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कुसुम की कहानी-जिंदगी के बाद परोपकार की खुशबू

 दिल्ली के नरेला क्षेत्र की 21 वर्षीय कुसुम गुप्ता की कहानी न केवल दुखद है, बल्कि अत्यंत प्रेरणादायक भी है। 13 अप्रैल 2025 को एक सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल होने के बाद, कुसुम ने 15 दिनों तक जीवन के लिए संघर्ष किया, लेकिन अंततः चिकित्सकों ने उन्हें 'ब्रेन डेड' घोषित कर दिया।

कुसुम मिरांडा हाउस कॉलेज में बीएलएड कोर्स की अंतिम वर्ष की छात्रा थीं। वह न केवल पढ़ाई में मेधावी थीं, बल्कि बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उन्हें शिक्षित करने का कार्य भी करती थीं। प्रकृति प्रेमी और सदैव मुस्कराने वाली कुसुम ने अपने नाम के अर्थ 'फूल' को सार्थक करते हुए, जीवन के बाद भी अपनी खुशबू से अन्य लोगों के जीवन को महकाया।

कुसुम के पिता, सुधीर गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर होने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नरेला इकाई में सह नगर कार्यवाह भी हैं। बेटी के असामयिक निधन से दुखी होकर, उन्होंने और उनके परिवार ने अंगदान का निर्णय लिया। कुसुम की दोनों किडनियां, लीवर, आंतें और आंखें दान की गईं, जिससे दिल्ली और मुंबई में कई जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन मिला।

इस निर्णय के पीछे संघ के संस्कारों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। जीवन तभी सार्थक होता है जब वह किसी और के काम आए। कुसुम के पिता ने कहा, "बेटी को तो हम नहीं बचा सके, लेकिन उसके अंगों से कई लोगों को जीवन मिल सके– यही हमारी सबसे बड़ी सांत्वना है।"

कुसुम की अंतिम यात्रा में न केवल आँसू थे, बल्कि गर्व और प्रेरणा भी थी। उनकी इस आत्मीयता और समाज सेवा की भावना ने उन्हें 'अंगदाता नायिका'बना दिया। उनकी कहानी समाज में अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने और दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देती है।

कुसुम अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके अंगों से कई जीवन मुस्करा रहे हैं। उनकी यह मुस्कान उस परिवार की देन है, जिसने अपने गहरे दुख को समाज कल्याण में बदलने की मिसाल कायम की।