Home
Print
Next

दधीचि देहदान समिति उत्सव पश्चिमी क्षेत्र
समिति से मिलकर मुझे इसकी राह मिल गई - निदेशक , नोटो

दिल्ली कैंट स्थित आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली कैंट, के प्रांगण में 24 अप्रैल 22, रविवार को दधीचि देहदान समिति, पश्चिमी क्षेत्र द्वारा देह्दानियों का 44वां उत्सव आयोजित किया गया। उत्सव की शुरुआत सुबह 10:30 बजे हुई और कार्यक्रम दो घंटे तक चला।

इस वार्षिक कार्यक्रम का उद्देशय था, गत वर्ष में जो भी अंग और देहदान हुए, उन्हें कृतज्ञता देते हुए परिवार को सम्मानित करना। साथ ही, जितने भी नये संकल्पकर्ता समिति से जुड़े हैं, उन्हें वसीयत और सर्टिफिकेट देना।

अपने इसी उद्देशय को लेकर सुबह 9 बजे ही सभी कार्यकर्ता अपनी अपनी जिम्मेवारियों के साथ कॉलेज में उपस्थित हो गए। रजिस्ट्रेशन डेस्क पर सभी वसीयतें क्रमानुसार रखीं गईं और बहुत ही सुनियोजित तरीके से उनका वितरण हुआ। ऑडिटोरियम में कार्यक्रम का शुभारम्भ वैदिक मन्त्र के साथ हुआ, जिसमे ये कामना की गई कि सभी व्यक्ति सौ और उससे भी अधिक आयु पाएं। वे जीवन भर स्वस्थ रहें।

सभी अतिथियों का स्वागत पश्चिमी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। उत्सव के मेजबान थे पश्चिमी क्षेत्र के संयोजक श्री जगमोहन सलूजा जी। उन्होंने अपने क्षेत्र की गतिविधियों का ब्यौरा दिया।

पिछला उत्सव मार्च, 2019 में आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज में ही हुआ था, जिसमें 300 संकल्पकर्ताओं की उपस्थिति थी। इस बार अप्रैल, 2022 के कार्यक्रम में 26 देहदानी परिवारों को सम्मान और 375 संकल्पकर्ताओं की वसीयतों का वितरण हुआ। श्री अरुण बंसल जी ने 75 से ज्यादा और श्री नवल खन्ना जी ने 50 से ज्यादा संकल्पकर्ताओं को समिति से जोड़ा। मौके पर उन्होंने सबको अवगत कराया कि, पश्चिमी क्षेत्र के लगभग सभी शमशान घाटों में समिति के बैनर्स लग चुकें हैं।

श्री जगमोहन सलूजा जी ने अपने वक्तव्य में उपस्थित सज्जनों से आह्वान किया कि

 “सभी लोग कम से कम दो लोगों को प्रेरित करें ताकि समिति के संस्थापक आलोक जी का अन्धमुक्त दिल्ली का सपना पूरा हो।”

आर्मी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज में एनाटोमी विभाग में प्रोफेसर डॉ. शेफाली रस्तोगी ने अत्यंत सरल शब्दों में सबको बताया कि दान की हुई देह का उपयोग तीन प्रकार से होता है। पहला, मानव संरचना की पढ़ाई के लिए, दूसरा, शोध (रिसर्च) हेतु और तीसरा, सर्जन ट्रेनिंग के लिए। देहदान के विषय में जनसाधारण के मन में आनेवाले सभी तरह के प्रश्नों के उत्तर उनकी प्रस्तुति में थे।

उन्होंने अपनी बात को दो पंक्तियों में बहुत ही खूबसूरती से रखा। उन्होनें कहा “Even in Death, we are still serving Life & we are Living in Death.”

इसी उत्सव समारोह में नुक्कड़ नाटक की प्रेरणादायक प्रस्तुति भी हुई। नुक्कड़ नाटक के लेखक थे श्री कुलविंदर जी और निर्देशिका थीं श्रीमती सीमा सलूजा जी। छह बच्चियों के माध्यम से और 3 मिनट के सीमित समय में देहदान, अंगदान और नेत्रदान की आवश्यकता को बखूबी दर्शकों तक पहुंचाने की अनूठी पहल रही यह।

आपको याद ही होगा कि दधीचि देहदान समिति का यह रजत जयंती वर्ष भी है। 25 साल की यह यात्रा बहुत से पड़ावों से गुजरी है। उत्सव में अतीत से अब तक का सारा लेखा-जोखा, समिति के महामंत्री, कमल खुराना जी ने दिया। उन्होंने दधीचि देहदान समिति की ओर से निकलने वाले ई-मैग्जीन और दधीचि कथा पर भी विस्तार से चर्चा की।

मौके पर भृगु संस्था के पीठाधीश्वर पूज्य स्वामी श्री सुशील गोस्वामी जी महाराज ने सरल शब्दों में देहदान को लेकर जनमानस की भ्रांतियों का निवारण किया। उन्होंने कहा, “देहदान, सनातन धर्म के अनुकूल है।” इस तथ्य पर उन्होंने सनातन धर्म के बहुत सारे नियमों की चर्चा करते हुए प्रकाश डाला। भारत रत्न नानाजी देशमुख को उन्होंने अपने गुरु रूप में याद करते हुए कहा कि उनके देहदान के संकल्प से उन्हें प्रेरणा मिली और फिर उन्होंने इसके बारे में अध्ययन किया।

इस उत्सव कार्यक्रम में लोगों ने समिति के कार्यकर्ताओं से समिति के बारे में जाना और अपने देहदान के संकल्प को निश्चित किया। मंच से ही उन्होने देहदान का संकल्प पत्र हस्ताक्षरित किया जिसका सबने करतल ध्वनि से स्वागत किया। इस मौके पर श्री ह्रदय प्राप्तकर्ता राहुल कुमार प्रजापति की बातें मन को छू गईं। (इस पर विस्तार से चर्चा इसी लेख के साथ बॉक्स में)

अमरपाल जी ने अपनी माता दलजीत कौर जी के देहदान के संकल्प को क्रियान्वित करने के लिये जिस दृढ़ शक्ति का परिचय दिया है, वह प्रेरणादायक है। (उनके अनुभव विस्तार से इसी लेख के साथ बॉक्स में।)

कार्यक्रम की सबसे मुख्य कड़ी- 26 दानकर्ताओं के परिवारों का माननीय अतिथियों द्वारा सम्मान किया गया। हम समझते हैं कि ये पल परिवार वालों के लिए दिवंगत आत्मा की याद में व्यथित हो जाता है, परन्तु साथ ही साथ उनके द्वारा किया गया दान उन्हें गौर्वान्वित भी कर जाता है। पुनः साधुवाद !

नोटो के निदेशक डॉ रजनीश सहाय ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में समिति की कार्यप्रणाली की प्रामाणिकता का विशेष उल्लेख किया। समिति के माध्यम से अपने देहदान के संकल्प का विचार उन्होंने मंच से रखा। उन्होंने कहा कि “डॉक्टर होने के नाते मैं चाहता था कि मेरी देह मेडिकल कॉलेज के काम में आए और समिति से मिलकर मुझे इसकी राह मिल गई है।” उन्होंने समिति के कार्यों की सराहना की और आभार व्यक्त किया।

समिति के सभी क्षेत्रों के संयोजक उत्सव में मौजूद रहे।

केंद्रीय टीम से डॉ विशाल चड्ढा, डॉ कीर्ति वर्धन साहनी, डॉ स्मृति शर्मा एवं श्रीमती मंजू प्रभा जी की उपस्थिति ने कार्यक्रम को गौरवमय बना दिया। आप सभी का साधुवाद !!

मेजर जनरल सुरेंदर मोहन जी, रामधन नांगरू जी अपने कुछ स्वास्थ्य कारणों से और अध्यक्ष हर्ष मल्होत्रा जी पारिवारिक कारणों से अनुपस्थित जरूर रहे, लेकिन समिति की हर उपलब्धियों से उनके नाम जुड़े रहे। प्रोफेसर कुलविंदर सिंह एवं श्रीमती गीता आहूजा ने मंच संचालन किया। पश्चिमी क्षेत्र की सह संयोजिका श्रीमती हेमा जौली के विनम्र धन्यवाद ज्ञापन और शांति पाठ के साथ समारोह का समापन हुआ।

पश्चिमी दिल्ली की दधीचि टीम के कार्यकर्ता अशोक आहूजा, पूनम मल्होत्रा, अजय भाटिया, पूनम जग्गी, राकेश बत्रा, सुनीता चड्ढा, सुरेश शर्मा, सरिता भाटिया, सत्या जी, कपिल जी, मीनाक्षी और बालकिशन आनंद एवं अन्य कार्यकर्ताओं ने उत्सव को सफल बनाने में बड़ी मेहनत की। ऑडियो और विडियो संकलन हेतु नरेश ढल जी का सहयोग प्राप्त हुआ। युवा वर्ग से जलज ढल व ऐश्वर्य बंसल, का सहयोग प्रशंसनीय रहा।

रिश्ते छूट गए , संकल्प नहीं टूटे

मेरा नाम अमरपाल है। कुछ समय पूर्व मेरी माता जी का देहांत हुआ था उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी पूरी देहदान कर दी जाए, जो एमबीबीएस डॉक्टर बनने के लिए काम आती है। माता जी की मृत्यु के पश्चात हमने दधीचि देहदान समिति की सहायता से उनकी इच्छा को पूर्ण किया, परन्तु हमें कई परेशानियां आयी। पहली तो ये है कि कोविड काल के चलते बॉडी का टेस्ट होना ज़रूरी था। उनका देहान्त सुबह 6 बजे हुआ था और टेस्ट कराने में भी मुश्किलें आईं अतंत: 12बजे टेस्ट हुआ रिपोर्ट भी आठ घंटे बाद आनी थी, इसलिए पार्थिव शरीर को पूरा दिन और रात घर पर ही रखना पड़ा अगली सुबह 10 बजे देहदान सम्पूर्ण हुआ! दूसरी समस्या मेरी बहन और जीजा जी के आने पर हुई, उन्होंने हमें स्पष्ट कहा कि अगर दाह संस्कार नहीं करोगे और बॉडी डोनेट करोगे तो हम यहां नहीं रुकेंगे। काफ़ी वाद-विवाद होने पर भी मैंने अपना निर्णय नहीं छोड़ा तो मेरी बहन और जीजा जी उसी समय वापस पंजाब चले गए थे और हमारी बोलचाल आज तक बंद है।

रिश्ता टूट जाने पर भी मैं सहज हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि मैंने अपनी जन्म देनेवाली माँ की अंतिम इच्छा पूर्ण की है। इसके साथ एक बात और भी बताना चाहता हूँ कि मेरी बेटी को उस समय कोविड पॉज़िटिव था पर वह दादी के अंतिम दर्शन के लिए ज़िद पर अड़ी थी तो उसे हमने अपने पति के साथ कार के अंदर दूर से ही दर्शन करने के लिए कह दिया। मेरा सारा परिवार हमारी माता जी के निर्णय से प्रेरित है। मेरी बेटी, बेटा, पत्नी और मैंने देहदान का संकल्प पत्र भरा हुआ है मैं दधीचि देहदान समिति का आभारी हूँ !

आज मेरे सीने में किसी पुण्यात्मा का दिल धडक रहा है ...

मै राहुल कुमार प्रजापति, सुपुत्र श्री ईश्वर सिंह प्रजापति, ग्राम धनोरा (सिल्वर नगर) जिला बागपत का मूल निवासी हूं और वर्तमान में दिल्ली के दुर्गापुरी में रह रहा हूं।

साल 2012 में मुझे पहली बार सांस लेने में दिक्कत और छाती में भारीपन महसूस हुआ। उस समय मेरे पिता मुझे बडौत में डॉक्टर प्रदीप जैन के पास ले गए, जहां करीब 5 महीने मेरा इलाज चला। उसके बाद मुझे दिल्ली एम्स में भेज दिया गया। एम्स में डॉक्टर संदीप सेठ ने मेरा चेकअप किया और मुझे बताया की मुझे DCMP नाम की बीमारी है, जिसमें दिल की नसें सिकुड़नी शुरू हो जाती है। एम्स में मेरा इलाज चलता रहा, इसी दौरान मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और ग्रेजुएशन पूरी की। इस दौरान मुझे गुस्सा बहुत आता था। मै घर में सिर्फ पढाई करता था या सिर्फ एकांत में चुपचाप बैठा रहता था।

11 दिसम्बर, 2017 की सुबह, मैं सोया हुआ था कि मुझे पैरेलेटिक अटैक आया। परिवार के लोग मुझे तुरंत दिलशाद गार्डन में जीवन ज्योति हॉस्पिटल ले गए। फर्स्ट ऐड के बाद मुझे एम्स इमरजेंसी में भेज दिया गया और अगले दिन मुझे सीसीयू में ट्रान्सफर कर दिया गया। एक समय मेरी दिल की धड़कन 10 तक आ गई थी। एक हफ्ते सीसीयू और 3 हफ्ते जरनल वार्ड में रहने के बाद डोक्टर ने मुझे हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए कहा। काफी दिक्कतों के बाद परिवार में ट्रांसप्लांट के लिए सहमती बनी। मेरे सभी मेडिकल चेकअप हो गए, लेकिन हार्ट उपलब्ध न होने के कारण मेरा ट्रांसप्लांट नहीं हो पाया और मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। एम्स से हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए मुझे अक्टूबर 2021 का समय मिला। मैं परेशान तो हुआ, लेकिन इन्तजार करने के अलावा मेरे पास कोई और चारा नहीं था।

फिर 17 फरवरी 2018 को एम्स से मेरे पास डॉक्टर राजीव मेकुरी जी का फोन आया कि हार्ट आ रहा है, आप तुरंत एम्स आएं। मै तुरंत शाम को एम्स पहुच गया और रात को 9 बजे हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए तैयारिया शुरू हो गई। करीब 8 घंटे के ऑपरेशन के बाद मेरे ह्रदय को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर दिया गया। 25 दिन तक हॉस्पिटल में रहने के बाद मेरी छुट्टी हुई।

डॉक्टर की सलाह पर मेरा घर बदला गया। पहले संकरी गली में घर था, लेकिन फिर हमने अशोक नगर से घर बदल कर दुर्गापुरी में घर लिया। घर में पंखो की जगह एसी लगवाया गया और घर से परदे हटवा दिए, ताकि घर में किसी भी तरह से धूल मिट्टी ना आए। डॉक्टर ने एक साल के लिए आइसोलेशन के लिए कहा। डॉक्टर की ही सलाह के बाद, मैंने पूरी सावधानी के साथ 3 महीने के बाद पार्क जाना शुरू कर दिया और 8 महीने के बाद मैंने रनिंग शुरू कर दी। मुझे हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई. ट्रांसप्लांट से पहले भी और उसके बाद भी मैंने मानसिक तौर पर पूरी तरह मजबूती बनाई रखी। मै अपने भोजन का पूरा ध्यान रखता हूं। किसी भी तरह की चिकनाई, मसालों और नमक का परहेज करता हूं। प्रतिदिन योग, व्यायाम और दौड़ लगाता हूं। हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद मैंने अशोका होटल और सम्राट होटल में नौकरी की। कोरोना के शुरू होने पर डॉक्टर की सलाह पर मैंने नौकरी छोड़ दी। अब मै ऑस्ट्रेलिया में होने वाले ट्रांसप्लांट खेलों के लिए तैयारी कर रहा हूं।

मुझे जिस व्यक्ति का हृदय लगा मै उस व्यक्ति के और उसके परिवार के प्रति अत्यंत कृतज्ञ हूं। मैं अपने इलाज करने वाले और हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाले सभी डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ का भी बहुत आभारी हूं। अंगदान की महत्ता मुझसे ज्यादा कौन समझ सकता है। आज मेरे सीने में किसी पुण्यआत्मा का दिल धडक रहा है। अपने हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद मै निरंतर एम्स के अपने डॉक्टर के साथ जुड़ा हूं और हृदय प्रत्यारोपण से जुडी लोगों की भ्रांतियों को दूर करने में मेडिकल स्टाफ की मदद करता रहता हूं। समाज में अंगदान और देहदान के विचार के विस्तार के लिए मुझ से जो संभव होगा, मैं जरुर करूंगा।