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देह दानियों का 29वां उत्सव पश्चिमी क्षेत्र - 11 मार्च 2018

अपने करम की गत मैं क्या जानूं रे

‘‘मैं, आज तो हर तरह से हूं ही व सक्षम भी हूं, पर कल क्या है भविष्य की कोख में, किसी को कुछ पता नहीं। ऐसे में आज ही कुछ बेहतर कर लें।’’ कीर्तन के कुछ ऐसे ही उच्चारण से उत्सव का आरम्भ हो रहा था। विशाल सभागार की श्रेष्ठ व्यवस्था में, देह दानी व अन्य मेहमान अपने-अपने बैठने की प्रक्रिया में थे। देह दान के महत्व को एक आॅडियो बड़े ही सरल तरीके से बता रहा था। 11 मार्च का दिन था और दधीचि देह दान समिति के पश्चिमी क्षेत्र के उत्सव का आयोजन हो रहा था। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रामधन, संयोजक, पश्चिमी क्षेत्र, दिल्ली ने की।

आरम्भ में, श्रीमती उमा मोंगा के एनजीओ के प्रशिक्षित बच्चों के गाए सुन्दर गीत ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ से सभागार गूंज उठा।

पश्चिमी क्षेत्र के संचालक श्री रामधन ने कार्यक्रम के सभी प्रमुख मेहमानों का परिचय दिया व देहदानियों का सम्मान भी किया। इस उत्सव में 152 व्यक्तियों ने देह दान और अंग दान के संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए। यहां विशेष रूप से वो 12 परिवार भी आमंत्रित थे, जिन्होंने अपने किसी प्रियजन के इस संसार से जाने के बाद देह दान या अंग दान किए थे। इन सभी को बारी-बारी से मंच पर बुला कर, अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया।

इसी कार्यक्रम में संकल्प लेने वाले श्री राजकुमार सप्रा ने उपस्थित जनसमूह से अपील की कि वे सब भी इस कार्य के लिए आगे आएं। जीते जी अपनी देह का दान करने बड़ा कोई दान नहीं हो सकता।

मुख्य वक्ता और समिति के अध्यक्ष श्री हर्ष मल्होत्रा ने, समिति के कार्यों की चर्चा की और आरम्भ से अब तक हुए श्रेष्ठ कार्यों का अवलोकन कराया। उन्होंने बताया कि किसी व्यक्ति की मृत्यु की सूचना मिलते ही, समिति के सचेत कार्यकर्ता, तत्परता से सम्पूर्ण ताल-मेल बैठा कर कुछ ही समय में यह सुनिश्चित कर देते हैं कि कैसे सफलतापूर्वक देह दान या अंग दान हो जाए। इस तरह उन्होंने सम्पूर्ण प्रक्रिया और निष्कामता की मिसाल सामने रखी।

प्रमुख अतिथि के तौर पर आईं साध्वी समाहिता जी ने बड़े ही सरल और सार्थक तरीके से यह बताया कि धर्म कभी भी, देह दान और अंग दान के आड़े नहीं आता। प्रत्येक धर्म, मानवता के इस कार्य का पूरक ही है। उन्होंने प्रश्न उठाया कि अपने प्रियजनों के न रहने पर लोग उनके नेत्रों या देह का दान करने से क्यों डरते हैं? रुढ़िवादिता का धर्म में कहीं कोई स्थान नहीं है। बल्कि, धर्म तो सदैव प्रेरित करता है कि मानवता का यह उत्तम कार्य और भी बेहतर तरीके से किया जाना चाहिए।

डाॅ. एस.पी. बयोत्रा व डाॅ. शीतल जोशी ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मन के सारे प्रश्नों व उलझनों का जवाब पीपीटी प्रस्तुति के माध्यम से दिया। उन्होंने बताया कि 5 लाख से ज़्यादा लोग सदैव अंगों के दान के इन्तज़ार में रहते हैं व इनमें से 90-95 प्रतिशत इसी इन्तज़ार में दम तोड़ जाते हैं। अभी 5 से 10 प्रतिशत ही देह दान सम्भव हो पाता है। देह दान व अंग दान का सबसे अच्छा माध्यम, दुर्घटना में मस्तिष्क-मृत देह होती है, लेकिन यह तभी सम्भव है जब उसके परिजन सहयोग दें।

इस उत्सव में देह दानियों के परिजनों में से एक, सरदार परमजीत सिंह ने अपनी मां के अंग दान का, बेहद रोमांचित करने वाला एक भावनात्मक उदाहरण बताया। उन्होंने कहा, जब मां ने देह त्यागी तो पोती ने घर में सबसे पूछा कि दादी का नेत्र दान हो गया? तब सबको याद आया कि मां ने नेत्र दान का संकल्प ले रखा था। सभी हरकत में आ गए और समय रहते, उनके अन्तिम संस्कार से पूर्व यह दान सम्पन्न हो सका।

कोर कमेटी के जिन सदस्यों ने कई दिन तक लगातार तन-मन-धन लगा कर इस उत्सव को सफल बनाया, उनके नाम हैं - श्री जगमोहन सलूजा, श्री नवल खन्ना, श्री कुशल मोंगा, श्री राकेश बत्रा और श्री अशोक अहूजा। अन्य नामचीन हस्तियां, जो कार्यक्रम में शामिल रहीं वो थीं अग्रसेन अस्पताल से डाॅ. अनिल अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, कार्डियो, डाॅ. शान्तनु, विभागाध्यक्ष, आई डिपार्टमेन्ट, पूर्व मेयर श्री नरेन्द्र चावला, स्टेन्डिंग कमेटी के चेयरमैन श्री भूपिन्दर गुप्ता, प्रान्त के सहकार्यवाह श्री विनय, संघ के विभाग प्रचारक श्री दीपक व निगम पार्षद श्रीमती वीणा विरमानी।

उत्सव के शुरू में जो आॅडियो चल रहा था, वह भी यही बता रहा था कि मानव जन्म बड़े सौभाग्य से मिलता है और जितना हो सके जीते जी इन्सानियत के काम किए जाने चाहिए तथा न रहने पर देह व अंग किसी के काम आ सकें, ऐसा प्रण आज ही लेना चाहिए।

पश्चिमी क्षेत्र की यह शाखा बड़े ही लगन व सच्चे मन से, पूरे इलाके में आयोजित होने वाले अनेक कार्यक्रमों में शरीक होकर, शिविर लगा कर देह दान का जागरण अभियान चला रही है।

जागना केवल नींद से ही नहीं बल्कि, अज्ञानता से भी जागरण हो - ऐसा प्रयास ज़रूरी है। इसलिए सबकी यह ज़िम्मेदारी है कि खुद जागें, औरों को भी जगाएं और देह व अंग दान के इस मिशन को सफलता की ओर ले जाएं। हमारी सोच ही नई दुनिया का निर्माण करेगी।