। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री विक्रांत जैन, 9810007345

दान से महादान तक का सफर

आनंद मार्ग स्वयं ही प्रशस्त हुआ

श्री रमेश भाटिया का 70 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। डेरावाल नगर, दिल्ली में वे एक प्रतिष्ठित समाजसेवी थे। आर एस एस, डेरावाल सोसायटी, आर्य समाज, सभी संस्थाओं से जुड़े हुए थे। दधीचि के प्रति का उनका समर्पण वंदनीय है। दधीचि के प्रत्येक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति निश्चित रहती थी। उनका जाना दधीचि परिवार की अपूरणीय क्षति है। न जाने कितने नेत्रदान और देहदान उनके नेतृत्व में संपन्न हुए । 12 अगस्त 2023 को उनके संकल्प का सम्मान करते हुए परिवार जनों ने उनका पार्थिव शरीर ओर्बो, एम्स में अनुसंधान के उपयोग के लिए दान किया। स्व. रमेश के नेत्र ई एस आई, फरीदाबाद की टीम ने सम्मान सहित दान में लिए। परिवार का अभिवादन। मानवता की सेवा में समर्पित जीवन वाले व्यक्तित्व के लिए तो आनंद मार्ग स्वयं ही प्रशस्त हुआ होगा। दिवंगत आत्मा के प्रति समिति परिवार की सादर श्रद्धांजलि।

संपर्क सूत्र: दामाद, श्री नरेश धवन, 9213434616

दान से महादान तक का सफर

दान का धर्म

श्रीमती सरोज सिंघल का 70 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे मॉडल टाउन में रहती थीं। उनके पोते ने आदर सहित उनके विषय में फोन पर चर्चा की। अपने क्षेत्र में महिला मंडल से जुड़ी हुई थीं। सनातन धर्म सभा, माडल टाउन की सक्रिय सदस्य रहीं। भागवत सप्ताह के आयोजन में रुचि पूर्वक सहयोग करती थीं। नेत्रदान की इच्छा उन्होंने स्वयं से परिवार को बताई हुई थी। परिवार ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए 14 अगस्त 2023 को उनके नेत्रदान करके मानवता की सेवा में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का अभिवादन। ईएसआई फरीदाबाद की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र : पोता, श्री केशव सिंघल , 9625533850

दान से महादान तक का सफर

दया , करुणा और विनम्रता का उदाहरण

श्री सुभाष मेहता का 70 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे दिल्ली के हरि नगर में रहते थे। उनके बेटे ने उनके विषय में आदरपूर्वक विस्तृत जानकारी भेजी है-

“On the 17th of August 2023, our lives took an unexpected turn as we bid farewell to a remarkable man, our beloved father. His sudden departure left a void in our hearts that can never be filled, but his legacy of love, selflessness, and determination will forever remain in our memories.

Our father was a real gentleman in every sense of the word. He exemplified kindness, compassion, and humility throughout his life. From humble beginnings, he embarked on a remarkable journey alongside his brother, starting from scratch and building a life of prosperity and happiness for our family.

In his younger days, our father discovered a passion for numbers and accounts. The dedication he put into his work not only paved the way for his own success but also laid the foundation for our bright future.

What truly set our father apart was his unwavering commitment to keeping his family first. No matter how busy life got, he always made time for us, cherishing every moment together. His love and devotion were evident in every small gesture, every sacrifice made to ensure our well-being and happiness.

One of the things that endeared him to everyone who knew him was his infectious smile and his talent for making people laugh. He had an incredible sense of humour, and his presence could light up any room. Even in the face of adversity, he met life with a grin and a witty remark, reminding us that laughter is indeed the best medicine.

Our father's love for us knew no bounds. He gave us everything a child could ever want – love, guidance, support, and a sense of security. He was our protector and mentor, and his life's work was to see us flourish.

One remarkable decision he made was to donate his eyes after his passing. It was a deeply personal choice, one that he made on his own. As a family, we respected and fulfilled his wish, knowing that it was a testament to his selflessness and his desire to make a positive impact even after he was gone.

Today, we find solace in knowing that our father lived life on his terms. He faced each day with courage, integrity, and a smile on his face. His legacy of love and respect continues to inspire us, and we are determined to carry forward the values he instilled in us.

We are immensely grateful for all the love, guidance, and blessings he showered upon us. His memory will forever live on in our hearts, and his spirit will guide us through the journey of life. We thank you, Papa, for all that you have given us, and we promise to honor your memory by living our lives with the same grace and dignity that you exemplified every day. "

17 अगस्त, 2023 को ईएसआई मेडिकल कॉलेज, फरीदाबाद की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में इस महादान का क्रियान्वयन करके परिवार ने समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश्वर के चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र : पुत्रवधू, श्रीमती रश्मि मेहता, 9891 955260

दान से महादान तक का सफर

बंटवारे का दर्द सहकर भी प्यार बांटते रहे

श्री इन्दर पाल नारंग का 90 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ । वे दिल्ली के लाजपत नगर में रहते थे। उनके पुत्र से उनके विषय में फोन पर बात हुई। वे हंसमुख स्वभाव के व खुले दिल के व्यक्ति थे। देश के बंटवारे की त्रासदी को उन्होंने झेला था। बहुत मेहनत के साथ जीवन में व्यवस्थित हुए। सबसे स्नेह करना, दान के काम में सबसे आगे रहना, यह उनकी विशेषता थी। रोज गुरुद्वारा माथा टेकने जाते थे। स्व. इन्दर पाल के नेत्रदान का निर्णय लेकर परिवार ने मानवता की सेवा में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। 19 अगस्त 2023 को गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान उनके नेत्र दान में लेकर गई। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री प्रदीप नारंग 9810 564062

दान से महादान तक का सफर

सेवा तो घर के अंदर भी होती है

श्री सुभाष पसरीचा का 69 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे लाजपत नगर में रहते थे। उनके बेटे ने फोन पर उन्हें याद करते हुए बताया कि वे आजीवन स्वस्थ रहे। घर के बाहर की गतिविधियां उनकी कम रहती थी, पर सुबह नियमित मंदिर जाते थे। घर के हर काम में उनका पूरा सहयोग रहता था। 21 अगस्त 2023 को उनकी मृत्यु के बाद उनके एक पड़ोसी ने नेत्रदान करवाने के लिए आग्रह किया। जल्दी ही परिवार की सहमति भी बन गई। इस महादान के क्रियान्वयन के लिए परिवार का अभिवादन। ई एस आई, फरीदाबाद की टीम सम्मान सहित उनके नेत्र दान में लेकर गई। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पुत्र श्री राजू , 999 417802

दान से महादान तक का सफर

आत्मा का सौन्दर्यबोध

श्रीमती स्वदेश मोहन का 78 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे हरी नगर में रहती थीं। उनकी पुत्रवधू ने बहुत आदर से उन्हें याद करते हुए फोन पर बात की। स्व. स्वदेश हर समय मुस्कुराती थीं। वे परिवार के प्रति पूर्णत: समर्पित थीं। सौंदर्य शास्त्र में उन्होंने पी एच डी की थी। बाल मंदिर, हरी नगर स्कूल में संस्कृत पढ़ाती थी। पूरा परिवार दान की भावना से ओतप्रोत है। समाज से हम निरंतर कुछ न कुछ लेते हैं, इसलिए कुछ हमें भी देना चाहिए इसी विचार से स्व. स्वदेश ने नेत्रदान की इच्छा व्यक्त की थी। 24 अगस्त 2023 को स्व. स्वदेश के नेत्र गुरु नानक आई सेंटर की टीम सम्मान सहित दान में लेकर गई। इस महादान का क्रियान्वयन करके परिवार ने समाज के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण रखा है। परिवार का अभिवादन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्रवधू, श्रीमती अर्चना, 9716090294

दान से महादान तक का सफर

जीना इसी का नाम है !

श्रीमती विद्यावती जैन का 81 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे दिल्ली हरि नगर में रहती थीं। उनका परिचय देते हुए उनकी धेवती ने हमें एक भावपूर्ण संदेश भेजा है-

"My grandmother Smt Vidya Wati Jain, who had seen 81 springs in her life, left for her heavenly abode on August 27, 2023. Her body was donated to Ambedker Medical College, Rohini by coordinating with Dadichi Deh Dan Samiti.

Last few days, I experienced emotions which I haven’t ever before, in my life. It was new as I found myself juggling with hugely contrasting emotions at the same time, switching from moments of extreme sadness to a series of happy memories of my time spent with Nani. These memories were also what she was also living by, always smiling and finding joy in describing them with vivid details each time I met her. The memories of her young self, her experiences with motherhood, her time spent playing with me were as clear as crystal. Though lately she struggled to remember what she ate 5 mins back,

Usually when parents are busy proving for their child and trying to make him/her the best version of themselves , it is the grandparents who become more like first friends and this was very true for my case also. I was the only grandchild she had and thus I was fortunate to receive her undivided attention and love. I can never forget how I would long to go to Nani’s place during summer break even when just a toddler and would stay there for days sometimes months without parents. It was only because of how loved and protected I felt there. Those were carefree days we spent just playing games, eating Nani ke haath ka khaana and getting pampered. I fondly remember how every time she played a child to my longing self which wanted to adorn the role of a mother at the age of six; how she’d be a perfect child and then also act naughty just to give me reasons to exert authority and playfully scold her. Her laugh was infectious and so heartful that even the greatest of worries would disappear in those moments. Her attention to detail and cleanliness was supreme in every sense and her sense of fashion- neat. No wonder mom got her organizing skills and sense of graceful dressing from her.

However lately, Nani was confined within the boundaries of her bed, with all her daily activities contained within the same 3*6 feet space. For a person who has had full mobility before, been independent, to now be dependent on someone for even answering nature’s calls would come as a huge blow. However for Nani, this change was also a play of destiny. She accepted it as smooth as a free flowing breeze, without slightest of resistance. Rather it made her more rested, more at peace and more closer to Dhamma. Anyone who met or spoke to Nani even for a short period, would inevitably notice how happy and contended she was in her own world. She was a happy soul, who always wished the best for others.

Seeing her so happy, despite her circumstances made us all( close family) derive so much inspiration from her. She was a force to reckon with. Though she gave no sermons, didn’t preach on art of living – but her life in itself was a huge testament of what it takes to be truly joyous and at peace with oneself. As I grew old to carefully observe her life, I took lessons which I shall take to the grave and hopefully put to actual practice. Ever so grateful to having her as one of my earliest friends, a mentor to teach me invaluable virtues of honesty and discipline and just having her so close to me- as my grandma.Our deepest respect and regards to her. May her soul rest in peace forever and ever."

इस महादान के क्रियान्वयन के लिए परिवारजनों का अभिवादन। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हम ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र : पुत्री ,श्रीमती सुमन मंगला, 981064 5280

दान से महादान तक का सफर

सबके लिए मन में प्यार

श्री मोतीलाल माहौर का 70 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ । वे शास्त्री नगर में रहते थे।उनके पोते से उनके विषय में विस्तृत बातचीत हुई । संयुक्त परिवार के मुखिया होने के नाते सभी को प्यार करना व सबसे समान व्यवहार उनकी विशेषता रही । बचपन से ही आर एस एस के स्वयंसेवक थे। संघ की शिक्षण प्रक्रिया में वे तृतीय वर्ष शिक्षित थे। सेवा भारती में उन पर जिले का दायित्व था। अपने अंतिम समय में शास्त्री नगर के नगर संघ चालक के दायित्व को सक्रियता से निभा रहे थे । सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रधानाचार्य पद से रिटायर होने के बाद उनका पूरा समय सेवा कार्यों में लगता था। अपने जीवन काल में ही उन्होंने देहदान का संकल्प लिया था। परिवार जनों ने उनके इस संकल्प का सम्मान किया। परिवार का साधुवाद।

28 अगस्त को ई एस आई मेडिकल कॉलेज ,अलवर में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए उनका पार्थिव शरीर दान किया गया। परार्थ जीवन जीने वाला व्यक्तित्व, मरणोपरांत भी अपने जीवन को सार्थक कर गया । उनकी आत्मा की शांति के लिए हम सब विनम्र प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र: पोता, श्री रजत 880 0688361

दान से महादान तक का सफर

वह जीतते थे अपनी जिद्द से

श्री रामदास गुप्ता का 88 वर्ष की आयु में निधन हुआ। वे गगन विहार में रहते थे। उनके पुत्र ने आदरपूर्वक उनके विषय में जानकारी भेजी है-

"पिताजी बहुत दयालु प्रवृत्ति के थे। एक बार 1970 की घटना है वे एक अज्ञात व्यक्ति को जो बहुत बुरी तरह घायल था और बेहोश था, अस्पताल ले गए। पुलिस ने उन्हें 18 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में रखा। जब घायल व्यक्ति होश में आया, पुलिस को असली घटना पता चली तो पुलिस ने उन्हें छोड़ा। परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ उन्होंने समाज सेवा के अपने धर्म को कभी नजर अंदाज नहीं किया था। माथुर वैश्य युवक मंडल से लेकर मंडल अध्यक्ष तक का सफर उन्होंने बहुत सक्रियता से तय किया। महासभा में मैरिज ब्यूरो संयोजक के रूप में जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ उन्होंने मंडल मंत्री के रूप में और उसके बाद मंडल अध्यक्ष के रूप में पूरे दिल्ली मंडल की जिम्मेदारी संभाली। पिताजी समाज के उन विशेष रत्नों में से एक थे, जो समाज और राष्ट्र की भलाई के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं। समाज सेवा की प्रतिबद्धता के कारण उन्होंने अपनी सेवा निवृत्ति तक केवल एक ही पदोन्नति ली थी। वे अपनी किस्मत खुद लिखने के लिए समर्पित और जिद्दी थे। अपने जीवन काल में ही, मृत्यु के बाद अपनी देहदान का संकल्प उन्होंने कई वर्ष पूर्व लिया था। हमारा सौभाग्य है कि हम उनके इस संकल्प का मान रख सके।"

30 अगस्त 2023 को स्व. रामदास का पार्थिव शरीर एम्स में पढ़ाई करनेवाले छात्रों के उपयोग के लिए दान किया गया। समाज में इस महादान का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए परिवार का साधुवाद। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र: पुत्र, श्री अजय गुप्ता, 9990 72 8391