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दूसरों की दृष्टि के लिए एक प्रार्थना की तरह है नेत्र दान


डॉ. संजय तेवतिया

दुनिया में नेत्रदान से बढ़कर कोई दान नही है। अब नई तकनीक के आने से एक व्यक्ति नेत्रदान (कार्निया) करके चार लोगों की जिंदगी में रोशनी लौटा सकता है। कॉर्निया में पांच परतें होती हैं। इनमें इपीथीलियम, बोमेन मैम्बरेन, स्टोरमा, डिसिमेंट मैम्बरेन और इंडोथीलियम परत होती है। जिन मरीजों में अपर लेयर डिजीज होती है उनमें डीप एंटीरियर लैमेलर केरेटोप्लास्टी (डीएएलके) करते हैं और लोअर लेयर डिजीज में डेस्केमेट स्ट्रीपिंग एंडोथेलियल केरेटोप्लास्टी (डीएसईके) की जाती है। ऐसे में कार्निया की परत को दो हिस्से में बांट लिया जाता है। कॉर्निया की सबसे भीतरी लेयर इंडोथीलियम होती है। अगर केवल इस लेयर को किसी कारणवश क्षति पहुंचती है, तो पूरी कॉर्निया का प्रत्यारोपण किया जाता है। यह आंखों की जांच के दौरान पता चलता है कि कौन सी परत खराब है।

दृष्टि प्रभु का दिया हुआ सबसे बड़ा वरदान है, इसके बिना पूरा संसार अंधकारमय है। कोई भी व्यक्ति अपने जिंदा रहते नेत्रदान की प्रतिज्ञा कर सकता है। किसी नेत्र बैंक एवं सरकारी अस्पताल में नेत्रदान का प्रपत्र लेकर उसे भरकर नेत्र बैंक में जमा कर सकता है। अगर किसी व्यक्ति ने कभी नेत्रदान से संबधित प्रतिज्ञा नही ली है एवं प्रपत्र नही भरा है, तब भी उसके परिजन अगर चाहें तो मरणोपरान्त उसका नेत्रदान कर सकते है बशर्ते कि वह लिखित सहमति दें। जिस व्यक्ति ने नेत्रदान की प्रतिज्ञा की होती है उसकी मृत्यु के बाद उसके परिजनों की यह नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि व्यक्ति की मृत्यु के तुरंत बाद नजदीक के नेत्र बैंक को इसकी सूचना दे। नेत्रदान जीवित व्यक्ति नही कर सकता यही एक ऐसा दान है, जो मृत्योपरांत ही किया जाता है, जबकि अन्य अंगदान जीवित व्यक्ति भी कर सकता है। नेत्रदान में मृत व्यक्ति के आंखों की र्सिफ कोर्निया (आंख की पुतली) ही ली जाती है, पूरी आंख नही निकाली जाती है।

समाज में यह भ्रान्ति है कि नेत्रदान के बाद मृत व्यक्ति का चेहरा खराब हो जाता है, जबकि ऐसा कुछ भी नही है। कुछ लोग इस तरह की भ्रान्ति भी फैलाते हैं कि जिस व्यक्ति ने इस जन्म में नेत्रदान किया है, वह दूसरे जन्म में अंधा पैदा होता है, यह सब मनगढ़ंत कहानियां हैं। हर व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है, इसका व्यक्ति की उम्र, लिंग, आखों के रंग, ब्लड ग्रुप, नेत्र दृष्टि आदि से कोई लेना देना नहीं होता है एवं नेत्रदान करनेवाले एवं नेत्र प्रत्यारोपण कराने वाले व्यक्ति से इनका मिलान करने की कोई आवश्यकता नही होती है। जिन लोगों की मृत्यु संचारी रोगों जैसे एड्स, हिपेटाइटिस, टिटेनस आदि रोगों से हुई हो या जिन लोगों के कोर्निया में वायरस, वैक्टीरिया या फंगल से मृत्यु पूर्व किरेटाईटिस (कोर्निया की सूजन) रही हो, उन लोगों का कोर्निया दान में नही लिया जाता है।

किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिवार वालों को जितना जल्दी हो सके नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी करवानी चाहिए। मृत्यु के बाद जब तक नेत्रदान नही हो जाता, तब तक कुछ बातें परिवार वालों को ध्यान रखनी चाहिए। सबसे पहले मृत शारीर को अगर घर में एयरकंडीशनर है तो उसे चलाकर उस कमरे में रख देना चाहिए, मृत व्यक्ति की आंखो को तुरंत बंद कर देना चाहिए, जिससे कोर्निया सूख (ड्राई) न जाए। आंख के ऊपर रूई को पानी में भीगोकर रखना चाहिए। संभव हो सके तो आंख के ऊपर बर्फ का टुकडा भी रख सकते हैं। आंख मृत्यु के छह घन्टे के बीच निकाल लेनी चाहिए। आंखे किसी प्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ के द्वारा निकाली जा सकती है और इसकी प्रक्रिया घर या अस्पताल दोनों जगह हो सकती है। इस पूरी प्रक्रिया में दस से पंद्रह मिनट का समय लगता है।

नेत्रदान समाज सेवा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मृत्यु के बाद कोई भी पारिवारिक सदस्य नेत्र बैंक में संपर्क कर सकता है और विवरण दे सकता है। इसके लिए नेत्र बैंक की ओर से एक सामान्य प्रपत्र भरवाया जाता है, इसके लिए कोई खास दस्तावेज की आवश्यकता नही होती है। नेत्रदान के बारे में कहा जाता है कि ये इंसानों में दान किए जाने वाले अंगों में से सबसे ऊपर आता है। यानि अंगदान में ये सबसे ज्यादा की जाने वाली प्रक्रिया है। विश्वभर में दृष्टिहीन लोगों की जनसंख्या का एक चैथाई हिस्सा हमारे देश में है। लगभग दो लाख सत्तर हजार नेत्रदान कर्ताआों की भारत में प्रतिवर्ष आवश्यकता है। लगभग एक लाख नेत्र प्रत्यारोपण के लिए, जिसके लिए नेत्रदान करने वालों की संख्या वर्तमान में दानकर्ताओं के मुकाबले चार गुणा अधिक बढाने की आवश्यकता है। वर्तमान में 435 नेत्र बैंक एवं नेत्रदान केंद्र राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत कोर्निया इकट्ठा करने एवं वितरित करने में कार्यरत है।

भारतवर्ष में कोर्निया दान करने वालों की काफी कमी है, जिसकी वजह से कोर्निया की बीमारी से संबंधित अंधे लोगों को कोर्निया प्रत्यारोपण के लिए छह महीने या उससे भी अधिक समय तक इंतजार करना पड़ता है। नेत्रदान करने वाले एवं जिस मरीज को आंखे दी जा रही हैं, उन दोनों की जानकारी गुप्त रखी जाती है। आंख प्रत्यारोपित करने का काम कोर्निया रखने पर निर्भर करता है और यह काम नेत्र बैंक का होता है, लेकिन आमतौर पर चार दिन के अंदर उन आंखों का इस्तेमाल कर लिया जाता है। नेत्रदान के लिए आप किसी पर जोर-जबरदस्ती नही कर सकते। अगर आप आंखों को स्वस्थ रखेंगे तो आगे चलकर नेत्रदान करने के बाद जिस व्यक्ति को आपकी आंखे दान की जाएंगी, उसे परेशानी नही होगी। इसलिए आपको अपने और दूसरों की भलाई के लिए आंखों का ख्याल रखना चाहिए, इसके लिए आपको नियमित आंखों की जांच करवाते रहना चाहिए। आपको आंखों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सेहतमंद आहार लेना चाहिए। इसके साथ ही एक्सरसाइज भी जरूरी है। कुछ लोग जानकारी के अभाव में नेत्रदान के लिए आगे नही आते, इसलिए आपको नेत्रदान से जुडी जानकारी को ज्यादा से ज्यादा साझा करना चाहिए, जिससे कि लोगों में इसके प्रति संकोच कम हो।

कोर्निया प्रत्यारोपण की सफलता की दर कोर्नियल असामान्यता के प्रकार पर निर्भर करती है। सफलता दर पहले वर्ष में 98 फीसदी और पांच वर्षेा में 90 फीसदी है, लेकिन पहले वर्ष सफलता दर औसतन 80 से 90 फीसदी है, तो पांच साल में 70 से 75 फीसदी रहेगी। जिनकी मृत्यु आकास्मिक दुर्घटना, हार्ट अटेक या लकवे से हुई है उनका कोर्निया श्रेष्ठ, जिसकी मृत्यु उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दमा या हृदयरोग के कारण हुई है, उनका कोर्निया भी दान में लिया जा सकता है। भारत में हर साल एक करोड़ लोगों की मौत होती है, जबकि सिर्फ पैंतालिस हजार आंखें दान होती हैं।

कोर्निया प्रत्यारोपण में पारदर्शी पुतली प्रत्यारोपित करते हैं। यह खास प्रकार की माइक्रोस्कोपिक सर्जरी है, जिसमें दान की हुई आंख से पारदर्शी कोर्निया निकाल कर मरीज के अपारदर्शी कोर्निया की जगह लगा लेते हैं। भारत में कोर्निया की खराबी से अंधता के मामले ज्यादा सामने आ रहे है। किसी भी प्रकार के दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति भी अपनी आंखें दान कर सकते हैं। दुनिया का कोई भी धर्म नेत्रदान करने से मना नही करता है एवं न ही इसकी निंदा करता है। सभी प्रमुख धर्म तो अंगदान स्वीकार करते हैं। इसके अलावा वे व्यक्तिगत सदस्यों को अपना निर्णय लेने का अधिकार देते हैं। हिंदूओं में यह माना जाता है कि हम कभी नही मरते हैं, अर्थात हमारी आत्मा हमेशा जीवित रहती है। यह सिर्फ शरीर है जो बदलता रहता है। इसलिए लोगों द्वारा आंख या किसी अंगदान को बढावा दिया जाता है। अपने मरने के बाद करने वाले नेत्रदान से आप किसी ऐसे व्यक्ति को आंख दे सकते हैं, जिसकी आंख कोर्निया की बीमारी के कारण खराब हो चुकी हो। आप अपने इस काम से उस व्यक्ति को और उसके परिवार को ढेर सारी खुशियां दे सकते हैं। ऐसे लोग जो अंधे होते है, वे भी अपनी आखें दान कर सकते हैं बशर्ते कि उनकी कोर्निया खराब न हो। नेत्रदान के मामले में श्रीलंका दुनिया में सबसे आगे है। वहां आंखें दान करना जीवन और संस्कृति का हिस्सा बन चुका हैं। श्रीलंका में हर पांच में से एक व्यक्ति नेत्रदान की प्रतिज्ञा लेता हैं। विश्व की शांति की सबसे बडी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की इकाई विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोर्निया की बीमारियां, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बाद होने वाली दृष्टि हानि और अंधापन के प्रमुख कारणों से एक है। प्रत्येक वर्ष विश्व के विभिन्न देशों में नेत्रदान की महत्ता को समझते हुए दस जून को अंतरराष्ट्रीय दृष्टिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके जरिए लोगों में नेत्रदान करने की जागरूकता फैलाई जाती है। विश्व दृष्टिदान दिवस का उद्देश्य नेत्रदान के महत्ता के बारे में व्यापक पैमाने पर जन-जागरूकता पैदा करना है तथा लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है क्योंकि विकासशील देशों में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक दृष्टिहीनता है।