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श्रद्धा सुमन

पुण्यदान पर परिवारजनों का अभिवादन

श्रीमती प्रेम कुमारी

श्रीमती प्रेम कुमारी का 75 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे फरीदाबाद में रहती थीं। उनके पोते ने फोन पर बताया कि वे गुरुद्वारे निरंतर जाती थी। हमेशा स्वावलंबी रहीं। वे एक गरिमापूर्ण महिला थीं। वे अक्सर कहा करती थीं कि हमारा शरीर किसी के कुछ काम आ सके तो जरूर दे देना चाहिए। उनकी जीवन शैली के अनुरूप ही परिवार जनों ने उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। 2 मार्च,22 को स्व. प्रेम कुमारी के नेत्र, राजेंद्र प्रसाद आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में किए गए इस पुण्य दान के लिए परिवार जनों का अभिवादन। हम दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश चरणों में प्रार्थना करते हैं।

संपर्क सूत्र- पोता, श्री पारस खत्री-9711811381

असली धर्म निभाकर चले गए ...

श्री ललित पुरी

राणा प्रताप बाग निवासी श्री ललित पुरी ने 4 मार्च,22 को अपनी इह लीला समाप्त की। वे 78 वर्ष के थे। उनकी पत्नी से बात करके पता चला कि वे धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे। अपनी कॉलोनी के लक्ष्मी नारायण मंदिर, गीता मंदिर व आर्य समाज मंदिर सभी स्थानों पर उनका सक्रिय योगदान रहता था। स्व. ललित कुमार ने नेत्रदान व देहदान का संकल्प लिया हुआ था। बच्चों का थोड़ा बहुत विरोध होने पर भी उनकी पत्नी ने स्व. ललित के संकल्प का मान रखा व परिवार ने सहमति से उनका पार्थिव शरीर एम्स के न्यूरो विभाग में दान किया। चिकित्सा जगत की सेवा में यह एक अमूल्य दान है। उनके नेत्र भी मानवता के कल्याण के लिए गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। परिवार जनों का साधुवाद। समिति परिवार प्रार्थना करता है कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे।

संपर्क सूत्र -पत्नी, श्रीमती सविता पुरी-99100 83682

दिल में बसा था लोक कल्याण

श्री महेंद्र कुमार सिंघी

श्री महेंद्र कुमार सिंघी का 63 वर्ष की आयु में परलोक गमन हुआ। वे द्वारका में रहते थे। उनके बेटे श्री ऋषभ ने उन्हें श्रद्धा से याद करते हुए बताया कि वे हमेशा लोक कल्याण के लिए सोचते थे और वैसा ही करते भी थे। अपने ऑफिस में सभी कर्मचारियों को परिवार की आर्थिक सुरक्षा के लिए सचेत करते थे व प्रेरित करते रहते थे। लड़के लड़की को समाज में एक भाव से देखा जाए ऐसा उनका प्रयास रहता था। आने वाले कल को देखते हुए वे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे। परिवार ने 8 मार्च,22 को उनके मरणोपरांत नेत्रदान व देहदान का क्रियान्वयन करके समाज में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए हमारी ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना है।

परिवार के आग्रह पर हम उनका संपर्क नहीं लिख रहे हैं।

कोई रूठा नहीं रह पाता उनसे

श्री सुनील शर्मा

श्री सुनील शर्मा का 58 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। वे त्रिनगर, दिल्ली में रहते थे। उनके पुत्र ने बताया कि वे बहुत मिलनसार व्यक्ति थे। समाज में सबको साथ लेकर चलते थे। रूठे व्यक्ति को स्वयं से आगे बढ़कर मना लेते थे। हर महीने खाटू श्याम जी के दर्शन करने जाना, उनका एक नियम था। वे पारिवारिक व्यक्ति थे। 9 मार्च,22 को परिवार ने स्व.सुनील शर्मा के नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का साधुवाद। गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान उनके नेत्र दान में लेकर गई। हमारी ईश्वर से विनम्र प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री गौरव 98105 53383

समाज के लिए एक उदाहरण

श्री चंद्रप्रभा मोदी

श्री चंद्रप्रभा मोदी का 92 वर्ष की आयु में परलोक गमन हुआ। वे पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार एक्सटेंशन में रहती थीं। उनकी स्वयं की इच्छा थी देहदान करने की। परिवार जनों ने उनकी इच्छा का सम्मान कर के चिकित्सा जगत की सेवा में एक अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है ।उनका पार्थिव शरीर फिरोजाबाद के ऑटोनॉमस स्टेट मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए दान किया गया।10 मार्च,22 को उनके नेत्र भी गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। दान के क्रियान्वयन के लिए परिवार का साधुवाद । समिति परिवार दिवंगत आत्मा को सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री संजीव 98185 33000

दूसरों की सहायता ही उनकी जिंदगी थी

श्री भगवान जैन

श्री भगवान जैन ने 58 वर्ष की आयु में परलोक गमन किया वे रोहिणी में रहते थे। जैन समाज में वे एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे। समाज सेवा के कार्यों में अग्रणी रहते थे। भारत विकास परिषद में भी इनकी सक्रियता बनी रहती थी। जैन समाज में श्रद्धापूर्वक पढ़ी जानेवाली पत्रिका आत्म दृष्टि में उनकी प्रमुख भूमिका थी। इस पत्रिका में इनके लिए लिखे गए शोक संदेशों में से कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत है -

"आप स्पष्ट वक्ता मिलनसार इंसान मानवता को समर्पित व्यक्तित्व के धनी थे। धुन के पक्के एवं हर व्यक्ति का काम आप अपने स्वयं का काम समझकर पूरी लगन एवं कर्मठता से करते थे। दिन हो या रात हो भोजन कर रहे हों या सो रहे हों, कभी भी किसी का फोन आ जाता तो तुरंत अपने सारे कामकाज व आराम को छोड़कर उस व्यक्ति की सहायता के लिए चल पड़ते। आपका कभी किसी से भेदभाव नहीं रहा। रहा तो सिर्फ एक ही भाव सेवाभाव। साधु संतों की सेवा में अपना सहयोग, योगदान देने में सदैव समर्पित रहते थे। आपकी स्मृति सभा में जो भीड़ उपस्थित थी उसको देखकर सभी लोगों की जुबान पर एक ही शब्द था कि मानव के रूप में आज भगवान चला गया।"

संपादक, आत्म दृष्टि

परिवार ने उनके नेत्रदान के संकल्प का सम्मान किया। 11 मार्च,22 को गुरु नानक आई सेंटर की टीम स्व. श्री भगवान के नेत्र दान में लेकर गई। मानवता की सेवा में यह एक अतुलनीय दान है। परिवार जनों का अभिवादन। हम ईश्वर से विनम्र प्रार्थना करते हैं कि दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र -पत्नी, श्रीमती सुशीला जैन 85859 17518

अनूठी जिंदगी , अनूठा दान

श्री ओम प्रकाश शर्मा

श्री ओम प्रकाश शर्मा का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे द्वारका में रहते थे। उनके पुत्र से फोन पर उनके बारे में सम्मान पूर्वक बात हुई। वे आर्य समाज में सक्रिय थे। देहदान का उनका अपना संकल्प था। परिवार ने उनके संकल्प का सम्मान करते हुए 15 मार्च,22 को उनका पार्थिव शरीर एम्स के न्यूरो विभाग में दान कर दिया। चिकित्सा जगत की सेवा में यह एक अनूठा दान है। परिवार जनों के इस अनुकरणीय कार्य के लिए उनका साधुवाद। दिवंगत आत्मा की शांति के लिए समिति परिवार प्रार्थना करता है।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री राजीव 93129 01684

रामकथा को तो वे जीते थे

श्री मेघराज चावला

श्री मेघराज चावला का 84 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे दिल्ली के टैगोर गार्डन में रहते थे। उनके पुत्र ने आदर पूर्वक उन्हें याद करते हुए बताया कि उन्होंने स्वयं से नेत्रदान ओर देहदान का संकल्प लिया हुआ था। इस पूरी प्रक्रिया में माता जी का विशेष योगदान रहा। स्व. मेघराज चावला जी की धर्मपत्नी ने संबंधियों की आपत्तियों को अनदेखा करके दृढ़ निश्चय पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन किया। घर के पास में ही होनेवाली नियमित रामकथा में वे प्रतिदिन जाते थे। इतना ही नहीं वहां पर सेवा के रूप में सभी व्यवस्थाओं में सक्रिय भूमिका भी निभाते थे। परिवार जनों ने उनके संकल्प का सम्मान किया। 19 मार्च,22 को स्व. मेघराज का पार्थिव शरीर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के छात्रों की पढ़ाई के लिए दान किया गया। परिवार का अभिवादन। उनके नेत्र, गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। दधीचि परिवार प्रार्थना करता है कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री अनिल 98107 91969

दूसरों की जिंदगी में उजाला भर दिया

श्री सागर चंद जैन

श्री सागर चंद जैन का 81 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे दिल्ली के रोहिणी में रहते थे। उनके पुत्र ने श्रद्धा पूर्वक अपने पिताजी के विषय में हमें लिखकर भेजा है-

"रहे ना रहे हम महका करेंगे

बन के कली, बन के समा वादे वफ़ा में"

यह पंक्ति हमारे पूज्य पिताजी श्री सागर चंद्र जैन पर बिल्कुल सही बैठती है। उन्होंने अपना सारा जीवन बच्चों को शिक्षित करने, समाज को राह दिखाने में लगाया और मरने के बाद भी दधीचि देहदान समिति की सहायता से आंखों को दान कर दूसरों की जिंदगी में उजाला भर दिया।

ग्राम रमाला में जन्मे शांत, मृदुभाषी, और धार्मिक स्वभाव के थे। ग्रेजुएशन और फिर टीचर की ट्रेनिंग करके कस्बा बड़ौत में सरकारी स्कूल में अध्यापक पद पर सुशोभित हुए। 12 मई 1967 को उनका विवाह श्रीमती सुशीला देवी के साथ हुआ। 2002 में प्रधानाचार्य के पद से निवृत्त होकर अपना शेष जीवन तीर्थ यात्रा, गुरु और संतों की सेवा व परिवार की जिम्मेदारी को निभाने में लगाया। 21 मार्च,22 को अपना नश्वर शरीर त्याग कर प्रभु चरणों में लीन हो गए। हम दोनों भाई अपने पिताजी को अपने पूरे परिवार सहित श्रद्धा सुमन अर्पित कर, भगवान के चरणों में उचित स्थान मिले यही प्रार्थना करते हैं ।

अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि सहित

“अरुण कुमार जैन मनीष जैन"

स्व. सागर चंद्र जैन के नेत्र गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। समाज में एक प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए हम परिवार जनों का अभिवादन करते हैं। दधीचि परिवार प्रार्थना करता है कि ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री अरुण जैन 98101 16315

राष्ट्र को समर्पित एक जीवन

श्री ईश्वरदास महाजन

पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार निवासी श्री ईश्वरदास महाजन का 28 मार्च,22 को देहांत हुआ। वे 99 वर्ष के थे। सातवीं कक्षा में पढ़ते थे तब से आर.एस.एस. की शाखा में जाना शुरू हुआ। बी.ए करने के बाद संघ के प्रचारक बनकर संघ कार्य का विस्तार तेजी से किया। अत्यंत मेधावी व संस्कारी थे। अपनी योग्यता और कुशलता से कई प्रभावी व सम्मानित लोगों को संघ से जोड़ा। 10 वर्ष का प्रचारक जीवन रहा। आजीविका के लिए उन्होंने अध्यापन को चुना। कुछ वर्ष राजनीति में कार्य किया। जनसंघ, दिल्ली प्रदेश के मंत्री व दिल्ली नगर निगम में स्थाई समिति के अध्यक्ष भी रहे। आपातकाल में 19 महीने जेल में रहे। पुनः संघ कार्य में जुटे व दिल्ली में इन्होंने 1978 में विवेकानंद स्कूल शुरू किया । इनकी हर सांस में समाज हित व राष्ट्रहित की एक गहरी सोच बसी हुई थी। उनके जीवन जीने के उद्देश्यों के अनुरूप ही परिवार ने पार्थिव शरीर भी चिकित्सा जगत की सेवा के लिए अर्पित कर दिया। जीती जागती आदर्शों की एक किताब जिनके सामने रही ऐसे संस्कारी परिवार जन भी अभिवादन के पात्र हैं। इनकी प्रेरणा सभा में अपार जनसमूह की भागीदारी रही।

सभा को संबोधित करते हुए समिति के संरक्षक व विश्व हिंदू परिषद के कार्याध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने कहा, "उनका जीवन राष्ट्र को समर्पित था और उसके अनुरूप उनकी मृत्यु भी 'राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदम् न मम' को सार्थक कर गई। आज मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों के लिए वे एक टेबल पर उन विद्यार्थियों के प्रथम गुरु के रूप में सादर सुशोभित हैं"। एक उद्देश्य पूर्ण व कर्मठ व्यक्तित्व के धनी ने स्वयं ही अपना परलोक भी प्रशस्त किया है। उनके नेत्र भी गुरु नानक आई सेंटर में दान किए गए। समिति परिवार की दिवंगत आत्मा के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि ।

संपर्क सूत्र- पुत्रवधू, श्रीमती मीनाक्षी महाजन-99104 02739

अपना धर्म पहचानते थे वह

श्री भगवान गर्ग

श्री भगवान गर्ग ने 74 वर्ष की आयु में अपनी इह लीला समाप्त की। वे गुड़गांव में रहते थे । उनके पुत्र से फोन पर उनके विषय में चर्चा हुई। वे सामाजिक रूप से सक्रिय थे। वैश्य सभा के अध्यक्ष भी रहे । सनातन धर्म मंदिर के कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता बनी रहती थी ।

उनकी पत्नी ने भावपूर्ण शब्दों में उन्हें इस प्रकार याद किया है - "सादगी भरा जीवन जीते हुए गर्ग साहब सब को जोड़कर रखने और सबकी मदद करने में सुख अनुभव करते थे। ऐसी वाणी बोलते जिससे किसी को दुख न हो। निष्ठावान और परोपकारी व्यक्तित्व वाले गर्ग साहब आखिरी पड़ाव में भी किसी को दुखी न करते हुए प्रभु चरणों में अपना स्थान पा गए।"

30 मार्च,22 को, मरणोपरांत परिवार ने उनके नेत्रदान का निर्णय लेकर समाज में एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है । परिवार जनों का अभिवादन ।उनके नेत्र आरपी सेंटर, एम्स की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। हमारी ईश चरणों में विनम्र प्रार्थना है कि उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

संपर्क सूत्र -पुत्र, मनीष 98101 21890

एक सात्विक जीवन का सत्कर्म

श्री राम शरण गुप्ता

श्री राम शरण गुप्ता का 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे रोहिणी में रहते थे। उनके पुत्र से फोन पर हुई बात जिससे पता चला कि वे 40 वर्ष से विहंगम योग संस्थान से जुड़े हुए थे। उनका जीवन सात्विक था। कम बोलना व आचार व्यवहार सहज रखना उनकी विशेषता थी। धार्मिक व सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते थे। श्री रामचरण के मरणोपरांत नेत्रदान का निर्णय लेकर परिवार ने समाज में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। परिवार का अभिवादन। 4 अप्रैल को गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान उनके नेत्र दान में लेकर गई। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।

संपर्क सूत्र -पुत्र, श्री प्रदीप गुप्ता-93122 15484

उन्होंने कहा था, मेरा तन कर देना दान !

श्री मुल्क राज अरोड़ा

श्री मुल्क राज अरोड़ा का 85 वर्ष की आयु में देहांत हुआ। वे जनकपुरी, दिल्ली में रहते थे। उनके पुत्र ने बताया कि देहदान के लिए उन्होंने स्वयं से कई बार चर्चा की थी, पर क्योंकि यह चर्चा केवल छोटे बेटे से होती रहती थी, इसलिए घर के बाकी सदस्यों के सामने इस विषय को रखना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन जब ये बात परिवार के बाकी सदस्यो के आगे रखी गयी, सभी ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने का फैसला किया । स्व. मुल्क राज का अधिकांश जीवन फरीदाबाद में बीता। वे फ्रेंड्स सोशल वर्कर्स एसोसिएशन के साथ साथ कई सामाजिक कार्यो से जुड़े हुए थे। जीवन में कई बार रक्तदान किया और अपने बच्चों को भी इसकी प्रेरणा दी।उनके बड़े बेटे विदेश मंत्रालय मे राजपत्रित अधिकारी हैं और छोटे बेटे खाद्य जगत में कई ब्रांड के मालिक हैं। आज परिवार के सभी लोग उनसे प्रेरणा लेकर देहदान का संकल्प ले रहे हैं। उनके छोटे बेटे तरुण राज अरोड़ा ने उनके प्रति अपनी श्रद्धा कुछ इस प्रकार व्यक्त की है

डैडी जी

सभी कुछ है मगर फिर भी, हे खालीपन ओ डैडी जी!

अधूरा है तुम्हारे बिन, ये घर आंगन ओ डैडी जी!

हमेशा सोचकर निश्चिंत रहता आप हैं घर पर,

ज़माने में घनी सबसे, मेरे ही छांव थी सर पर,

यही विश्वास था परिवार को डिगने नहीं दोगे,

कभी कंटक कंटीले राह में उगने नहीं दोगे,

कहीं जाने पे अब करता हूं मैं चिंतन, ओ डैडी जी!

विरासत में मिली जो आपसे खुद्दारियां लेकर,

निरंतर आगे चलना है, ये ज़िम्मेदारियाँ लेकर,

मेरा वादा है कभी बाधित न होंगे काम सामाजिक,

मुझे मालूम है के आपने चाहे सभी के हित,

सुवासित ही रहेगा आपका मधुबन ओ डैडी जी!

यही हम सोचते थे माँ के बिन घर बार क्या होगा,

हमारी ख्वाहिशों का अब भला संसार क्या होगा,

पिता मां के स्वरूपों में बड़ी समता उतर आई.

ओ डैडी आप में मां की सकल ममता उतर आई,

निभाया आपने अपना हरेक बंधन ओ डैडी जी!

जब कहा ले गए मंदिर, हमेशा साथ बच्चों को,

सदाचारी बनो ये ही पढ़ाया पाठ बच्चों को,

वतन से प्रेम करना है, वतन के काम आना है,

पढ़ो शिक्षित बनो बच्चों, यही असली ख़ज़ाना है,

दिया है रोज बच्चों को, नया दर्शन ओ डैडी जी!

रखो आशीष में अनिकेत अंकित और अभिनव को,

ये जाने और समझे खूब अपने दादू के जीवन को,

कि पोती अंजली मन्नत दुआ फरियाद करती हैं,

वो बातें आपकी दिनभर में सारी याद करती हैं,

बनेगा आपकी पहचान ये गुलशन ओ डैडी जी!

अचेतन सी अवस्था में बहुत धीरज बढ़ाया था,

मुझे भी संग ज्योति के गले आपने लगाया था.

मिला वीडियो कॉल से आशीष भैया और भाभी को,

कहा घटने नहीं देना, ओ बेटो प्रेम थाती को,

मिला जो आपसे होगा वो संवर्धन ओ डैडी जी!

मेरा तन दान कर देना, यही कहते थे मुझ से,

ज़माना कह रहा है आप थे दानी दधीची से,

सभी करते रहेंगे आप पर अभिमान डैडी जी!

सकल परिवार करना चाहता देहदान डेडी जी.

बना डाला सभी ने आप जैसा मन ओ डैडी जी!

-तरूण

स्वर्गीय मुल्क राज अरोड़ा का पार्थिव शरीर 4 अप्रैल,22 को एम्स के न्यूरो विभाग में दान किया गया। चिकित्सा शास्त्र की सेवा में किए जाने वाले इस अतुलनीय दान के लिए परिवार जनों का अभिवादन। समिति परिवार दिवंगत आत्मा के लिए अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है ।

संपर्क सूत्र- पुत्र, श्री तरुण राज अरोड़ा 6900 0680 00

जिंदगी ऐसे ही बड़ी बनती है ...

श्री विमल प्रकाश जैन

श्री विमल प्रकाश जैन ने 89 वर्ष की आयु में अपना शरीर छोड़ा । उनके भौतिक जीवन की असंख्य उपलब्धियां व प्रशस्तियां स्मरण करते हुए उनके परिवार ने लिखित संदेश भेजा है-

“It is with profound grief we inform you that our father, Dr. Vimal Prakash Jain (“Papaji”) passed away on April 7, 22 at Manav Mandir Gurukul Ashram in Delhi. Papaji was a scholar of the Jain religion. He was a linguistic expert on the ancient Indian language Prakrit on which many of our Jain literature is written, on Pali on which much of Buddhist literature is written, and Sanskrit on which many Hindu literature is written. As a canonical expert on the Jain religion, he participated in many seminars, conferences and symposia on religion held in India, UK, Israel, Sweden, Canada, Australia, Italy and the US. He spent many years in Rhode Island and became associated with the Jain Centre of Greater Boston, the Hindu temple of Rhode Island and the India Discovery Centre.

His published work included Jambu-Sami-Cariu (Jambu Swati Charitra), Bhartiya Jnanpith, New Delhi publisher and research papers in National/International Journals. He was a professor for 35 years at the Rani Durgavati University, Jabalpur M.P. He later became the Director of Bhogilal Leherchand Institute of Indology where he conducted summer schools on Prakrit Language & Literature, autumnal schools in Jain Philosophy and Religion, and undertook a plethora of publication projects such as the English and Hindi translations of the Jain canonical literature and other allied works in Prakrit and Sanskrit in a 100-volume series, important works on different aspects of Jainology in a 50-volume series. These included the English, Hindi, Gujarati translation of the Original works of Acharya Umasvati with Sanskrit commentary. At least six candidates received their PhDs under his guidance. He wished to spend the last days of life in India doing service for Humanity. He left family and committed himself financially, mentally and spiritually to the Manav Mandir Gurukul Ashram in Delhi working with Acharya Roop Chand Ji Maharaj, spending time with the orphan children and involving himself with humanitarian projects being run by the Manav Mandir. He was blessed by Acharya Shri as he took his last breath. As he had wished, his eyes and his body were donated for harvesting organs and for use as a teaching aid. Born May 1933 in Meerut India, he was married to Mrs. Kamlesh Jain who had passed away just over a year ago. He is survived by his children, grandchildren and many relatives throughout India and the US.

7 अप्रैल को मानव मंदिर सराय काले खां में गुरु चरणों में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांसे लीं। उनके जीवनकाल के अनुरूप ही वे मरणोपरांत, चिकित्सा जगत की सेवा में अर्पित हुए। उनकी आंखें आर पी सेंटर, एम्स व पार्थिव शरीर आर्मी मेडिकल कॉलेज को दान में दिया गया । दिवंगत आत्मा ने निश्चय ही ईश चरणों में स्थान अर्जित किया है । दधीचि परिवार की सविनय श्रद्धांजलि।

संपर्क सूत्र- साध्वी समता श्री जी, 99996 09878

सुख-दुख के सहभागी थे वे

श्री मदनलाल गंभीर

श्री मदनलाल गंभीर ने 65 वर्ष की आयु में अपनी इह लीला समाप्त की। वे शाहदरा, दिल्ली के निवासी थे। उनके भाई ने बताया कि वे हर एक के सुख दुख में शामिल होते थे। निस्वार्थ भाव से समाज सेवा के कार्यों में लगे रहते थे। निरंकारी समाज के सत्संग में उनकी रुचि थी। परिवार ने उनकी मृत्यु के बाद नेत्रदान का निर्णय लेकर मानवता की सेवा की सेवा में एक अनूठा योगदान दिया है। परिवार जनों का साधुवाद। 13 अप्रैल,22 को गुरु नानक आई सेंटर की टीम उनके नेत्र ससम्मान दान में लेकर गई। समिति परिवार दिवंगत आत्मा को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।

संपर्क सूत्र- भाई, श्री गिरधारी लाल गंभीर-98101 18511

एक रोशनी बिखेर गईं वह

श्रीमती संतोष चावला

श्रीमती संतोष चावला ने 83 वर्ष की आयु में अपनी इह लीला समाप्त की। वे गुड़गांव में रहती थीं। 15 अप्रैल,22 को उनके मरणोपरांत परिवार वालों आर पी सेंटर, एम्स में उनके नेत्रदान किए। मानवता की सेवा के लिए यह एक पुण्य दान है और समाज में एक प्रेरक उदाहरण भी। परिवार का साधुवाद। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र -पुत्री , प्रेरणा 98102 75567

धर्म का मर्म समझते थे वे

श्री राम कुमार गोयल

श्री राम कुमार गोयल का 82 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ। वे दिल्ली में रोहिणी के निवासी थे। समिति के माध्यम से उन्होंने नेत्रदान का संकल्प लिया हुआ था। उनके पोते ने बताया कि अनाज मंडी में उनका कमीशन एजेंट का काम था। वे स्वयं भी अपने कामों में सचेत रहते थे और अपने साथ काम करने वाले सभी को सक्रियता से काम में लगाए रखते थे। श्री श्याम मंदिर जींद में वे सक्रिय थे। खाटू श्याम जी के दर्शन करने अक्सर चले जाते थे। भंडारे व लंगर के आयोजनों में श्रद्धा भाव से साथ लग जाते थे। संयोग ऐसा हुआ कि मृत्यु के समय में वे जींद में थे। परिवार ने उनके नेत्रदान के संकल्प को पूरा करवाने में धैर्य पूर्वक पूरी प्रक्रिया में सहयोग दिया। नोटो से संपर्क साध कर जींद के माधव आई बैंक में इस दान का निष्पादन हुआ। जींद के संघ चालक डॉ. ठाकुर का इस दान के निष्पादन में उल्लेखनीय सहयोग रहा। परिवार का अभिनंदन। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें।

संपर्क सूत्र- पोता, श्री सनि गोयल-99711 57321

चिकित्सा विद्या के लिए विद्यावती देवी का महादान

श्रीमती विद्यावती

श्रीमती विद्यावती का 83 वर्ष की आयु में परलोक गमन हुआ ।वे दिल्ली के भजनपुरा में रहती थीं। उनके पोते से फोन पर उनके बारे में चर्चा हुई। वे धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। सुबह शाम मंदिर जाती थीं। गौ सेवा में उनकी विशेष श्रद्धा थी। परिवार को उन्होंने अपने स्नेह से जोड़ कर रखा हुआ था । दान भावना इतनी गहरी कि स्वयं अपनी इच्छा से देहदान व नेत्रदान का संकल्प लिया था। 19 अप्रैल,22 को उनके दिवंगत होने पर, परिवार जनों ने उनके संकल्प का सम्मान किया । स्व. विद्यावती का पार्थिव शरीर, राम मनोहर लोहिया अस्पताल में चिकित्सा जगत की सेवा में दान किया गया। उनके नेत्र,गुरु नानक आई सेंटर की टीम ससम्मान दान में लेकर गई। परिवारजनों का अभिवादन। दधीचि परिवार दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है ।

संपर्क सूत्र- पोता,श्री नीरज गुप्ता 93136 11172