देह्दानियों का 32 वाँ उत्सव : फरीदाबाद-22 अप्रैल 2018
जिन से मिल के ज़िन्दगी से इश्क़ हो जाए, आपने न देखे हों, पर होते तो हैं
फरीदाबाद क्षेत्र में अपने किसी प्रियजन का देह-अंग दान कर चुके परिवारों का सम्मान करने के लिए डी ए वी सेंटेनरी कॉलेज सभागार में रविवार 22 अप्रैल 2018 को प्रातः दस से एक बजे तक ‘देह्दानियों का 32 वाँ उत्सव’ आयोजित किया गया | डी ए वी सेंटेनरी कॉलेज और ई एस आई मेडिकल कॉलेज इस उत्सव के दधीचि देहदान समिति के सह-संयोजक थे | हरियाणा सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री श्री विपुल गोयल इसके मुख्य अतिथि थे | आशीर्वचन देने के लिए महामंडलेश्वर श्री 1008 स्वामी अनुभूतानन्द गिरी जी महाराज, परम शक्तिपीठ, दिल्ली से पधारे थे | कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के संरक्षक और विश्व हिन्दू परिषद् के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष माननीय आलोक कुमार जी ने की | स्वागताध्यक्ष डॉ. सतीश आहूजा, प्रधानाचार्य, डी ए वी सेंटेनरी कॉलेज थे | विषय प्रस्तुति के लिए डॉ. असीम दास, डीन, ई एस आई मेडिकल कॉलेज ने समय दिया | मंच संचालन श्री बी. आर. सिंगला और श्री महेश पन्त ने किया | विशिष्ट अतिथियों ने अपने प्रियजन का देह-अंग दान कर चुके दानी परिवारों को सम्मान चिन्ह देकर पूरे समाज और समिति की ओर से आभार प्रकट किया | इनमें देह्दानी स्व. श्री ईश्वर चन्द्र भाटिया, श्री लक्ष्मण दास भाटिया, श्रीमती छन्नी बाई, श्री अर्जुन देव डावर, श्री यश पाल मोंगिया और नेत्रदानी स्व. श्री किशन चन्द गुप्ता, श्रीमती कौशल्या देवी बंसल, श्री मुरारी लाल खंडेलवाल, श्री भीम सैन सूरी, श्री रविन्द्र जैन, श्री ब्रज लाल खेड़ा, श्री शान्ति स्वरुप क्वात्रा जी के परिवारों का सम्मान अंगवस्त्र और सम्मान चिन्ह देकर किया गया |
कार्यक्रम में लगभग 500 लोग आए जिनमें विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों के पदाधिकारी और शहर के प्रतिष्ठित जन सम्मिलित हुए जैसे सर्वश्री चमन लाल गुप्ता, प्रेम चन्द गोयल, महेंद्र नागपाल, प्रह्लाद गर्ग, कालिदास गर्ग, प्रवीण गर्ग, डी सी गर्ग, नरेश सोरैन, विजय जडवानी, भीम सैन श्रीधर, जीतेन्द्र तायल, विजय रेखी, हरीश चन्द्र शर्मा आज़ाद, राजेन्द्र सिंह, दीपक ठुकराल, मोहन लाल अरोड़ा, ओम प्रकाश छाबड़ा, कुलदीप भाटिया, रमेश चन्द गुप्ता, जवाहरलाल भाटिया, सत्य प्रकाश अरोड़ा, दर्शन दयाल शर्मा, दिनेश गर्ग, ज्ञान चन्द गुप्ता, अजित सिंह पटवा, एम एल जैन, ज्ञान चन्द्र भडाना, बलराज गुप्ता, पी एल दुआ, सुबोध नागपाल, विवेकानंद जी, वी.के.बंसल, देवेन्द्र शर्मा, पं. जयदेव शर्मा एवं सन्यासिनी पुष्पा रानी आदि |
विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन और डॉ. इन्दू गुप्ता द्वारा ‘जीवेम शरदः शतम’ के मंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ | मंच संचालन करते हुए श्री बी आर सिंगला जी ने सभी विशिष्ट अतिथियों का संक्षिप्त परिचय कराया | अतिथियों का अंगवस्त्र, गुलाब और स्मृति चिन्ह से समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा स्वागत सम्मान किया गया | अपने स्वागत सम्बोधन में डॉ. सतीश आहूजा ने कहा कि महामंडलेश्वर स्वामी अनुभूतानन्द जी जैसे संतशिरोमणि के कॉलेज में पधारने से प्रांगण पवित्र हों गया | उन्होंने सभी अतिथियों, दानी परिवारों, और संकल्पकर्ताओं का सभागार में स्वागत किया| उन्होंने कहा:
“मेरा घर तो कभी भी इतना सुन्दर न था, यह शायद फल आपके क़दमों का हो;
जिनसे मिलके ज़िन्दगी से इश्क़ हो जाए, आपने न देखे हों, पर होते तो हैं|”
मुख्य अतिथि श्री विपुल गोयल ने कहा कि विदेशों की तुलना में हम देह-अंग दान के क्षेत्र में अभी बहुत पीछे हैं | इसका मुख्य कारण जागृति का न होना है | लोगों को इस दान को करने का तरीका नहीं मालूम | संस्था की वजह से लोग जागरूक हो रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा लोग इसके साथ जुड़ रहे हैं जो बहुत सराहनीय है| युवा पीढ़ी को भी इसके लिए आगे आना होगा | मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता|
सरदार सुरजीत सिंह ने एक सराय से हमारे अनमोल शरीर की समानता करते हुए इसे स्वस्थ, स्वच्छ रखकर परोपकार करने के लिए प्रेरित किया | उन्होंने देहदान पर अपनी कविता से इसके लिए कहा:
“अनमोल है मेरा यह शरीर, इसे आग में मत जला देना;
मेरे मरने के बाद इसे, मैडिकल कॉलेज पहुंचा देना:
मर जाऊँगा जब मैं, ख़त्म हो जाएँगी मेरी सासें;
रोशन होंगी इस शरीर से, मैडिकल स्टूडेंट्स की क्लासें |”
डॉ. असीम दास ने बताया कि कॉलेज के लिए देहदान का क्या महत्व है | देह को केमिकल डालकर उसे कई माह तक सुरक्षित रखा जाता है और यह छात्रों को मानव शरीर संरचना पढ़ाने के लिए काम आती हैं| इसके लिए पहले लावारिस लाशें ही मिलती थीं जो कि बहुत कम होती थीं | पर अब दधीचि देहदान समिति के सहयोग से सहायता मिली है | शरीर के कई अंग प्रत्यारोपित किये जा सकते हैं, पर ज़रुरत के अनुपात में इनकी उपलब्धता बहुत कम है | कॉलेज के एनाटोमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. नेने और उनकी टीम देह ससम्मान प्राप्त करते हैं और छात्रों को भी देह का सम्मान करना सिखाते हैं |
डॉ. इन्दू गुप्ता ने भी कविता के रूप में देहदान के महत्व को बताया| उन्होंने एक अंगदान प्राप्तकर्ता के रूप में अंग दानकर्ता के लिए भाव कविता के माध्यम से प्रस्तुत किये:
“तुम्हारा एक अंश अब मेरे भीतर जीता है, अजनबी हुआ करते थे हम, अब अपना एक रिश्ता है;
जो खून का था नहीं, अब खून का रिश्ता है, अजनबी ही सही, पर अब दधीचि कुटुंब हैं हम सब:
ईश्वर प्रदत्त अंग मैंने दान करने की ठानी है, जीता है जो मेरे भीतर,
मेरे बाद भी जी सके, यह है मेरा सपना|”
अपने पिता स्व. ईश्वर चन्द्र भाटिया जी का देहदान कर चुके श्री विकास भाटिया ने उस समय का अपना अनुभव साझा किया | उन्होंने बताया कि पापा ने जीवनकाल में ही देहदान का संकल्प लेकर परिवार को इसके लिए तैयार कर लिया था | 75 वर्ष की आयु में उन्होंने परलोक गमन किया और परिवार ने उनके संकल्प को एम्स में देहदान कर पूरा किया | युवा शक्ति को उन्होंने देह-अंग दान के इस पावन अभियान से जुड़ने की अपील की |
उत्सव की अध्यक्षता कर रहे आलोक कुमार जी के बारे में मंच संचालक महेश पन्त जी ने बताया की सरल सौम्य व्यक्तित्व के धनी आलोक जी ने स्वस्थ, सबल, निरामय भारत का सपना देखा था | इसी विचार से उन्होंने दधीचि देहदान समिति की नीवं रखी | उन्होंने अपने माँ-बाबा का नेत्र-देह दान समाज कल्याण के लिए कराया | समिति का कोई अपना कार्यालय नहीं है और आज भी सभी कार्यकर्ता उनके ऑफिस और चैम्बर से ही सारा काम करते हैं |
श्री आलोक कुमार जी ने अपने 20 वर्षों में देह-अंग दान कराते हुए जो अद्भुत अनुभव हुए उन्हें साझा किया | श्रीमती सम्पूर्ण जीत कौर ने अपने दामाद के विरोध के बावजूद अपने पति का देहदान उनके संकल्प के अनुसार कराया | श्री सूरज गुप्ता ने अपने 7 दिन के शिशु का देहदान एम्स में रिसर्च के लिए किया जिससे डॉक्टर अध्ययन कर भविष्य में ऐसी बिमारी से जूझ रहे किसी और शिशु की जान बचा सकें | राष्ट्रपति भवन में हुए ‘देह्दानियों के उत्सव’ में महामहिम राम नाथ कोविंद जी ने श्री सूरज गुप्ता को मंच पर अपने साथ बैठाया | जब बाढ़ में सहायता कार्य करते हुए उन्होंने (आलोक जी ने) अपने संक्रमित नेत्रों के उपचार में देर की तो पिताजी ने समझाया कि देह दान का संकल्प करके उनका दायित्व है कि वे देह के रखरखाव में कोई कमी न रखें क्योंकि वो अब इस देह के ट्रस्टी मात्र हैं |
महामंडलेश्वर स्वामी अनुभूतानन्द जी अपने आशीर्वचन में कहा कि हम सब भारत भूमि के सुपुत्र हैं और मानवता हमारा धर्म है | इस जन्म का कोई परिचयपत्र हमारी पहचान बता सकता है पर क्या किसी के पास अपने पिछले जन्म का परिचय या पहचान है ? अगले जन्म में भी हमारी नई पहचान होगी इस जन्म के परिचय से अलग| आत्मा अजर अमर है पर शरीर नाशवान है | इसे जलाकर कुछ राख और अस्थियाँ बचती हैं जो गंगा में प्रवाहित कर दी जाती हैं | हमारे अंगों का कार्य निश्चित है जो यंत्रवत अपना काम करते रहते हैं | बड़े भाग्य मानुष तन पावा- अतः इसे व्यर्थ न कर, म्रत्यु के बाद भी मानव जाति के कल्याण के लिए देह-अंग दान करें |
समिति के फरीदाबाद के संयोजक राजीव गोयल ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सभी दानी परिवारों, दान के संकल्पकर्ताओं, आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों, समाज के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों. डीएवी कॉलेज प्रबंधकों, ईएसआई मैडिकल कॉलेज के सहयोगियों का आभार व्यक्त किया | कार्यक्रम के सफल आयोजन में सहयोग के लिए समिति के सहयोगियों का आभार दिया जिसमें दिल्ली से आये सर्वश्री योगेन्द्र, महेश पन्त, डॉ कीर्तीवर्धन, विनोद जी व उनकी टीम, अमित सिंह, संचित, हरेन्द्र, अरविन्द आदि और फरीदाबाद से सर्वश्री नरेंद्र बंसल, विकास भाटिया, गुलशन भाटिया, सुखवीर वशिष्ठ, सुरेन्द्र गुप्ता, सुरजीत सिंह, दिनेश बरेजा, सौरव भाटिया, कुलविंदर सिंह, आशीष, उमंग, डॉ. सत्यदेव, डॉ. इन्दू गुप्ता, श्रीमती सुनीता बंसल, श्रीमती संगीता बंसल, श्रीमती सरोज, श्रीमती अर्चना गोयल, श्रीमती नेहा, वृत्ति भाटिया, अपर्णा, नमन आदि, जिन्होंने दिन रात इसके लिए मेहनतकर इसे सफल बनाया है | कार्यक्रम में भरे हुए 37 फॉर्म प्राप्त हुए | उत्सव का समापन राष्ट्रगान से हुआ |