मानवता की सेवा के लिए प्रतिबद्वता- मुकेश गुप्ता
वैभवशाली बनने की इच्छा ने ही उनको मानवता की सेवा के प्रति अपना समर्पण करने को प्रेरित किया। यह वैभव उनका आत्म संतोष है। मात्रा 41 साल की उम्र में 110 बार रक्तदान कर एक अनोखी मिसाल कायम की।
मुकेश गुप्ता ने अब अपने जीवन का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति की जान रक्त की कमी के कारण ना जाए तथा भारत को अंधता मुक्त करना है।
इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समाज को जागृत कर रक्तदान शिविर लगाना, नेत्रदान, अंगदान और देहदान का प्रचार एवं प्रसार कर लोगों को प्रेरित करना ही उनका जीवन का ध्येय है। मुकेश गुप्ता अपना भी देहदान का संकल्प कर चुके हैं। यह सेवा कार्य मुकेश गुप्ता पिछले 25 वर्षों से लगातार करते आ रहे हैं। उन्होंने इस मानवीय सेवा हेतु अपना जीवन समर्पित कर दिया है। भारत विकास परिषद् की ओर से पूरे भारत में 1,00,000 रक्तदान करना और 5,00,000 रक्तदाताओं का वर्चुअल रक्तकोष बनाने का संकल्प लिया है। ये सभी कार्य माँ झण्डेवाली जी की असीम कृपा और आशीर्वाद से संभव होंगे।
कविता
सोचा नहीं , सोचा सही
क्या से क्या हम हो गए है और क्या होंगे अभी
कितना समय बीता बचा कितना कभी सोचा नहीं
जन्म से पहले कहाँ थे लौट कर जाना कहाँ
कोई ऐसा है जिसे हम कह सकें अपना वहां
किसने भेजा और क्यूँ भेजा कभी सोचा नहीं
इस पिघलती ज़िन्दगी का दौर अब होने को है
जो संजोया आज तक हाथों में अब खोने को है
कितना पाया क्या गंवाया आज तक सोचा नहीं
आओ सोचें क्या लिया है और क्या देना है अब
क्या कभी आना है फिर क्या छोड़ कर जाना है अब
कर्ज़ कितना है चुकाना आज तक सोचा नहीं
कुछ तो दे दो मोल रब को ज़िन्दगी का शुक्र कर
जिसने तुमको ये दिया तन भोगने को उम्र भर
काम आ जाए किसी के जिस्म ये सोचा नहीं
माटी की ये चादर संत कबीरा ऐसे धर दीन्ही
ज्यों की त्यों धर दीन्ही जैसी रब ने उनको थी दीनी
ऐसा ही कुछ कर जाएं हम आज तक सोचा नहीं
चलो देह का दान दधीचि-सम हम भी अब कर जाएं
मर कर आए काम किसी के ऐसा अब कुछ कर जाएं
कहे हमारे बाद ज़माना ""स्वप्न"" ने सोचा सही
( योगेश वर्मा स्वप्न 28:04:2017)
लेखक: योगेश वर्मा स्वप्न
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