संरक्षक की कलम से
देहदान और अंगदान में सामूहिक प्रयास की जरूरत

अंगदान - देहदान भारत में आंदोलन का रूप ले रहा है। 3 अगस्त 2023 को भारतीय अंगदान दिवस था। दधीचि देह दान समिति द्वारा इस अवसर पर दिल्ली - एनसीआर में अनेक कार्यक्रम हुए। जुलाई - अगस्त 2023 में समिति ने कुल 83 कार्यक्रम किये। दो माह के अंदर इतने कार्यक्रम समिति ने आज तक नहीं किये थे। हमारे पास 'निरामय भारत' बनाने का एक बड़ा काम है।

दिल्ली - एनसीआर के प्रमुख मेडिकल इंस्टीटूशन AIIMS, गुरु तेग बहादुर हॉस्पिटल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, ईएसआई हॉस्पिटल, इत्यादि अपने कार्यक्रमों में दधीचि देह दान समिति को बुलाते ही है। देशभर में हो रहे कार्यक्रमों में समिति का सम्मान होता है। समिति को देश के अनेक क्षेत्रों जैसे सूरत, कलकत्ता, इंदौर, बुलंदशहर, बिहार, इत्यादि में इस विषय पर काम कर रहे अनेक संगठनो ने हाल में ही बुलाया।

सूरत में श्री नीलेश 'डोनेट लाइफ' के नाम से संगठन चला रहे है। एक बड़े स्टेडियम में अंगदानियों के सम्मान का कार्यक्रम रखा। इसमें दधीचि देह दान समिति ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी रहे। उनके उद्बोधन की प्रमुख बातें निम्नलिखित है:

  1. अंगदाता परिवार वास्तव में देवता स्वरूप है।
  2. भगिनी निवेदिता का एक वाक्य याद आता है "देश भक्ति की अभिव्यक्ति स्वतंत्र देश में नागरिक जीवन के रूप में प्रकट होती है"
  3. देश के सब नागरिक मेरे अपने है इसलिए उसके सुख-दुःख में हमारी सहयोगिता सहभागिता हो। और इसलिए अंगदान देशभक्ति का ही स्वरूप है।
  4. मृत्यु के बाद यदि अपना शरीर किसी के काम आ सकता है तो अंगदान - देहदान करना ही चाहिए। सबके लिए जीना और सबके लिए मरना यही तो मनुष्य जीवन है।
  5. ब्रेन डेड के बाद अंग अगर दूसरे जीवित व्यक्तियों के उपयोग में आये तो उपयोग के लिए उपलब्ध करा देना हमारा कर्तव्य है और मनुष्य का धर्म है।
  6. यह देश भक्ति तो है ही यह मानव धर्म का पालन भी है।
  7. आप जितना देंगे उतने बड़े बनेंगे और सब कुछ दे देंगे तो भगवान बन जायेंगे।
  8. त्याग का परम आदर्श तो दधीचि है, उन्होंने अपना अंग दान किया। पहले अंगदाता वह है।
  9. हमारे देश के लाखो - करोड़ो लोगो को अंगो की प्रतीक्षा में यात्नाएँ सहनी पड़ती है, खर्चा होता है। खर्चा करने के बाद भी वेटिंग लिस्ट में रहना पड़ता है सालो तक। स्वतंत्र देश में अपनी आवश्यकता हमे स्वयं को पूरी करनी है।
  10. दान किये हुए अंगों को अपने जीवन के अंत तक स्वस्थ रखना यह भी हमारा दायित्व बनता है। क्योकि संकल्प लेने के बाद यह शरीर केवल अपना नहीं रहता।
  11. अपने जीवन को समाज रूपी भगवान के चरणों में अर्पण करना यह मनुष्य जीवन की तपस्या अंगदान का संकल्प बताती है।

एक सरकारी वेबसाइट के अनुसार भारत में अंगों के प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा सूची 1,04,234 है। इन अंगों की प्रतीक्षा कर रहे रोगियों में से औसतन 17 लोगों की प्रतिदिन अंग न मिलने के कारण मृत्यु हो जाती है। एक व्यक्ति को औसतन 3 वर्ष प्रतीक्षा करनी होती है। देश के कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में यह समय सीमा और अधिक है। भारत में 2022 में 42000 से अधिक अंगों का प्रत्यारोपण हुआ। हमे विश्वास है काम अवश्य गति पकड़ेगा। 

समस्त देश के सामूहिक प्रयास से लम्बी प्रतीक्षा सूची में प्रतीक्षा कर रहे रोगियों को अब इतनी प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर नहीं होना होगा। मृत्यु के बाद देह - अंगो का दान करना यह पुण्य कार्य बढ़ेगा; और क्योकि मृत्यु के बाद भी यह देह काम आ रही है तो मृत्यु भी उत्सव हो जाएगी। ईश्वर हमारा संकल्प पूर्ण करें। 


आलोक कुमार

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