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"हम जीतेंगे - Positivity Unlimited" व्याख्यानमाला

स्वस्थोहम् स्वस्थोहम्
शुद्धोहम् शुद्धोहम्

मुनि श्री प्रमाण सागर जी

महामारी भयानक है. आए दिन हम लोग रोज सुन रहे हैं संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है और मृतकों की भी संख्या बढ़ रही है. अस्पताल भरे पड़े हैं. लोगों को जगह नहीं मिल रही है. निश्चित ये बहुत त्रासदीपूर्ण काल है. लेकिन ऐसे समय में एक संदेश मैं लोगों को देना चाहता हूं. सबसे पहले उन लोगों को जो आज इस महामारी के शिकार हुए हैं, जो आज अपनी चिकित्सा ले रहे हैं, जो अस्पतालों में हैं. मैं उन सबसे कहना चाहता हूं कि मन को मजबूत बनाओ, घबराइए मत. बीमारी आई है, जाएगी. ये बीमारी आई है इसका मतलब ये नहीं कि बीमारी आई है तो मौत ही आ गई. मन को अच्छा रखिए. यदि आपका मन मजबूत होगा तो आप इस बीमारी को चुटकियों में हरा सकते हैं.

 

विशेषज्ञ बताते हैं कि ज्यादातर लोग ठीक हो जाते हैं, 85 प्रतिशत लोगों को तो पता ही नहीं चलता बीमारी आई और चली गई. कुछ लोगों को जो थोड़ा हल्का-फुल्का लक्षण होता है, उनको चिकित्सा की जरूरत होती है और कुछ लोगों को विशेष चिकित्सा की होती है और कुछ लोग होते हैं जो मॉडरेट हो जाते हैं. लेकिन घबराने की बात बिलकुल नहीं होनी चाहिए. मन को मजबूत बनाओ, सबसे पहले तो मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं जो कहीं से संक्रमित या बीमार हैं, ये सोचें कि मैं ठीक हो जाऊंगा. ये बीमारी अल्पकालिक है. जैसे अन्य बीमारियों का इलाज होता है, इसका भी होगा. मैं चिकित्सा लूंगा और ठीक हो जाऊंगा, मैं ठीक हो सकता हूं. और दूसरी बात अपने भीतर आध्यात्मिक दृष्टि रखें कि ये बीमारी तन को है, मन को नहीं. तन की बीमारी के सौ इलाज हैं, मन की बीमारी का कोई इलाज नहीं. इसलिए मैं सबसे कहना चाहता हूं, इस तन की बीमारी को मन पर हावी मत होने दें.

 

एक सज्जन जो अस्पताल चलाते हैं, उन्होंने बताया कि महाराज जी, हमारे यहां बहुत से पेशेंट आते हैं और हमने ये देखा कि जिन पेशेंट का मनोबल ऊंचा होता है, वो बहुत क्रिटिकल अवस्था में आने के बाद भी संभल जाते हैं. लेकिन जो मरीज अपना मनोबल तोड़ देते हैं, उनको संभालना मुश्किल होता है और प्रायः मौत भी हो जाती है. बताया कि चालीस सेचुरेशन में मेरे पास आने वाले लोग, जिनके लंग्स 80 प्रतिशत तक खराब हो गए वे लोग भी मनोबल के बल पर आज इस बीमारी को मात देकर स्वस्थ होकर घर पहुंच गए. तो मेरा सबसे ये कहना है कि सबसे पहले तो अपने मन को मजबूत बनाओ कि नहीं, ये बीमारी आई है पर ये ऐसी नहीं है कि मुझे लेकर ही जाएगी. अभी मुझे जीना है. अपने अंदर की जिजीविषा को प्रमुख बनाइए. दूसरी बात अपने अंदर आध्यात्मिक दृष्टि रखिये कि ये शरीर में बीमारी है. शरीर का जन्म होता है, शरीर का मरण होता है. अगर बीमारी आई तो इस शरीर में आई है और इस बीमारी के प्रभाव से अगर विनाश भी होगा तो इस शरीर का होगा. मेरा न कभी जन्म हुआ है, न मेरी कभी मृत्यु होगी, न मुझे कोई रोग होगा, न मेरा अंत होगा. इसलिए मैं किस बात से डरूं. "न मे मृत्यु: कुतो भीति" ......जब मैं मृत्यु रूप हूं ही नहीं तो डर किसका, मन को मजबूत बनाइए. इससे बिलकुल मत घबराइए. बीमारी आई है जाएगी ही. पर एक बात गांठ में बांध कर रखिये कि जब तक मेरी आयु है मुझे कोई हिला नहीं सकता और आयु पूरी हो जाने के बाद कोई जिला नहीं सकता. तुम्हारी आयु पूरी होगी तब तुम्हे कोई नहीं रोक सकता है और एक बात ध्यान रखना जाने का नंबर हो तो स्वस्थ आदमी भी चला जाता है और किसी की आयु है तो महीनों वेंटिलेटर पर रहने वाले लोग भी वापस से अपना जीवन प्राप्त कर लेते हैं. इसलिए निर्विकल्प रहिए. हमारे यहां तो कहा जाता है – राजा, राना छत्रपति, हाथिन के अश्वार, मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार.... तो एक दिन सबको मरना है. लेकिन जब मेरी बारी आएगी तब मरेंगे, अभी मेरी बारी थोड़ी है. तैयारी है, आएगी तो स्वागत है. लेकिन घबराना नहीं, मृत्यु का स्वागत उमंग और उल्लास के साथ करना, भय और उद्वेग के साथ नहीं. इससे घबराना बिल्कुल नहीं चाहिए. आप अपने मन के इस भय को हटा दीजिए. लोग अस्पतालों में रहते हैं, आजू-बाजू एक दूसरे लोगों को देखते हैं, लोग अगर चले जाते हैं तो मन में घबराहट होती है. कहीं मेरा नंबर ना आ जाए, तो अमर हो के आए हो क्या, नंबर तो एक दिन सबका आना ही है. हमारे पुर्खे गए, हमको भी जाना है जगह खाली करेंगे, तब तो दूसरे आएंगे. बोलो अगर हमारे पुर्खे नहीं गए होते तो हमें जगह मिलती, लेकिन जब नंबर आएगा वो सब सेट है, घबराओ नहीं. वो हमारे हाथ में नहीं है और तुम्हारे हाथ में भी नहीं है. मन का ये वहम निकाल दीजिए. मन में एक अलग उल्लास और ऊर्जा को जगाइए तो ये चीजें आपको संभालेगीं. इसके साथ जो और आवश्यक चीजें हैं उसे अपनाइए. चिकित्सा के साथ-साथ मन को मजबूती देने के लिए आप योग आदि की क्रियाएं कीजिए, भावना योग कीजिए वो आपके जीवन को एक अच्छी दिशा देगा. मन जिसका मजबूत होता है, उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. मैं मानता हूं कि अमर कोई नहीं है, लेकिन हमें बेमौत नहीं मरना. लोगों को थोड़ा सा कोविड पॉजिटिव आता है तो लोगों के मन में खौफ आ जाता है कि अब तो गए और पेशेंट के साथ-साथ उनके जो परिजन वो भी अधीर हो जाते हैं, वो भी बहुत घबरा जाते हैं और इसी घबराहट में मामला बिगड़ जाता है. पेशेंट के साथ उनके परिजन को भी थोड़ा धैर्य रखना चाहिए. ठीक है, बीमारी आई है चली जाएगी. आप हिसाब लगा लीजिए, हमारे यहां इतने सारे लोग संक्रमित हो रहे हैं, पर ज्यादातर तो लोग ठीक होकर ही जा रहे हैं. मृत्यु की दर तो लगभग डेढ़ प्रतिशत ही है ना. ठीक है, ये दूसरी लहर थोड़ा भयानक है, इसलिए सावधानी पूरी रखिए, सतर्कता रखिए, एक-दूसरे के साथ संपर्क मत बनाइए, घर के भीतर रहिए, सेफ जोन में रहिए, ये आपकी जिम्मेदारी है. लेकिन अगर कोई संक्रमित हो गया या मैं संक्रमित हो न जाऊं, इस बात का भय मन से हटा दीजिए. भय का भूत आप जब तक नहीं भगाएंगे, आप ठीक नहीं हो पाएंगे. इसलिए मन को मजबूत बनाने की कोशिश कीजिए. जिन लोगों के मन में इस महामारी का खौफ है, मैं आप सबसे कहता हूँ कि इस धरती पर ये महामारी पहली बार नहीं आई. पिछले अनेक शताब्दियों का इतिहास हमारे सामने है, हर सौ वर्ष में एक-एक महामारी आई है करोड़ों लोग उसमें मरे. लेकिन महामारी आई करोड़ों लोग उसमें मरे, पर मानवता आज भी जिंदा है. हमें घबराने की जरूरत नहीं है. ये महामारी है, लेकिन जब तक मानवता जिंदा है, हमें कोई कठिनाई नहीं होगी. हम फिर उठकर खड़े हो जाएंगे और जो थोड़ा बहुत प्रकृति का प्रकोप झेलना पड़ रहा है वो सब सुधर जाएगा. हमें संभलने की जरूरत है, एक-दूसरे का साथ देने की जरूरत है. ऐसे समय में लोगों को मानवतावादी दृष्टिकोण रखना है और अपनी मानवीय भावनाओं का परिचय देना है. कोई पीड़ित है तो उसके लिए ढाल बनकर खड़े होने की जरूरत है. और जैन समाज के लोगों के लिए तो मैं विशेष कहूंगा हमारी संस्कृति तो दान धर्म की संस्कृति रही है. हमारे पुर्खों ने तो जब भी कोई ऐसी विपत्ति आई है, जी खोलकर दान धर्म किया है और लोगों की संरक्षा में आगे आए है. हमें उसी परंपरा को आगे बढ़ाना है और इस त्रासदी को एक वैश्विक आपदा मानकर जिसको जो संभव है, अपना सहयोग देने के लिए हाथ आगे बढ़ाना चाहिए और एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए. क्योंकि आज के समय में इस मानवता पर आए संकट को दूर करना हर किसी का कर्तव्य है. जो इस कर्तव्य के प्रति दृढ़ होंगे वो ठीक हो जाएंगे और उनके साथ कुछ भी नहीं होगा. इसलिए हमें एक कोशिश करनी है, हम स्वस्थ रहें औरों को भी स्वस्थ्य रखने की कोशिश करें. बार-बार जो अस्वस्थता का जो अनुभव होता है वो एक वाक्य को दोहराएं --

स्वस्थोहम् स्वस्थोहम् स्वस्थोहम् - मैं स्वस्थ हूं, मैं स्वस्थ हूं, मैं स्वस्थ हूं....

और मैं आत्मा हूं, शुद्ध आत्मा हूं – शुद्धोहम् शुद्धोहम्

 

शुद्धोहम् की धुन अपने अंदर रखें, ये आपके मन को मजबूती देगा और आप इस बीमारी को हराकर बाहर लौट सकेंगे. जिन लोगों का मनोबल ऊंचा हुआ है वे बाहर आए हैं और उम्र दराज लोग भी इसे हराकर वापस आए हैं. लेकिन, जिन लोगों ने ये सोचा कि अब तो मैं बचूंगा नहीं, अब तो मैं बचूंगा नहीं, अब तो मैं बचूंगा नहीं जो अपने जीवन से हार गए, वे घर लौट कर नहीं आ पाए. इसलिए सभी लोग अपने मन को मजबूत करें और अंतिम सांस तक संघर्ष करें. मेरी जितनी सांसे हैं. मुझे जीवंतता से जीनी है और अपने जीवन को धन्य करना है. यही मेरा सभी के लिए मार्गदर्शन है और आर्शीवाद भी.