वेबीनार- "अस्थि दान"
दधीचि देह्दान समिति द्वारा “अस्थि दान” पर एक वेबिनार का आयोजन 26 अगस्त 2020 को शाम 7 बजे से किया गया। समिति की उपाध्यक्षा मंजु प्रभा जी द्वारा “जीवेम शरद: शतम” के मंत्रोच्चार से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। समिति के उपाध्य्क्ष डॉ. विशाल द्वारा कुशल मंच संचालन किया गया। समिति के महामंत्री कमल खुराना ने संक्षेप में समिति के कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि समिति पिछ्ले 23 वर्षों से लोगों में देह-अंग दान की जागरूकता फैलाने, लोगों से जीते जी इसके लिये संकल्प कराने और प्रभु का बुलावा आने पर इस संकल्प को पूरा कराने के लिये समर्पित रूप से कार्य कर रही है। समिति के कार्यकर्ता दानी परिवार के साथ दानी की श्रद्धांजलि सभा में भी सम्मिलित होते हैं। पिछले वर्ष 2019 में हम लोगों ने 293 कार्यक्रमों में देह-अंग दान जागरूकता का काम किया। समिति दो वर्ष में एक बार क्रमवार दधीचि यात्रा और दधीचि कथा का भी आयोजन करती है। समिति द्विमासिक ई-जर्नल भी निकालती है जिसे प्राप्त करने के लिये नि:शुल्क रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
समिति के संस्थापक मार्गदर्शक एव्ं विश्व हिंदु परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार जी ने अपने स्वागत सम्बोधन में बताया कि आज के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री यशवन्त देशमुख, एम डी- सी वोटर, ने अपने माता व पिता जी का देह्दान किया था इसलिये उन्हें नव दधीचि मानते हैं। हम दधीचि यात्रा में मिश्रिख जाते हैं, वहां महर्षि दधीचि की बड़ी मूर्ति है और सामने इंद्र की छोटी मूर्ति है क्योंकि इंद्र याचक बन कर आए थे। इंद्र ने बहुत संकोच से कहा कि अगर आपकी हड्डियां मिल जायें तो उंनसे वज्र बनाकर दैत्य वृत्रासुर का वध किया जा सकता है। सभी तीर्थों के जल से स्नान कर महर्षि ने पद्मासन में बैठ कर देह त्याग कर दिया और उनकी हड्डियों से वज्र बनाकार असुरों पर विजय पायी। हमने देह-अंग दान का संकल्प लिया है पर यह जानकर और भी प्रसन्न हैं कि हमारी हड्डियों का भी दान हो सकता है। हड्डियों का दान कैसे होता है, इसमें क्या सावधानियां बरतनी हैं आदि के बारे में जानने के लिये हम उत्सुक हैं। हम स्वस्थ सबल भारत के लिये “सर्वे संतु निरामया:” के भाव से कार्य करते हैं ताकि मरने के बाद भी शरीर मानवता के लिये काम आ सके। जब हमने नेत्र दान का कार्य शुरु किया तो उन्होंने अपने एक विधायक साथी से नेत्र दान का संकल्प लेने को कहा, मगर उन्होंने मना कर दिया कि अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे। फिर जब देह्दान भी शुरु किया तो फिर से उन्हें कहा कि देह दान कर दो तो अगला जन्म ही नहीं होगा, सीधे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुल जायेगा। उन्होंने तो बात नहीं मानी पर आज भी दिल्ली में 12000 लोग देह-अंग दान का संकल्प लिये हुये हैं। प्रियजन की मृत्यु होने पर पह्ला फोन हमें दान कराने के लिए करते हैं। अगर गाड़ी पहुंचने में थोडा समय लग जाता है तो बार बार फोन कर के पूछते हैं कि कोई गड़बड़ तो नहीं है क्योंकि देह छात्रों की पढाई के लिये जानी है। एक सौ तीस करोड की आबादी वाले शहर में 12000 संकल्पकर्ता बहुत कम हैं और अभी हमें बहुत कार्य करना है।
आज के विश्वकर्मा, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भारत के पह्ले अस्थि कोश (बोन बैंक) के इंचार्ज डॉ. राजेश मल्होत्रा ने बोन डोनेशन और बोन बैंक के बारे में विस्तार से बताया। कोरोना काल में हमने कई तरह से कीमत चुकाई है, जैसे कि अंग दान बंद होने के कारण इसमें बहुत बड़ी गिरावट आई है। भारत विश्व का पह्ला अंग प्रत्यारोपण करने वाला देश है। गणपति के सिर का प्रत्यारोपण करके भगवान ने भी यही संदेश दिया कि यह जीवन देने वाला कार्य है। यह कर्ण का देश है जो अपने शरीर का हिस्सा होते हुये भी कवच-कुंडल दान करके महादानी कहलाए। आलोक जी ने महर्षि दधीचि का बिल्कुल सटीक उदाहरण देकर बताया है कि दान करने की परम्परा सदियों से हमारे देश में रही है। इसी प्रकार हड्डियों का दान 15 से 65-70 वर्ष तक की आयु के व्यक्ति द्वारा मरणोपरांत किया जा सकता है। आयु ज़्यादा होने पर हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं इसलिये दान नहीं लिया जाता। फिर जैसे रक्त को टैस्ट करते हैं किसी बिमारी के लिये, उसी प्रकार हड्डियों को भी टैस्ट किया जाता है कि पीलिया, एड्स, कैंसर, ड्रग सेवन, लम्बे समय तक स्टीरॉय्ड लेना, कोई मानसिक बिमारी, यौन रोग, आदि जैसा कोई संक्रामक रोग तो नहीं है। अगर इनमें से कोई रोग है तो अस्थि दान नहीं हो सकता। हड्डियां ऑपरेशन थियेटर में निकाली जाती हैं, पर अगर शवगृह साफ सुथरा हो तो वहां भी निकाली जा सकती हैं। हड्डियां स्टर्लाइज़ करके स्टोर की जाती हैं जो 5 वर्षों तक -80 डिग्री के तापमान पर बोन बैंक में रखी जा सकती हैं। अस्थि दान सामान्य तापमान पर 12 घंटे तक, और अगर रेफ्रिजरेटर में 4 डिग्री तापमान पर मृत देह रखी हो तो 24 घंटे में निकाली जा सकती हैं। सिर्फ पैरों की हड्डियां ही ली जाती हैं और फिर कृत्रिम लकड़ी की हड्डियां लगाकर टांके लगा दिये जाते हैं जिससे टांगों में विकृति नज़र नहीं आती। एक दानी के शरीर में 206 हड्डियों मे से 10 हड्डियां तक ली जा सकती हैं जिनसे बीस से बाईस तक लोगों के ईलाज में मदद मिल सकती है। ब्रेन डैड व्यक्ति से भी हड्डियां ली जा सकती हैं। उदाहरणों से उन्होंने दिखाया कि कैसे अस्थि प्रत्यरोपण के बाद व्यक्ति बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है और प्रत्यारोपित हड्डियां शरीर का हिस्सा बन जाती हैं। सभी धर्म मानवता की सेवा के लिये अंग दान की अनुमति देते हैं। सख्त कानूनी प्रावधानों के कारण अस्थियां या कोई भी अंग बेचा नहीं जाता है। अस्थि दान के बारे में लोगों में जागरूकता नहीं है। विश्व में स्पेन में सबसे ज़्यादा 10 लाख लोगों में से 35 लोग अंग दान करते हैं, पर भारत में यह आंकड़ा 0.08 ही है जिसे बढ़ाने की ज़रूरत है। अंग दान के लिये परिवार की सहमति ज़रूरी है अन्यथा अंग दान नहीं हो सकता, भले ही मृत व्यक्ति ने देह-अंग दान का संकल्प ले रखा हो। शरीर मृत होता है पर आत्मा अमर है। मृत्यु होने पर आत्मा शरीर छोड़ कर नये शरीर में चली जाती है और शरीर यहीं रह जाता है। अगर यह शरीर भी दान कर मानवता का कुछ भला कर सकें तो जीवन सार्थक हो जायेगा।
परम श्रद्धेय राष्ट्रऋषि नाना जी देशमुख के धेवते और देह्दानी यादव काका के सुपुत्र श्री यशवंत देशमुख जी, प्रबंध निदेशक-सी वोटर, ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में बताया कि उनकी कम्पनी देह-अंग दान पर एक देशव्यापी सर्वे कर रही है। अभी सर्वे सिर्फ शहरी इलाकों तक ही सीमित है और शुरुआती नतीज़े बहुत उत्साहित करने वाले नहीं हैं। सिर्फ 24 फीसदी लोगों ने ही कहा है कि उन्हें देह-अंग दान के बारे में कोई जानकारी है, अर्थात तीन चौथाई से ज़्यादा लोगों को इस विषय में कोई जानकारी ही नहीं है। केवल 2.6% लोगों ने कहा कि उन्होनें देह-अंग दान का कोई संकल्प लिया है। पर अच्छी बात यह है कि एक तिहाई लोगों ने यह कहा कि अगर उन्हें कुछ सहायता मिले तो वो इसके लिये संकल्प ले सकते हैं, अर्थात देश का हर तीसरा व्यक्ति ऐसा करना चाह्ता है। जो लोग संकल्प नहीं लेना चाहते उनमें से हर दसवें व्यक्ति ने कहा कि यह उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ है। लगभग 5% लोगों ने यह बताया है कि वो किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसे अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। यानि भारत की 135 करोड, अर्थात लगभग 25 करोड़ परिवारों में से 2 करोड़ लोग ऐसे हैं जो जानते हैं कि उनके किसी जानकार को किसी अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता है। यह बहुत बड़ी संख्या है। लगभग 2 फीसदी लोगों ने यह माना कि उनका जानकार अंग प्रत्यारोपण के इंतज़ार में ही गोलोक गमन कर गया क्योंकि दान ही नहीं मिला। अगर उन्हें अंग दान मिल गया होता तो वो शायद बच जाते। ऐसे सुनने में 2 या 5 फीसदी बहुत कम लगता है पर जब भारत की जनसंख्या का 2 फीसदी अर्थात 2.5 करोड देखें तो समझ आता है कि ज़रूरत कितनी ज़्यादा है। अब आज सुनने के बाद हम एक आयाम अपने सर्वे में अस्थि दान के बारे में और जोडेंगे जो कि बहुत ज़्यादा लोग नहीं जानते होंगे कि एक व्यक्ति द्वारा दान की गई 10 हड्डियों से 20 से ज़्यादा लोगों को फायदा हो सकता है। बोन डोनेशन पर आज डॉ. राजेश से इतनी सारी जानकारी मिली है कि हम स्वयं तो इसके लिये संकल्प लेंगे ही पर साथ ही औरों को भी इसके लिये प्रेरित करेंगे।
अंत में समिति के उपाध्यक्ष सुधीर जी द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सभा का समापन हुआ।