महादान -अंगदान

विदा ली मैंने इस संसार से प्रभु का नाम लेकर, प्रभु ने स्वर्ग में स्वागत किया प्रश्नों की सौगात लेकर।
अंतिम क्षण में भी मेरा नाम जपकर मेरी चौखट पर आया है, संग अपने क्या, अपनी दयालुता का बही-खाता लाया है?
'दीन-हीन मैं' टूटी खिड़की से देखता था सवेरा, क्या ही देता, जब कुछ था ही नहीं मेरा।
सब कुछ होकर भी क्यों खुद को गरीब बतलाता है? तेरे जैसा अमीर शायद ही मिल पाता है।
निरोग, स्वस्थ शरीर ही वास्तविक बड़ी कमाई, सब कुछ होते-होते भी बिन बात कुबेर से लड़ाई।
इसका परिणाम आज तू खुद देख रहा है, लकड़ी की शैया पर खुद को सेक रहा है।
हाथ जले जैसे लकड़ी का ढेर, छोड़ चले सब मुटभेड़।
केश जले जैसे घास, देख रहे अपने हुए उदास।
निकल रही जब एक-एक श्वास, तब जागता है कर्मों में विश्वास।
चूर हुआ जब सारा मान, तब लगा—क्यों नहीं किया अंगदान?
नश्वर देह से मोह क्या लगाना, बैकुंठ की यात्रा से खुद को हटाना।
निस्वार्थ सेवा ही सबसे बड़ी भक्ति, मनुष्य में समाई दयालुता की शक्ति।
दूसरों के जीवन से दुख को करना दूर, आज ही अंगदान पंजीकरण करवाना जरूर।
दिया बांबा


