एक कलाकार की जिंदगी का सबसे बड़ा दान
डॉ. प्रेमचंद होम्बल का निधन 19 अप्रैल 2025 को लखनऊ के मेदांता अस्पताल में हुआ, जहां वे उपचाराधीन थे। वे उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2000) एवं केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2021) से सम्मानित थे । काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय में उन्होंने लगभग 37 वर्षों तक अध्यापन किया और विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य किया। गुरुदेव ने ‘उत्तर प्रियदर्शी’, ‘त्रिपथगा’, ‘बुद्ध चरित्र’ जैसे बैलेट और ‘दूतवाक्यम्’, ‘कर्णभारम्’, ‘ऊरुभंगम्’ जैसे संस्कृत नाटकों का निर्देशन, कोरियोग्राफी और अभिनय किया।
उनके पिता, पंडित शंकर होम्बल, स्वयं एक प्रतिष्ठित भरतनाट्यम कलाकार थे, जिन्हें 1997 में ‘शिखर सम्मान’ मिला था। डॉ. होम्बल ने जीवन में पहले से संकल्प लिया था कि मरणोपरांत उनका शरीर चिकित्सकीय शिक्षा हेतु आईएमएस-बीएचयू को दान किया जाए । निधन के अगले दिन — रविवार को — उनके परिवार ने देर शाम शव लखनऊ से वाराणसी पहुंचाया, जहां देहदान की औपचारिक प्रक्रिया पूरी की गई।
आईएमएस-बीएचयू के एनाटॉमी विभाग द्वारा शव की संरक्षा की जाएगी, जिससे छात्रों को मानव शरीर की गहन अध्ययन और शोध के अवसर मिलेंगे।
डॉ. प्रेमचंद होम्बल न केवल भरतनाट्यम महोत्सव के चमकते सितारे थे, बल्कि शिक्षा और विद्वता के सच्चे प्रतीक थे। कला को जीवन का रूप देने वाले गुरु ने, शिक्षा को अंतिम विदा स्वरूप देहदान के माध्यम से अमर कर दिया। उनका योगदान नृत्य, अभिनय और मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में सदैव प्रेरणा बनकर रहेगा।

