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अंतर्राष्ट्रीय अंगदान दिवस - दधीचि देहदान समिति, बिहार प्रदेश

संवेदनशीलता का अजूबा मिसाल - अंगदान

समग्र समाज जब कुछ विशेष गुणों से मंडित होता है, तभी वह ऐश्वर्य को प्राप्त होता है और सदगुणों के व्यापक संचार के फलस्वरूप समाज का उत्थान होता है और उसके स्थान पर यदि दुर्गुण प्रवेश कर जाये तो समाज का पतन होता है। अहिंसा, तप, यज्ञ, दान, श्रद्धा, दया, परोपकारिता जैसे शाश्वत मूल्यों को अंगीकार कर जीवन की सार्थकता दर्शानी होगी, तभी मानव कल्याण की भावना को सही स्वरूप दिया जा सकेगा।

आदर्श मानव अपने जीवन काल में राष्ट्र कल्याण एवं समाज कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है परन्तु मृत्युपरान्त भी अंगदान/देहदान करना मानवता की सही परिभाषा को परिभाषित करता है। दूसरे को देने की वृत्ति मानवता का लक्षण है। दान शब्द यह दर्शाता है कि हम दूसरों के लिए भी चिन्तित हैं। दान देते वक्त हमें निरभिलाष एवं निरपेक्ष भाव रखना चाहिए, उक्त बातें बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने 13 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय अंगदान दिवस पर दद्यीचि देहदान समिति, बिहार प्रदेश द्वारा विद्यापति भवन, पटना के संकल्प समारोह में कही।

उन्होंने कहा कि अंगदान, नेत्रदान एवं देहदान के जरिये लोग उस समय भी याद किये जाएंगे, जब वे इस दुनिया मे नहीं रहेंगे। यह समाजिक अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करना होगा। उन्होंने स्वयं नेत्रदान करने की भी घोषणा की। आई.जी.आई.एम.एस. में नेत्र बैंक स्थापित है और राज्य के सभी मेडिकल काॅलेजों तथा राजेनद्रनगर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में इस वर्ष के अंत तक आई बैंक की स्थापना की जाएगी।

इस मौके पर बिहार के उपमुख्यमंत्री और समिति के मुख्य संरक्षक सुशील कुमार मोदी जी ने कहा कि शरीर नश्वर है, जीवन-मरण विद्यि का विद्यान है। संसार के नश्वर होने की द्यारणा जिसमें जागृत हो जाती है, वही दान देता है। दान देने के लिए द्यैर्य और आत्म विश्वास होना चाहिए। भारत वर्ष का समग्र इतिहास दान और बलिदान की परम्परा से ओत-प्रोत है। राक्षसों के नाश और देवों के हित के लिए दद्यीचि ने अपने शरीर केा त्याग कर अपनी अस्थ्यिों का दान किया, उसी से वज्र बना।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में अंगदान की परम्परा बहुत पहले से है, दधीचि मुनि प्रथम देहदानी के रूप् मेें माने गये हैं। मानव शरीर मृत्यु के उपरांत किसी को जीवन देने में काम आए, इससे बेहतर इस शरीर का और क्या उपयोग हो सकता है। अंगदान और देहदान करके कोई व्यक्ति अपने जीवन की दूसरी पारी खेल सकता है।

‘‘ जीते जी रक्तदान, मृत्युपरांत अंगदान ’’ यह दर्शाता है कि हम संसार से विदा होते’-होते भी मानव कल्याण एवं पीड़ित मानवता की रक्षा के लिए संकल्पित रहेें। उन्होंने बताया कि प्राण त्यागने के बाद घरवाले भी उस पार्थिव शरीर को शीघ्र से शीघ्र दाह-संस्कार कर मुक्त होना चाहते हैं, वह पार्थिव शरीर या तो जलाया जाता है या सुपुर्द-ए-खाक होता है। यदि उस क अंगो से आठ जरूरतमंद व्यक्ति के जीवन को संवारा जा सकता है, इससे बड़ा परमार्थ का का कार्य और कुछ नहीं हो सकता। उन्होेेंने कहा कि श्री लंका एक ऐसा देश है जहाॅं कोई नेत्रहीन नहीं, क्योंकि नेत्रदान के माध्यम से उन्होंने अपने को सबल तो किया ही बल्कि अव अन्य देशों को चक्षुदान से लाभान्वित करा रहे हैं।

राज्य के स्वास्थ्यमंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि अंगदान को सुगम एवं सुलभ बनाने के लिए राज्य के सभी मेडिकल काॅलेज एवं अस्पतालों में समुचित व्यवस्था की जाएगी जिससे दानदाता परिजनों को परेशान न होना पड़े उन्होंने लोगों से नेत्रदान की अपील की और स्वयं नेत्रदान की घोषणा भी की।

अतिथियों का स्वागत करते हुए दीघा विद्यायक डाॅ0 संजीव चैरसिया ने कहा कि युवा वर्ग को इस जन-जागरण अभियान में आगे आना होगा। यह एक समाजिक क्रांति है। उन्होंने कहा कि कई अन्य प्रांतो में अंगदान के संदर्भ में जो सरकारी व्यवस्था है उसी प्रकार बिहार में भी समुचित सरकारी व्यवस्था सुनिश्चित हो।

दधीचि देहदान समिति की ओर से नेत्रदान के प्रति जागरूकता कई लोगों से संकल्पित कराने के लिए पटना के जिलाधिकारी संजय कुमार अग्रवाल को मुख्यमंत्री के हाथों शाॅल, मेमोंटो, प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पटना के निदेशक डाॅं एन. आर. विश्वास डाॅ निलेश मोहन एवं सामाजिक कार्यकत्र्ता अमित सोनी को भी सम्मानित किया गया। दानदाता परिवार के बारह लोगों केा भी उनकी उदारता के लिए सम्मानित किया गया।

नेत्र विशेषज्ञ डाॅ. सुभाष प्रसाद ने नेत्रदान संबंधी तकनिकी जानकारी दी और नेत्रदान के प्रति लोगों को उत्प्रेरित किया।

समरोह की अध्यक्षता बिहार विद्यान परिषद के पूर्व उपनेता गंगा प्रसाद तथा संचालन समिति के सचिव विमल जैन ने किया। समिति के कोषाध्यक्ष प्रदीप कुमार, एस. डी. संजय, डाॅ. मनोज सन्ढवार, विनिता मिश्रा, अमृता भूषण, अनामिका सिंह, राजेश वर्मा, डाॅ. एम. रहमान, डाॅ राजीव कुमार सिंह, अभिजीत कश्यप, डाॅ विभूति प्र. सिन्हा, मुकेश हिसारिया रामचन्द्र आर्य, अविनाश गयासेन ने कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।