मानव मंदिर मिशन में देह-दान अंग-दान संकल्प
चौदह दिसम्बर, 2014 को, दिल्ली के सराय काले खां बस टर्मिनल के निकट, जैन आश्रम, मानव मंदिर परिसर में 82 महानुभावों द्वारा देह-दान व अंग-दान का संकल्प
चौदह दिसम्बर, 2014 को, दिल्ली के सराय काले खां बस टर्मिनल के निकट, जैन आश्रम, मानव मंदिर परिसर में 82 महानुभावों द्वारा देह-दान व अंग-दान का संकल्प लिया गया, जबकि लक्ष्य 75 व्यक्तियों के लेने का था। अवसर था कि इस दिन मानव मंदिर मिशन के संस्थापक पूज्य आचार्य श्री रूपचंद्र जी महाराज की आयु के 75 वर्ष पूरे हो रहे थे। आचार्य श्री रूपचंद्र जी महाराज ने दधीचि देह-दान समिति द्वारा देह-दान के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और मानवता के लिए इसे एक महान प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि मेडिकल दृष्टिकोण से यह मानवता के लिए ऐसी साधना है जो स्वास्थ्य सेवाओं का सम्पूर्ण परिदृश्य ही बदल सकती है। उन्होंने समिति के अध्यक्ष और संबंधित सभी लोगों के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए, अमेरिका के पूर्व राष्टपति जाॅन एफ. कैनेडी द्वारा कही गई एक बात का उदाहरण दिया। उन्होंने अपनी जनता से यह कहा था कि आप ये नहीं देखें कि मैं क्या कर रहा हूं बल्कि इस पर ध्यान दें कि आप क्या कर रहे हैं। आप सब के किए बिना मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता।’’ आचार्य जी ने कहा सबकी दृष्टि लेने पर टिकी है, हमें देना भी सीखना चाहिए। उन्होंने कहा देह-दान अमरत्व को प्राप्त कराता है। चिकित्सा विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि मृृत्यु के बाद भी हमारे शरीर का एक-एक अंग, यहां तक अस्थियां भी दूसरे लोगों के काम आ सकती हैं। और इस तरह मनुष्य अमरता प्राप्त कर सकता है। यूं भी दान को पुण्य का काम माना गया है और देह-दान तो सभी दानों से बड़ा दान है, जिसका प्रारम्भ सतयुग में स्वयं महर्षि दधीचि कर चुके हैं। उन्होंने दधीचि देह-दान समिति को इस बात का श्रेय दिया कि समिति महर्षि दधीचि की परम्परा को आगें बढ़ाने और लोगों को इसके लिए प्रेरित करने के लिए प्रयत्नशील है। आचार्य जी ने इस भ्रम को तोड़ने का आह््वान किया कि दाह-संस्कार के बिना गति नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अमरता गति नहीं है?
इस अवसर पर बोलते हुए समिति के महामंत्री श्री हर्ष मल्होत्रा ने कहा कि देह-दान और अंग-दान आध्यात्म से जुडे़ हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि अलग-अलग सम्प्रदायों में गति की अलग-अलग मान्यताएं हैं। जैसे पारसियों में मृत-देह को उंचाई पर रख कर परिंदों को दान कर दिया जाता हैै। कुछ सम्प्रदायों में शव को भूमि में दफना दिया जाता है और मिट््टी के कृमियों के वह काम आ जाता है। कोई शव को नदी में प्रवााहित कर देता है और जलचरों को जीवनदान देता है। इस दृष्टि से देह-दान भी गति देता है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अब तक समिति 95 दानियों के शरीर दिल्ली के मेडिकल काॅलेजों को और 355 जोड़ी आंखें नेत्रदान बैंक में दान करवा चुकी है। अब समिति ने स्टेम सेल डोनेशन का भी एक बड़ा प्रकल्प अपने हाथ में ले लिया है।
कार्यक्रम का संचालन पूज्या साध्वी समता श्री ने किया।