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यह सब यज्ञ ही है!
उनका नाम है श्री राजकुमार भाटिया। उत्तर दिल्ली में बहुत बड़े आढ़तिया हैं। कई लोग उनके माध्यम से अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं। एक दिन की बात है, एक व्यक्ति उनके दरवाजे़ पर काम मांगने पहुंचा। दुर्भाग्य से श्री भाटिया के पास उसके लिए कोई काम नहीं था। उन्होंने उसे कुछ पैसे देने चाहे। उस व्यक्ति ने कहा, ‘पैसे नहीं चाहिए, मुझे आप खाना खिला दो’। उन्होंने उसे भोजन खिला दिया। भोजन करने के बाद उस व्यक्ति के चेहरे पर जो तृप्ति भाव आया उसने श्री भाटिया के मन को अंदर तक छू लिया। उनके मन में एक नया संकल्प जागा। आम तौर पर ज़रूरतमंदों की मदद करते रहने वाले श्री भाटिया ने उसी दिन अपनी पत्नी से कहा कि वह रोज़ ताज़ी बनी तीन रोटियां, सूखी सब्ज़ी या अचार के साथ, एल्यूमीनियम फाॅयल में लपेट कर उन्हें दे दिया करें। इस तरह वह हर दिन किसी न किसी इंसान की क्षुधा शांत करने लगे। उनकी देखा-देखी आस-पास के लोगों के मन में भी ज़रूरतमंदों को रोटी खिलाने की प्रेरणा हुई। अन्य कई लोगों ने उनके साथ जुड़ने की इच्छा जताई। परिणामस्वरूप 23 जून 2015 को उत्तर दिल्ली में रोटी बैंक की स्थापना हुई और आज रोटी बैंक के 24 केन्द्र खुल चुके हैं। प्रत्येक केन्द्र का मुख्य कर्ता-धर्ता वह व्यक्ति होता है जिसने पहली बार श्री भाटिया के साथ इस अभियान से जुड़ने की इच्छा जताई थी। हर दिन सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 1 बजे तक इन पैकेटों का वितरण ज़रूरतमंद लोगों के बीच हो जाता है। स्वयं श्री भाटिया आज भी प्रतिदिन 1800 लोगों को रोटियों के पैकेट बांटते हैं।
उत्तर दिल्ली के ही एक अन्य सज्जन हैं। नाम है श्री राजकुमार गुप्ता। गाय को रोटी खिलाना आम बात है। ज़्यादातर घरों में पहली रोटी गाय के लिए बनती है। अधिकांश लोग श्रद्धावश गाय को रोटी खिलाते हैं तो कुछ अपने कष्टों को दूर करने के लिए। शहरों में कई बार लोगों को गाएं नहीं मिलती हैं। उधर, जब गाएं दूध देने लायक नहीं रह जाती हैं या वो बीमार हो जाती हैं तो ग्वाले अक्सर उन्हें इधर-उधर भटकने के लिए छोड़ देते हैं। ये निरीह पशु कूड़े-कचड़े के ढेर से अपना पेट भरने को मजबूर हो जाता है। गौ-वंश की यह स्थिति देख कर श्री गुप्ता का मन उस गौशाला के कार्य के लिए समर्पित हो गया जिसकी स्थापना 12-13 साल पहले के विश्व हिन्दू परिषद श्री अशोक सिंघल जी के हाथों हुई थी। गौशाला का नाम है गोपाल गौशाला, हरेवली। श्री गुप्ता 4-5 साल पहले इस गौशाला के कार्य से जुड़ गए। उन्होंने एक ठेला-रिक्शा खरीदा। उस पर 7 ड्रम रखे और अपने क्षेत्र से इनमें रोटियां, आटा, हरी सब्ज़ियों के डंठल-पत्ते, गुड़, खाने की अन्य चीज़ें आदि एकत्र कर गौशाला में पहुंचवाने लगे। उनकी लगन रंग लाई। ठेला-रिक्शों की संख्या बढ़ कर 80 पहुंच गई। फलस्वरूप ठेला-रिक्शा चलाने वालों को नियुक्त किया गया। एक ठेला-रिक्शा 5-6 घंटे में प्रति दिन 50 किलोग्राम वज़न का सामान एकत्र करता है। इस तरह प्रतिदिन 4000 किलोग्राम खाने का सामान जमा हो जाता है। इस सामान की दैनिक कीमत 80 हज़ार रुपए और सालाना 2 करोड़ 72 हज़ार रुपए है। सारा सामान गोपाल गौशाला, हरेवली पहुंचा दिया जाता है जहां वर्तमान में गौवंश के 4000 पशु रहते हैं। दिन के 12 बजे दो छोटे ट्रक गौशाला से निकलते हैं और उत्तर दिल्ली में जहां कहीं भी कभी गाएं भटकती मिलती हैं उन्हें गौशाला पहुंचा दिया जाता हैं।
अलग हट कर सोचने और उस सोच को कार्य के रूप में अपनाने वालों के लिए कोई रुकावट बाधा नहीं बनती। दिल्ली में जहां दो सज्जन इंसान और गौवंश की भूख को मिटा रहे हैं वहीं ग्वालियर के श्री राज चड्ढा पक्षियों का जीवन बचाने में जुटे हुए हैं। ग्वालियर में बहुत भयंकर गर्मी पड़ती है। गड्ढों और तालाबों का पानी सूख जाता है, नदी का जल स्तर बहुत कम हो जाता। मनुष्य और पक्षी दोनों गर्मी से विकल हो जाते हैं। मनुष्य तो किसी न किसी तरह पानी का इंतज़ाम करने की कोशिश करता है लेकिन पक्षी क्या करें? ऐसे में श्री राज का मन कु्रछ सोचने लगा और 5-6 साल पहले उन्होंने अपनी सोच फेस बुक पर डाल दी। उन्होंने गर्मियों में पक्षियों के लिए कुछ करने की योजना सामने रखी कि अगर प्रत्येक व्यक्ति मिट्टी का एक चैड़ा पात्र खरीदे, उसमें पक्षियों के लिए मुट्ठी भर दाने रख कर किसी दूसरे को ऐसी जगह रखने के लिए दे दे जहां पक्षी आसानी से पहुंच सकें तो गर्मी की तपिश से उन्हें राहत दी जा सकती है। पात्र के खाली होने पर, बस उसे पानी से भर दिया जाए। और, दाना-पानी फाॅर बर्ड्स नाम से क्लब बन गया। यह क्लब हर साल 15 मार्च से 15 जुलाई तक पक्षियों के लिए दाना-पानी का इंतज़ाम करता है। इस क्लब के सदस्यों की संख्या 350 पहुंच चुकी है, जो धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। श्री राज ने इस कार्य की शुरूआत सुबह पार्क में टहलने जाने वालों से की। लोग जब पार्क से बाहर निकलते थे तो उन्हें श्री राज और उनके कुछ साथी दाना और मिट्टी का पात्र उन्हें दे देते थे। पहले यह काम प्रति रविवार को होता था अब सप्ताह में दो दिन होता है। अब तक 50000 मिट्टी के पात्र बांटे जा चुके हैं। छह साल में पक्षियों को दाना-पानी देने के स्थानों की संख्या बढ़ कर 200 हो गई है। यही नहीं श्री चड्ढा से प्रेरणा लेकर देश और दुनिया में कई स्थानों पर यह काम चल रहा है।
मनुष्य से लेकर गाय और पक्षी तक सभी एक ही परमात्मा के अंश है। उनको भोजन-पानी देना परमात्मा की सेवा का विशिष्ट यज्ञ है।
अपने साधन को समाज के लिए समर्पित करना, उत्साहित हो कर रक्त दान, स्टेम सेल दान, अंग दान और देह दान करना निरामय सृष्टि के निर्माण की ओर एक कदम है। देह दान से न केवल कई लोगों को जीवन मिलता है, बल्कि चिकित्सा विद्यार्थियों का शरीर विज्ञान पढ़ने में सहयोग भी हो जाता है। देह दान करने से 9 मन लकड़ी तो बचती ही है, मृत देह के अंग भी बीमारी की वजह से असमय मृत्यु से जूझ रहे ज़रूरतमंदों को जीवन देने के काम आ जाते है। यह सब यज्ञ ही है और दधीचि देह दान समिति भी अपने ढंग के यज्ञ में आहूतियां दे रही है।
आलोक कुमार