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मेरी कहानी मेरी ज़ुबानी : अंग दान महादान

ममता गुप्ता

मैं कोई प्रसिद्ध व्यक्ति नहीं जो अपनी कहानी लिखू पर शायद मेरी कहानी से कुछ लोगों को साहस ओर प्रेरणा मिले।

मेरे पास वो सब था जो एक सामान्य परिवार की लड़की की शादी के बाद चाह होती है। अच्छा पति, पति की अच्छी नौकरी, एक प्यारा सा बेटा एक संतुष्ट जीवन। शादी के 13-14 साल बहुत अच्छे बीते बेटा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था मैं भी अपने खाली समय में अपनऐ आर्ट एंड क्राफ्ट के शौक को पूरा कर रही थी एक अच्छा सुखी परिवार था हमारा। पर सब अच्छा ही अच्छा सिर्फ कहानियों में ही होता है असल जिंदगी में नहीं।

मेरी जिंदगी में भी एक तुफान ने दस्तक दी। मेरे पति की तबीयत खराब रहने लगी। कभी बुखार कभी पैरों में सुजन और कभी पेट दर्द। डाक्टर को दिखाते रहे दवाई लेते रहे फिर पता चला की मेरे पति को लिवर सिरोसिस हो गया है।दिन व दिन शरीर गिरता चला गया।लोग सुन कर हैरान हो जाते थे कि बिना कोई एब लिवर कैसे खराब हो सकता है।नीम हकीम डाक्टर पंडित क्या नहीं किया। जो मिलत एक नुस्खा बता जाता।
जिंदगी में सुकून खत्म हो गया था। दिन व दिन चिंता बढ़ती जा रही थी। मेरे पति की तबीयत आऐ दिन खराब होने लगी। डॉ राजेश मैक्स अस्पताल से इनका इलाज चल रहा था। सितंबर 2017 से तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी।आये दिन पेट से पानी निकालना पड़ता था।बार बार अस्पताल में भर्ती होना बडे़ बडे़ बिल उसके बाद भी स्वस्थ में कोई लाभ नहीं।हमारी मेडिकल पोलिसी उसी साल एजेंट कि गलत सलाह ओर लालच की वजह से निष्क्रिय हो गई थी। डाक्टर ने बोला कि अब लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प है। उन्होंने मुझे बजट के हिसाब से दो चार अस्पतालो के ओर डाक्टर के नाम बताएं ओर समझाया की ऐसा नही कि बड़े अस्पताल या नामी डाक्टर ही इलाज अच्छा करते हैं बल्कि नऐ डाक्टर ज्यादा अच्छे से देखभाल करते हैं क्योंकि उनके लिए हर एक केस एक चुनौती होता है।

समझ नहीं आ रहा था 20-25 लाख का खर्च ओर डोनर का इंतजाम कैसे होगा।सारे निर्णय मुझे ही लेने थे मेरे पति निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे वो जिंदगी से निराश हो चुके थे। पूरा परिवार सदमे में था। ट्रांसप्लांट को लेकर सबके मन में डर था। भगवान भी तभी साथ देते हैं जब आप अपना कर्म करते हो। मैंने ट्रांसप्लांट करवाने का निर्णय लिया। हम दिल्ली के एक नामी अस्पताल में गऐ पर वहां जाकर मेरी बैचैनी और बढ़ गई।जब मैंने बताया कि डोनर मैं बनूंगी मुझे कई सालों से थाइराइड कि समस्या है। उन्होंने बताया कि डोनर के जीवन को भी खतरा होता है तो मैं डर गई।एक की जिंदगी तो पहले से ही खतरें में थी अगर मुझे भी कुछ हो गया तो मेरे बेटे का क्या होगा।उस समय मेरा बेटा दसवीं कक्षा में था।

फिर मैं डाक्टर अभिदीप चौधरी से मिली बी एल कपूर होस्पीटल दिल्ली। मेरा और मेरे पति का ब्लड ग्रुप मैच हो गया था। डाक्टर साहब ने मेरी सारी शांकाओ को दूर किया उनसे मिलकर मुझे विश्वास हो गया कि अब सब अच्छा होगा। मुझे आज भी वो दिन याद है ओप्रेशन से पहले मैंने अपनी वसीयत बनाई थी जिस पर मुझे वकील ओर डाक्टर के हस्ताक्षर चाहिए थे। डाक्टर साहब ने निसंकोच उस पर हस्ताक्षर किए और बोले घबराओ मत कुछ नहीं होगा। नवंबर 2017 में मेरे पति का लिवर ट्रांसप्लांट हुआ। मेरे पूरे परिवार ने इनके सह कर्मीयों ने ओर मेरे बेटे ने पूरा साथ दिया। भगवान कि कृपा से मैं ओर मेरे पति स्वस्थ हो गये। सर्जरी का निशान मेरे लिए बहुत खुबसूरत है क्योंकि इसकी वजह से ही मेरी जिंदगी में फिर से खुशीयाॅ लौट आई मेरे पति के चहरे पर मुस्कान और बेटे की आंखो मैं मेरे लिए इज्जत और प्यार है। सर्जरी को ढाई साल हो गया है मैं बिल्कुल स्वस्थ हुं। मेरे पति पहले से स्वस्थ हे इतनी बड़ी सर्जरी के बाद शुरू मे कुछ साल तो समस्या आई पर डाक्टरो की उचित देखभाल से सब ठीक हो गया। मैं डाक्टर साहब और उनकी पूरी टीम की बहुत बहुत आभारी हूं।

भगवान पर भरोसा रखकर हमें अपना कर्म इमानदारी से करना चाहिए।सही समय पर सही निर्णय लेना बहुत जरूरी है समय बीत जाने पर सिर्फ पछतावा रह जाता है।


अंग दान महादान।