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कोठपूतली रिपोर्ट

दधीचि देह दान समिति ने राजस्थान में रखा कदम !

दधीचि देह दान समिति ने दिल्ली और एनसीआर से आगे पहली बार अपना दायरा बढ़ाया। जहां एक ओर 2016 का अवसान हो रहा था वहीं दूसरी ओर राजस्थान में समिति के सूरज का उदय हो रहा था। स्थान था राजस्थान का छोटा सा कस्बा कोटपूतली। अवसर था भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहरी वाजपेयी के 92वें जन्मदिन का जो हर साल 25 दिसम्बर को मनाया जाता है। यूं भी 25 दिसम्बर पूरी दुनिया में न भूला जाने वाला दिन है, क्योंकि इसी दिन मानव कल्याण के लिए ईसाइयों के मसीहा ईसा का जन्म हुआ था। यह संयोग नहीं है कि दधीचि देह दान समिति का अस्तित्व भी 19 साल पहले मानव कल्याण के लिए सामने आया। समिति का जन्म मानव कल्याण के लिए एक सोचा-समझा कदम है। समिति ने 2017 की शरुआत के साथ उम्र के बीसवें साल में कदम रख दिया है।

25 दिसम्बर, 2016 को कोटपूतली के राजकीय सरदार स्कूल के सभागार में दधीचि देह दान समिति और स्थनीय आओ साथ चलें संस्था के संयुक्त तत्वावधान में जागरूकता उत्सव का आयोजन किया गया। इसमें रक्त दान की तरह मानव अंग और मृत्यु बाद सम्पूर्ण देह दान के बारे में जानकारी दी गई। आयोजन में समिति के अध्यक्ष आलोक कुमार ने देह/अंग दान के प्रेरक की भूमिका अदा की। उन्होंने उर्पिस्थत जनसमूह को बताया कि बढ़ रही बीमारियों के कारण मरीज़ों के अंग जल्द खराब हो जाते हैं और उन्हें आयु पूरी करने के लिए किसी दूसरे मानव के अनुकूल अंग की गहन आवश्यकता होने लगी है। उन्होंने अपने कई संस्मरणों के माध्यम से जनसमूह में देह/अंग दान के प्रति चेतना जगाई। श्री आलोक ने कहा कि देह/अंग दान भारत में कोई नई बात है। इसके प्रणेता थे सतयुग के महर्षि दधीचि, जिन्होंने बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए अपनी देह की सम्पूर्ण अस्थियां (हड्डियां) दान कर दी थीं।

उन्होंने कहा लोगों का जीवन बचाने के लिए डाॅक्टरी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी आज ऐसी मृत देहों की आवश्यकता है जो साफ-सुथरी और ताज़ी हों। ऐसा तभी संभव है जब लोग मृत्यु बाद अपनी देह मेडिकल काॅलेजों को दान करने का संकल्प लें। एक मृत देह ही किसी भी भावी चिकित्सक को देह के अंगों की वास्तविक और व्यवहारिक जानकरी देती है। चिकित्सा पढ़ाई के लिए 4 से 6 चिकित्सा विद्यार्थियों को एक देह की आवश्यकता होती है, पर अभी स्थिति यह है कि 25 से 30 विद्यार्थी एक देह पर काम करते हैं। उन्होंने कहा कि समिति ने लोगों को देह दान के लिए प्रेरित कर इस समस्या को जहां तक संभव हो शीघ्र दूर करने के संकल्प लिया है।

श्री आलोक ने उपस्थित जनसमूह को बताया कि लोग जिस तरह रक्त दान को स्वीकार कर चुके हैं, उन्हें अपने अंधविश्वासों को छोड़ कर अंग दान को भी स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि देह और अंग दान मानव कल्याण के सर्वोत्तम दान हैं। उन्होंने बताया कि कारण हो या न हो, मानव का कोई भी अंग कब खराब हो जाए यह समझ पाना मुश्किल है, लेकिन हकीकत यह है कि हाल के वर्षों में असमय ही किसी भी अंग का काम बंद कर देना या काम बंद कर देने की कगार पर पहुंच जाना आम बात सी हो गई है। ऐसे में बीमार का जीवन बचाने के लिए संबंधित अंग का प्रत्यारोपण किया जाता है। वस्तुस्थिति यह है कि अंगों की मांग बहुत है जबकि आपूर्ति नहीं के बराबर है। और दधीचि देह दान समिति का लक्ष्य है कि मानव जीवन को बचाने के लिए मानवता की भावना को जगाना/बढ़ाना। उन्होंने जानकारी दी कि जो देह/अंग दान के लिए तैयार हो जाते हैं, समिति उनसे यह संकल्प पत्र भरवाती है कि मृत्यु के बाद उनकी देह मानवता के लिए दान की जाएगी। इस संकल्प पत्र पर दो गवाहों के हस्ताक्षर भी लिए जाते हैं। इन दो गवाहों में से एक का परिवार का सदस्य होना ज़रूरी है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की राजस्थान में पहली बार यह कार्य कोटपूतली से शुरू हो रहा है। उन्होंने इसके लिए कार्यक्रम संयोजक विष्णु मित्तल की सराहना की।

देह/अंग दान के लिए लोगों को प्रेरित करने के साथ श्री आलोक ने पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के 6 वर्षों के कार्यकाल पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अटल जी ने पहली बार देश में लोगों को सुशासन का अहसास कराया था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रदेश के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया के ओएसडी वरिष्ठ आरपीएस मुकंुद बिहारी शर्मा ने ज़िला कलेक्टर सिद्धार्थ महाजन की ओर से शुभकामनाएं प्रेषित कीं और कहा कि मानव अंगों व देह दान के प्रति जागृत हो रही चेतना निश्चय ही एक बड़े बदलाव की सूचक है। श्री शर्मा ने अन्य शहरों में इस मानव उपयोगी कार्य को आगे बढ़ाने की अपील करते हुए कहा कि इससे मानव अंगों के अभाव में मरने वाले लोगों की जान बचाई जा सकती है।

कार्यक्रम संयोजक व आओ साथ चलें संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष सीए विष्णु मित्तल ने कहा कि पिछले एक वर्ष के दौरान मीडिया के माध्यम से ऐसे समाचार प्राप्त हुए हैं कि कोपूतली व आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग शरीर के अंगों के खराब होने से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया, मनोहरपुर में एक परिवार में तो पांच लोगों की आंखें खराब थीं। जिसमें 10 वर्ष का बच्चा भी था। मानव अंगों की मांग को देख लोगों में चेतना पैदा करने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। उन्होंने सुझाव दिया कि जयपुर जैसे बड़े शहर में भी इस मानव उपयोगी कार्य को आगे बढ़ाया जाए ताकि मानव अंगों के अभाव में मरने वाले लोगों की जान बचाई जा सके।

कार्यक्रम में प्रेरित होकर गौरव सैनिक कल्याण समिति के महासचिव हेमराज जांगिड़, युवा समाजसेवी विक्रम गूर्जर ने अपनी देह दान व मिथलेश मित्तल ने अपनी आंख दान करने की घोषणा की। साथ ही संकल्प पत्र भी भरे, जिनका प्रतीक चिह्न भेंट कर स्वागत किया गया।

प्रस्तुति - इन्दु अग्रवाल