Home
Print
Next
Previous

साक्षात्कार

‘‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाड़ली बिटिया का कन्यादान’’ का नारा देने वाले श्री अश्विनी कुमार चौबे भारत सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री हैं। विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक कार्यों में लिप्त अश्विनी जी अपने बेबाक विचारों के लिए जाने जाते हैं।

दधीचि देह दान समिति से दिव्या आर्या व महेश पन्त को उनसे मिलने व चर्चा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उनसे बातचीत के कुछ अंश-

  1. आप बिहार के भी स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं, अब तो बस जिम्मेदारी ही बड़ी है।
    यह सच है कि मैं बिहार का स्वास्थ्य मंत्री रहा हूँ। यह एक अच्छा मेल रहा कि केन्द्र में भी यही मंत्रालय मुझे मिला है और इस बात का मुझे निश्चित लाभ मिलेगा। अब तो बस जिम्मेदारी में इजाफा हुआ है।

  2. देहदान व अंगदान पर आप के क्या विचार हैं?
    भारतीय चिंतन की मान्यता है कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्मा नित्य है और शाश्वत भी, जबकि शरीर अनित्य है और मरणशील। लेकिन, एक मनुष्य अपनी देह का दान कर अनित्य देह को चिरंतन और अमर बना सकता है।

    कॉलेज के विद्यार्थी मानव शरीर की रचना को समझने के लिए कॉलेज की प्रयोगशाला में एक वास्तविक मानव शरीर का अध्ययन दो वर्ष तक करते हैं। यह शरीर उन्हें उन उदार लोगों से मिलते हैं, जिन्होंने मृत्यु के बाद अपनी देह का दान करने का संकल्प किया होता है या फिर पुलिस द्वारा दी गई लावारिस लाशों से।

    मृत्यु के बाद नेत्रदान करने से अनेक अन्धे व्यक्तियों को दृष्टि मिलती है। दिमागी मृत्यु होने की स्थिति में हृदय, किडनी, लीवर व अन्य अंग भी दान हो सकते हैं, जो गंभीर रूप से बीमार लोगों को स्वस्थ जीवन दिलाते हैं।

  3. 125 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में अंग दान बहुत ही कम हो पाता है, इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
    यह सत्य है कि धार्मिक रूढ़िवादी मान्यताएँ देह-अंगदान करने में बाधक हैं। हमारे देश में अभी भी कुछ स्वार्थी लोग जनमानस को इस पवित्र दान करने से रोकते हैं, लेकिन मेरा विश्वास है कि सही दिशा दिखाने व इस दान की महत्ता को समझाने के बाद लोग बढ़-चढ़ कर यह दान देने को आगे आँएगे। सरकार, स्वयं सेवी संस्थाएँ तथा धर्म गुरु मिलकर जनमानस की शंकाएँ दूरकर उन्हें प्रेरित कर सकते हैं ऐसा मेरा मानना है।

  4. नेशनल हेल्थ पॉलिसी के बिन्दू 13.10 में एन.जी.ओ. के साथ सहयोग पर बल दिया गया है। आप इससे कितना सहमत हैं?
    अंगदान-देहदान क्षेत्र में जहाँ सरकार हर संभव प्रयास कर रही है वहीं दधीचि देह दान समिति जैसी स्वयं सेवी संस्थाएँ इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। ऐसी संस्थाएँ समाज में इस अभियान की स्वीकार्यता मंे अभूतपूर्व तरीके से अपना योगदान दे सकती हैं, सरकार इस को मानते हुए सभी स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध हैं।

  5. नोटो (NOTTO)से आपकी क्या अपेक्षाएँ हैं?
    नोटो सन् 2014 में स्थापित हुई। बहुत ही कम समय में इसने अपना स्वरूप बढ़ाते हुए अपना कार्य क्षेत्र को व्यापक कर लिया है। जब नोटों ने अपना कार्य शुरू किया था तब सिर्फ 10000 लोग अंगदान के लिए संकल्पित थे, वहीं आज 13 लाख लोगों ने संकल्प ले लिया है। पूरे भारत में अंगदान सुचारू रूप से प्रचलित कर, प्रक्रिया को आसान बनाकर व समयबद्ध अंगदान हो तथा अंगों का प्रत्यारोपण हो, ऐसी अपेक्षा एवं विश्वास है।

  6. ड्राइविंग लाइसेंस पर अॉर्गन डोनेशन के लिए चालक की स्वीकृति, सरकार वैचारिक रूप से इस पर सहमत है। परंतु प्रक्रिया अभी तक कार्याविन्त नहीं हो पाई है। क्या आप इस पर कोई प्रयास करेंगे?
    भारत में अॉर्गन डोनेशन की दर काफी कम है। भारत में हर साल दो लाख किडनी फेल के मरीज सामने आते हैं। इसी तरह लीवर व हार्ट फेल का रेट भी काफी अधिक है। इन मर्ज का आखिरी इलाज अॉर्गन ट्रांसप्लांट है। अंग के इंतजार में हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है।

    भारत में हर साल सवा लाख लोगों की मौत रोड एक्सीडेंट में होती है। इनमें से बहुत लोगों के अंग उन जरूरतमंदों को दिए जा सकते हैं, जिनके अंग समय से पहले खराब हो जाते हैं। कई लोग अॉर्गन डोनेशन की शपथ ले लेते हैं, लेकिन उनकी मौत के बाद जब उनके परिजनों से इस बारे में बात की जाती है तो वे मानने से इंकार कर देते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस में ओ.डी. लिखें होने पर कम से कम यह तो साफ हो जाएगा कि व्यक्ति ने अंगदान की शपथ ली थी कि नहीं। उसके बाद उसके अंगदान किए जा सकते हैं।

    सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से इस विषय पर चर्चा कर प्रयास करूँगा कि यह संपूर्ण भारत में लागू हो जाए।

  7. विदेशों में मृत्यु के बाद अंग निकालने की प्रक्रिया बहुत ही अच्छी व दुरुस्त है, इसका सीधा लाभ मरीजों को मिलता है। भारत वैसे तो मेडिकल क्षेत्र में काफी प्रगति कर चुका है लेकिन अंग निकालने व ट्रांसप्लांट करने की सुविधाओं में अभी भी कुछ करने की गुंजाइश है। इस पर आप क्या नये कदम उठायेंगे?
    निःसंदेह हमारे देश में आज मेडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है फिर भी आपका सवाल तर्कसंगत है। मैं प्रयास करूँगा कि अंगदान की प्रक्रिया व तकनीक में जो भी सुधार की गुंजाइश हो वो हमारे देश में आए।

  8. दधिचि देह दान समिति इस क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों से कार्य कर रही है, आप का संदेश जिसे हम अपनी ई-जर्नल के माध्यम से जन मानस को पहुँचा सकें।
    हम जीवन पर्यन्त दान करते रहते हैं। पूजा-पाठ, धर्म के नाम पर अपने लिए भगवान से कुछ मांगते हुए, बच्चों के भविष्य या स्वास्थ्य के लिए, मोक्ष के लिए हम क्या कुछ दान नहीं करते। लेकिन सबसे बड़ा दान तो वह दान है जो किसी को नई जिंदगी दे दे या किसी को रोशनी देकर उसकी जिंदगी को रोशन कर दे। मेडिकल छात्र-छात्राओं को पढ़ाकर उन्हें एक अच्छा व सक्षम डॉक्टर बना दें। इसलिए में सबसे आह्वान करता हूँ कि देहदान-अंगदान का सकंल्प लें। दधीचि देह दान समिति के माध्यम से मैं समस्त देशवासियों से अपील करता हूँ कि इसे एक जन आंदोलन बनाकर इस स्वरूप को इतना व्यापक कर दें कि भविष्य में कोई भी मृत्यु अंगों के अभाव में न हो।