अपनी समिति को मानवता के लिए, देहदान और अंगदान पर जनजागरण का काम करते हुए 25 वर्ष होने जा रहे हैं। इस विषय का प्रचार- प्रसार और जन जागरण, सभी कार्यकर्ता पारंपरिक तरीकों से करते रहे हैं और कई बार कुछ-कुछ नया भी इनमें जोड़ते रहते हैं। कई तरह की धार्मिक मान्यताएं और इस विषय का अपूर्ण ज्ञान, जनमानस को इस दान की ओर बढ़ने में बाधा उत्पन्न करते हैं। इस अवरोध से पार पाने के लिए समिति समय-समय पर समाज के विभिन्न धर्मों के वरिष्ठ गुरुजनों से इस विषय पर गोष्ठियां, सत्संग और चर्चा भी आयोजित करती है। इन आयोजनों में दधीचि का जीवन चरित्र, अस्थिदान का उद्देश्य, इन सबका धार्मिक महत्व और महाराजा शिवि की कथा के इर्द-गिर्द देहदान और अंगदान की विषयवस्तु घूमती है।
अभी गत माह 23 नवंबर,21 को श्रद्धेय श्री अजय भाई द्वारा देहदानी स्व. मांगेराम गर्ग जी की स्मृति में, उनकी जयंती पर नई दिल्ली में नव दधीचियों की कथा भी कही गई। वे कुछ ऐसे नव दधीचि थे, जिन्होंने मानवता के सेवार्थ अंगदान और देहदान किया। श्री सूरज गुप्ता और श्रीमती आंचल गुप्ता द्वारा अपने 7 दिन के बालक की मृत्यु के बाद उसके अंगों के दान का निर्णय लेना स्व. जयपाल भंडारी के परिवार द्वारा उनके अस्थिदान कराना आदि ऐसे प्रेरक प्रसंग हैं, जिनको याद कर उन सबके प्रति बड़ी श्रद्धा उमड़ती है।
नव दधीचियों के ये कथा उदाहरण समाज में अधिक प्रभाव छोड़ते हैं। इससे निश्चित तौर पर जन जागरण भी होता है और लोगों को प्रेरणा भी मिलती है।
जनजागरण के इस माध्यम से अधिक लोगों को जोड़ने की दृष्टि से भारत के अलग-अलग शहरों में इसी विषय पर कार्य करने वाली कई संस्थाओं से भी आग्रह किया गया कि वे अपने क्षेत्र में इस कथा का ऑन लाईन लाइव प्रसारण दिखाएं।
इंदौर, मुंबई और अहमदाबाद में कथा को सुना और देखा भी गया। वैसे तो इस ई-पत्रिका के प्रत्येक अंक में, जिनका भी देहदान, अंगदान और नेत्रदान होता है, उनका उल्लेख विस्तार से होता है, परन्तु रसमय कथा के माध्यम से उदाहरण स्वरूप देहदान -अंगदान के विषय को प्रस्तुत करना अपने आप में एक नया और अनुठा प्रयोग है।
नूतन वर्ष की शुभकामनाओं के साथ...
आपका
हर्ष मल्होत्रा