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वार्तालाप

माता जी श्रीमती विद्या देवी आयु (86 वर्ष), धर्मपत्नी स्वर्गीय श्री बलजीत सिंह R/O WZ-349 नरायणा नई दिल्ली-110028 के स्वर्गवास पश्चात 12 मई 2021 को नेत्रदान हुआ, इनके सुपुत्र श्री उदय सिंह तँवर से एक बातचीत

मन में देहदान - नेत्रदान का विचार कब और कैसे आया ।

मेरे माता जी व पिता जी वर्ष 1982 से राधास्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) से जुड़े है पिता जी वर्ष 2006 में संसार से विदा हो गए थे RSSB के संत सतगुरु जब भी दिल्ली सत्संग करने के लिए आते है तो उनके सत्संग से पूर्व १५ मिनट की अंगदान के लिए प्रेरित करने के लिए एक CD दिखाई जाती है उससे प्रेरित हो कर हमारी माता जी ने देहदान का संकल्प लिए था इस विषय पर जब कभी घर में चर्चा होती थी तो माता जी कहा करती थी की बेटा मेरा शरीर तो किसी hospital को बच्चों की विज्ञान की पढ़ाई के लिए दान कर देना उनकी अंतिम इच्छा को ध्यान में रख कर हमने ऐसा किया।

मैं स्वयं 1978 से संघ का स्वयंसेवक हूँ। 2013 से 2015 तक दिल्ली का नेत्रदान संयोजक रहा, उससे पूर्व प्रांत व्यवस्था प्रमुख, झंडेवाला विभाग का विभाग कार्यवाह रहा वर्तमान में पटेल नगर जिले का संघचालक हूँ।

नेत्रदान हो पाया इसलिए आपको अच्छा लगा होगा । देहदान नहीं होने पर मन में क्या भाव आए ।

सक्षम के माध्यम से बात करने के पश्चात देहदान के लिए शरीर AIIMS DELHI ले ज़ाया गया नेत्रदान ही हो सका, प्रयास करने पर भी देहदान नही हो सका।मन को कष्ट तो बहुत हुआ परंतु परमात्मा की यही इच्छा रही होगी ऐसा सोच कर 13 मई 2021 को देह को वापस ला कर नरायणा शमशान घाट में अंतिम संस्कार किया गया।

क्या परिवार के अन्य सदस्यों ने भी देहदान - अंगदान - नेत्रदान का मन बनाया है ।

मेरे समस्त परिवार में, मैं स्वयं, मेरी धर्मपत्नी, दोनों सुपुत्र, दोनों पुत्रवधुएँ सभी ने देहदान का संकल्प लिया हुआ है। नरायणा गाँव शहरी कृत होने के बावजूद किसी ने अब से पहले नेत्रदान भी नही किया था तो समाज के बीच एक अच्छा संदेश जाना चाहिए यह भी हमारे मन की इच्छा थी।जिसमें हम काफ़ी हद तक सफल भी रहे।

आप समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । क्या आपको लगता है कि जो सरकारी या गैर सरकारी संस्थाएं कार्य कर रहीं हैं वो प्रयाप्त है ।

समाज को अभी और जागरुक करने की आवश्यकता है। अभी इसमें और बहुत काम करने की आवश्यकता है । उदाहरण के तौर पर मैं नारायणा गांव में रहता हूं ।देहदान अंगदान तो दूर की बात है । हमें समाज की रूढ़िवादिता मिटानी होगी । मां के नेत्रदान के समय स्वयं मेरी बहन ने कहा कि नेत्रदान के बाद अगले जन्म में मां अंधी पैदा होंगी तो मैने कहा फिर तो देहदान होना चाहिए था ताकि अगला जन्म ही न हो ।

बल्कि नेत्रदान के लिय तो सरकार के द्वारा क़ानून बना देना चाहिए।

आप स्वयं क्या योगदान देना चाहेंगे ।

मैं जहां भी कार्यक्रम में जाता हूं इस विषय पर जरूर बोलता हूं । अब मुझे देखकर कुछ अन्य लोगों ने भी बोलना शुरू किया है ।

दान के महत्व को समझना तथा समझाना कितना कठिन कार्य है ।

नही बिल्कुल कठिन नही है, परंतु जागरूकता के लिए संकल्पित परिवार को या व्यक्ति को कोई नज़दीकी व्यक्ति बार-बार ध्यान करवाते रहे तो विषय की याद बनी रहती है।

हमारे हिंदू समाज में संत सद्ग़ुरुओँ का बहुत ऊँचा स्थान है यदि उनके द्वारा आह्वान किया जाए तो संतोषजनक परिणाम आ सकते है। सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों का इसमें बहुत बड़ा योगदान हो सकता है ।