देहदान: ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ दान
शशि गुप्ता
भौतिक चिकित्सक, नोएडा
आज अंगदान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए सबसे मूल्यवान उपहार है, क्योंकि यह उसे नवजीवन प्रदान करता है। चिकित्सा के क्षेत्र में अंगदान काफी महत्वपूर्ण है और इसमें काफी विकास भी हुआ है। अंगदान मुख्य रूप से प्रत्यारोपण (Transplant) के उद्देश्य से किया जाता है। अंगदान करने वाला व्यक्ति इस महान कार्य के माध्यम से अंग प्राप्तकर्ता को एक नया जीवन देता है।
अंगदान का अर्थ और प्रक्रिया
अंगदान का सीधा सा अर्थ है कि किसी व्यक्ति के शरीर के अंगों को निकालकर किसी अन्य जरूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित (डालना) करना। यह दान दाता या उसके परिवार की सहमति से बिना किसी लाभ के दिया हुआ होना चाहिए।
आज देश में गुर्दे (किडनी), हृदय वाल्व, पैंक्रियाज, आंखें, लिवर, छोटी आंत, हड्डियों के टिश्यू, त्वचा के टिश्यू, कान के टिश्यू, कान का पर्दा, और नसें जैसे अंगों और ऊतकों का दान किया जाता है।
अंगदान जीवित और मरणोपरांत दोनों ही स्थितियों में किया जा सकता है:
जीवित व्यक्ति अपना एक गुर्दा, या लिवर का एक टुकड़ा, या कुछ टिश्यू (ऊतक) दान कर सकता है।
मरणोपरांत परिवार की सहमति से, उस समय उपयोग में लाए जा सकने वाले अंगों की स्थिति की जांच के बाद अंगदान किया जाता है।
अंगदान के लिए दाता और प्राप्तकर्ता दोनों के चिकित्सा संबंधी परीक्षण किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंग प्रत्यारोपण के लायक है या नहीं। अंगदान की क्रिया और प्रत्यारोपण को शीघ्र अति शीघ्र करना होता है, अन्यथा प्रत्यारोपण की सफलता दर कम हो जाती है।
अंगदान का महत्व और प्रोत्साहन
भारत में प्रति वर्ष 13 अगस्त को राष्ट्रीय अंगदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को अंगदान के प्रति शिक्षित और उत्साहित करना है। अंगदान से किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति के जीवन की रक्षा की जा सकती है और उसे एक नया जीवन दिया जा सकता है।
दुनिया भर में अंगदान की प्रक्रिया को विभिन्न माध्यमों से प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन भारत में अभी भी मृत्यु के बाद अंगदान की दर बहुत कम है, और इस क्षेत्र में विकास की अत्यधिक आवश्यकता है।
देहदान: ज्ञान और शिक्षा का दान
जहां अंगदान नवजीवन देता है, वहीं देहदान इसके विपरीत हजारों विद्यार्थियों को लाभान्वित करता है।
देहदान का अर्थ है (जो कि मरणोपरांत होता है) किसी उत्तम कार्य के लिए अपनी देह ही दान कर देना। यह वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा और शारीरिक अध्ययन (विशेषकर मेडिकल छात्रों के लिए डाइसेक्शन) हेतु अत्यंत उपयोगी होता है। इस महान कार्य के लिए बहुत साहस चाहिए।
कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी इच्छा से मेडिकल कॉलेजों में अपनी देह दान कर सकता है। मरणोपरांत देहदान करने की इच्छा का पूर्व पंजीकरण सभी सरकारी मेडिकल संस्थाओं में कराया जाता है। बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाएं (NGOs) भी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
प्रेरक उदाहरण
इतिहास और समाज में ऐसे कई महान उदाहरण मिलते हैं।कहा जाता है कि राजकुमार सत्व ने सात शावकों को भूख से बचाने के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया था।
ऋषि दधीचि ने दैत्यों का संहार करने हेतु अपने शरीर की हड्डियों से अस्त्र-शस्त्र बनाने के लिए अपने शरीर का त्याग किया था।हिंदी भाषा के प्रमुख साहित्यकार विष्णु प्रभाकर जी और पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु द्वारा मरणोपरांत किया गया देहदान समाज के लिए प्रेरक उदाहरण हैं। हममें से अधिकांश लोग इसके बारे में जानते ही होंगे। हममें से अधिकांश लोग इसके बारे में जानते ही होंगे। यदि आप भी इस बारे में मन बनाते हैं, तो अपने नजदीकी सरकारी अस्पताल या मेडिकल कॉलेज में संपर्क कर सकते हैं।
अंत में, मैं फिर से कहना चाहूंगी:अंगदान महादान,देहदान सर्वश्रेष्ठ दान और उन लोगों को प्रणाम, जो इस बारे में सोचते हैं।

