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प्रकृति के पास सेहत का राज

डॉ. नवदीप जोशी
योग गुरु और नवयोग के संस्थापक
एसएफसी मेंबर, सेंट्रल कॉंउंसिल फॉर रिसर्च इन योगा,
मिनिस्ट्री ऑफ आयुष (भारत सरकार)

प्रकृति के पास स्वस्थ एवं आनंद से रहने के लिए ढेर सारे सरल नियम हैं। उनका पालन करना ऐसे ही है, जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी धुन में प्रसन्न रहता है, प्रकृति के साथ, माता पिता के साथ या किसी भी दूसरे प्राणी के साथ उसका व्यवहार समान रहता है। इसीलिए वह बीमार नही होता। रोता-बिलखता, खाता-पीता, खेलता-कूदता, हंसता-गाता, वह मस्त रहता है|

धीरे-धीरे वह बच्चा बड़ होता है और हम उसे कठिन जीवन या आधुनिक जीवन शैली से परिचय कराते हैं, तो धीरे-धीरे वह तनाव ग्रस्त हो जाता है। हताशा में पहुंच जाता है और आखिरकार वह रोगी हो जाता है। अतः स्वस्थ बने रहने के लिए सरल जीवन की जरूरत होती है।

प्राकृतिक जीवन का अर्थ ही है कि जिन पांच तत्वों- आकाश, वायु, अग्नि, जल और मिटटी- से यह शरीर बना है, उससे हमारा गहरा रिश्ता हो। साथ ही एक छठा तत्व-राम नाम- के साथ भी हमारा आत्मीय रिश्ता हो, जिससे हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती रहे। यही सरल जीवन की निशानी है।

कुछ लोग इसे जीवन विज्ञान, जीने की कला एवं दीर्घ आयु युक्त स्वस्थ जीवन भी कहते हैं। कोई भी जीव जंतु प्रकृति के द्वारा बनाए गए नियमों को अपनाकर कभी भी अस्वस्थ नहीं होता | जंगली पशु पक्षियों का आकर्षक, मजबूत शरीर प्रकृति का आनंद लेने से होता है। वे धरती पर सोते हैं। प्राकृतिक जल से प्यास बुझाते हैं। खुले आकाश में रहते हैं और सूर्य के प्रकाश और शुद्ध वायु का सेवन करते हैं | भोजन में फल, फूल, पत्ते और घास को बड़े चाव से खाते हैं। लेकिन मनुष्य ने तो मिट्टी छोड़ कर सिमेंट के फर्श बना लिए। प्राकृतिक जल को छोड़कर आर.ओ. के पानी का उपयोग करना शुरु कर दिया, जिसमें आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम और सोडियम जैसे तत्व बाहर चले जाते हैं। ये सारे तत्व सेहत के लिए काफी जरूरी हैं। इन जरूरी तत्वों के छन जाने के बाद पानी सबसे पहले तो पाचन तंत्र खराब करता है। फिर त्वचा की बीमारियां, थकान, अनिद्रा जैसी तकलीफें दिखने लगती हैं। यहां तक कि शरीर की अन्य बिमारियों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है | शहरों में पर्यावरण के प्रदूषित होने से शुद्ध वायु तो अब केवल गांवों में ही संभव है।

घर, कार एवं कार्यालयों में कैद हमलोग, न आकाश को देख पाते हैं और न ही सूर्य के प्रकाश से हमारा सामना होता है।

हम अपनी संस्कृति एवं परंपराओं पर आधारित भोजन को छोड़कर पश्चिमी फास्टफूड के आदि हो चुके हैं।

प्राकृतिक भोजन जैसे मौसमी फल ,सब्जियों, अंकुरित अनाजों और अखरोट, बादाम जैसे सूखे फलों को तो हम भूल ही गए।

आजकल अधिकांश व्यक्ति सरदर्द, बुखार, पेट दर्द, जोड़ों के दर्द होने पर दवाईयों का प्रयोग करता है, जिससे शरीर एवं रक्त दूषित हो जाता है। जबकि प्रकृति में मौजूद पंचतत्व आकाश, वायु ,अग्नि ,जल एवं मिट्टी से ही स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। मौसम के अनुसार, सब्जियां एवं फलों में औषधि युक्त गुण निहित होते हैं, उनका सेवन भी जरूरी है।

प्राकृतिक जीवन, प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान का विस्तृत रूप है। प्राकृतिक चिकित्सा से रोग भी दूर होते हैं| जबकि प्राकृतिक जीवन जीनेवाले व्यक्ति की जिंदगी में रोग जैसा शब्द नहीं होता है।

प्रकृति के अद्भुत विज्ञान के प्रति हमारी श्रद्धा एवं विश्वास ही, हमें प्राकृतिक जीवन जीना सिखाता है। प्राकृतिक चिकित्सा की अनेक विधियां प्रकृति ने वरदान के रूप में हमें दी हैं। प्राकृतिक जीवन हमें प्रकृति के साथ संबंध जोड़े रखना सिखाता रहा है ।

प्राकृतिक जीवन का आनंद लेने वाला व्यक्ति सरल व सच्चे ढंग से रहता है और सुखद जीवन जीता है।

तमोगुण युक्त व्यक्ति को समझाना बहुत कठिन है। उनके हिस्से में ईर्ष्या-द्वेष, रोग, पाप, भय, असंतुष्टि, अशांति युक्त जीवन ही आता है। जबकि प्राकृतिक जीवन जीने वाला व्यक्ति, साहसी, शील, नैतिकता, स्वाभिमानी, व्यावहारिक, प्रशंसनीय, धैर्यवान, निडर, सहज गुणों से युक्त होता है। यह एक ऐसा स्वर्गीय आनंद है, जो हमें इस धरती पर ही मिलता रहता है।

 ईश्वर हमें प्रकृति की गोद में स्वस्थ पैदा करता है, लेकिन ईश्वर द्वारा बनाए गए प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध चलकर मनुष्य ने अपने शरीर को रोगों का पुंज बना लिया है। अमेरिका के लेखक, राजनैतिक विचारक एवं वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा है, "रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना, मनुष्य को स्वस्थ, अमीर और बुद्धिमान बनाता है।"

नोबल पुरुस्कार विजेता वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का भी मानना था कि बिना स्वास्थ्य के जीवन, जीवन नहीं होता हैं। आचार्य चाणक्य का कथन है, कि जब हम शरीर एवं मन से स्वथ्य होते हैं तो व्यक्ति स्वर्ग को धरती में जीता है| संतोष सबसे बड़ी दौलत है और स्वस्थ शरीर सर्वश्रेष्ठ उपहार।

महात्मा गौतम बुद्ध के भी विचार हैं कि अपने शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है, अन्यथा हम अपने दिमाग को मजबूत और स्पष्ट नहीं रख पाएंगे।

दलाई लामा कहते हैं, "अच्छा स्वास्थ्य आतंरिक शक्ति देता है। इससे मन शांत रहता है और आत्मविश्वाश में वृद्धि होती है।"

सभी विचारकों ने जीवन जीने की कला एवं स्वास्थ्य को एक ही माना है। यदि हम स्वस्थ हैं तो फिर जीवन जीने की कला का ज्ञान हमें है |

डॉ. के. एल. शर्मा कहते हैं, "प्राकृतिक चिकित्सा उस जीवन प्रणाली का दूसरा नाम है जो हमें डॉक्टर एवं वैद्यों की गुलामी से सदा के लिए मुक्त कर देती है”| कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा या अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा। सच तो यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा अन्य चिकित्सा पद्धति की तरह नही है, जिसमें हम अपने को दूसरे के हवाले कर देते हैं | प्राकृतिक चिकित्सा में प्रकृति के नियमों को पालन करने की जिम्मेदारी हमें खुद उठानी पड़ती है।